Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला.
ससि पुष्पदंत सीयल सिजसं वासुपुजं च ॥२०॥ विमल मणंत य धम्म सन्ति कुंथु अरं च मल्लिं : च ।। मुनिसुव्वय नमिनेमि पासं तह वद्धमाणं च ॥ २१ ॥ पढमत्थि इंदभूइ बीए पुणहोइ अग्गिभूइत्ति ॥ तईए य वाउभूई तओ वियत्ते सुहम्मेय ॥ २२ ॥ मंडिअ मोरिय पुत्ते अकंपिऐ चेव अयल भायाय ॥ मे यज्जेय पहासेय गणहरा हुंति वीरस्स ॥ २३ ॥ निव्वुइ पह सासणयं जयइ सया सब भाव देसणयं॥ कु समय मय नासणयं जिणिंदवर वीर सासणयं ॥२४॥ सुहम्मं अग्गिवेसाणं जंबुनामं च कासवं पभवं ॥ कच्चायणं वंदे वच्छं सिजेभवं तहा ॥ २५ ॥ जसमदं तुंगियं वंदे संभूयं चेव माढरं ।। भद्दबाहुं च पाइन्नं थूलभदं च गोयमं ॥ २६ ॥ ऐलावच्चसगोत्तं वंदामि महागिरि मुहत्थि च ॥ तत्तो कोसियगोतं बहुलस्स सरिवयं वन्दे ॥ २७ ॥ हारिय गुत्तं साइं च वंदिमो हारियं च सामजं ॥ वन्दे कोसिय गोत्तं संडिल्लं अन्ज जीयधरं ॥ २८ ॥ तिसमुदखायकित्तिं दीव समुद्देसु गहिय पेयालं ।। वंदे अञ्ज समुदं अक्खुभिय समुद्दगंभीरं ॥ २९ ॥ भणगं करगं झरगं पभावगं णाणदंसण गुणाणं ॥ वंदामि अज मंगुं सुय सागर पारगं धीरं ॥३०॥ वंदामि अज धर्म तत्तो वंदे य भद्द गुत्तं च ॥ तत्तोय अज वइरं तव नियम गुणेहिं वइरं समं ।। ३१ ।। वंदामि अन्ज रक्खिय खमणे रक्खिय चारित्त सबस्से ।। रयण करडंग भूओ अणुओगो जेहिं ॥ ३२ ॥ नाणम्मि दसण म्मिय तव विणए णिच्च काल मुज्जुत्तं ॥ अजं नंदिलखमणं सिरसा वंदे पसन्नमणं ॥ ३३ ॥ चड्ढउ वायगवंसो जलवंसो अन्ज नागहीणं ।। वागरण करण भंगिय कम्मपयडी पहाणाणं ॥३॥ जच्चजण धाउ समप्पहाण मुद्दिय कुवलय निहाणं ॥ वड्वउ वायगवंसो रेवइनक्खत्त नामाणं ॥३०॥ अयलपुरा णिक्खंते कालियसुय आणुओगिए धीरे ॥ बंभद्दीवगसीहे वायगपय मुत्तमं पत्ते ।'३६॥ जेसिं इमो अणु ओगो पयरइ अजाविअड्ढभरहम्मि ।। बहु नयर निग्गय जसे ते वंदे खंदिलाय. रिए ॥ ३७ ॥ तत्तो हिमवन्त महंत विक्कमे धिइ परक्कम मणंते ।। सज्झाय मणंतधरे हिमवंते वंदि. मो सिरसा ॥ ३८ ॥ कालिय सुय अणु ओगस धारए धारए य पुव्वाणं ॥ हिमवंत खमा समणे वंदे णागज्जुणायरिये ।। ३९ ।। मिउमद्दव संपन्ने आणुपुब्बि वायगत्तणं पत्ते ॥ ओहसुय समायारे नाज्जुण वायए वंदे ॥ ४० ॥ गोविंदाणं पि नमो अणुओगे विउल धारिणिं दाणं ॥ णिचं खंति दयाणं परुवणे दुल्लभि दाणं ॥ ४६॥ तत्तो य भृयदिन्नं निच तव संजमे अनिविणं ॥ पंडिय जण सामण्णं वंदामो संजम विहिण्णु ॥ ४२ ॥ करकणगतविय चंपग विमउलवर कमल गब्भ सरिवन्ने ॥ भविय जणहिययदइए दयागुण विसारए धीरे॥४३॥ अड्ड भरहप्पहाणे बहुविह सज्झाय सुमुणिय पहाणे । अणुओगिय वर वसभे नाइल कुल वंसनंदिकरे ॥४४॥ भूयहियअपगब्भे वंदेऽहं भूयदिन्न मायरिए ।। भवभय वुच्छेय करे सीसे नागज्जुण रिसीणं ॥४५॥ सुमुणिय निच्चा निच्चं सुमुणिय मुत्तत्थ धारयं वन्दे ॥ सम्भावुब्भावणया तत्थं लोहिचणामाणं ॥ ४६ ॥ अत्थ महत्थक्खाणिं सुसमण वक्खाण कहण निवाणिं॥ पयईए महुरवाणि पयओ पणमामि दूसगणिं ।। ४७ ।। तव नियम सच्च संजम विणयजव खंति मद्दवरयाणं । सील गुणगद्दियाणं अणुओग जुगप्पहाणाणं ॥४८॥ सुकुमाल कोमल तले तेसिं पणमामि लक्खण पसत्थे पार पावयणीणं पडिच्छ सय एहि पणि वइए ॥ ४९ ॥ जे अन्ने भगवन्ते कालिय सुय आणु ओगिए धीरे ॥ ते पणमिऊण सिरसा नाणस्स परूवणं वोच्छा ॥ ५० ॥
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