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॥ णमोसमणस्सभगवओमहावीरस्स ॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीता श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रम् , श्रीदशवकालिक सूत्रम् , नंदीसूत्रम्,
सुखविपाक सूत्रम् , उववाइसूत्रम् ( गाथा २२) सूत्रकृतांगसूत्रे षष्ठाध्ययनम् एकादशाध्ययनम् च ॥
. एतैमूलसूत्रैस्संयुक्ता॥ सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला ॥
-:: प्रकाशक ::जामनगरवास्तव्य पंडित हीरालाल हंसराज
-:: मुद्रक :श्रीजैन भास्करोदय मुद्रणालय जामनगर,
RT सने १९३८
मूल्यं १-४-.
सम्बत् १९९५
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॥ स्वाध्यायमाला-विषयानुक्रमः ॥
उत्तराध्ययनसूत्रम् दशवैकालिकसूत्रम् नन्दीसूत्रम् उपवाइसूत्र गाथा-२२ सुखविपाकसूत्रम् मूत्रकृतांग-६-११ अध्ययन प्रास्ताविक गाथाओ शुद्धिपत्रक
पाना १ थी ५४ ७५ थी १०० १.१ थी १५९ १२० थी १२० १६१ थी १२० १२५ थी १२८ १२९ थी १३२
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वांचकगण !
आ स्वाध्यमाला नामना पुस्तकमां निरंतर स्वाध्याय थता, भगवत् सुधर्मस्वामी गुंफित विषयानुकममा जणावेला सूत्रोना कंठाग्र करवा लायक मूळ पाठो आपवामां आव्या २ अने छापेली प्रतोना आधारे छापेल ले. जुदी जुदी संस्थाओ तरफथी छपायेला सूत्रोमां पाठांतर फेर आवतो जेथी अमोए खास आगमोदय समितिवाळा ग्रंथोनो विशेष आधार राखी छापेल छे अने प्रेसदोष अथवा पृफ दोषथी रहेल भूलो माटे अंतमां शुद्धिपत्रक आपवामां आव्युं छे छतां कांइ विपरीत छपायुं होय तो वांचकगण क्षन्तव्य करी सुधारीने वाचशे इति ॥
लि. प्र का शक
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॥ णमोऽत्थु णं तस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स।
श्री जैन ॥ सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला ॥
॥ सिरि-उत्तरज्झयण--सुतं । विणयसुयं पढमं अज्झयणं
संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो। विणयं पाउकरिस्सामि, आणुपुचि सुणेह मे ॥१॥ आणानिद्देसकरे, गुरूणमुववायकारए। इंगियागारसंपन्ने, से विणीए ति वुच्चई ॥ २ ॥ आणाऽनिद्देसकरे, गुरूणमणुववायकारए । पडिणीए असंबुद्धे, अविणीए त्ति वुच्चई ॥ ३ ॥ जहा सुणी पूइकण्णी, निकसिन्जई सव्यसो । एवं दुरस्सीलपडिणीए, मुहरी निक्कसिन्जई ॥ ४ ॥ कणकुण्डगं चइत्ताणं, विट्ठ भुंजइ सूयरे। एवं सीलं चइत्ताणं, दुस्सीले रमई मिए ॥ ५ ॥ सुणिया भावं साणस्स, सूयरस्स नरस्स य । विणए ठवेज अप्पाणमिच्छन्तो हियमप्पणो ॥ ६ ॥ तम्हा विणयमेसिज्जा, सीलं पडिलभेज्जए । बुद्धपुत्तं नियागट्ठी, न निकसिन्जइ कण्हुई ॥ ७ ॥ निसन्ते सियाऽमुहरी, बुद्धाणं अन्तिए सया। अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा, निरट्ठाणि उ वजए ॥ ८ ॥ अणुसासिओ न कुप्पिज्जा, खंति सेविज पण्डिए। खुड्डेहिं सह संसग्गि, हासं कीडं च वजए ॥९॥ मा य चण्डालियं कासी, बहुयं मा य आलवे । कालेण य अहिन्जित्ता, तओ झाइज एगगो ॥१०॥ आहच्च चण्डालियं कट्ट, न निण्हविज कयाइ वि। कडं कडे त्ति भासेज्जा, अकडं नो कडे त्ति य ॥११॥ मा गलियस्सेव कसं, वयणमिच्छे पुणो पुणो । कसं व दट्ठमाइण्णे, पावगं परिवज्जए ॥१२॥
अगासवा थूलवया कुसीला, मिउंपि चण्डं पकरिन्ति सीसा ।
चित्ताणुया लहु दक्खोववेया, पसायए ते हु दुरासयंपि ॥ ॥ १३ ॥ नापुट्ठो वागरे किंचि, पुट्ठो वा नालियं वए । कोहं असच्चं कुवेजा, धारेजा पियमप्पियं ॥ १४ ॥ अप्पा चेव दमेययो, अप्पा हु खलु दुद्दमो । अप्पा दन्तो सुही होइ, अस्सि लोए परत्थ य ॥ १५ ॥ वरं मे अप्पा दन्तो, संजमेण तवेण य । माहं परेहि दम्मंतो, बंधणेहिं वहेहि य ॥ १६॥ पडिणीयं च बुद्धाणं, वाया अदुव कम्मुणा। आवी वा जइ वा रहस्से, नेव कुज्जा कयाइ वि ॥ १७ ॥ न पक्खओ न पुरओ, नेव किच्चाण पिट्टओ। न जुंजे ऊरुणा ऊरूं, सयणे नो पडिस्सुणे ॥ १८ ॥ नेव पल्हत्थियं कुज्जा, पक्खपिण्डं च संजए । पाए पसारिए वावि, न चिटुं गुरुणन्तिए ॥ १९॥ आयरिएहिं वाहित्तो, तुसिणीओ न कयाइवि । पसायपेही नियागट्ठी, उवचिट्टे गुरुं सया ॥ २० ॥
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(२)
श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला
आलवन्ते लवन्ते वा, न निसीएज कयाइ वि । चइऊणमासणं धीरो, जओ जत्तं पडिस्सुणे ॥ २१ ॥ आसणगओन पुच्छेज्जा,नेव सेज्जागओकया। आगम्मुक्कुडुओ सन्तो, पुच्छिज्जा पंजलीउडो॥ २२॥ एवं विणयजुत्तस्स, सुत्तं अत्थं च तदुभयं । पुच्छमाणस्स सीसस्स, वागरिज जहासुयं ॥ २३ ॥ मुसं परिहरे भिक्खू, न य ओहारिणिं वए । भासादोसं परिहरे, मायं च वजए सया ॥ २४ ॥ न लवेज पुट्ठो सावजं, न निरटुं न मम्मयं । अप्पणट्ठा परट्ठा वा, उभयस्सन्तरेण वा ।। २५॥ समरेसु अगारेसु, सन्धीसु य महापहे । एगो एगथिए सद्धिं, नेव चिट्टे न संलवे ॥ २६ ।। जं मे बुद्धाऽणुसासन्ति, सीएण फरुसेण वा । मम लाहो त्ति पेहाए, पयओ तं पडिस्सुणे ।। २७ ।। अणुसासणमोवायं, दुक्कडस्स य चोयणं । हियं तं मण्णई पण्णो, वेसं होइ असाहुणो॥ २८ ॥ हियं विगयभया बुद्धा, फरुसंपि अणुसासणं । वेसं तं होइ मूढाणं, खन्तिसोहिकरं पयं ॥ २९ ॥ आसणे उवचिट्ठज्जा, अणुच्चे अकुए थिरे । अप्पुट्ठाई निरुट्ठाई, निसीएज्जप्पकुक्कुए ॥ ३० ॥ कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे। अकालं च विवजित्ता, काले कालं समायरे ॥ ३१ ।। परिवाडीए न चिडेजा, भिक्खू दत्तेसणं चरे । पडिरूवेण एसित्ता, मियं कालेण भक्खए ॥ ३२ ॥ नाइदूरमणासन्ने, नाऽन्नेसिं चक्खुफासओ। एगो चिटेज भत्तट्ठा, लंघित्ता तं नाऽइक्कमे ॥ ३३ ॥ नाइउच्चे न नीए वा, नासन्ने नाइदूरओ। फासुयं परकडं पिण्डं, पडिगाहेज संजए ॥ ३४ ॥ अप्पपाणेऽप्पबीयम्मि, पडिछन्नम्मि संवुडे । समयं संजए मुंजे, जयं अपरिसाडियं ॥ ३५ ॥ सुकडित्ति सुपक्कित्ति, सुच्छिन्न सुहडे मडे । सुणिटिए सुलद्धित्ति, सावजं वजए मुणी ॥ ३६॥ रमए पण्डिए सासं, हयं भदं व वाहए । बालं सम्मइ सासंतो, गलियस्सं व वाहए ॥ ३७ ।। खड्डया मे चवेडा मे, अक्कोसा य वहा य मे । कल्लाणमणुसासन्तो, पावदिहित्ति मन्नई ॥ ३८ ॥ पुत्तो मे भाय नाइ त्ति, साहू कल्लाण मन्नई। पावदिहिउ अप्पाणं, सास दासु त्ति मन्नई ॥ ३९ ।। न कोवए आयरियं, अप्पाणंपि न कोवए । बुद्धोवघाई न सिया, न सिया तोत्तगवेसए ॥ ४० ॥ आयरियं कुवियं नच्चा, पत्तिएण पसायए । विज्झवेज पंजलीउडो, वएज न पुणोत्ति य ॥४१॥ धम्मजियं च ववहारं, बुद्धेहायरियं सया। तमायरन्तो ववहारं, गरहं नाभिगच्छई ॥ ४२ ॥ मणोगयं वक्तगयं, जाणित्तायरियस्स उ । तं परिगिज्झ वायाए, कम्मुणा उववायए ॥ ४३ ।। वित्ते अचोइए निचं, खिप्पं हवइ सुचोइए। जहोवइटुं सुकयं, किच्चाई कुव्वई सया ॥ ४४ ॥ नच्चा नमइ मेहावी, लोए कित्ती से जायए। हवई किच्चाणं सरणं, भूयाणं जगई जहा ॥ ४५ ॥ पुज्जा जस्स पसीयन्ति, संबुद्धा पुवसंथुया । पसन्ना लाभइस्संति, विउलं अट्ठियं सुयं ॥ ४६॥
स पुज्जसत्थे सुविणीयसंसए, मणोरुई चिहइ कम्मसंपया । तवोसमायारिसमाहिसंवुडे, महज्जुई पंच वयाई पालिया । ॥४७॥ स देवगंधव्यमणुस्सपूइए, चइत्तु देहं मलपंकपुव्वयं । सिद्धे वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्ढीए ॥
॥४८॥ त्ति बेमि ।। इअ विणयसुयं नाम पढमं अज्झयणं समत्तं ॥
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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र - प्रथमाध्ययनम् ॥ अह दुइअं परिसहज्झयपां ॥
(३)
सुयं मे आउ-ते भगवया एवमक्खायं । इह खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महा" वीरेण कासवेणं पवेइया । जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयन्तोः gst at निहवेज्जा || कमरे ते खलु बावीसं परीसहा समणेण भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो निण्हवेज्जा ? || इमे ते खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, जे भिक्खू सोच्चा नच्चा जिचा अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्वयंतो पुट्ठो नो निण्हवेज्जा; तंजहा - दिगिंछा परीस १ पिवा - सापरीस हे २ सीयपरीस हे ३ उसिणपरीस हे ४ दंसमसय परीस हे ५ अचेल परीस हे ६ अरइपरीस हे ७ इत्थीपरीसहे ८ चरियापरीस हे ९ निसीहियापरीस हे १० सेज्जापरीस हे ११ अक्कोसपरीस हे १२ वहपरीस १३ जायणापरीस हे १४ अलाभपरीस हे १५ रोगपरीस हे १६ तणफासपरीस हे १७ जल्लपet १८ सकारपुरकारपरीस हे १९ पन्नापरीस हे २० अन्नाणपरीस हे २१ दंसणपरीस हे २२ ॥ परीसहाणं पविभत्ती, कासवेणं पवेइया । तं भे उदाहरिस्सामि, आणुपुव्वि सुणेह मे ॥ १ ॥ दिगंछापरिगए देहे, तबस्सी भिक्खू थामवं । न छिंदे न छिंदावए, न पए न पयावए || २ || कालीपवंसकासे, किसे धमणिसंतए । मायने असणपाणस्स, अदीणमणसो चरे ॥ ३ ॥ ओ पुट्ठो पिवासाए, दोगुच्छी लज्जसंजए। सीओदगं न सेविज्जा, वियडस्सेसणं चरे ॥ ४ ॥ छिन्नावासु पंथेसु, आउरे सुपिवासिए । परिसुक्ख मुहाऽदीणे, तं तितिक्खे परीसहं ॥ ५ ॥ चरंतं विरयं लूहं, सीयं फुसइ एगया । नाइवेलं मुणी गच्छे, सोच्चाणं जिणसासणं ॥ ६॥ न मे निवारणं अस्थि, छवित्ताणं न विज्जई । अहं तु अग्गिं सेवामि, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ ७ ॥ उसिणं परियावेणं, परिदाहेण तज्जिए । धिंसु वा परियावेणं, सायं नो परिदेवए ॥ ८ ॥ उहाहित ते महावी, सिणाणं नो वि पत्थए । गायं नो परिसिंचेज्जा, न वीएज्जा य अप्पयं ॥ ९ ॥ पुट्ठो य समसएहिं समरे व महामुणी । नागो संगामसीसे वा, सूरो अभिहणे परं ॥ न संतसे न वारेज्जा, मणं पि न पओसए । उवेहे न हणे पाणे, भुंजते मंससोणियं ॥ परिजुण्णेहि वत्थेहिं, होक्खामि त्ति अचेलए । अदुवा सचेले होक्खामि इइ भिक्खू न चिंत gaursor होइ, सचेले आवि एगया । एयं धम्मं हियं नच्चा, नाणी नो परिदेव मागमं यंत, अणगारं अकिंचणं । अरई अणुष्पवेसेज्जा, तं तितिक्खे परीसहं ॥ १४ ॥ अरई पिओ किच्चा, विरए आयरक्खिए । धम्मारामे निरारम्भे, उवसन्ते मुणी चरे ॥ १५ ॥ स मणूसा, जाओ लोगम्मि इत्थिओ । जस्स एया परिन्नाया, सुकडं तस्स सामण्णं ॥ १६ ॥ एयमादाय मेहावी, पङ्कभ्रूया उ इत्थिओ । नो ताहिं विणिहम्मेज्जा, चरेज्जतगवेस ॥ १७ ॥ एग एव चरे लाढे, अभिभूय परीसहे । गामे वा नगरे वावि, निगमे वा रायहाणि ॥ १८ ॥ असमाणे चरें भिक्खू, नेव कुज्जा परिग्गहं । असंसते गिहत्थेहिं, अणिएओ परिव्व ॥ १९ ॥ सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व एगओ । अकुक्कुओ निसीएज्जा, न य वित्तासए परं ॥ २० ॥
१० ॥
११ ॥
१२ ॥
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१३ ॥
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(४)
श्रीजैन सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
२३ ॥
२४ ॥
२५ |
२६ ||
२७ ॥
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३३ ॥
तत्थ से चिट्ठमाणस्स, उवसग्गाभिधारए । संकाभीओ न गच्छेज्जा, उट्ठित्ता अन्नमासणं ॥ उच्चावयाहिं सेज्जाहिं, तवस्सी भिक्खू थामवं । नाइवेलं विहम्मेज्जा, पावदिट्ठी हिम्मई ॥ पइरिक्कुवस्सयं लब्धुं, कल्लाणमदुवा पावयं । किमेगराई करिस्सर, एवं तत्थऽहियासए । अक्कोसेज्जा परे भिक्खु, न ते सि पडिसंजले । सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू न संजले ॥ सोच्चाणं फरुसा भासा, दारुणा गामकण्टगा । तुसिणीओ उवेहेज्जा, न ताओ मणसीकरे || ओन संजले भिक्खू, मणंपि न पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा, भिक्खू धम्मं समायरे || समणं संजयं दंतं, हणिज्जा कोइ कत्थई । नत्थि जीवस्स नासुत्ति, एवं पेहेज्ज संजए ॥ दुक्करं खलु भो निचं, अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ, नत्थि किंचि अजाइयं गोरग्गपविस, पाणी नो सुप्पसारए । सुओ अगारवासुत्ति, इइ भिक्खू न चिंतए रेसु घासमेसेंज्जा, भोयणे परिणिडिए । लद्धे पिण्डे अलद्धे वा, नाणुतप्पेज्ज पंडिए अज्जेवाहं न लग्भामि, अत्रि लाभो सुए सिया । जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो तं न तज्जए नच्चा उपइयं दुक्खं, वेयणाए दुहट्टिए । अदीणो थावए पन्नं, पुट्ठो तत्थऽहियासए ॥ तेइच्छं नाभिनंदेज्जा संचिक्खत्तगवेसए । एवं खु तस्स सामण्णं, जं न कुज्जा न कारवे ॥ अचेलगस्स लूहस्स, संजयस्स तवसिणो । तणेसु सयमाणस्स, हुज्जा गायविराहणा || आयवस्स निवारण, अउला हवइ वेयणा । एवं नच्चा न सेवंति, तंतुजं तणतज्जिया ॥ ३५ ॥ किलिन्नगाए मेहावी, पंकेण व रएण वा धिंसु वा परियावेण, सायं नो परिदेवए || ३६ || वेज्ज निज्जरापेही, आरियं धम्मणुत्तरं । जाव सरीरभेउत्ति, जल्लं कारण धारए || ३७ ॥ अभिवायणमब्भुट्ठाणं, सामी कुज्जा निमंतणं । जे ताइं पडि सेवन्ति, न तेसिं पीहए मुणी ॥ ३८ ॥ अणुक्कसाई अप्पिच्छे, अनाएसी अलोलुए । रसेसु नाणुगिज्झेज्जा, नाणुतप्पेज्ज पन्नवं ।। ३९ ॥ से नूणं मए पुव्वं, कम्माऽणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि, पुट्ठो के कण्हुई || ४० ॥ अह पच्छा उइज्जन्ति, कम्माडणाणफला कडा । एवमस्सासि अप्पाणं, नच्चा कम्मविवागयं ॥ ४१ ॥ निरट्ठगम्मि विरओ, मेहुणाओ सुसंवुडो । जो सक्खं नाभिजाणामि, धम्मं कल्लाणपावगं ॥ ४२ ॥ तवोवहाणमादाय, पडिमं पडिवज्जओ । एवं पि विहरओ मे, छउमं न नियट्टई नत्थि नूणं परे लोए, इड्ढी वावि तवसिणो । अदुवा वंचिओमित्ति, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ अभ्रू जिणा अस्थि जिणा, अदुवावि भविस्सई । मुसं ते एवमाहंसु, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ एए परीसहा सब्वे, कासवेण निवेइया । जे भिक्खू न विहम्मेज्जा, पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥
