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[ ८] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क दूसरे के बनाये हुए सरोवर में स्नान करने से उस बनानेवाले के दुष्कृत (पाप) स्नानार्थी को लगते हैं अतः उसमें न नहावे (६४)। सोकर उठने से लारपसीनों से भरा हुआ मनुष्य अशुद्ध है उसे स्नानादि से शुद्ध होनेपर ही नित्यकर्म सन्थ्योपासन देवर्षि पित तर्पण करना चाहिये। सूर्योदय के पूर्व प्रातःकाल का स्नान प्राजापत्य यज्ञ के समान हैं और आलस्यादि को नष्ट कर मनुष्य को उन्नत विचार और कार्यशील बना देता है। स्नान के समय पहने वन से शरीर को न मले न पोंछे ही इससे शरीर कुत्ते के द्वारा सूंघा हुआ हो जाता है जो फिर स्नान करने से ही शुद्ध होता है (६५-६८)।
स्नान मूलाः क्रियाः सर्वाः सन्ध्योपासनमेव च । स्नानाचारविहीनस्य सर्वाः स्युः निष्फलाः क्रियाः ।।६७॥ सम्पूर्ण क्रियायें स्नान के अन्तर्गत ही हैं। रविवार को उषा काल में स्नान करने से हजार माघ स्नान का फल और जन्म दिन के नक्षत्र में वैधृत पुण्यकाल, व्यतीपात और संक्रान्ति पर्वो में, अमावस्या को नदी में स्नान कोटि कुलों का उद्धार कर देता है। प्रातः स्नान करनेवाले को नरक के. दुःख कभी नहीं देखने