Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला पुरोहियं तं कमसोऽणुणिन्तं, निमंतयन्तं च सुए धणेणं । जहक्कम कामगुणेहि चेव, कुमारगा ते पसंमिक्ख वकं ॥ ११ ॥ वेया अहीया न भवन्ति ताणं, भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेणं । जाया य पुत्ता न हवन्ति ताणं, कोणाम ते अणुमन्नेज एयं ॥ १२ ॥ खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा,पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा । संसारमोक्खस्स विपक्खभूया,खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ।। १३ ॥ परिव्वयन्ते अणियत्तकामे, अहो य राओ परितप्पमाणे । अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे, पप्पोति मच्चुं पुरिसे जरं च ॥१४॥ इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं । तं एवमेयं लालप्पमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पमाए ॥ १५ ॥ धणं पभूयं सह इत्थियाहिं, सयणा तहा कायगुणा पगामा । तवं कए तप्पइ जस्स लोगो, तं सब साहीणमिमेव तुभं ॥ १६ ॥ धणेण किं धम्मघुराहिगारे, सयणेण वा कामगुणेहि चेत्र । समणा भविस्सामुगुणोहधारी,कहिंविहारा अभिगम्म भिक्खं ।। १७ ।। जहा य अग्गी अरणी असन्तो, खीरे घयं तेल्लमहा तिलेसु । एमेव ताया सरीरंसि सत्ता, संमुच्छइ नासइ नावचिट्टे ॥ १८ ॥ नोइन्दियग्गेज्झत्तमुत्तभावा, अमुत्तभावा वि य होइ निचो । अज्झत्थहेउं निययस्स बन्धो, संसारहेउं च वयन्ति बन्धं ॥ १९ ॥ जहा वयं धम्मं अजाणमाणा, पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । ओलभमाणा परिरक्खयन्ता, तं नेत्र भुजो वि समायरामो ॥ २० ॥ अब्भाहयम्मि लोगम्मि, सवओ परिवारिए । अमोहाहिं पडन्तीहिं, गिहंसि न रइं लभे ॥ २१ ॥ केण अब्भाहओ लोगो, केण वा परिवारिओ। का वा अमोहा वुत्ता, जाया चिन्तावरो हुमे ।। २२ ॥ मच्चुणाऽब्भाहओ लोगो, जराए परिवारिओ। अमोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय विजाणह ॥ २३ ॥ जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई । अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जन्ति राइओ ॥ २४ ॥ जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई । धम्मं च कुणमाणस्स, संफला जन्ति राइओ ॥ २५ ॥ एगओ संवसित्ताण, दुहओ सम्मत्तसंजुया । पच्छा जाया गमिस्सामो, भिक्खमाणा कुले कुले ॥ २६ ॥ जस्तथि मन्चुगा सक्ख, जस्त चत्थि पलायणं ।
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