३४ ॥
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४३ ॥
४४ ॥
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४५ ॥
४६ ॥
त्ति बेमि ॥ इ दुइअं परिसहज्झयणं समत्तं ॥ २ ॥
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२१ ॥ २२ ॥
२८ ॥
२९ ॥
३० ॥
३१ ॥
३२ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-तृतीयाध्ययनम्
॥ अह तइ चाउरंगिज्जं अज्झयणं ॥
चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जन्तुणो। माणुसत्तं मुई सद्धा, संजमम्मि य वीरियं ॥१॥ समावन्ना ण संसारे, नाणागोत्तासु जाइसु । कम्मा नाणाविहा कडु, पुढो विस्संभिया पया ॥२॥ एगया देवलोएसु, नरएसु वि एगया । एगया आसुरं काय, अहाकम्मेहिं गच्छई ॥३॥ एगया खत्तिओ होइ, तओ चण्डालवोकसो । तओकीडपयगो य, तओ कुन्थुपिवालिया ॥ ४ ॥ एवमावट्टजोणीसु, पाणिणो कम्मकिब्धिसा। न निविज्जन्ति संसारे, सबढेसु व खत्तिया ॥५॥ कम्मसंगेहिं सम्मूढा, दुक्खिया बहुवेयणा। अमाणुसासु जोणीसु, विणिहम्मन्ति पाणिणो ॥ ६ ॥ कम्माणं तु पहाणाए, आणुपुव्वी कयाइ उ । जीवा सोहिमणुप्पत्ता, आययंति मणुस्सयं ॥ ७॥ माणुस्सं विग्गहं लथु, सुई धम्मस्स दुल्लहा। जं सोचा पडिवज्जन्ति, तवं खतिमहिंसयं ॥ ८ ॥ आहच्च सवणं लर्बु, सद्धा परमदुल्लहा । सोच्चा नेआउयं मग्गं, बहवे परिभस्सई ॥९॥ सुइं च लडुं सद्धं च, वीरियं पुण दुल्लहं । बहवे रोयमाणावि, नो य णं पडिवज्जए ॥ १०। माणुसत्तंमि आयाओ, जो धम्मं सुच्च सद्दहे। तवस्सी वीरियं लध्धु, संखुडे निध्धुणे रयं ॥ ११ ॥ सोही उज्जूय भूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई। निव्वाणं परमं जाइ, घयसित्तिव्य पावए ॥ १२ ॥ विगिच कम्मुणो हेउं, जसं संचिणु खंतिए । सरीरं पाढवं हिचा, उर्दू पक्कमए दिसं ॥ १३ ॥ विसालसेहिं सीलेहिं, जक्खा उत्तरउत्तरा । महासुक्का व दिपंता, मन्नंता अपुणञ्चयं ॥ १४ ॥ अप्पिया देवकामाणं, कामरूव विउविणो। उर्दू कप्पेसु चिट्ठति, पुव्वावाससया बहु ॥ १५॥ तत्थ ठिच्चा जहाठाणं, जक्खा आउक्खये चुया। उवेति माणुसं जोणिं, से दसंगेभिजायए ॥१६॥ खित्तं वत्थु हिरणं च, पसवो दासपोरुसं। चत्तारि कामखंधाणि । तत्थ से उववज्जइ ॥ १७ ॥ मित्तवं नाइवं होइ, उच्चागोए य वण्णवं । अप्पायंके महापन्ने, अभिजाए जसो बले ॥ १८ ।। भुच्चा माणुस्सए भोए, अप्पडिरूवे अहाउयं । पुव्वं विसुद्धसद्धम्मे, केवलं बोहिबुझिया ॥ १९ ॥ चउरंगं दुल्लहं नच्चा, संजमं पडिवजिया। तवसा धुयकम्मं से, सिद्धे हवइ सासए ॥ २० ॥
त्ति बेमि ।। इअ तृतीयं परिज्झयणं समत्तं ।।
॥ अह चतुर्थं असंखयं अज्झयणं ॥ असंखयं जीविय मा पमायए, जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं वियाणाहि जणे पमत्ते कन्नु विहिंसा अजिया गिहिति ॥ १ ॥ जे पावकम्मेहिं धणं मणूसा, समाययंती अमइं गहाय । पहाय ते पासपयट्ठिए नरे, वेराणुबद्धा नरयं उविंति ।। २ ॥ तेणे जहा संधिमुहे गहीए, सकम्मुणा किच्चइ पावकारी । एवं पया पेच इहं च लोए, कडाण कम्माण न मुक्खु अस्थि ॥ ३ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला संसारमावन्न परस्स अठा, साहारणं जं न करेइ कम्मं । कम्मस्स ते तस्स उवेयकाले, न बंधवा बंधवयं उविति ॥४॥ वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते, इमंमि लीए अदुवा परस्थ । दीवप्पणठेव अणंतमोहे, नेयाउयं दामदमेव ॥ ५ ॥ सुत्तेसुआवी पडिबुद्धजीवी, न वीसंसे पंडिय आसुपण्णे । घोरा महुत्ता अबलं सरीरं, भारंडपक्खीव चरऽप्पमत्तो ॥ ६॥ चरे पयाइ परिसंकमाणो, जं किंचि पास इह मन्नमाणो। .... लाभंतरे जीवियवूहइत्ता, पच्छा परिनाय मलावधंसी ॥ ७ ॥ छंदंनिरोहेण उवेइ मोक्खं, आसे जहा सिक्खियवम्मधारी । पुव्वाइं वासाइं चरप्पमत्तो, तम्हा मुणी खिप्पमुवेइ मुक्खं ॥ ८॥ स पुव्वमेवं न लभेज पच्छा, एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीदई सिढिले आउयम्मि, कालोवणीए सरीरस्स भेए ॥९॥ खिप्पं न सकेइ विवेगमेउं, तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे । समिच्च लोयं समया महेसी, आयाणुरक्खी चरमप्पमत्ते ॥ १० ॥ मुहूं मुहं मोहगुणे जयन्तं, अणेगरूवा समणं चरन्तं । फासा फुसन्ती असमंजसं च, न तेसि भिक्खूमणसा पउस्से ॥ ११ ॥ मन्दा य फासाबहुलोहणिज्जा, तहप्पगारेसु मणं न कुज्जा । रक्विज कोहं विणएज माणं, मायं न सेवेज पयहेज लोहं ॥ १२ ॥ जेऽसंखया तुच्छपरप्पवाई, ते पिजदोसाणुगया परभा । एए अहम्मे त्ति दुगुंछमाणो, कंखे गुणे जाव सरीरभेउ ॥ १३ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ असंखयं चउत्थं अज्झयणं समत्तं ॥
॥ अह अकाममरणिज्जं पञ्चम अज्झयण ॥ अण्णवंसि महोहंसि, एगे तिण्णे दुरुत्तरं । तत्थ एगे महापन्ने, इमं पण्हमुदाहरे ॥ १ ।। सन्तिमे य दुवे ठाणा, अक्खाया मरणन्तिया । अकाममरणं चेव, सकाममरणं तहा ॥२॥ बालाणं तु अकामं तु, मरणं असई भवे । पण्डियाणं सकामं तु, उक्कोसेण सई भवे ॥३॥ तत्थिमं पढमं ठाणं, महावीस्ण देसियं । कामगिद्धे जहा बाले, भिसं कराई कुव्वई ॥ ४॥ जे गिद्धे कामभोगेसु, एगे कूडाय गच्छई। न मे दिखे परे लोए, चक्खुदिट्ठा इमा रई ॥५॥ हत्थागया इमे कामा, कालिया जे अणागया। को जाणइ परे लोए, अत्थि वा नत्थि वा पुणो ॥ ६ ॥ जपेण सद्धिं होक्खामि, इइ बाले पगभई । कामभोगाणुराएणं, केसं संपडिवजई ॥ ७ ॥ तओ से दण्डं समारभई, तसेसु थावरेसु य । अट्ठाए य अणट्ठाए, भूयगामं विहिंसई ॥ ८ ॥ हिंसे बाले मुसाबाई, माइल्ले पिसुणे सढे । भुंजमाणे सुरं मंस, सेयमेयं ति मन्नई ॥९॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-पंचमाध्ययनम् कायसा वयसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इत्थिसु। दुइओ मलं संचिणइ, सिंमुणागु व्व मट्टियं ॥ १० ॥ तओ पुट्ठो आयंकेणं, गिलाणो परितप्पई । पमीओ परलोपस्स, कम्माणुप्पेहि अप्पणो ।। ११ ॥ मुया मे नरए ठाणा, असीलाणं च जा गई। बालाणं कुरकम्माणं, पगाढा जत्थ वेयणा ॥ १२ ॥ तत्थोवाइयं ठाणं, जहा मेयमणुस्सुयं । आहाकम्मेहिं गछन्तो, सो पच्छा परितप्पई ॥१३॥ जहा सागडिओ जाणं, समं हिच्चा महापहं । विसमं मग्गं ओइण्णो. अक्खे भग्गम्मि सोयई ॥ १४ ।। एवं धम्म विउक्कम्मं, अहम्मं पडिवजिया । बाले मच्चुनुहं पत्ते, अक्खे भग्गे व सोयई ॥ १५ ॥ तओ स मरणन्तम्मि, बाले संतसई भया । अकाममरणं मरई, धुत्ते व कलिणा जिए ॥ १६ ॥ एयं अकाममरणं, बालाणं तु पवेइयं । एत्तो सकाममरणं, पण्डियाणं सुणेह मे ॥ १७ ॥ मरणं पि सपुण्णाणं, जहा मेयमणुस्सुयं । विप्पसण्णमणाघायं, संजयाण वुसीमओ ॥ १८॥ न इमं सव्वेमु भिक्खूसु,न इमं सव्वेसुगाविसु। नाणासीलाअगारत्था,विसमसीला य भिक्खूणो॥ १९॥ सन्ति एगेहिं भिक्खूहि, गारत्था संजमुत्तरा। गारत्थेहि य सव्वेहिं, साहवो संजमुत्तरा ॥ २० ॥ चीराजिणं नगिणिणं, जडी संघाडिमुण्डिणं । एयाणि वि न तायन्ति, दुस्सीलं परियागयं ॥ २१ ॥ पिंडोल एव्व दुस्सीले, नरगाओ न मुच्चई। भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुव्वए कम्मई दिवं ॥ २२ ।। अगारिसामाइयंगाणि, सड्डी काएण फासए । पोसहं दुहओ पक्खं, एगरायं न हावए ॥ २३ ।। एवं सिक्खासमावन्ने, गिहिवासे वि सुव्वए । मुच्चई छविपव्वाओ, गच्छे जक्खसलोगयं ॥ २४ ॥ अह जे संवुडे भिक्खू, दोण्हं अन्नयरे सिया। सव्व दुक्खपहीणे वा, देवे वावि महिड्ढीए ॥ २५ ॥ उत्तराई विमोहाई, जुईमन्ताणुपुब्बसो। समाइण्णाई जक्खेहिं, आवासाइं असंसिणो ॥ २६ ॥ दीहाउया इड्ढीमन्ता, समिद्धा कामरूविणो। अहुणोववन्नसंकासा, भुज्जो अच्चिमलिप्पभा ॥ २७ ।।
ताणि ठाणाणि गच्छन्ति, सिक्खित्ता संजमं तवं । भिक्खागे वा गिहित्थे वा, जे सन्ति पडिनिव्वुडा ॥
॥२८॥ तेसिं सोचा सपुज्जाणं, संजयाण वुसीमओ। न संतसंति मरणंते, सीलवन्ता बहुस्सुया ॥ २९ ॥ तुलिया विसेसमादाय, दयाधम्मस्स खन्तिए । विप्पसीएज मेहावी, तहाभूएण अप्पणा ॥ ३०॥ तओ काले अभिप्पए, सड्ढी तालिसमन्तिए। विणएज लोमहरिसं, मेयं देहस्स कंखए ॥ ३१ ॥ अह कालम्मि संपत्ते,- आघायाय समुस्सयं । सकाममरणं मरई, तिण्हमन्नयरं मुणी ॥ ३२ ॥ त्ति बेमि॥ इअ अकाममरणिज्ज पंचमं अज्झयणं समत्तं ॥५॥
monom॥ अह खुड्डागनियंटिजं छठं अज्झयणं ॥ जावन्तविजापुरिसा, सव्वे ते दुक्खसंभवा । लुप्पन्ति बहुसो मूढा, संसारम्मि अणन्तए ॥१॥ समिक्ख पण्डए तम्हा, पासजाई पहे बहू । अप्पणा सच्चमेसेज्जा, मेत्तिं भूएसु कप्पए ॥ २ ॥ माया पियान्डुसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा । नालं ते मम ताणाए, लुप्पंतस्स सकम्मुणा ॥ ३ ॥ एयमढें सपेहाए, पासे समियदसणे । छिन्द गेद्धिं सिणेहं च, न कंखे पुन्वसंथुयं ॥ ४ ॥ गवासं मणिकुण्डलं, पसवो दासपोरुसं । सव्वमेयं चइत्ताणं. कामरूबी भविस्ससि ॥ ५॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
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अज्झत्थं सव्वओ सव्वं, दिस्स पाणे पियायए । न हणे पाणिणो पाणे, भयवेराओ उवरए ॥ ६ ॥ आदाणं नरयं दिस्स, नायएज्ज तणामवि । दोगुच्छी अप्पणो पाए, दिन्नं भुंजेज भोयणं ॥ ७ ॥ इहमेगे उ मन्नन्ति, अपच्चक्खाय पावगं । आयरियं विदित्ताणं, सबदुक्खाण मुच्चए ॥ ८ ॥ भणंता अकरेन्ता य, बन्धमोक्खपइण्णिणो। वायाविरियमेत्तेण, समासासेन्ति अप्पयं ॥९॥ न चित्तातायए भासा, कुओ विज्जाणुसासणं । विसन्ना पावकम्मेहि, बाला पंडियमाणिणो ॥ १० ॥ जे केइ सरीरे सत्ता, वण्णे रुवे य सव्वसो। मणसा कायवक्केणं, सव्वे ते दुक्खसम्भवा ॥ ११ ॥ आवन्ना दीहमद्धाणं, संसारम्मि अणन्तए। तम्हा सव्यदिसं पस्सं, अप्पमत्तो परिचए ॥ १२ ॥ बहिया उड्ढमादाय, नावकंखे कयाइ वि । पुव्वकम्मक्खयट्ठाए, इमं देहं समुद्धरे ॥ १३ ॥ विविच्च मम्मुणो हेउं, कालकंखी परिव्वए। मायं पिंडस्स पाणस्स, कडं लक्षूण भक्खए ॥ १४ ॥ सन्निहिं च न कुव्वेजा, लेवमायए संजए। पक्खीपत्तं समादाय, निखेक्खो परिव्वए ॥ १५ ॥ एसणासमिओ लज्जू, गामे अणियओ चरे। अप्पमत्तो पमत्तेहिं, पिण्डवायं गवेसए ॥ १६ ॥ एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी अणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणधरे अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए वियालिए
इअ खुड्डागनियंटिज छर्ट अज्झयणं समत्तं ॥ ६ ॥
