Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 99
________________ श्रीदसवैकालिकसूत्र-नवमाध्ययनम् नीअं सिज्जं गई ठाणं, नीअंच आसणाणि अ। नीअंच पाए वंदिज्जा, नीअंकुज्जा अ अंजलिं ॥ १७ ॥ संघट्टइत्ता काएणं, तहा उवहिणामवि । खमेह अवराहं मे, वइज्ज न पुणु त्ति अ॥१८॥ दुग्गओ वा पओएणं, चोइओ वहइ रहं । एवं दुबुद्धि किच्चाणं, वुत्तो कुत्तो पकुबइ ॥ १९॥ आलवंते लवंते वा, न निसिज्जाए पडिस्सुणे । मुत्तूण आसणं धीरो, सुस्सूसाए पडिस्सणे ॥ २० ॥ कालं छंदोवयारं च, पडिलेहिताण हेउहिं । तेण तेण उवाएण, तं तं संपडिवायए ॥ २१ ॥ विवति अविणीअम्स, संपत्ती विणिअस्स य । जस्सेयं दुहओ नायं, सिक्खं से अभिगच्छइ ॥ २२ ॥ जे आवि चंडे मइइड्डिगारवे, पिमुणे नरे साहसडीणपेसणे । अदिट्टधम्मे विणए अकोविए,असंविभागी न हु तस्स मुक्खो ॥ ॥२३॥ निद्देसवित्ती पुण जे गुरूणं, सुअत्थधम्मा विणयम्मि कोविआ। तरित्तु ते ओधमिणं दुरुत्तरं, खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया ॥ ॥२४॥ त्ति बेमि इअ विणयसमाहिणामज्झयणे बीओ उद्देसो समत्तो॥ आयरिअ(अ) अग्गिमिवाहिअग्गी, सुस्सूसमाणो पडिजागरिजा । • आलोइंअं इंगिअमेव नच्चा, जो छंदमाराहयई स पुज्जो ॥१॥ आयारमट्ठा विणयं पउंजे, सुस्सूममाणो परिगिज्झ वकं । जहोवइ8 अभिकंखमाणो, गुरुं च नासायइ जे स पुज्जो ॥२॥ रायणिएसु विणयं पउंजे. डहरा वि अ जे परिआयजिट्ठा । नीअत्तणे वट्टइ सच्चवई, ओवायवं वक्करे स पुजो ॥ ३ ॥ अन्नायउंछं चरई विसुद्धं, जवणट्ठया समुआणं च निचं ।। अलधुरं नो परिदेव इज्जा, लडुं न विकत्थई स पुज्जो ॥ ४ ॥ संथारसिजासणभत्तपाणे, अपिच्छया अइलाभे वि संते । जो एवमप्पाणभितीसइज्जा, संतोसपाहन्नरए स पुज्जो ॥५॥ सक्का सहेउं आसाइ कंटया, अओमया उच्छहया नरेणं । अणासए जो उ सहिज कंटए, वईमए कन्नसरे स पुज्जो ॥ ६ ॥ मुहुत्तदुक्खा उ हवंति कंटया, अओमया ते वि तओ सुउद्धरा । वायादुरुत्ताणि दुरुद्धराणि, वेराणुबंधीणि मयुम्भयाणि ॥ ७॥ समावयंता वयणाभिघाया, कन्नंगया दुम्मणिरं जाणंति । धम्मु त्ति किच्चा परमग्गसूरे, जिहदिए जो सहई स पुजो ॥ ८ ॥ अवण्णवायं च परम्मुहस्स, पञ्चक्खओ पडिणीअं च भासं । ओहारणिं अप्पिअकारणिं च, भासं न भासिज्ज सया स पुज्जो ॥९॥ अलोलए अक्कुहए अमाई, अपिमुणे आवि अदीणवित्ती । नो भावएनो वि अ भाविअप्पा, अकोउहल्ले असया स पुजो ॥ १० ॥

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