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[ १४ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क करता है उन्हें ही यदि धर्म के लिये करे तो संसार में कोई दुःखी नहीं रह सकता।
अर्थार्थी यानि कर्माणि करोति कृपणो जनः । तान्येव यदि धर्मार्थ कुर्वन् को दुःखभाग्भवेत् ॥१८॥ भिन्न-भिन्न वस्तुओं एवं पतितों के छू जाने से स्नान का विधान किसी वस्तु को बेचने पर स्नान का विधान आवश्यक है ( १८४-१८८)।
श्रुति स्मृति के आदेश प्रभु की आज्ञा है इनको न माननेवाले को भगवद्भक्त बनने का अधिकार नहीं (१८६)। सच्चे अन्धे का लक्षण-जो श्रुति स्मृति का अध्ययन, मनन और अनुशीलन कर उनके मार्ग का अनुष्ठान नहीं करता वह अन्धा है (१६०-१६१)। पापी को धर्मशास्त्र अच्छे नहीं लगते (१९२)।
सच्चा ब्राह्मण वही है जो भृण करने से ऐसे डरता है जैसे सर्प को देखकर। सम्मान से ऐसे दूर रहता है जैसे लोग मरने से और स्त्रियों के सम्पर्क से जैसे मृतक से घृणा होती है वैसे दूर रहता है। ब्राह्मण वह है जोशान्त हो, दान्त हो, क्रोध को जीतनेवाला हो, आत्मा पर पूरा अधिकार करनेवाला हो, इन्द्रियों का निग्रह कर चुका हो। ब्राह्मण का यह शरीर उपभोग के लिये नहीं बल्कि इस शरीर में क्लेश के साथ तपस्या करते हुए