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४. स्मरण कला
सक्षेप मे १. शका, २. काक्षा, ३ विचिकित्सा, ४. अन्य प्रशसा और ५. कुसग ये पांच बाते मन को एकाग्रता को भग करने मे निमित्त रूप है। तथा १ प्रात्म श्रद्धा, २ प्रतीति, ३. दृढ-विश्वास ४ स्थिरता और ५ सत्सग ये मन की धारा को एकाग्र रखने के उत्तम उपाय है।
यहाँ पर एक स्पष्टीकरण कर देना भी उचित समझता हूँ कि मन मे उठते विविध विकल्पो के समाधान प्राप्त करने की तत्परता रखनी चाहिए । यह किसी भी प्रकार की कार्य सिद्धि मे बाधक नही प्रत्युत साधक है। यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि प्रश्न उनके नही उठते है, जो सम्पूर्ण ज्ञानी है, या फिर पूरे-पूरे मढ़ है। इन दोनो स्थितियो की बीच की स्थिति वाले मनुष्यो के तो प्रश्न अवश्य उठते है और उनका समाधान होता है तभी मनुष्य आगे बढ सकता है। इसीलिए अनुभवी पुरुषो ने बुद्धिमान होने के लिए निम्नोक्त पाठ गुरणो को प्रमुख स्थान दिया है
१. शास्त्र विज्ञान) श्रवण की इच्छा ' २ शास्त्र को समझना
३. मन मे उतारना ४ याद करना ५ उस पर तक करना ६ उस पर विविध प्रकार से चिन्तन करना। ७. तर्क पर योग्य समाधान प्राप्त करना । ८- उसके सम्बन्ध मे अन्त.करण मे दृढ निश्चय करना ।
इस ( विषय ) के सम्बन्ध मे तुम्हे जो जो प्रश्न उठे, उन्हे बिना सकोच मुझे सूचित करना। उनके उत्तर अपने अध्ययन और अनुभव के मुताविक देता रहूँगा। ये उत्तर कई बार सक्षेप मे तो कई वार विस्तार से मिलते रहेगे । इनका आधार प्रश्न की योग्यता और तुम्हारी विषय-ग्रहण करने की शक्ति पर निर्भर होगा।
मैं मानता हूँ कि तुम आवश्यक प्रश्नो का समाधान प्रथम प्राप्त करोगे तो सफलता शीघ्र मिलेगी।
मंगलाकाक्षी मनन
धी प्रतिज्ञा-पार पाने के लिए व्यवस्थित पुरुषार्थ-मानसिक एकाग्रता की स्थिरता-कार्य सिद्धि ।