॥ अह एलयं सत्तमं अज्झयणं ॥ जहाएसं समुद्दिस्स, कोइ पोसेज एलयं । ओयणं जवसं देज्जा, पोसेजावि सयङ्गणे ॥ १ ॥ तओ से पुढे परिवूढे, जायमेए महोदरे। पीणिए विउले देहे, आएसं परिक्खए ॥ २ ॥ जाव न एइ आएसे, ताव जीवइ सो दुही । अह पतम्मि आएसे, सीसं छत्तूण भुजई ॥ ३ ॥ जहा से खलु उरभे, आएसाए समीहिए। एवं बाले अहम्मिटे, ईहई नरयाउयं ॥ ४ ॥ हिंसे बाले मुसावाई, अद्धाणंसि विलोकए । अन्नदत्तहरे तेणे, माई कं नु हरे सढे ॥५॥ इत्थीविसयगिद्धे य, महारंभपरिग्गहे । भुंजमाणे सुरं मंसं, परिवूढे परंदमे ॥ ६॥ अयकक्करभोई य, तुंडिल्ले चियलोहिए। आउयं नरए कंखे, जहाए व एलए ॥ ७॥ आसणं सयणं जाणं, वित्तं कामे य भुंजिया । दुस्साहडं धणं हिच्चा, बहुं संचिणिया रयं ॥ ८ ॥ तओ कम्मगुरू जंतू, पच्चुप्पन्नपरायणे । अए ब आगयाएसे, मरणंतम्मि सोयई ॥ ९ ॥ तओ आउपरिक्खीणे, चुया देहा विहिंसगा। आसुरीयं दिसं वाला, गच्छन्ति अवसा तमं ॥ १० ॥ जहा कागिणिए हेडं, सहस्सं हारए नरो । अपच्छं अम्बगं भोच्चा, राया रजं तु हारए ॥ ११ ॥ एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अन्तिए । सहस्सगुणिया भुज्जो, आउं कामा य दिग्विया ॥ १२ ॥ अणेगवासानउया, जा सा पन्नवओ ठिई। जाणि जीयन्ति दुम्मेहा, ऊणवाससयाउए । १३ ।। जहा य तिन्निवाणिया, मूलं घेतूण निग्गया। एगोऽत्थ लहई लाभं एगो मूलेण आगओ ॥ १४ ॥ एगो मूलं पि हारित्ता, आगओ तत्थ वाणिओ। ववहारे उवमा एसा, एवं धम्मे वियाणह ॥ १५ ॥ माणुसत्तं भवे मूलं, लाभो देवगई भवे । मूलच्छेएण जीवाणं नरगतिरिक्खत्तणं धुवं ॥ १६ ॥ दुहओ गई बालस्स, आवई वहमूलिया । देवत्तं माणुसत्तं च, जं जिए लोलयासढे ॥ १७ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनस्वत्र- सप्तमाध्ययनम्
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ओजिए सई होइ, दुविहं दोग्गई गए । दुल्लहा तस्स उम्मग्गा, अद्धाए सुइरादवि ॥ एवं जियं सपेहाए, तुल्लिया बालं च पण्डियं । मूलियं ते पवेसन्ति, माणुसिं जोणिमेन्ति जे मायाहिं सिक्खाहिं, जे नरा गिहिसुब्वया । उवेन्ति माणुसं जोणिं, कम्मसच्चा हु पाणिणो ॥ जेसिं तु विउला सिक्खा, मूलियं ते अइच्छिया । सीलवन्ता सवीसेसा, अदीणा जन्ति देवयं एवमद्दणवं भिक्खु, आगारिं च वियाणिया । कहण्णु जिचमेलिक्खं, जिच्चमाणे न संविदे ॥ जहा कुसग्गे उदगं, समुद्देण समं मिणे । एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अंतिए || कुसग्गमेत्ता इमे कामा, सन्निरुद्धम्मि आउए । कस्स हेउं पुराकाउं, जोगक्खेमं न संविदे ॥ इह कामाणियट्ठस्स, अत्तट्ठे अवरज्झई । सोच्दा नेयाउयं मग्गं, जं भुज्जो परिभस्सई || इह कामणिट्ठस्स, अट्ठे नावरज्झई । पूइदेहनिरोहेणं, भवे देवि त्ति मे सुयं ॥ इड्ढी जुई जस्सो वण्णो, आउं सुहमणुत्तरं । भुज्जो जत्थ मणुस्सेसु, तत्थ से उववज्जई बालस्स पस्स बालतं, अहम्मं पडिवज्जिया । चिचा धम्मं अहम्मिट्ठे, नरए उववज्जई धीरस्स पस्स धीरतं सच्चधमाणुवत्तिणो । चिचा अधम्मं धम्मिट्ठे, देवेसु उववज्जई
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तुलियाण बालभावं, अबालं चेव पंडिए । चइऊण बालभावं, अबालं त्ति बेमि || इअ एलय - ज्झयणं समत्तं ॥ ७ ॥
सेवई मुणि
॥ अह काविलियं अट्ठमं अज्झयणं ॥ अधुवे असासम्म, संसारम्मि दुक्खपउराए । किं नाम होज्जतं कम्मयं जेणाहं दोरगई न गच्छेजा ॥ १ ॥ विजहित्तु पुब्बसजोयं, न सिहं कहिंचि कुव्वेज्जा । असिणेहसिणेहकरेहिं, दोसपओसेहि मुच्चए भिक्खू || २ || तो नाणदंसणसमग्गो, हियनिस्सेसाय सव्वजीवाणं ।
सिं विमोक्खणट्टाए, भासई मुणिवरो विगयमोहो || ३ || सव्वं गंथ कलहं च, विप्पजहे तहाविहं भिक्खू | सव्वेसु कामजासु, पासमाणो न लिप्पई ताई ॥ ४ ॥ भोगामिसदोस विसन्ने, हियनिस्सेय सबुद्धिवोच्चत्थे | बाले य मन्दिर मूढे, बज्झई मच्छिया व खेलम्म ॥ ५ ॥ दुष्परिचया इमे कामा, नो सुजहा अधीरपुरी से हिं । अह सन्ति सुव्वा साहू, जे तरन्ति अतरं वणिया वा ॥ ६ ॥ समणामु एगे वयमाणा, पाणवहं मिया अयाणन्ता | मन्दा निरयं गच्छन्ति, बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं ॥ ७ ॥ न हु पाणवहं अणुजाणे, मुच्चेञ्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं । एवारिएहिं अक्खायं, जेहिं इमो साधुधम्मो पन्नत्तो ॥ ८ ॥
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(१०)
श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
पाणे य नाइवाएज्जा, से समीइ चि बुच्चई ताई । तओ से पावयं कम्मं, निज्जाइ उदगं व थलाओ ॥ ९ ॥ जगनिस्सिएहिं भूएहिं तसनामेहिं थावरेहिं च । नो सिमार मे दंड, मणसा वायसा कायसा चैव ॥ १० ॥ मुद्धेसणाओ नच्चाणं, तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । जायाए घासमेसेज्जा, रसगिद्धे न सिया भिक्खा ॥ ११ ॥ पन्ताणि चेव सेवेज्जा, सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु वकसं पुलागं वा, जवणट्ठाए निवेस मंधुं ॥ १२ ॥ जे लक्खणं च सुविणं, अङ्गविज्वं च जे पउज्जन्ति ।
न हु ते समणा वृच्चन्ति एवं आयरिएहिं अक्खायं ॥ १३ ॥ इहजीविय अणियमेत्ता, भट्ठा समाहिजोएहिं ।
ते कामभोगरसगिद्धा, उववज्जन्ति आसुरे का ॥ १४ ॥ तत्तो वि य उच्चट्टित्ता, संसारं बहु अणुपरियडन्ति । बहुकम्मलेवलित्ताणं, बोह होइ सुदुल्लाहा तेसिं ॥ १५ ॥ कसिपि जो इमं लोयं, पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से, इइ दुष्पूरए इमे आया ॥ १६ ॥ जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढई । दोमासकयं कजं, कोडीए वि न निट्ठियं ॥ १७ ॥ नो रक्खसीसु गिज्झेज्जा, गंडवच्छासु ऽणेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता, खेल्लन्ति जहा व दासेहिं ।। १९ ।। नारीसु नोवगिज्झेज्जा, इत्थी विष्पजहे अणागारे | धम्मं च पेसलं नच्चा, तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं ॥ १९ ॥ इअ एस धम्मे अक्खाए. कविलेणं च विशुद्धपन्नेणं । तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति, तेहिं आराहिया दुवे लोग ॥ २० ॥ त्ति बेमि ॥ इअ काविलीयं अट्टमं अज्झयणं समत्तं ॥ ८॥
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॥ अह नवमं नमिपव्वज्जा अज्झयणं ॥
१ ॥
॥
चड़ऊण देवलोगाओ, ज्ववन्नो माणुसम्मि लोगम्मि । उवसन्तमोहणिज्जो, सरई पोराणियं जाई ॥ जाइं सरित्तु भयवं, सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवेत्तु रज्जे, अभिणिक्खमई नमी राया से देवलोगसरिसे, अन्तेउरवरगओ वरे भोए । भुंजित्नु नमी राया, बुद्धो भोगे परिच्चयई ॥ मिहिलं सपुरजणवयं, बलमारोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिखन्तो, एगन्तमहिड्ढीओ भयवं ॥ ४ ॥ कोलाहलमसभूयं, आसी मिहिलाए पव्त्रयन्तम्मि। तइया रायरिसिम्मि, नमिम्मि अभिणिक्खमंतम्मि|५|
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र - नवमाध्ययनम्
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अन्भुट्ठियं रायरिसिं पव्वज्जाठाणमुत्तमं । सक्को माहणरूवेण, इमं वयणमब्बवी ॥ किष्णु भो अज्ज मिहिला, कोलाहलगसंकुला । सुन्वन्ति दारुणा सद्दा, पासामु गिहेसु य ॥ एयमङ्कं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ मिहिलाए चेइए वच्छे, सीयच्छाए मणोरमे । पत्तपुप्फफलोवेए, बहूणं बहुगुणे सया ॥ वाण हीरमाणम्मि, चेइयम्मि मणोरमे । दुहिया असरणा अत्ता, एए कन्दन्ति भो खगा ॥ एयमङ्कं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्वी ॥ एस अग्गीय बाऊ य, एवं डज्झइ मन्दिरं । भयवं अन्तेउरं तेणं, कीस णं नावपेक्खह || एयम निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बची || सुहं वसामो जीवामो, जेसि मो नत्थि किंचण । मिहिलाए डज्झइमाणीए, न मे डज्झइ किंचण ॥ चतपुत्तकलत्तस्स, निव्वाचारस्स भिक्खूणो । पियं न विज्जई किंचि, अप्पियं पि न विज्जई ।। बहुं खु मुणिणो भद्दं, अणगारस्स भिक्खूणो । सव्वओ विप्पमुकस्स, एगन्तमणुपसओ ।। एयम निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्ववी ॥ पागारं कारइत्ताणं, गोपुरट्टालगाणि च । उस्स्लगसयग्घीओ, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ एयमङ्कं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमन्वी ॥ सद्धं नगरं किच्चा, तवसंवरमग्गलं । खन्ति निउणपागारं तीगुत्तं दुप्पधंसयं || २० || धं परमं किच्चा, जीवं च इरियं सया । धिरं च केयणं किच्चा, सच्चेण पलिमन्थए || २१ ॥ तवनारायजुत्तेण, मित्तूर्णं कम्मकंचुयं । मुणी विजयसंगामो, भावाओ परिमुच्चए || २२ || एयमहं निसामित्ता, हेऊकारणचोड़ओ । तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणभब्बवी || २३ | पासाए कारइत्ताणं, बद्धमाणगिहाणि य । बालग्गपोइयाओ य, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ २४ ॥ एयमङ्कं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ संसयं खलु सो कुणई, जो मग्गे कुणई घरं । जत्थेव गन्तुमिच्छेज्जा, तत्थ कुव्वेज्ज सासयं एयमङ्कं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी आमोसे लोमहारे य, गंटिभेए य तक्करे । नगरस्स खेमं काऊणं, तओ गच्छसि खत्तिया ।। एयमङ्कं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ असई तु मणुस्सेहिं, मिच्छा दंडो पजुञ्जई । अकारिणोऽत्थ वज्झन्ति, मुञ्च्चई कारओ जणो म निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ जे के पत्थिवा तुझं, नानमन्ति नराहिवा । वसे ते ठावइत्ताणं, तओ गच्छसि खत्तिया ।। एयम निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी, देविंदो इणमब्बवी ॥ जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे । एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ ॥ ३४ ॥ अपणामेव जुज्झाहि, किं ते जुज्झेण बज्झओ । अप्पणामेवमप्पाणं, जहत्ता सुमेह || ३५ || पंचिन्दियाणि कोहं, माणं मायं तहेव लोहं च । दुज्जयं चैव अप्पाणं, सव्वं अप्पे जिए जिय || ३६ | एयमहं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी || ३७ || जइत्ता विउले जन्ने, भोत्ता समणमाहणे । दत्ता भोच्चा य जिट्ठा य, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ ३८ ॥
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भीजैनसिद्धान्त-साध्यायमाला. :
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एयमढे निसामिचा, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ३९ ॥ जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए । तस्स वि संजमो सेओ, अदिन्तस्स वि किंचण ॥ ४०॥ एयमझु निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥४१॥ घोरासमं चइत्ताणं, अन्नं पत्थेसि आसमं । इहेव पोसहरओ, भवाहिवा मणुयाहिवा ॥ ४२ ॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥४३॥ मासे मासे तु जो बालो, कुसग्गेण तु मुंजए। न सो सक्खायधम्मस्स, कलं अग्घइ सोलसिं ॥४४॥ एयमट्ठ निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ, तओ नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥४५॥ हिरण्णं सुवणं मणिमुत्तं, कंसं दूसं च वाहणं । कोसं वड्डावइत्ताणं, तओ गच्छसि खत्तिया ॥ ४६ ॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी ॥४७॥
सुवण्णरुपस्स उ पव्वया भवे, सिया हु केलाससमा असंखया।
नरस्स लुद्धस्स न तेहिं किंचि, इच्छा उ आगाससमा अणन्तिया ॥ ॥४८॥ पुढवी साली जवा चेव, हिरणं पसुभिस्सह । पडिपुण्णं नालमेगस्स, इइ विज्जा तवं चरे ॥ ४९ ॥ एयमढे निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमि रायरिसिं, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ५० ॥ अच्छेरयमभुए, भोए चयसि पत्थिवा । असन्ते कामे पत्थेसि, सकप्पेण विहम्मसि ॥५१॥ एयमटुं निसामित्ता, हेऊकारणचोइओ। तओ नमी रायरिसी, देविन्दो इणमब्बवी ॥ ५२ ॥ सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसोविसोवमा । कामे पत्थेमाणा, अकामा जन्ति दोग्गई ॥ ५३॥ अहे वयन्ति कोहेणं, माणेणं अहमा गई । माया गई पडिग्घाओ, लोभाओ दुहओ भयं ॥ ५४ ॥ अवज्झिऊण माहणरूवं, विउव्विऊण इन्दत्तं। बन्दइ अभित्थुणन्तो, इमाहि महुराहिं वग्गूहि ॥ ५५ ॥ अहो ते निजिओ कोहो, अहो माणो पराजिओ। अहो निरकिया माया, अहो लोभो वसीकओ॥ ५६ ॥ अहो ते अन्जवं साहु, अहो ते साहु महवं । अहो ते उत्तमा खन्ती, अहो ते मुत्ति उत्तमा ॥ ५७ ॥ इहं सि उत्तमो भन्ते, पच्छा होहिसि उत्तमो । लोगुत्तमुत्तमं ठाणं, सिद्धिं गच्छसि नीरओ ॥ ५८ ॥ एवं अभित्थुणन्तो, रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए। पयाहिणं करेन्तो, पुणो पुणो बन्दई सक्को ॥ ५९ ॥ तो वन्दिऊण पाए, चकंकुसलक्खणे मुणिवरम्स । आगासेणुप्पइओ, ललियचलकुंडलतिरीडी ॥ ६ ॥ नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं च वेदेही, सामण्णे पज्जुवडिओ ॥ ६१ ॥ एवं करेन्ति संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा । विणियट्टन्ति भोगेसु, जहा से नमी रायरिसि ॥ ६२॥
त्ति बेमि ॥ इअ नमिपव्वजा ममत्ता ॥
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श्री उत्तराध्ययनसूत्र- दसमाध्ययनम्.
