Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 70
________________ श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. ॥ अह जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं । जीवाजीवविभत्ति, सुणेड मे एगमणा इओ । जं जाणिऊण भिक्खू , सम्म जयइ संजमे ॥ १ ॥ जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए । अजीवदेसमागासे, अलोगे से वियाहिए ॥ २॥ दव्वओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा । परूवणा तेसि भवे, जीवाणमजीवाण य ॥ ३॥ रूविणो चेवरूवी य, अजीवा दुविहा भवे । अरूबी दसहा वुत्ता, रूविणो य चउबिहा ॥ ४ ॥ धम्मत्थिकाए तद्देसे, तप्पएसे य आहिए । अहम्मे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए ॥ ५ ॥ आगासे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए । अद्धासमए चेव, अरूवी दसहा भवे ॥६॥ धम्माधम्मे य दो चेव, लोगमित्ता वियाहिया। लोगालोगे य आगासे, समए समयखेत्तिए ॥ ७॥ धम्माधम्मागासा, तिन्निवि एए अणाइया । अपज्जवसिया चेव, सव्वद्धं तु वियाहिया ॥८॥ समएवि सन्तइं पप्प, एवमेव वियाहिए । आएसं पप्प साईए, सप्पन्जवसिएवि य ॥९॥ खन्धा य खन्धदेसा य, तप्पएसा तहेव य । परमाणुणो य बोधवा, रूविणो य चउबिहा ॥ १० ॥ एगत्तेण पुहत्तेण, खन्धा य परमाणुणो । लोएगदेसे लोए य, भइयचा ते उ खेत्तओ ॥ ११ ॥ ___ इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउविहं ॥ १२ ॥ संतई पप्प तेऽणाई, अप्पज्जवसियावि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपन्जवसिया वि य ॥ १३ ॥ असंखकालमुक्कोसं,एको समओ जहन्नयं । अजीवाण य रूवीण, ठिई एसा वियाहिया ॥ १४ ॥ अणन्तकालमुक्कोसमेको, समओ जहन्नयं । अजीवाण य रूवीण, अन्तरेयं वियाहियं ॥ १५ ॥ वण्णओ गन्धओ चेव,रसओ फासओ तहा। संठाणओ य विनओ, परिणामो तेसि पंचहा ॥ १६ ॥ वण्णओ परिणया जे उ,पञ्चहा ते पकित्तिया। किण्हा नीला य लोहिया,हलिद्दा सुकिला तहा ॥ १७॥ गन्धओ परिणया जे उ,दुविहा ते वियाहिया। सुब्भिगन्धपरिणामा,दुब्भिगन्धा तहेव य ॥ १८ ॥ रसओ परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया । तित्तकडुयकसाया, अम्बिला महुरा तहा ॥ १९ ।। फासओ परिणया जे उ, अट्टहा ते पकित्तिया। कक्खडा मउआ चेव, गरुया लहुवा तहा ॥ २० ॥ सोया उण्हा य निद्धा य,तहा लुक्खा य आहिया। इय फासपरिणया एए,पुग्गला समुदाहिया ॥२१॥ संठाणओ परिणयाजे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया। परिमएडला य वट्टा य, तंसा चउरंसमायया ॥ २२ ॥ वण्णओ जे भवे किण्हे, भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २३ ॥ वण्णओ जे भवे नीले, भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २४ ॥ वण्णओ लोहिए जे उ, भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओवि य ॥ २५ ॥ वण्णवो पीयए जे उ, भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। २६ ॥ वण्णओ सुकिले जे उ, भइए से उ अन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २७ ॥ गन्धओ जे भवे सुब्भी, भइए से उ वण्णओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २८ ॥ गन्धओ जे भवे दुम्भी, भइए से उ बण्णओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। २९ ।। रसओ तित्तए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३०॥

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