Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 103
________________ श्रीदसवैकालिकसूत्र-दसमाध्ययनम् जया अमाणिमो होइ, पच्छाहोइ अमाणिमो । सिट्टित्व कबडे छूढो, स पच्छा परितप्पइ ॥५॥ जया अथेरओ होइ, समइकंतजुवणो। मच्छुच्च गलिं गलित्ता, स पच्छा परितप्पइ ॥६॥ जया अ कुकुडुंबस्स, कुतत्तीहिं विहम्मइ । हत्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पइ ॥ ७॥ पुत्तदारपरिकिन्नो, मोहसंताणसंतओ। पंकोसन्नो जहा नागो, स पच्छा परितप्पइ ॥८॥ अज्ज आहं गणी हुँतो, भाविअप्पा बहुस्सुओ । जइ हरमंतो परिआए, सामन्ने जिणदेसिए ॥९॥ देवलोगसमाणो अ, परिआओ महेसिणं । रयाणं, अरयाणं च, महानरयसारिसो ॥१०॥ अमरोवमं जाणिअ सुक्खमुत्तमं, रयाण परिआए तहारयाणं । निरओवमं जाणिअ दुक्खमुत्तम, रमिज तम्हा परिआयपंडिए ॥ ११ ॥ धम्माउ भट्ट सिरिओववेयं, जन्नग्गि विज्झायमिवप्पते। हीलंति णं दुविहिरं कुसीला, दाढुद्धिअं घोरविसं व नागं ॥ १२ ॥ इहेव धम्मो अयसो अकित्ती, दुनामधिज्जं च पिहुज्जणम्मि । चुअस्स धम्माउ अहम्मसेविणो, संभिन्नवित्तस्स य हिट्ठओ गई ॥ १३ ॥ मुंजित्तु भोगाइं पसज्झ चेअसा, तहाविहं कटु असंजमं बहुं । गइंच गच्छे अणहिज्झि दुहं, बोही असे नो सुलहा पुणो पुणो ॥ १४ ॥ इमस्स ता नेरइअस्स जंतुणो, दुहोवणीअस्स किलेसवत्तिणो । पलिओवमं झिज्जइ सागरोवमं, किमंग पुण मज्झ इमं मणोदुहं ॥ १५ ॥ न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सइ, असासया भोगपिवास जंतुणो । न चे सरीरेण इमेण विस्सइ, अविस्सई जीविअपञ्जवेण मे ॥ १६॥ जस्सेवमप्पा उ हविज निच्छिओ, चइज देहं न हु धम्मसासणं । तं तारिमं नो पइलिंति इंदिआ, उविति वाया व सुदंसणं गिरिं ॥ १७॥ इच्चेव संपस्सिअ बुद्धिमं नरो, आयं उवायं विविहं विआणिआ। कारण वाया अदु माणसेणं तिगुत्तिगुत्तो जिणवयणमहिट्ठिजासि ॥ १८ ॥ त्ति बेमि ।। इअ रइवक्का पढमा चूला समत्ता ॥१॥ JOB04 ॥ अह विवित्तचरिया बीआ चूलिआ ॥ चूलिअं तु पवक्खामि, सुअं केवलिभासिअं । जं सुणित्तु सुपुण्णाणं, धम्मे उप्पज्जए मई ॥१॥ अणुसोअपट्ठिए बहुजणम्मि परिसोअलद्धलक्खणं । पडिसोअमेव अप्पा, दायवो होउकामेणं ॥ २ ॥ अणुसोअसुहोलोओ,पडिसोओ आसवो सुविहिआणाअणुसोओसंसारो,पडिसोओ तस्स उत्तारो ॥३॥ तम्हा आयारपरक्कमेण संवरसमाहिबहुलेणं । चरिआ गुणा अ नियमा अ, हुंति साहूण दट्ठवा ॥४॥ अणिएअवासो समुआणचरिआ, अन्नायउंछं पयरिक्कया अ। अप्पोवही कलहविवज्जणा अ, विहारचरिआ इसिणं पसत्था ॥ ५ ॥ आइन्नओ माणविवज्जणा अ, ओसन्नदिट्ठाहडभत्तपाणे ।

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