Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-चोद्दमाध्ययनम्
(२३)
णो जाणे न मरिस्सामि, सो हु कंखे मुए सिया ॥ २७ ॥ अजेब धम्म पडिवजयामो, जहिं पवना न पुणब्भवामो । अणागयं नेव य अस्थि किंची, सद्धाखमंणे विणइत्तु रागं ॥ २८ ॥ पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो,वासिद्धि भिक्खायरियाइ कालो। साहाहि रुक्खो लहई समाहिं, छिन्नाहि साहाहि तमेव ठाणुं ॥ २९ ॥ पंखाविहूणो व्व जहेव पक्खी, भिच्चबिहूणो व्य रणे नरिन्दो । विवन्नसारो वणिओ व्व पोए, पहीणपुत्तो मि तहीं अहंपि ॥ ३० ॥ सुसंमिया कामगुणे इमे ते, संपिण्डिया अग्गरसप्पभूया । भुंजामु ता कामगुणे पगाम, पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं ॥ ३१ ॥ भुत्ता रसा भोइ जहाइ णे वओ, न जीवियट्ठा पजहामि भोए । लाभं अलाभं च सुहं च दुक्खं,संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ॥३२॥ माहू नुमं सौयरियाण सम्भरे, जुणो व हंसो पडिसोत्तगामी । भुंजाहि भोगाइ मए समाणं, दुक्खं खु भिक्खायरियाविहारो ॥ ३३ ॥ जहा य भोई तणुयं भुयंगो, निम्मोयणिं हिच पलेइ मुत्तो। एमेए जाया पयहन्ति भोए, ते हं कहं नाणुगमिस्समेको ।। ३४ ॥ छिन्दित्तु जालं अबलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाय । धोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खाचरियं चरन्ति ॥ ३५ ।। नहेव कुंचा सयइक्कमन्ता, तयाणि जालाणि दलित्त हंसा । . पलेन्ति पुत्ता य पई य मज्झं, ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्का ॥ ३६ ॥ पुरोहियं तं ससुयं सदारं, सोच्चाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए । कुडुम्बसारं विउलुत्तमं च, राय, अभिक्खं समुदाय देवी ॥ ३७॥ वन्तासी पुरिसो रायं, न सो होइ पसंसिओ । माहणेण परिच्चत्तं, धणं आदाउमिच्छसि ॥ ३८॥ सव्वं जगं जइ तुहं, सव्वं वावि धणं भवे । सव्वं पि ते अपज्जतं, नेव ताणाय तं तव ॥ ३९॥ मरिहिसि रायं जया तया वा, मणोरमे कामगुणे विहाय । एको हु धम्मो नरदेव ताणं, न विजई अनमिहेह किंचि ॥ ४० ॥ नाहं रमे पक्खिणि पंजरे वा, संताणछिन्ना चरिस्सामि मोणं ।
अकिंचणा उज्जुकडा निरामिसा, परिग्गहारम्भनियत्तदोसा ॥ ४१ ।। दवग्गिणा जहा रण्णे, डज्झमाणेसु जन्तुसु । अन्ने सत्ता पमोयन्ति, रागद्दोसवसं गया ॥ ४२ ॥ एवमेव वयं मूढा, कामभोगेसु मुच्छिया । डज्झमाणं न बुज्झामो, रागदोसग्गिणा जगं ॥ ४३ ॥ भोगे भोच्चा वमित्ता य, लहुभूयविहारिणो । आमोयमाणा गच्छन्ति, दिया कामकमा इन ॥ ४४ ॥ इमे य बद्धा फन्दन्ति, मम हत्थजमागया। वयं च सत्ता कामेसु, भविस्सामो जहा इमे ॥ ४५ ॥
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