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[ 8 ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठा पड़ते। स्नान किये बिना भोजन करनेवाला मल का भोजन करता है (६९-७५)।
शिव सङ्कल्प सूक्त का पाठ, मार्जन, अघमर्षण, देवर्षि पितृ तर्पण ये स्नान के पांच अङ्ग हैं (७६-७७)। जल के अवगाहन, जल में अपने शरीर का अभिषेक, जल को प्रणाम और जल में तीर्थों गङ्गादि नदियों का आवाहन फिर मजन, अघमर्षण, देवर्षि पितृतर्पण का विधान बतलाया गया है (७८-८६)। प्रातः स्नान का महत्त्व । अपने शरीर को पोंछने पर सूखे कपड़े पहनकर उत्तरीय धारण करे। वन्दन और तर्पण के समय इसे कटि प्रदेश में ही बांधे रक्खे। फिर तिलक करे। पर्वत की चोटी से, नदी के किनारे से, विशेष रूप से विष्णु क्षेत्र में मिली सिन्धु के तट पर तुलसी के मूल की मिट्टी से तिलक प्रशस्त बताया गया है (१०-१०८)।
श्यामतिलक शान्तिकर लाल वश में करनेवाला, पीला लक्ष्मी देनेवाला और सफेद मोक्षदाता बतलाया है (१०६-११०)। भगवान् पर चढ़ाये गये हरिद्रा के चूर्ण के तिलक का माहात्म्य (१११) सम्पूर्ण संसार में जो कर्महीन द्विजाति मात्र हैं उनको शुद्ध करने के लिये सन्ध्या स्वयं ब्रह्मा ने बनाई। प्रातःकाल गायत्री का ध्यान, मध्याह्न में सावित्री