॥ अह दुमपत्तयं दसमं अज्झयणं ॥
दुमपत्तए पंडुयए जहा, निवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीवियं, समयं गोयम मा पमायए ॥ १ ॥ कुसग्गे जह ओस बिन्दुए, थोवं चिट्ठइ लम्बमाणए । एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम मा पमायए ।। २ । इइ इत्तरियम्मि आउए, जीवियए बहुपच्चवायए । विहुणाहि रयं पुरे कडं, समयं गोयम मा पमायए ॥ ३ ॥ दुल्लहे खलु माणुसे भवे, चिरकाले वि सव्वपाणिणं । गाढा य विवाग कम्मुणो, समयं गोयम मा पमायए ॥ ४ ॥ पुढविकायम गओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे | कालं संखाईयं, समयं गोयम मा आक्काय मइगओ, उक्कोसं जीवो उ गोयम
मा
य
कालं संखाईयं, समयं उक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो कालं संखाईयं समयं गोयम मा वाउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो य कालं संखाईयं, समयं गोम मा वणस्सइकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ कालमणन्तदुरन्तयं समयं गोयम मा
इन्दियामइगओ, उकोसं जीवो उ संवसे ।
पमायए ॥ ५ ॥ संवसे ।
पमायए ।। ६ ।। संवसे ।
पमायए ।। ७ । सबसे ।
पमायए ।। ८ ॥ संवसे ।
पमायए ।। ९ ।
कालं संखिज्जसन्नियं, समयं गोयम मा पमाय ॥ १० ॥ तेइन्दिकायमगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालं संखिज्जसंनियं, समयं गोयम मा पमाय ॥ ११ ॥ चउरिन्दियकायमइगओ, उक्कोस जीवो उ संवसे ।
कालं संखिज्जसन्नियं, समयं गोयम मा पमाय ॥ १२ ॥ पंचिन्दिय कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ वसे । सत्तभवगहणे, समयं गोयम मा देवे नेरइए यमहगओ, उक्कोसं जीवो भवगणे. समयं गोयम मा एवं भवसंसारे, संसरइ सुहासु हि जीवो पमायबहुलो, समयं गोयम मा
पमायए ।। १३ संवसे ।
पमाय ॥ १४ ॥ कम्मेहिं |
पमायए ।। १५ ।।
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला लक्ष्ण वि माणुसत्तणं, आरिअत्तं पुणरावि दुल्लहं । विगलिन्दियया हु दीसई, समयं गोयम मा पमायए ॥ १६ ॥ लधूण वि आयरित्तणं, अहीणपंचेन्दियया हु दुल्लहा । विगलिन्दियया हु दीसई, समयं गोयम मा पमायए ॥ १७॥ अहीणपंचेन्दियत्तं पि से लहे, उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा । कुतित्थिनिवेसए जणे, समयं गोयम मा पमायए ॥ १८ ॥ लघृण वि उत्तमं सुई, सदहणा पुणरावि दुल्लहा । मिच्छत्तनिवेसए जणे, समयं गोयम मा पमायए ॥ १९ ॥ धम्मं पि हु सद्दहन्तया, दुल्लहया काएण फासया। इह कामगुणेहि मुच्छिया, समयं गोयम मा पमायए ॥२०॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से सोयबले य हायई, समयं गोयम मा पमायए ॥ २१॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से चक्खुबले य हायई, समयं गोयम मा पमायए ॥ २२ ॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से घाणवले य हायई, समयं गोयम मापमायए ॥ २३ ॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते। . से जिब्भबले य हायई, समय गोयम मा पमायए ।। २४ ।। परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते । से फासबले य हायई, समयं गोयम मा पमायए ।। २५ ॥ परिजूरइ ते सरीरयं, केसा पण्डुरया हवन्ति ते। । से सबबले य हायई, समयं गोयम मा पमायए ॥ २६ ॥ अरई गण्डं विसूइया. आयंका विविहा फुसन्ति ते । विहडइ विद्धंसइ ते सरीरयं, समयं गोयम मा पमायए ॥ २७ ॥ वोच्छिन्द सिणेहमप्पणो, कुमुयं सारइयं व पाणियं । से सव्वसिणेहवज्जिए, समयं गोयम मा पमायए ॥ २८ ॥ चिच्चाण धणं च भारियं, पब्वइओ हि. सि अणगारियं । मा वन्तं पुणो वि आइए, समयं. गोयम मा पमायए ॥ २९॥ अवउझिय मित्तबन्धवं, विउलं चेव धणोहसंचयं ।। मा तं विउयं गवेसए, समय गोयम मा पमायए ॥ ३०॥ नहु जिणे अन्न दिस्सई. बहुमए दिस्सइ मग्गदेसिए । संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम मा पमायए ॥ ३१॥ अवसोहिय कण्टगा पहं, ओइण्णो सि पहं महालयं ।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-दसमाध्ययनम्
गच्छसि मग्गं विसोहिया, समयं गोयम मा पमायए ॥ ३२ ॥ अबले जह भारवाहए, मा मग्गे विसमे वगाहिया। पच्छा पच्छाणुतावए, समयं गोयम मा पमायए ।। ३३ ॥ तिण्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए, समयं गोयम मा पमायए ।। ३४ ॥ अकलेवरसेणिं उस्सिया, सिद्धिं गोयम लोयं गच्छसि । खेमं च सिवं अणुसरं, समयं गोयम मा पमायए ॥ ३५ ॥ बुद्धे परिनिव्वुडें चरे, गामगए नगरे व संजए । सन्तीमग्गं च वृहए, समयं गोयम मा पमायए ॥ ३६ ॥ बुद्धस्स निसम्म भासियं, सुकहियमट्टपओवसोहियं । रागं दोसं च छिन्दिया, सिद्धिगई गए गोयमे ॥ ३७॥
त्ति बेमि ॥ इअ दुमपत्तयं समत्तं ॥१०॥
॥ अह बहुस्सुयपुज्जं एगारसं अज्झयणं ॥ संजोगा विप्पमुक्कस्म, अणगारस्स भिक्खुणो। आयारं पाउकरिस्सामि, आणुपुग्विं सुणेह मे ॥१॥ जे यावि होइ निविजे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे अभिक्खणं उल्लयई, अविणीए अबहुस्सुए ॥२॥ अह पंचहिं ठाणे हिं, जेहिं सिक्खा न लब्भई । थम्भा कोहा पमाएणं, रोगेणालस्सएण य ॥३॥ अह अट्टहिं ठाणेहिं, सिक्खासीलि त्ति वुच्चई । अहस्सिरे सया दन्ते, न य मम्ममुदाहरे ॥ ४ ॥ नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए । अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीलि त्ति वुचई ॥५॥ अह चोइसहि ठाणेहिं, वट्टमाणे उ संजए । अविणीए वुचई सो उ, निव्वाणं च न गच्छइ ॥६॥ अमिक्खणं कोही हवइ, पबन्धं च पकुव्बई । मेतिन्जमाणो वमइ, सुयं लघृणमज्जई ॥ ७ ॥ अवि पावपरिक्खेवी, अवि मिनेसु कुप्पई । सुप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे भासइ पावयं ॥ ८ ॥ पहण्णवाई दुहिले, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे । असंविभागी अवियत्ते, अविणीए त्ति वुच्चई ॥ ९॥ अह पन्नरसहिं ठाणेहिं, सुविणीए त्ति वुच्चई । नीयावती अचवले, अमाई अकुऊहले ॥१०॥ अप्पं च अहिक्खिवई, पबन्धं च न कुव्वई । मेतिजमाणो भयई, सुयं लथु न मजई ॥ ११ ॥ न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासई ॥१२॥ कलहडमरबज्जिए बुद्धे अभिजाइए । हिरिमं पडिसंलीणे, सुविणीए ति वुच्चई ॥ १३ ॥ वसे गुरुकुले निचं, जोगवं उवहाणवं । पियंकरे पियंवाई, से सिक्खं लछुमरिहई ॥ १४ ॥ जहा संखम्मि पयं, निहियं दुही वि विरायइ । एवं बहुस्सुए भिक्खू, धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥ १५ ॥ जहा से कम्बोयाणं, आइण्णे कन्थए सिया । आसे जवेण' पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १६ ॥ जहाइण्णसमारूढे, सूरे दृढपरक्कमे । उभओ नन्दिघोसेणं, एवं हवा बहुस्सुए ॥१७॥ जहा करेणुपरिकिण्णे, कुंजरे सहिहायणे । बलवन्ते अप्पडिहए, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ १८ ॥
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...(35)
श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला.
॥
२४ ॥
जहा से तिक्खसिंगे, जायखन्धे विराबई । वसहे जूहाहिवई, एवं हवs बहुस्सु जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए । सीड़े मियाण पवरे, एवं हवड् बहुस्सु जहा से वासुदेवे, संखचकमयाधरे । अप्पडिहयबले जोहे, एवं हवइ बहुस्सुए जहा से चाउरन्ते, चक्कबट्टी महिड्डिए । चोहसरयणाहिवई, एवं हवइ बहुस्सु जहा से सहारसक्खे, वज्रपाणी पुरन्दरे । सक्के देवाहिवई, एवं हवइ बहुस्सु जहा से तिमिरविद्धंसे, उचिट्ठन्ते दिवायरे । जलन्तं इव तेएण, एवं हव बहुस्सु ॥ जहा से उडुवई चन्दे, नक्खत्तपरिवारिए । पडिपुण्णे पुण्णमासीए, एवं हवइ बहुस्सु जहा से समाइयाणं, कोट्टागारे सुरक्लिए । नाणाधन पडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए ॥ जहा सा दुमाण पवरा, जम्बू नाम सुदंसणा । अणाढियस्स देवस्स, एवं हवइ बहुस्सु ॥ २७ ॥ जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवन्तपवहा, एवं हवइ बहुस्सुए || २८ ॥ जहा से नगाण पवरे, सुमहं मन्दरे गिरी । नाणोसहिपज्जलिए, एवं हवइ बहुस्सुए ।। २९ ।। जहा से सयंभुरमणे, उदही अक्खओदए । नाणारयणपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सु || ३० || समुद्दगम्भीरसमा दुरासया, अचक्किया केणइ दुप्पहंसया ।
२५ ||
२६ ॥
यस पुण्णा विजलस्स ताइणो, खक्ति कम्मं गहमुत्तमं गया . तम्हा सुयमहिद्विज्जा, उत्तमट्टगवेसए । जेणप्पाणं परं चैव, सिद्धिं संपाउणेज्जासि ॥ ति बेमि ॥ इअ बहुस्सुयपुजं समत्तं ॥ ११ ॥
॥ ३१ ॥ ३२ ॥
॥
॥
॥
||
१९ ॥
२० ॥
२१ ॥
२२ ॥
२३ ॥
॥ अह हरिए सिज़ बारहं अज्झयणं ॥
१ ॥
सोवामकुलसंभूओ, गुणुत्तरधरो मुणी, हरिएसबलो नाम, आसि भिक्खू जिइन्दिओ ॥ इरिएस भासा उच्चारसमिसु य । जओ आयाणनिक्खेवे, संजओ सुसमाहिओ ॥ २ ॥ मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइन्दिओ । भिक्खट्टा बम्भइज्जम्मि, जन्नवाडे उवट्टिओ ॥ ३ ॥ तं पासिऊणं एज्जन्तं तवेण परिसोसियं । पन्तोव हिउवगरणं, उवहसन्ति अणारिया ॥ ४॥ जाईमय पथिद्धा, हिंसगा अजिइन्दिया । अबम्भचारिणो बाला, इमं वयणमब्बवी ॥ ५ ॥ करे आगछड् दित्तरूवे, काले विगराले फोक्कनासे । ओमचेलए पंसुपिसायभूए, संकरसं परिवरिय कण्ठे ॥ ६ ॥ को रे तुम इय अदंसणिज्बे, काए व आसाइहमागओसि । ओमचेलया पंसुपिसायभूया, गच्छक्ख लाहिं कि मिहिं ठिओ सि ॥ ७ ॥ जक्खे तर्हि तिन्दुरुक्खचासी, अणुकम्पओ तस्स महामुणिस्स । पच्छायइत्ता नियगं सरीरं, इमाहूं वयणाइमुदाहरित्था || ८ || समणो अहं संजओ, बम्भयारी, विरओ घणपयणपरिग्गहाओ । परप्पवित्तस्स उ भिक्खकाले, अनस्स अट्ठा इहमागओमि ॥ ९ ॥ वियरिज्जर खज्जर भुर्जी, अनं पभूयं भवयाणमेयं ।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र - द्वादशमाध्ययनम्
जाह मे जायजीविणु नि, सेसावसेसं लभऊ एवस्सी ॥ १० ॥ उवक्खडं भोयण माहणाणं, अत्तट्ठियं सिद्धमिहेगपक्खं । नऊ वयं एरिसमन्नपाणं, दाहामु तुज्झं किमिहं ठिओ सि ॥ ११ ॥ थले वीयाइ ववन्ति कासगा, तदेव निन्ने सु य आससाए । एयाए सद्धाए दलाह मज्झं, आराहए पुण्णमिणं खु खित्तं ।। १२ ।। ताणि अम्हं विइयाणि लोए, जहिं पकिण्णा विरुहन्ति पुण्णा । जे माहणा जाइ विज्जोववेया, ताइं तु खेत्ताइ सुपेसलाई ॥ १३ ॥ कोहोय माणो य वहोय जेसिं, मोसं अदत्तं च परिग्गहं च ।
माहा जाइविज्जाबिहूणा, ताई तु खेत्ताइ सुपावयाई ॥ १४ ॥ तुम्मेत्थ भो मारधरा गिराणं, अठ्ठे न जाणेह अहिज्ज वेए । उच्चावयाई मुणिणो चरन्ति, साई तु खेत्ताइ सुपेसलाई ॥ १५ ॥ अन्झायाणं पडिकूलमासी, पभाससे किं तु सगास अहं । अवि एयं विणस्सउ अन्नपाणं, न य णं दाहामु तुमं नियण्ठा ॥ १६ ॥ समहिमज्यं, सुसम । हियस्स, गुत्तीहि गुत्तम्स जिइन्दियस्स । ज मे न दाहित्य असणिज्जं, किमज्ज जन्नाण लहित्थ लाहं ॥ १७ ॥ के एत्थ खत्ता उवजोइया वा, अज्झावया वा सह खण्डिएहिं । एयं दण्डेण फलपण हन्ता, कण्ठम्मि घेत्तण खलेज्ज जोणं ॥ १८ ॥ अज्झायाणं वयणं सुणेत्ता, उद्धाइया तत्थ बहूकुमारा । दण्डेहि विचेहि कसेहि चैत्र, समागया तं इसि तालयन्ति ।। १९ ॥ नो तहिं कोसलियम्स धूया, भद्द त्ति नामेण अणिन्दियंगी । तं पासिया संजय हम्ममाणं, कुद्धे कुमारे परिनिव्वे ॥ २० ॥ देवाभिओगेण निओइएणं, दिन्ना मु रन्ना मणसा न भाया । नरिन्ददेविन्दभिवन्दिएणं, जेणम्हि वंता इसिणा स एसो ॥ २१ ॥ • एसो. हु सो उग्गतवो महप्पा, जितिन्दिओ संजओ बम्भयारी । जो मे तथा नेच्छदिज्जमाणिं, पिउणा सर्य कोस लिएण रन्ना ॥ २२ ॥ महाजसो एम महाणुभागो, घोरव्वओ घोग्परमो य । मा एयं ही लेह अहील णिज्जं, मा सच्चे तेएण भे निदहेज्जा ॥ २३ ॥ या तीसे वयणाइ सोच्चा, पत्तीइ भद्दाइ सुहासियाई । इसिस्स वेयावडियट्टयाए, जक्खा कुमारे विणिवारयन्ति ।। २४ ।। ते घोररूवा ठय अन्तलिक्खेऽसुरा तहिं तं जण तालयन्ति । ते भिन्नदेहे रुहिरं वमन्ते, पासित्तु भद्दा इणमाहु भुज्जो ॥ २५ ॥ गिरिं नहिं खणह. अयं मन्ते हिं खायह । जायतेय पाएहि हणह,
जे भिक्खुं अवमन्नह || २६ ||
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श्रीजैन सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
आसीविसो उग्गतवो महेसी, घोरव्वओ परक्कमो य । अगणिव पक्खन्द पयंगसेणा, जे भिक्खुयं भत्तकाले वदेह ॥ २७ ॥ सीसेण एवं सरणं उवेह, समाजया सव्वजणेण तुम्भे ।
