Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र- छतीस माध्ययनम्
(७३)
I
२३० ॥
२३१ ॥
साहीयं सागरं एकं, उक्कोसेण ठिई भवे । भोमेज्जाणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥ २१८ ॥ पलिओममेगं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । वन्तराणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया || २९९ ॥ पलिओवममेगं तु. वासलक्खेण साहियं । पलिओ मट्टभागो, जोइसेसु जहन्निया ॥ २२० ॥ दो चैव सागराई, उक्कोसेण वियाहिया । सोहम्मम्मि जहनेणं, एगं च पलिओवमं ।। २२१ ॥ सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोसेण वियाहिया । ईसाणम्मि जहन्नणं, साहियं पलिओवमं ।। २२२ ।। सागराणि य सत्तेव, उक्कोसेण ठिई भवे । सणकुमारे जहनेणं, दुन्नि उ सागरोवमा || २२३ || साहिया सागरा मत्त, उक्कोसेणं ठिई भवे । माहिन्दम्मि जहन्नेणं, साहिया दुन्नि सागरा || २२४ || दस चेव सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । बम्भलोए जहन्नेणं, सत्त ऊ सागरोवमा ।। २२५ ॥ चउदस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । लन्तगम्मि जहनेणं, दस उ सागरोवमा ॥ २२६ ॥ सत्तरस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । महासुके जहन्नेणं, चोदस सागरोवमा || २२७ ॥ अट्ठारस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । सहस्सारम्मि जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा ।। २२८ ॥ सागरा अडणवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । आणयम्मि जहन्नेणं, अट्ठारस सागरोवमा ।। २२९ ॥ वीसं तु सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । पाणयम्मि जहन्नेणं, सागरा अणवीसई ॥ सागरा इकवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । आरणम्मि जहन्नेणं, वीसई सागरोवमा ॥ बावीसं सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । अच्चुयम्मि जहन्नेणं, सागरा इक्कवीसई || तेवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । पढमम्मि जहन्नेण, बावीसं सागरोवमा ॥ चवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । बिइयम्मि जहन्नेणं, तेवीसं सागरोवमा ।। पणवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । तइय जहन्नेणं, चउवीसं सागरोवमा ॥ छवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । चउत्थम्मि जहन्नेणं, सागरा पणुवीसई ॥ सागरा सत्तवीसं तु, उक्कोसेण ठिई मवे । पञ्चमम्मि जहनेणं, सागरा उ छवीसई || सागरा अट्ठवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । छट्ठम्मि जहनेणं, सागरा सत्तसई ॥ सागरा अणतीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । सतमम्मि जहन्नेणं, सागरा अट्ठवीसई || तसं तु सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । अट्ठमम्मि जहनेणं, सागरा अउणतीसई ॥ सागरा इकतीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । नवमम्मि जहन्नेणं, तीसई सागरोवमा ॥ तेत्तीसा सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । चउसुंपि विजयाईसु, जहनेणेक्कतीसई || २४२ ॥ अजहन्नमणुक्कोसा, तेत्तीस सागरोवमा | महाविमाणे संघट्टे, ठिई एसा वियाहिया ॥ २४३ ॥ जा चैव उ आउठिई, देवाणं तु वियाहिया । सा तेसिं कायठिई, जहन्नमुक्कोसिया भवे || २४४ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, देवाणं हुआ अन्तरं ।। २४५ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफायओं । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो || २४६ ।। संसारत्थाय सिद्धाय, इय जीवा वियाहिया । रूविणो चेवरुवीय, अजीवा दुहिहावि य इय जीवमजीवे य, सोचा सद्दहिऊण य । सवनयाणमणुमए रमेज्ज संजमे मुणी तओ बहूणि वासाणि, सामण्णमणुपालिय । इमेण कम्मजोगेण, अप्पाणं संलिहे मुणी बारसेव उ वासाई, संलेहुक्कोसिया भवे । संवरच्छरमज्झिमिया, छम्मासा य जहन्निया ।।
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