Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 20
________________ ...(35) श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला. ॥ २४ ॥ जहा से तिक्खसिंगे, जायखन्धे विराबई । वसहे जूहाहिवई, एवं हवs बहुस्सु जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए । सीड़े मियाण पवरे, एवं हवड् बहुस्सु जहा से वासुदेवे, संखचकमयाधरे । अप्पडिहयबले जोहे, एवं हवइ बहुस्सुए जहा से चाउरन्ते, चक्कबट्टी महिड्डिए । चोहसरयणाहिवई, एवं हवइ बहुस्सु जहा से सहारसक्खे, वज्रपाणी पुरन्दरे । सक्के देवाहिवई, एवं हवइ बहुस्सु जहा से तिमिरविद्धंसे, उचिट्ठन्ते दिवायरे । जलन्तं इव तेएण, एवं हव बहुस्सु ॥ जहा से उडुवई चन्दे, नक्खत्तपरिवारिए । पडिपुण्णे पुण्णमासीए, एवं हवइ बहुस्सु जहा से समाइयाणं, कोट्टागारे सुरक्लिए । नाणाधन पडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ जहा सा दुमाण पवरा, जम्बू नाम सुदंसणा । अणाढियस्स देवस्स, एवं हवइ बहुस्सु ॥ २७ ॥ जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवन्तपवहा, एवं हवइ बहुस्सुए || २८ ॥ जहा से नगाण पवरे, सुमहं मन्दरे गिरी । नाणोसहिपज्जलिए, एवं हवइ बहुस्सुए ।। २९ ।। जहा से सयंभुरमणे, उदही अक्खओदए । नाणारयणपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सु || ३० || समुद्दगम्भीरसमा दुरासया, अचक्किया केणइ दुप्पहंसया । २५ || २६ ॥ यस पुण्णा विजलस्स ताइणो, खक्ति कम्मं गहमुत्तमं गया . तम्हा सुयमहिद्विज्जा, उत्तमट्टगवेसए । जेणप्पाणं परं चैव, सिद्धिं संपाउणेज्जासि ॥ ति बेमि ॥ इअ बहुस्सुयपुजं समत्तं ॥ ११ ॥ ॥ ३१ ॥ ३२ ॥ ॥ ॥ ॥ || १९ ॥ २० ॥ २१ ॥ २२ ॥ २३ ॥ ॥ अह हरिए सिज़ बारहं अज्झयणं ॥ १ ॥ सोवामकुलसंभूओ, गुणुत्तरधरो मुणी, हरिएसबलो नाम, आसि भिक्खू जिइन्दिओ ॥ इरिएस भासा उच्चारसमिसु य । जओ आयाणनिक्खेवे, संजओ सुसमाहिओ ॥ २ ॥ मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइन्दिओ । भिक्खट्टा बम्भइज्जम्मि, जन्नवाडे उवट्टिओ ॥ ३ ॥ तं पासिऊणं एज्जन्तं तवेण परिसोसियं । पन्तोव हिउवगरणं, उवहसन्ति अणारिया ॥ ४॥ जाईमय पथिद्धा, हिंसगा अजिइन्दिया । अबम्भचारिणो बाला, इमं वयणमब्बवी ॥ ५ ॥ करे आगछड् दित्तरूवे, काले विगराले फोक्कनासे । ओमचेलए पंसुपिसायभूए, संकरसं परिवरिय कण्ठे ॥ ६ ॥ को रे तुम इय अदंसणिज्बे, काए व आसाइहमागओसि । ओमचेलया पंसुपिसायभूया, गच्छक्ख लाहिं कि मिहिं ठिओ सि ॥ ७ ॥ जक्खे तर्हि तिन्दुरुक्खचासी, अणुकम्पओ तस्स महामुणिस्स । पच्छायइत्ता नियगं सरीरं, इमाहूं वयणाइमुदाहरित्था || ८ || समणो अहं संजओ, बम्भयारी, विरओ घणपयणपरिग्गहाओ । परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले, अनस्स अट्ठा इहमागओमि ॥ ९ ॥ वियरिज्जर खज्जर भुर्जी, अनं पभूयं भवयाणमेयं ।

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