इच्छह जीवियं वा धणं वा, लोगंपि एसो कुविओ डहेज्जा ॥ २८ ॥ अवहेडिय पिट्ठिस उत्त मंगे, पसारिया बाहु अकमचेट्ठे । निज्झेरियच्छे रुहिरं वमन्ते, उद्धंमुहे निग्गयजीहनेते ॥ २९ ॥ "ते पासिया खण्डियकट्टभ्रूए, विमणो विसण्णो अह माहणो सो । इस पसाएइ सभारियाओ, हीलं च निन्दं च खमाह भन्ते ॥ ३० ॥ 'बालेहि मूढेहि अयाणएहिं, जं हीलिया तस्स खमाह भन्ते । महप्पसाया इसिणो हवन्ति, न हु मुणी कोवपरा हवन्ति ।। ३१ ।। पुव्विं च इहिच अणागयं च, मणप्पदोसोन मे अस्थि कोइ । जक्खा हु वेयावडियं करेन्ति, तम्हा हु एए निहया कुमारा ।। ३२ ।। अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा, तुब्भं न वि कुप्पह भूइपन्ना । तुब्भं तु पाए सरणं उवेमो, समागया सव्वजणेण अम्हे ॥ ३३ ॥ अच्चे ते महाभाग, न ते किंचि न अच्चिमो । जाहि सालिमं कूरं, नाणार्वजण संयं ॥ ३४ ॥ इमं च मे अत्थि पभूयमन्नं तं भुंजसू अम्ह अणुग्गहट्ठा । बाढं ति पडिच्छर भत्तपाणं, मासस्स ऊ पारणए महप्पा ॥ ३५ ॥ तहियं गन्धोदयपुष्पवासं, दिव्वा तर्हि वसुहारा य बुट्ठा । पहयाओ दुन्दुहीओ सुरेंहिं, आगासे जहो दाणं च घुटुं ।। ३६ ।। सक्ख खुदीसह तवोविसेसो न दीसई जाइ विसेस कोई । सोवागपुत्तं, हरिएससाहुं, जस्सेरिसा इड्डि महाणुभागा ॥ ३७ ॥ किं माहणा जोइसमारभन्ता, उदएण सोहिं बहिया विमग्गह । जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं, न तं सुइटुं कुसला वयन्ति ॥ ३८ ॥ कुसं च जूवं तणकट्ठमींग, सायं च पायं उदगं फुसन्ता । पाणा भूयाइ विहेडयन्ता, भुज्जो वि मन्दा पगरेह पावं ।। ३९ ।। कहं च रे भिक्खु वयं जयामो, पावाइ कम्माइ पुणोल्लयामो । अक्खाहि णे संजय जक्खपूड़या, कहं सुजटुं कुसला वयन्ति ॥ ४० ॥ छज्जीवका असमारभन्ता, मोसं अदत्तं च असेवमाणा । परिग्गहं इथिओ माणमायं, एयं परिन्नाय चरन्ति दन्ता ॥ ४१ ॥ सुसंबुडा पंचहिं संवरेहिं, इह जीवियं अणवकखमाणा । बोकाइ सुइचत्तदेहा, महाजयं जयं जन्न सिङ्कं ॥ ४२ ॥ ते जोई के व ते जोइठाणे, का ते सुया किं वं ते कारिसंगं ।
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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र - द्वादशमाध्ययनम्
हाय ते करा सन्ति भिक्खू, कयरेण होमेण हुणासि जोई ॥ ४३ ॥ तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंगं । कम्मेहा संजमजोगसन्ती, होमं हुणामि इसिणं पसत्थं । ४४ ।। के हर के य ते सन्तितित्थे, कहिं सिणाओ व रयं जहासि । आइक्ख णे संजय जक्खपूइया, इच्छामो नाउं भवओ सगासे ।। ४५ । धम्मे हर बम्भे सन्तितित्थे, अणाविले अत्तपसन्नले से । जहिं सिणाओ विमलो विसुद्धो, सुसीइओ पजहामि दोसं ॥ ४६ ॥ एयं सिणाणं कुसले हि दिट्ठे, महासिणाणं इसिणं पसत्थं । जाहि सिणाया विमला विसुद्धा, महारिसी उत्तमं ठाणं पत्त ॥ ४७ ॥ त्ति बेमि || इअ हरिएसिज्जं समत्तं ॥ १२ ॥
(१९)
॥ अह चित्तसम्भूइजं तेरहमं अज्झयणं ॥
नाईपराजइओ खलु, कासि नियाणं तु हत्थिणपुरम्मि । चुलणीए बम्भदत्तो, उववन्नो पउग्गुमाओ ॥ १ ॥ कम्पिल्ले सम्भूओ, चित्तो पुण जाओ पुरमतालम्मि। सेट्ठिकुलम्मि विसाले, धम्मं सोऊण पव्वइओ ॥ २ ॥ कम्पिल्लम्मियनय रे, समागया दो वि चित्तसम्भूया । सुहदुक्ख फल विवागं, कहेन्ति ते एकमेकस्स ॥ ३ ॥ चक्कवट्टी महिड़ीओ, बम्भदत्तो महायसो । भायरं बहुमाणेणं, इमं वयणमबब्वी ॥ ४ ॥ आसी भायरो दोवि, अन्नमन्नवसाणुगा | अन्नमन्नमणूरत्ता, अन्नमन्नहिए सिणो ॥ दासादसणे आसीमु, मिया कालिंजरे नगे । हंसा मयंगतीरे, सोवागा कासिभूमिए ॥ देवाय देवलोम्मि, आसि अम्हे महिढीया । इमा नो छट्टिया जाई, अन्नमन्त्रेण जा विणा ॥ ७ ॥ : कम्मा नियाणपयडा, तुमे राय विचिन्तिया । तेसिं फलविवागेण, विप्पओगमुवागया ॥ ८ ॥ सच सोय पगडा, कम्मा मए पुंरा कंडा । ते अज परिभुंजामो, किं तु चित्तेवि से तहा ॥ ९ ॥
५ ॥
६ ॥
सव्वं सुचिणं सफलं नराणं, कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि । अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहिं आया ममं पुण्णफलोववे ॥ १० ॥ जाणाहि संभूय महाणुभागं, महिड्ढीयं पुण्ण फलोववेयं । चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं, इड्ढी जुई तस्स वियम्भूया ॥ ११ ॥ महत्थरूवा वयणष्पभूया, हा गया नरसंघ मज्झे । जं भिक्खुणी सीलगुणोववेया, इहं जयन्ते सुमणो मि जाओ ॥ उच्चोयए महु कक्के य बम्भे, पंवेइया आवसहाय रम्मा । इमं हिं चित्त धंणभूयं, पंसाहि पंचालगुणोववेयं ॥ १३ ॥ नहि गीएहि य वाइएहिं नारीजणाहिं परियारयन्तो । भुंजाहि भोगाइ इमाइ भिक्खू, मम रोयई पवज्ज हु दुख ॥ १४ ॥
१२ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
तं पुवनेहेण कयाणुरागं, नराहिवं कामगुणेसु गिदं । धम्मस्सिओ तस्स हियाणुपेही, चित्तो इम वयणमुदाहरित्था ॥ १५ ॥ सव्वं विलवियं गीयं, सव्वं नटुं विडम्बियं । सवे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावडा ॥ १६ ॥ बालाभिरामेसु दुहावहेसु, न त सुहं कामगुणेसु राय । विरत्तकामाण तवोहणाणं, जं भिक्खुणे सीलगुणे रयाणं ॥ १७॥ नरिंद जाई अहमा नराणं, सोवागजाई दुहओ गयाणं । जहिं वयं सव्यजणस्स, वेस्सा, वसी य सोवागनिवेसणेसु ॥ १८ ॥ सीसे य जाईइ उ पावियाए, वुच्छानु सोवागनिवेसणेसु । सव्वस्प लोगस्स दुगंछणिज्जा, इहं तु कम्माइ पुरे कडाइं ॥ १९ ॥ सो दाणि सिं राय महाणुभागो, महिड्ढी पुण्णफलोववेओ। चइत्तु भोगाइ असासयाई, आदाणहेउं अमिणिक्खमाहि ॥ २० ॥ इह जीविए राय असासयम्मि, धणियं तु पुण्णाइ अकुव्यमाणो । से सोयई मच्चुमुहोवणीए, धम्मं अंकाऊण परंसि लोए ॥ २१ ॥ जहेह सीहो व मियं गहाय, मच्चू नरं नेइ हु अन्तकाले । न तस्स माया व पिया व भाया, कालम्मि तम्मंसहरा भवन्ति ।। २२ ॥ नतस्स दुक्खं विभयन्ति, नाइओ, न मित्तवग्गा न सुयान बंधवा । एको सयं पञ्चणुहोइ दुक्खं, कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ॥ २३ ॥ चेच्चा दुपयं च चरप्पयं च, खेतं गिहं धणधनं च सव्वं । सकम्मवीओ अवसो पयाइ, परं भवं सुंदर पावगं वा ॥ २४ ॥ तं एक तुच्छसरीरगं से, चिईगयं दहिय उ पावगेणं । मज्जा य पुत्तावि य नायओ य, दायरमन्नं अणुसंकमन्ति ॥ २५ ॥ उवणिजई जीवियमप्पमायं. वणं जरा हरइ नरस्स राय । पंचालराया वयणं सुणाहि, मा कासि कम्माइ महालयाई ॥ २६ ॥ अहं पि जाणामि जहेह साहू, जं मे तुमं साहसि वक्कमेयं । भोगा इमे संगकरा हवन्ति, जे दुजया अजो अम्हारिसेंहिं ॥ २७ ॥ हत्थिणपुरम्मि चित्ता, दट्टणं नरवई महिड्ढीयं । कामभोगेसु गिद्धेणं, नियाणमसुहं कडं ।। २८ ॥ तस्त मे अपडिकन्तस्स, इमं एयारिसं फल । जाणमाणो वि जं धम्म, कामभोगेसु मुच्छिओ ॥ २९ ॥ नागो जहा पंकजलावसन्नो, द? थलं नाभिसमेइ तीरं । एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, न भिक्खुणो मग्गमणुब्वयामो ॥ ३० ॥ अच्चेइ कालो तरन्ति राइओ, न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा ।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-त्रिंदशमध्ययनम् उविच्च भोगा पुरिसं चयन्ति, दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ॥ ३१ ॥ जइ तं सि भोगे चइउं असत्तो, अजाइ कमाइ करेहि रायं । धभ्मे ठिओ सत्वपयाणुकम्पी, तो होहिसि देवो इओ विउच्ची ॥ ३२ ॥ न तुज्झ भोगे चइऊण बुद्धी, गिद्धो सि आरभ्भपरिग्गहेसु । मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावु, गच्छामि रायं आनन्तिओसि ॥ ३३ ॥ पंचालराया वि य बम्भदृत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अफाउं । अणुत्तरे भुंजिय कामभोमे, अणुत्तरे सो नरए पविट्ठो ॥ ३४ ॥ चित्तो वि कामेहि विरत्तकामो, अदग्गचारित्ततवो महेसी । अणुत्तरं संजमं पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गओ ॥ ३५ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ चित्तसम्भूइज समत्तं ॥
॥ अह उसुयारिजं चोदहमं अज्झयणं ॥ देवा भवित्ताण पुरे भवम्मी, केई चुया एगविमाणवासी । पुरे पुराणे उसुयारनामे, खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे ॥१॥ सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसुदग्गेसु य ते पसूया। निविण्णसंसारभया जहाय, जिणिंदमग्गं सरणं पवना ॥ २ ॥ पुमत्तमागम्म कुमार दो वी, पुरोहिओ तस्स जसा य पत्ती । विसालकित्ती य तहोसुयारो, रायस्थ देवी कमलावई य ॥ ३ ।। जाईजरामच्चुभयाभिभूया, वहिविहाराभिनिविट्ठचित्ता। संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा, दठूण ते कामगुणे विरत्ता ॥ ४ ॥ पियपुत्तगा दोन्नि वि माहणस्स, सकम्मसीलस्स पुरोहियस्स । सरित्तु पोराणिय तत्थ जाई, तहा भुचिण्णं तवसंजमं च ॥५॥ ते कामभोगेसु असज्जमाणा, आणुस्सएमुं जे यावि दिव्वा । मोक्खाभिकंखी अभिजायसड्डा, तायं उवागम्म इमं उदाहु ॥ ६॥ असासयं दह्र इमं विहारं, बहुअन्तरायं न य हीयमाउं । तम्हा गिहिसि नरई लहामो, आमन्तयामो चरिस्सामु मोणं ॥७॥ अह तायगो तत्थ मुणीण तेसिं, तवस्स वाघायकरं वयासी । इमं वयं वेयविओ वयन्ति, जहा न होई असुयाण लोगो ॥ ८॥ अहिज्ज वेए परिविस्स विप्पे, पुत्ते परिठ्ठप्प गिहंसि जाया। भोचाण भोए सह इत्थियाहिं, आरण्णगा होह मुणो पसत्था ॥९॥ सोयरिंगणा आयगुणिन्धणेणं, मोहाणिला पन्जलणाहिएणं ।। संतचभावं परितप्पमाणं, लालप्पमाणं बहुहा नहुं च ॥ १० ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला पुरोहियं तं कमसोऽणुणिन्तं, निमंतयन्तं च सुए धणेणं । जहक्कम कामगुणेहि चेव, कुमारगा ते पसंमिक्ख वकं ॥ ११ ॥ वेया अहीया न भवन्ति ताणं, भुत्ता दिया निन्ति तमं तमेणं । जाया य पुत्ता न हवन्ति ताणं, कोणाम ते अणुमन्नेज एयं ॥ १२ ॥ खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा,पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा । संसारमोक्खस्स विपक्खभूया,खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ।। १३ ॥ परिव्वयन्ते अणियत्तकामे, अहो य राओ परितप्पमाणे । अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे, पप्पोति मच्चुं पुरिसे जरं च ॥१४॥ इमं च मे अत्थि इमं च नत्थि, इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं । तं एवमेयं लालप्पमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पमाए ॥ १५ ॥ धणं पभूयं सह इत्थियाहिं, सयणा तहा कायगुणा पगामा । तवं कए तप्पइ जस्स लोगो, तं सब साहीणमिमेव तुभं ॥ १६ ॥ धणेण किं धम्मघुराहिगारे, सयणेण वा कामगुणेहि चेत्र । समणा भविस्सामुगुणोहधारी,कहिंविहारा अभिगम्म भिक्खं ।। १७ ।। जहा य अग्गी अरणी असन्तो, खीरे घयं तेल्लमहा तिलेसु । एमेव ताया सरीरंसि सत्ता, संमुच्छइ नासइ नावचिट्टे ॥ १८ ॥ नोइन्दियग्गेज्झत्तमुत्तभावा, अमुत्तभावा वि य होइ निचो । अज्झत्थहेउं निययस्स बन्धो, संसारहेउं च वयन्ति बन्धं ॥ १९ ॥ जहा वयं धम्मं अजाणमाणा, पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । ओलभमाणा परिरक्खयन्ता, तं नेत्र भुजो वि समायरामो ॥ २० ॥ अब्भाहयम्मि लोगम्मि, सवओ परिवारिए । अमोहाहिं पडन्तीहिं, गिहंसि न रइं लभे ॥ २१ ॥ केण अब्भाहओ लोगो, केण वा परिवारिओ। का वा अमोहा वुत्ता, जाया चिन्तावरो हुमे ।। २२ ॥ मच्चुणाऽब्भाहओ लोगो, जराए परिवारिओ। अमोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय विजाणह ॥ २३ ॥ जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई । अहम्मं कुणमाणस्स, अफला जन्ति राइओ ॥ २४ ॥ जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिनियत्तई । धम्मं च कुणमाणस्स, संफला जन्ति राइओ ॥ २५ ॥ एगओ संवसित्ताण, दुहओ सम्मत्तसंजुया । पच्छा जाया गमिस्सामो, भिक्खमाणा कुले कुले ॥ २६ ॥ जस्तथि मन्चुगा सक्ख, जस्त चत्थि पलायणं ।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-चोद्दमाध्ययनम्
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णो जाणे न मरिस्सामि, सो हु कंखे मुए सिया ॥ २७ ॥ अजेब धम्म पडिवजयामो, जहिं पवना न पुणब्भवामो । अणागयं नेव य अस्थि किंची, सद्धाखमंणे विणइत्तु रागं ॥ २८ ॥ पहीणपुत्तस्स हु नत्थि वासो,वासिद्धि भिक्खायरियाइ कालो। साहाहि रुक्खो लहई समाहिं, छिन्नाहि साहाहि तमेव ठाणुं ॥ २९ ॥ पंखाविहूणो व्व जहेव पक्खी, भिच्चबिहूणो व्य रणे नरिन्दो । विवन्नसारो वणिओ व्व पोए, पहीणपुत्तो मि तहीं अहंपि ॥ ३० ॥ सुसंमिया कामगुणे इमे ते, संपिण्डिया अग्गरसप्पभूया । भुंजामु ता कामगुणे पगाम, पच्छा गमिस्सामु पहाणमग्गं ॥ ३१ ॥ भुत्ता रसा भोइ जहाइ णे वओ, न जीवियट्ठा पजहामि भोए । लाभं अलाभं च सुहं च दुक्खं,संचिक्खमाणो चरिस्सामि मोणं ॥३२॥ माहू नुमं सौयरियाण सम्भरे, जुणो व हंसो पडिसोत्तगामी । भुंजाहि भोगाइ मए समाणं, दुक्खं खु भिक्खायरियाविहारो ॥ ३३ ॥ जहा य भोई तणुयं भुयंगो, निम्मोयणिं हिच पलेइ मुत्तो। एमेए जाया पयहन्ति भोए, ते हं कहं नाणुगमिस्समेको ।। ३४ ॥ छिन्दित्तु जालं अबलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाय । धोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खाचरियं चरन्ति ॥ ३५ ।। नहेव कुंचा सयइक्कमन्ता, तयाणि जालाणि दलित्त हंसा । . पलेन्ति पुत्ता य पई य मज्झं, ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्का ॥ ३६ ॥ पुरोहियं तं ससुयं सदारं, सोच्चाऽभिनिक्खम्म पहाय भोए । कुडुम्बसारं विउलुत्तमं च, राय, अभिक्खं समुदाय देवी ॥ ३७॥ वन्तासी पुरिसो रायं, न सो होइ पसंसिओ । माहणेण परिच्चत्तं, धणं आदाउमिच्छसि ॥ ३८॥ सव्वं जगं जइ तुहं, सव्वं वावि धणं भवे । सव्वं पि ते अपज्जतं, नेव ताणाय तं तव ॥ ३९॥ मरिहिसि रायं जया तया वा, मणोरमे कामगुणे विहाय । एको हु धम्मो नरदेव ताणं, न विजई अनमिहेह किंचि ॥ ४० ॥ नाहं रमे पक्खिणि पंजरे वा, संताणछिन्ना चरिस्सामि मोणं ।
अकिंचणा उज्जुकडा निरामिसा, परिग्गहारम्भनियत्तदोसा ॥ ४१ ।। दवग्गिणा जहा रण्णे, डज्झमाणेसु जन्तुसु । अन्ने सत्ता पमोयन्ति, रागद्दोसवसं गया ॥ ४२ ॥ एवमेव वयं मूढा, कामभोगेसु मुच्छिया । डज्झमाणं न बुज्झामो, रागदोसग्गिणा जगं ॥ ४३ ॥ भोगे भोच्चा वमित्ता य, लहुभूयविहारिणो । आमोयमाणा गच्छन्ति, दिया कामकमा इन ॥ ४४ ॥ इमे य बद्धा फन्दन्ति, मम हत्थजमागया। वयं च सत्ता कामेसु, भविस्सामो जहा इमे ॥ ४५ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
सामिसं कुललंदिस्स, बज्झमाणं निरामिसं । आमिसं सव्वमुज्झित्ता, विहरिस्सामि निरामिसा ॥ ४६ ।। गिद्धोवमा उ नचाणं, कामे संसारवड्डणे । उरगो सुवण्णपासे व्व, संकमाणो तणुं चरे ॥ ४७ ॥ नागो व्व बन्धणं छित्ता, अप्पणो वसहिं वए । एयं पच्छं महारायं, उस्सुयारि त्ति मे सुयं ॥ ४८ ॥ चहत्ता विउलं रज्जं, कामभोगे य दुच्चए । निव्विसय निरामिसा, निन्नेहा निप्परिग्गहा ॥ ४९ ॥ धम्मं धम्मं वियाणित्ता, चेच्चा कामगुणे वरे । तवं पगिज्झहक्खायं, घोरं घोरपरक्कमा ॥ ५० ॥ एवं ते कमसो बुद्धा, सव्वे धम्मपरायणा । जम्ममच्चुभउबिग्गा, दुक्खस्सन्तगवेसिणो ॥ ५१ ।। सासणे विगयमोहाणं, पुदि भावणभाविया । अचिरेणेव कालेण, दुक्खस्सन्तमुवागया ॥ ५२ ॥ राया सह देवीए, माहणो य पुरोहिओ। माहणी दारगा चेव, सव्वे ते परिनिव्वुड ॥ ५३॥
त्ति बेमि ॥ इअ उसुयारिजं समत्तं ॥ १४ ॥
॥ अह सभिक्खू पंचदहं अज्झयणं ॥ मोणं चरिस्सामि समिच्च धम्मं, सहिए उज्जुकडे नियाणछिन्ने । संथवं अहिज्ज अकामकामे, अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू ॥१॥ राओवरयं चरेज लाढे, विरए वेयवियायरक्खिए । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी जे, कम्हिचि न मुच्छिए स भिक्खू ॥२॥ अक्कोसवहं विइत्तु धीरे, मुणी चरे लाढे निच्चमायभुत्ते । अवग्गमणे असंपहिढे, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ३ ॥ पन्तं सयगासणं भइत्ता, सीउण्हं विविहं च दंसमसगं । अवंग्गमणे असंपहिढे, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ४ ॥ नो सक्कइमिच्छई न पूर्य, नो वि य वन्दणगं कुओ पसंसं । से संजए सुपए तवस्सी, सहिए आयगवेसए स भिक्खू ॥५॥ जेण पुण जहाइ जीवियं, मोहं वा कसिणं नियच्छई । नरनारिं पजहे सया तवस्सी, न य कोऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥ ६ ॥ छिन्नं सरं भोमन्तलिक्खं, सुमिणं लक्खणदण्डवत्थुविज्जं । अंगवियारं सरस्स विजयं, जे विजाहिं न जीवइ स भिक्खू ॥७॥ मन्तं मूलं विविहं वेञ्जचिन्तं, वमणविरेयणधूमणेत्तसिणाणं । आउरे सरणं तिगिच्छियं च, तं परिन्नाय परिवए स भिक्खू ॥८॥ खत्तियगणउग्गरायपुत्ता, माहणभोइय विविहा य सिप्पिणो । नो तेसिं वयइ सिलोगपूर्य, तं परिनाय परिवए स भिक्खू ॥९॥ गिहिणो जे पवइएण दिट्ठा, अप्पवइएण व संथुया हविजा ।। तेसिं इयलोइयफलट्ठा, जो संथवं न करेइ स भिक्खू ॥१०॥ सयणासणपाणभोयणं, विविहं खाइमसाइमं परेसिं ।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-पचदशमध्ययनम्
अदए पडिसेहिए नियण्ठे, जे तत्य न पउस्सई स भिक्खू ॥ ११ ॥ जं किंचि आहारपाणजायं, विविहं खाइमसाइमं परेसिं लधुं । जो तं तिविहेण नाणुकम्पे, मणवयकायसुसंवुडे स मिक्खु ॥ १२ ॥ आयामगं चेव जवोदणं च, सीयं सोवीरजवोदगं च । न हीलए पिण्डं नीरसं तु, पन्तकुलाइं परिव्वए स भिक्खू ॥ १३ ॥ सदा विविहा भवन्ति लोए, दिद्या माणुस्सगा तिरिच्छा। भीमा भयमेरवा उराला, सोचा न विहिजई स भिक्खू ॥ १४॥ वादं विविहं समिच्च लोए, सहिए खेयाणुखए य कोवियप्पा । पन्ने अभिभूय सम्बदंसी, उवसन्ते अविहेडिए स भिक्खू ॥ १५ ॥ अविसप्पजीवी अगिहे अमित्ते, जिइन्दिए सबओ विप्पमुके । अणुक्कसाई लहुअप्पभक्खी, चेचा गिहं एगचरे स भिक्खू ॥ १६ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ सभिक्खुयं समत्तं ॥ १५ ॥
॥ अह बम्भचेरसमाहिठाणाणाम सोलसमं अज्झयणं ॥ सुयं मे आउसं-तेणं भगवया एवमक्खायं । इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पमत्ता, जे भिक्खू सोचा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भपारी सया अप्पमत्ते विहरेजा । कयरे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोचा निसम्म संजमबहूले समाहिबहूले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमचे विहरेजा ॥ इमे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं दस बम्भचेरठाणा पन्नत्ता, जे भिक्ख सोचा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिन्दिए गुत्तबम्भयारी सया अप्पमत्ते विहरेजा तंजहा विवित्ताई सयणासणाइं सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे। नो इत्थीपसुपण्डगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थिपसुपण्डगसंसत्ताई सयगासणाई सेवमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीलकालियं वा रोगायंकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज । तम्हा नो इत्थिपसुपण्डगसंसत्ताई सयणापणाई सेवित्ता हवइ से निग्गन्थे ॥ १॥नो इत्थिणं कहं कहित्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स कम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगच्छा वा समुप्पजिजा, मेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिजा, दीहकालियं वा रोगायक हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा नो इत्थीणं कहं कहेजा ॥२॥ नो इत्थीणं सद्धिं सनिसेजागए बिहरित्ता हवह से निग्गन्थे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेन्जागयस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेजा, केवलिपनत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु
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श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
नो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्ज गए विहरेज्जा ॥ ३ ॥ नो इत्थीणं इन्दियाई मणोहराई मणोरमाई आलोहत्ता निज्झाइत्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं इन्दियाई मणोहराई मणोरमाइं आलोएमाणस्स निज्झायमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिजा, दीहकालिय वा रोगायकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेजा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थीणं इन्दियाई मणोहराई मणोरमाई आलोएज्ज निज्झाएजा ॥ ४ ॥ नो इत्थीणं कुडुन्तरंसि वा दूसन्तरंसि वा मित्तन्तरंसि वा कूइयसद्दं वा रुइयसद्दं वा गीयसद्दं वा इसियसद्दं वा थणियसद्दं वा कन्दियस वा विलवियसद्दं वा सुणेत्ता हवइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु इत्थीणं कुडुन्तरंसि व दूसन्तरंसि वा मित्तन्तरंसि वा कूझ्यसद्दं वा रुइय सद्दं वा गीयसद्दं ना हसियस वा थणियसद्दं वा कन्दिय सद्दं वा विलवियसद्दं वा सुणेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेज्जा केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेजा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे इत्थीणं कुडुन्तरंसि वा दूसन्तरंसि वा भित्तन्तरंसि वा कूइयसद्दं वा रुइयसद्दं वा गीयसद्दं वा हसियसद्दं वा थणियसद्दं वा कन्दियसद्दं वा विलवियस वा सुलेमाणे विहरेजा ।। ५ ।। नो निग्गन्थे पुवरयं कीलियं अणुसरिता हवइ से निग्गन्थे तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु पुवरयं कीलियं अणुसरमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेजा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ सेजा । तम्हा खल नो निग्गण्थे पुन्वरयं पुवकीलियं अणुसरेजा ।। ६ ।। नो पणीयं आहारं आहरित्ता हवड़ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे । आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु पणीयं आहारं आहारेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पजिजा, भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिजा, दीहकालियं वा रोगायकं हवेजा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे पणीयं आहारं आहारेज्जा || ७ || नो अइमायाए पाणभोयणं आहारेता हव से निग्गन्थे । तं कहमिति चे | आयरियाह । निग्गन्थस्स खलु अइमायाए पाणभोयण आहारेमाणस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुप्पञ्जिञ्जा, भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीलकालियं वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे अइमायाए पाणभोयणं आहारेज्जा | ८ || नो विभूसाणुवादी हव से निग्गन्थे । तं कहमिति चे आयरियाह । विभूसावत्तिए विभूसियसरी रे इत्थि - जणस्स अभिलसणिजे हवइ तओ णं इत्थिजणेणं अभिलसिज्जमाणस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विगच्छा वा समुपज्जिज्जा, भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालिय वा रोगायकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा । तम्हा खलु नो निग्गन्थे विभूसाणुवादी हविज्जा ॥ ६ ॥ नो सद्दरूवरसगन्धफासाणुवादी हवाइ से निग्गन्थे । तं कहमिति चे | आयरियाह | निगन्थस्स खलु सद्दरूवगन्धफासाणुवादिस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संका वा कंखा वा विइगिच्छा वा समुज्जिज्जा, भेदं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायक हवेज्जा, केव
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-सोलमाध्ययनम्
लिपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेजा। तम्हा खलु नो सदरूवरसगन्धफासाणुवादी भवेजा से निग्गन्थे। दसमे बम्भचेरसमाहिठाणे हवइ ।। १० । भवन्ति इन्थ सिलोगा तंजहाजं विवित्तमणाइणं, रहियं इत्थि जणेण य बम्भचेरस रक्खट्ठा, आलयं तु निवेसए ॥१॥ मणपल्हायजणणी, कामरागविवड्डणी। बम्भचेररओ भिक्खू, थीकहं तु विवजए ॥ २ ॥ समं च संथवं थीहिं, संकहं च अभिक्खणं । बम्भचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवजए ॥ ३ ॥ अंगपञ्चंगसंठाणं, चारुल्लवियपेहियं । बम्भचेररओ थीणं, चक्खुगिझं विवज्जए ॥ ४॥ कूड़यं रुइयं गीयं, हसियं थणियकन्दियं । बम्भचेररओ थीणं, सोयगेझं विवजए ॥५॥ हासं किडं रइं दप्पं, सहसावित्तासियाणि य । बम्भचेररओ थीणं, नाणुचिन्ते कयाइ वि ॥६॥ षणीयं भत्तपाणं तु, खिप्पं मयविवड्वणं । बम्भचेररओ भिक्खू, निच्चसो परिवजए ॥७॥ धम्मलद्धं मियं काले, जत्तत्थं पणिहाणवं । नाइमत्तं तु मुंजेजा, बम्भचेररओ सया ॥ ८॥ विभूसं परिवजेजा, सरीरपरिमण्डणं । बम्भचेररओ भिक्खू, सिंगारत्थं न धारए ॥९॥ सहे रूवे य गन्धे य, रसे फासे तहेवय । पंचविहे कामगुणे, निचसो परिषजए ॥१०॥ आलओ थीजणाइण्णो, थीकहा य मणोरमा । संथवो चेव नारीणं, तासिं इन्दियदरिसणं ॥ ११ ॥ कूइयं रुइयं गीयं, हासभुत्तासियाणि य । पणीयं भत्तपाणं च, अइमायं पाणभोयणं ॥ १२ ॥ गत्तभूसणमिटुं च, कामभोगा य दुजया । नरस्सत्तगवेसिस्स, विसं तालउडं जहा ॥ १३ ॥ दुजए कामभोगे य, निच्चसो परिवजए । संकाथाणाणि सवाणि, वजेजा पणिहाणवं ॥१४॥ घम्मारामरते चरे भिक्खू, धिइमं धम्मसारही । धम्मारामरते दन्ते, बम्मचेरसमाहिए ॥ १५ ॥ देवदाणवगन्धवा, जक्खरक्खसकिन्नरा । बम्भयारिं नमंसन्ति, दुक्करं जे करन्ति तं ॥ १६ ॥ एस धम्मे छुवे निच्चे, सासए जिणदेसिए। सिद्धा सिन्झन्ति चाणेण, सिज्झिस्सन्ति तहावरे ॥ १७ ॥
त्ति बेमि ।। इअ बम्भचेरसमाहिठाणा समत्ता ॥ १६ ॥
॥ अह पावसमणिज्जं सत्तदहं अज्झयणं ॥ जे केइ उ पवइए नियण्ठे, धम्म सुणित्ता विणओववन्ने । सुदुल्लहं लहिउं बोहिलामं, विहरेज पच्छा य जहासुहं तु ॥१॥ सेञ्जा दढा पाउरणम्मि अत्थि, उप्पज्जई भोत्तु तहेव पाउं ।।
जाणामि जं वट्टई आउसु त्ति, किं नाम कहामि सुएण भन्ते ॥ २ ॥ जे केई पवइए, निदामीले पगामसो । भोचा पेच्चा सुहं सुवइ, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥३॥ आयरियउवज्झएहि, सुयं विणयं च गाहिए । ते चेव खिंसई बाले, पावसमणि त्ति बुच्चई ॥ ४ ॥ आयरियउवज्झागणं, सम्मं न पडितप्पइ । अप्पडिपूयए थद्धे पावसमणि त्ति वुच्चई ॥५॥ सम्महमाणो षाणाणि, वीयाणि हरियाणि य । असंजए संजयमन्नमाणी, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ ६ ॥ संथारं फलगं पीढं, निसजं पायकम्बलं । अप्पमञ्जियमारुहइ, पावसमणि त्ति बुञ्चई ॥७॥ दवदवस्स चरई, पमत्ते य अभिक्रवणं । उल्लंघणे य चण्डे य, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥८॥
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श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला.
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पावसमणि त्ति वुई
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पावसमणि त्ति बुच्चई
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पडिलहेइ पमत्ते, पउज्झइ पायकम्बलं । पडिलेहा अणाउत्ते, पावसमणि त्ति बुच्चई पडिलेहेइ पमत्ते, से किंचि हु निसामिया । गुरुपारिभावए निच्चं पावसमणि त्ति बुच्चई बहुमाई मुहरे, थद्धे लुद्धे अणिग्गदे । असंविभागी अवियत्ते, पावसमणि त्ति चई ॥ विवादं च डदीरेs, अहम्मे अत्तपन्नहा । बुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥ अथिरासणे कुकुइए, जत्थ तत्थ निसीयई । आसणम्मि अणाउत्ते, ससक्खपाए सुवई, सेजं न पडिलेहइ । संथारए अणाउत्ते, पात्रसमणि त्ति वुच्चई दुद्धदहीविगईओ, आहारेइ अभिक्खणं । अरए य तवोकम्मे, अत्थन्तम्मि य सूरम्मि. आहारेइ अभिक्खणं । चोइओ पडिचोएइ, पात्रसमणि त्ति बुच्चई आयरियपरिच्चाई, परपासण्डसेवए । गाणंगणिए दुब्भूए, सय गेहं परिच्चज्ज, परगेहंसि वावरे । निमित्तेण य ववहरइ, सनाइ पिण्डं जेमेइ, नेच्छई सामुदाणिय । गिहिनिसेज्जं च वाहेइ, पावसमणि तिचाई ॥ एयारिसे पंचकुसीलवुडे, रूवंधरे मुणिपवराण हेट्ठिमे । असलो विसमेव गरहिए, न से इहं नेव परत्थ लोए ।। २० ।। जे वजए एए सया उ दोसे, से सुबए होइ मुणीण मज्झे । असि लोए अमय व पूइए, आराहए लोभिणं तहा परं ।। २१ ।। ॥ ति बेमि || इअ पावसमणिज्जं समत्तं ॥ १७ ॥
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पावसमणि त्ति बुच्चई पावसमणि त्ति
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च ॥
१८ ॥
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९ ॥
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१७ ॥
॥ अह संजइज्जं अढारहमं अज्झयणं ॥
२ ॥ ३ ॥
४ ॥
कम्पिल्ले नयरे राया, उदिष्णबलवाहणे । नामेणं संजए नामं, मिगवं उवणिग्गए ॥ १ ॥ हयाणीए गयाणीए, रयाणीए तहेव य । पायताणीए महया, सङ्घओ परिवारिए ॥ मिए छुहित्ता हयगओ, कम्पिल्लुजाण केसरे । भीए सन्ते मिए तत्थ, वहेइ रसमुच्छिए ॥ अह केसरम्मि उज्जाणे, अणगारे तवोधणे । सज्झायज्झाणसंजुत्ते, धम्मज्झाणं झियायइ ॥ अप्फोवमण्डवमि, भाय क्खवियासवे । तस्सागए मिगं पासं, वहेइ से नराहिवे ॥ ५ ॥ अह आसगओ राया, खिप्पमागम्म सो तर्हि । हए मिए उपासिता, अणगारं तत्थ पासई || ६ || अह राया तत्थ सम्भन्तो, अणगारो मणा हओ । मए उ मन्दपुण्णेणं, रसगिद्वेण घन्नुणा ॥ ७ ॥ आसं विसज्जइत्ताणं, अणगारस्त सो निवो । विणण वन्दए पाए. भगवं एत्थ मे खमे । ८ ॥ अह मोणेण सो भग्गवं, अणगारे झाणमस्सिए । रायाणं न पडिमन्तेइ, तओ राया भवदुओ ॥ ९ ॥ संजओ आहमम्मीति, भगवं वाहराहि मे । कुद्धे तेएण अणगारे, डहेज्ज नरकोडिओ १० ॥ अन्भओ पत्थिवा तुन्भं, अभयदाया भवाहि य । अणिचे जीवलोगम्मि, किं हिंसाए पसज्जसी ॥ जया सवं परिच्चज्ज, गन्तवमवसस्स ते । अणिच्चेजी लोगम्मि, किं रज्जम्मि पसज्जसी ॥ जीवियं चेव रूवं च, विज्जुसंपाय चंचलं । जत्थ तं मुज्झसी रायं पेचत्थं नावुवुझसे ॥ दाराणि य सुया चेव, मित्ता य तह बन्धवा । जीवन्तमणुजीवन्ति, मयं नाणुवयन्ति य ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-अट्ठदशमाध्ययनम्
(२९)
नीहरन्ति मयं पुत्ता, पितरं परमदुक्खिया । पितरो वि तहा पुत्ते, बन्धू रायं तवं चरे ॥ १५॥ तओ तेणज्जिए दवे, दारे य परिरक्खिए। कीलन्तिऽन्ने नरा रायं, हट्टतुट्ठमलंकिया ॥ १६ ॥ तेणावि जं कयं कम्मं, सुहं वा जइ वा दुहं । कम्मुणा तेण संजुत्तो, गच्छई उ परं भवं ॥ १७ ॥ सोजण तस्स सो धम्मं, अणगारस्स अन्तिए । महया संवेगनिवेदं, समावन्नो नराहिवो ॥ १८॥ संजओ चइउं रजं, निक्वन्तो जिणसासणे । गद्दभालिस्स भगवओ, अणगारस्म अन्तिए ॥ १९ ॥ चिचा रट्टे पवइए, खत्तिए परिभासइ । जहा ते दीसई रूवं, पसन्नं ते महा मणो । २० ॥ किं नामे किं गोते, कस्सट्टाए व माहणे। कहं पडियरसी बुद्धे, कहं विणीए त्ति वुच्चसी ॥ २१ ॥ संजओ नाम नामेणं, तहा गोत्तेण गोयमो । गद्दभाली ममायरिया. विजाचरणपारगा ॥ २२ ॥ किरियं अकिरियं विणयं, णनाणं च महामुणी । एएहिं चउहि ठाणेहिं, मेयन्ने किं पभासई ॥ २३ ॥ इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिणिव्वुए । विज्ञाचरणसंपन्ने, सच्चे सच्चपरक्कमे ॥ २४ ॥ पडन्ति नरए घोरे, जे नरा पावकारिणो । दिवं च गई गच्छन्ति, चरित्ता धम्ममारियं ॥ २५ ॥ मायावुइयभेयं तु, मुसाभासा निरत्थिया । संजममाणो वि अहं, वसामि इरियामि य ॥ २६ ॥ सोए विइय मज्झं, मिच्छादिट्ठी अणारिया। विजमाणे परे लोए, सम्मं जाणामि अप्पगं ॥ २७ ॥ अहसासि महापाणे, जुइमं वरिससओवमे । जा सा पालिमहापाली, दिवा वरिससओवमा ॥ २८ ॥ से चुए बम्भलोगाओ, माणुस्सं भवमागए। अप्पणो य परेसिं च, आउं जाणे जहा तहा ॥ २९ ॥ नाणारुइं च छन्दं च, परिवजेज संजए । अणट्ठा जे य सवत्था, इयविजामणुसंचरे ॥ ३० ॥ पडिकमामि पसिणार्ण, परमंतेहिं वा पुणो । अहो बट्ठिए अहोरायं, इइ विजा तवं चरे ॥ ३१॥ जं च मे पुच्छसी काले, समं सुद्धेण चेयसा । ताई पाउकरे बुद्धे तं नाणं जिणसासणे ॥ ३२ ॥ किरियं च रोयई धीरे, अकिरियं परिवजए। दिट्ठीए दिट्ठीसम्पन्ने, धम्मं चरसु दुचरं ॥ ३३ ॥ एयं पुण्णपयं सोचा, अत्थधम्मोवसोहियं । भरहो वि भारहं वास, चेचा कामाइ पवए ॥ ३४ ॥ सगरो वि सागरन्तं, भरहवासं नराहिवो। इस्सरियं केवलं हिच्चा, दयाइ परिनिव्वुडे ।। ३५ ।। चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्डिओ। पवजमब्भुवगओ, मघवं नाम महाजसो ॥ ३६ ॥ सणंकुमारो मणुस्सिन्दो, चक्कवट्टी महिड्डिओ। पुत्तं रज्जे ठवेऊणं, सो वि राया तवं चरे ॥ ३७॥ चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्डिओ। सन्ती सन्तिकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ३८ ॥ इक्खागरायवसभो, कुन्थू नाम नरिसरो। विक्खायकित्ती भगवं. पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ३९ ॥ सागरन्तं - चइत्ताण, भरहं नरवरीसरो। अरो य अरयं पत्तो, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४०॥ चइत्ता भारहं वासं, चइत्ता बलवाहणं । चइत्ता उत्तमे भोए. महापउमे तवं चरे ॥ ४१ ॥ एगच्छत्तं पसाहित्ता, महिं माणनिसूरणो । हरिसेणो मसुस्सिन्दो, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४२ ॥ अनिओ रायसहस्सेहि, सुपरिचाई, दमं चरे। जयनामो जिणक्खायं, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४३ ।। दसण्णरजं मुदियं, चइत्ताणं मुणी चरे । दसण्णभद्दो निक्खन्तो, सक्खं सक्कण चोइओ ॥४४॥ नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही, सामण्णे पज्जुबढिओ ॥ ४५ ॥ करकण्डू कलिंगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो। नमी राया वीदेहेसु, गन्धारेसु य नग्गई ।। ४६ ॥ एए नरिन्दवसभा, निक्खन्ता जिणसासणे । पुत्ते रजे ठवेऊणं, सामण्णे पज्जुवटिया ॥ ४७॥
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-स्वाध्यायमाला
सोवीररायवसभो, चइत्ताण मुणी चरे । उदायणो पवइओ, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४८॥ तहेव कासीराया, सेओसच्चपरकमे। कामभोगे परिचन्ज, पहणे कम्ममहावणं ॥ ४९ ॥ तहेव विजओ राया, अणट्ठाकित्ति पवए । रजं तु गुणसमिद्धं, पयहित्तु महाजसो ॥ ५० ॥ तहेवुग्गं तवं किच्चा, अबक्खित्तेण चेयसा । महब्बलो रायरिसी, आदाय सिरसा सिरि ॥ ५१॥ कहं धीरो अहेऊर्हि, उम्मत्तो व महिं चरे । एए विसेसमादाय, सूरा दढपरकमा ॥५२॥ अच्चन्तनियाणखमा, सच्चा मे भासिया वई । अतरिंसु तरन्तेगे, तरिस्सन्ति अणागया ॥ ५३॥ कहिं धीरे अहेऊहिं अत्तःणं परियावसे । सवसंगविनिम्मुक्के, सिद्धे भवइ नीरए ।। ५४ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ संजइज्जं समत्तं ॥ १८ ॥
॥ मियापुत्तीयं एगूणवीसइमं अज्झयणं ॥ सुग्गीवे नयरे रम्मे, काणणुज्जाणसोहिए । राया बलभद्दि त्ति, मिया तस्सग्गमाहिसी ॥१॥ तेसिं पुत्ते बलसिरी, मियापुत्ते त्ति विस्सुए । अम्मापिऊण दइए, जुवराया दमीसरे ॥ २॥ नन्दणे सो उ पासाए, कीलए सह इत्थिहिं । देवोदोगुन्दगे चेव, निचं मुइयमाणसो ॥३॥ मणिरयणकोट्टिमतले, पासायालोयणट्टिओ । आलोएइ नगरस्स, चउक्क त्तियचच्चरे ॥ ४ ॥ अह तत्थ अइच्छन्तं, पासई समणसंजयं । तवनियमसंजमधर, सीलड्ढें गुणआगरं ।। ५ ।। तं हेहई मियापुत्ते, दिट्ठीए अणिमिसाए उ । कहिं मन्ने रिसं रूवं, दिट्ठपुवं मए पुरा ॥ ६ ॥ साहुस्स दरिसणे तस्स, अज्झवसाणम्मि सोहणे। मोहं गयस्स सन्तस्स, जाईसरणं समुप्पन्नं ॥ ७ ॥ जाईसरणे समुप्पन्ने, मियापुत्ते महिड्डिए । सरई पोराणियं जाई, सामण्णं च पुरा कयं ॥ ८॥ विसएहि अरज्जन्तो, रज्जन्तो. संजमम्मि य । अम्मापियरमुवागम्म, इमं वयणमब्बवी ॥९॥
सुयाणि मे पंच महव्वयाणि, नरएस दुक्खं च तिरिक्खजोणिसु ।
निविण्णकामो मि महण्णवाउ, अणुजाणह पवइस्सामि अम्मो ॥ १० ॥ अम्म ताय मए भोगा, भुत्ता विसफलोवमा । पच्छा कडुयविवागा, अणुबन्धदुहावहा ।। ११ ॥ इमं सरीरं अणिचं, असुइं असुइसंभवं । असासयावासमिण, दुक्खकेसाण भायणं ॥ १२ ॥ असासए सरीरम्मि, रई नोबलभामहं । पच्छा पुरा व चइयव्वे, फेणबुब्बुयसन्निभे ॥ १३॥ माणुसत्ते असारम्मि, वाहीरोगाण आलए। जरामरणपत्थम्मि, खणंपि न रमामहं ॥ १४ ॥ जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगाणि मरणाणि य । अहो दुक्खो हुसंसारो, जत्थ कीसन्ति जन्तवो ॥ १५ ॥ खेत्तं वत्थु हिरण्णं च, पुत्तदारं च वन्धवा । चइत्ताणं हमं देहं, गन्तवमवसस्स मे ॥ १६ ॥ जह किम्पागफलाण, परिणामो न सुन्दरो । एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुन्दरो ॥ १७ ॥ अद्धाणं जो महंतं तु, अप्पाहेओ पवई । गच्छन्तो सो दुही होइ, छुहातण्हाए पीडिओ ॥ १८ ॥ एवं धम्मं अकाऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो सुही होइ, वाहीरोगेहिं पीडिओ ॥ १९ ॥ अद्धाणं जो महंतं तु, सपाहेओ पवजई । गच्छन्तो सो सुही होइ, छुहातहाविवजिओ ॥ २० ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-सोलमाध्ययनम्
(३१)
एवं धम्म पि काऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो सुही होइ, अप्पकम्मे अवेयणे ॥ २१॥ जहा गेहे पलित्तम्मि, तस्स गेहस्स जो पहू । सारभण्डाणि नीणेइ, असारं अवउज्झइ ।। २२ ।। एवं लोए पलितम्मि, जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि, तुब्भेहि अणुमनिओ ॥ २३॥ तं विन्तम्मापियरो, सामण्णं पुत्त दुचरं । गुणाणं तु सहस्साइं, धारेयवाई भिक्खुणा ॥ २४ ॥ समया सबभूएसु, सत्तुमित्तेसु वा जगे । पाणाइवायविरई, जावज्जीवाए दुक्करं ।। २५ ।। निच्चकालप्पमत्तेणं, मुसावायविवजणं । भासियव्वं हियं सचं, निचाउत्तेण दुक्करं ॥ २६ ॥ दन्तसोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवजणं । अणवजेसणिजस्स, गिहण्णा अवि दुक्करं ।। २७ ।। विरई अबम्भचरस्स, कामभोगरन्नुणा। उग्गं महत्वयं बम्भं, धारेयवं सुदुक्करं ॥ २८॥ धणधनपेसवग्गेसु, परिग्गहविवजणं । सबारम्भपरिच्चाओ, निम्ममत्तं सुदुक्करं ॥ २९॥ चउविहे वि आहारे, राईभोयणवजणा । सन्निहोसंचओ चेव, वज्जेयव्यो सुदुक्करं ॥ ३० ॥ छुहा तण्हा य सीउण्हं दंसमसंगवेयणा । अक्कोसा दुक्खसेजा य, तणफासा जलमेव य ॥ ३१ ॥ तालणा तज्जणा चेव, वहबन्धपरीसहा । दुक्खं भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया ॥ ३२ ।। कावोया जा इमा वित्ती, केसलोओ य दारुणो। दुक्खं धम्भवयं घोरं, धारेउं य महप्पणो ॥ ३३ ॥ सुहोइओ तुमं पुत्ता, सुकुमालो सुमजिओ। न हु सी पभू तुमं पुत्ता, सामण्णमणुपालिया ॥ ३४ ॥ जावजीवमविस्सामो, गुणाणं तु महब्भरो। गुरु उ लोहमारुव, जो पुत्ता होइ दुवहो ।। ३५ ।। आगासे गंगसोउ छ, पडियोउ व दुत्तरो। बाहाहि सागरो चेव, तरियवो गुणोदही ॥ ३६॥ वालुया कवलो चेव, निरस्साए उ संजमे । असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरित्रं तवो ॥ ३७ ।। अही वेगन्तदिट्ठीए, चरित्ते पुत्त दुक्करे । जवा लोहमया चेव, चावेयवा सुदुक्करं ॥ ३८ ॥ जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होइ सुदुक्करा । एहा दुक्करं करेउं जे, तारुण्णे समणत्तणं ॥ ३९ ॥ जहा दुक्खं भरेउं जे, होइ वायरस कोत्थलो। तहा दुवखं करेउं जे, कीवेणं समणत्तणं ॥ ४० ॥ जहा तुलाए तोलेउं, दुक्करो मन्दरो गिरी। तहा निहुयनीसंकं, दुक्करं समणत्तणं ॥ ४१ ॥ जहा भुयाहिं तरिगं. दुक्करं रयणायरो। तहा अणुवसन्तेणं, दुक्करं दमसागरो ॥ ४२ ॥ मुंज माणुस्सए भोगे, पंचलक्खणए तुमं। भुत्तभोगी तओजाया, पच्छा धम्मं चरिस्समि ॥ ४३ ॥ सो बेइ अम्मापियरो, एबमेयं जहा फुडं । इह लोए निप्पिवासस्स, नत्थि किंचिवि दुक्करं ॥ ४४ ॥ सारीरमाणसा चेव, वेयणाओ द्वनन्तसो। मए सोढाओ भीमाओ, असई दुक्खभयाणी य ॥ ४५ ॥ जरामरणकन्तारे, चाउरन्ते भयागरे । मए सोढाणि भीमाणि, जम्माणि मरणाणि य ॥ ४६॥ जहा इहं अगणी उण्हो, एत्तोऽणन्तगुणे तहिं । नरएभु वेयणा उण्हा, अस्साया वेड्या मए ॥४७॥ इमं इहं सीयं, एत्तोऽणन्तगुणे तहिं । नरएसु वेयणा सीया, अस्सया वेइया मए ॥ ४८ ॥ कन्दन्तो कंदुकुम्मीसु, उड्डपाओ अहोसिरे । हुयासणे जलन्तम्मि, पक्कयुबो अणन्तसो ॥ ४९ ॥ महादबग्गिसंकासे, मरुम्मि वहरबालुए। कदम्बवालुयाए य, दड्डपुव्यो अणन्तसो । ५०॥ रसन्तो कन्दुकुम्भीसु, उड्टुं बद्धो अबन्धवो। करवत्तकरकाईहिं. छिन्नपुव्वो अणन्तसो ॥ ५१ ॥ अइतिक्खकण्टगाइण्णे, तुंगे सिम्बलिपायवे । खेवियं पासबद्धणं, कड्डोकड्ढाहिं दुक्करं ॥ ५२॥ महाजन्तेसु उच्छू वा, आरसन्तो सुमेरवं । पीडिओ मि सकम्मेहि, पावकम्मोअंणण्तसो ॥ ५३ ।।
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(३२)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
कूवन्तो कोलमुणएहिं, सामेहिं सवलेहि य । फाडिओ फालिओ छिन्नो, विफुरन्तो अणेगसो ॥५४॥ असीहि अवसिवण्णाहिं, भल्लेहिं पट्टिसेहि य । छिन्नो भिन्नो विमिन्नो य, ओइण्णो पावकम्मणा ॥ ५५ ॥ अनसे लोहरहे जुत्तो, जलन्ते समिलाजुए। चोइओ तोत्तजुत्तेहिं, रोज्झो वा जह पाडिओ ॥ ५६ ॥ हुयासणे जलन्तम्मि, चियासु महिसो विव । दडो पको य अवसो, पावकम्मेहि पाविओ ॥ ५७ ॥ वला संडासतुण्डेहिं, लोहतुण्डेहिं पक्खिहिं । विलुतो विलवत्तो हं, ढंकगिद्धेहिऽणन्तसो ॥ ५४॥ तण्हाकिलन्तोधावन्तो, पत्तो वेयराणिं नदि । जलं पाहिं ति चिन्तन्तो, खुरधाराहिं विवाइओ ॥ ५९॥ उण्हाभितत्तो संपत्तो, असिपत्तं महावणं । असिपत्तेहिं पडन्तेहि, छिन्नपुचो अणेगसो ॥ ६॥ मुग्गरेहिं मुसंढीहिं, सूलेहिं मुसलेहिं य । गया संभग्गगत्तेहिं, पत्तं दुक्खं अणन्तसो ॥ ६१ ॥ खुरेहिं तिक्खधारेहि, छुरियाहिं कप्पणीहि या कप्पिओफालिओ छिन्नो, उक्कितोय अणेगसो ॥ ६२ ॥ पासेहिं कूडजालेहि. मिओ वा अवसो अहं । वाहिओ बद्धद्धो वा, बहू चेव विवाइओ ॥ ६३ ॥ गलेहिं मगरजालेहि, मच्छो वा अवसो अहं । उल्लिओ फालिओ गहिओ, मारिणोय अणन्तसो ॥ ६४ ॥ वीदंसएहि जालेहिं. लेप्पाहि सउणो विव । गहिओ लग्गो बद्धो य, मारिओ य अणन्तसो ॥ ६५॥ कुहाडफरसुमाईहि, वड्डईहिं दुमो विव । कुहिओ फालिओ छिन्नो, तच्छिओ य अणन्तसो ॥६६॥ चवेडमुट्टिमाईहि, कुमारेहिं अयं पिव । ताडिओ कुट्टिओ भिन्नो, चुण्णिओ य अणन्तसो ॥ ६७ ।। तत्ताई तम्बलोहाइं, तउयाई सीसयाणि य । पाइओ कलकलन्ताई, आरसन्तो सुभेरवं ॥ ६८ ॥ तुहं पियाई मंसाई, खएडाइं सोलगाणि य । खाविओ मिसमंसाइं, अग्गिवण्णाइऽणेगसो ॥ ६९ ॥ तुहं पिया सुरा सीहू, मेरओ य महूणि य। पाइओ मि जलन्तीओ, वसाओ रुहिराणि य ॥ ७० ॥ निचं भीएण तत्थेण, दुहिएण वहिएण य । परमा दुहसंबद्धा, वेयणा वेदिता मए ॥ ७१ ॥ तिवचण्डप्पगाढाओ, घोराओ अइदुस्सहा । महब्भयाओ भीमाओ, नरएसु वेदिता मए ॥ ७२ ॥ जारिसा माणुसे लोए, ताया दीसन्ति वेयणा । एत्तो अणन्तगुणिया, नरएसु दुक्खवेयणा ।। ७३ ॥ सव्वभवेसु अस्साया, वेयणा वेदिता मए । निमेसन्तरमित्तं पि, जं साता नत्थि वेयणा ।। ७४ ॥ तं विन्तम्मापियरो, छन्देणं पुत्त पचया। नवरं पुण सामण्णे, दुक्खं निप्पडिकम्मया ॥ ७५ ॥ सो बेइ अम्मापियरो, एवमेयं जहा फुडं । पडिकम्मं को कुणई, अरण्णे मियपक्खिणं ॥ ७६ ।। एगभूए अरण्णे व, जहा उ चरई मिगे । एवं धम्मं चरिस्सामि, संजमेण तवेण य ।। ७७ ॥ जया मिगस्स आयको, महारण्णम्मिजायई । अञ्चन्तं रुक्खमूलम्मि, को णं ताहे तिगिच्छई ॥ ७८ ।। को वा से ओसहं देइ, को वा से पुच्छई सुहं । को से भत्तं च पाणं वा, आहरित्तु पणामए ॥ ७९ ॥ जया से सुही होइ, तया गच्छइ गोयरं । भत्तपाणस्स अट्टाए, वल्लराखि सराणि य ॥ ८॥ खाइत्ता दाणियं पाउं, वल्लरेहिं सरेहि य । मिगचारिय चरित्ताणं. गच्छई मिगचारियं ।। ८१ ॥ एवं समुडिओ भिक्खू, एवमेव अणेगए । मिगचारियं चरित्ताणं, उड्ढे पक्कमई दिसं ॥ ८२ ॥
__ जहा मिगे एगे अणेगचारी, अणेगवासे धुवगोयरे य ।
एवं मुणी गोयरियं पविटे, नो हीलए नोवि य खिंसएजा ॥ ॥८३ ॥ मिगचारियं चरिस्सामि, एवं पुत्ता जहासुहं । अम्मापिईहिणुनाओ, जहाइ उवहिं तहा ॥ ८४ ॥ मियचारियं चरिस्सामि, सबक्खविमोक्खणिं । तुम्भेहिं अब्भणुनाओ, गच्छ पुत्त जहासुहं ॥ ८५॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-एंगूनविशमाध्ययनम् एवं सो अम्मापियरो, अणुमाणिताण बहुविहं । ममत्तं छिन्दई ताहे, महानागो व कंचुयं ॥ ८६ ॥ इड्डी वि च मित्ते य, पुत्तदारं च नायओ। रेणुयं व पडे लग्गं, निध्धुत्ताण निग्गओ ।। ८७ ॥ पंचमहत्वयजुत्तो, पंचहि समिओ तिगुत्तिगुत्तोय। सब्भिन्तरबाहिरओ, तवोकम्मंसि उज्जुओ ॥ ८८ ॥ निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो । समो य सबभूएसु, तसेसु थावरेसु य ॥ ८९ ॥ लाभालामे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा। समो निन्दापसंसासु, तहा माणावमाणओ ॥ ९ ॥ गारवेसुं कसाएसुं, दण्डसल्लभएसु य । नियत्तो हाससोगाओ, अनियाणो अबन्धणो ॥ ९१ ॥ अणिस्सिओ इहं लोए, परलोए अणिस्सिओ। वासीचन्दणकप्पो य, असणे अणसणे तहा ॥ ९२ ॥ अप्पसत्थेहिं दारेहिं, सबओ पिहियासवे । अज्झप्पज्झाणजोगेहिं, पसत्थदमसासणे ॥ ९३ ।। एवं नाणेण चरणेण, दंसणेण तवेण य । भावणाहि य सुद्धाहिं, सम्मं भावेत्तु अप्पयं ॥ ९४ ।। बहुयाणि उ वासाणि, सामण्णमणुपालिया । मासिएण उ भत्तेण, सिद्धिं पत्तो अणुत्तरं ॥ ९५ ॥ एवं करन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा । विणिअन्ति भोगेसु, मियापुत्ते जहारिसी ॥ ९६ ॥
महापभावस्स महाजसस्स, मियापुत्तस्स निसम्म भासियं । तवप्पहाणं चरियं च उत्तमं, गहप्पहाणं च तिलोगविस्सुतं ॥ ॥९७ ॥ वियाणिया दुक्ख विवद्धणं धणं, ममत्तबन्धं च मयाभयावहं । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं, धारेज निवाणगुणावहं महं ।। ॥९८॥
त्ति बेमि ॥ इअ मियापुत्तीयं समत्तं ॥ १९॥
॥ अह महानियण्ठिज्जं वीसइमं अज्झयणं ॥ सिद्धाण नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ। अत्थधम्मगई तचं अणुसद्धिं सुणेह मे ॥१॥ पभूयरायणो राया, सेणिओ मगहाहिवो । विहारजत्तं निजाओ, मण्डिकुछिसि चेइए ॥२॥ नाणादुमलयाइण्णं, नाणापक्खिनिसे वियं । नाणाकुसुमसंछन्नं, उजाणं नन्दणोवमं ॥ ३ ॥ तत्थ सो पासई साहुं, संजय सुसमाहियं । निसन्नं रुक्खमूलम्मि, सुकुमालं सुहोइयं ॥ ४ ॥ तस्स रूवं तु पासित्ता, राइणो तम्मि संजए । अच्चन्तदरमो आसी, अउलो रूवविम्हओ॥५॥ अहोवण्णो अहो रूवं, अहो अञ्जस्स सोमया। अहो खन्ती अहो मुत्सी, अहो भोगे असंजया ॥ ६॥ वस्स पाए उ वन्दित्ता, काऊण य पयाहिणं । नाइदूरमणासन्ने, पंजली पडिपुच्छई ॥७॥ तरुणो सि अन्जो पवइओ, भोगकालम्मि संजया। उवडिओ सि सामण्णे, एयमढे सुणेमि ता ॥८॥ अणाहोमि महाराय, नाहो मज्झ न विजई । अणुकम्पगं सुहिं वावि, कंचि नाभिसमेमहं ॥९॥ तओ सो पहसिओ राया, सेणि ओ मगहाहिवो। एवं ते इड्डिमन्तस्स, कहं नाहो न विजई ॥१०॥ होमि नाही भयताणं, भोगे भुंजाहि संजया। मित्तनाईपरिखुडो, माणुस्सं खु सुदुल्लहं ॥ ११ ॥ अप्पणा विअगाहो सि, सेणिया मगहाहिवा । अप्पणा अणाही सन्तो, कस्स नाहो भविस्मसि ।। १२ ! एवं वुत्तो नरिन्दो सो, सुसंभन्तो सुविम्हिओ। वयणं अस्सुगपुव्वं, साहुणा विम्हयन्निओ ॥ १३ अस्सा इत्थीमणुस्सा मे, पुरं अन्तेउरं च मे। भुंजामि माणुस्से भोगे, आणा इस्सरियं च मे ॥१
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला
एरिसे सम्पयग्गम्मि, सबकामसमप्पिए । कहं अणाहो भवइ, मा हु भन्ते मुसं वए ॥ १५॥ । न तुमं जाणे अणाहस्स, अत्थं पोत्थं च पत्थिवा। जहा अणाहो भवई, सणाहो वा नराहिवा ॥ १६ ॥ सुणेह मे महाराय, अव्वक्खित्तेण चेयसा। जहा अणाहो भवई, जहा मेयं पत्तियं ॥ १७ ॥ कोसम्बी नाम नयरी, पुराण पुरभेयणी । तत्थ आसी पिया मज्झ, पभूयधणसंचओ ॥ १८ ॥ पढमे वए महाराय, अउला मे अच्छि वे यणा । अहोत्था विउलो डाहो, सत्वगत्तेसु पत्थिवा ।। १९ ॥ सत्थं जहा परमतिक्खं, सरीरविवरन्तरे। आवीलिज्ज अरी कुद्धो, एवं मे अच्छिवेयणा ॥ २० ॥ तियं मे अन्तरिच्छं च, उत्तमंगं च पीडई । इन्दासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ॥ २१ ॥ उवट्टिया मे आयरिया, विजामन्ततिगिच्छया । अधीया सत्थकुसला, मन्तमूलविसारया ॥ २२ ॥ ते मे तिगिच्छं कुवन्ति, चाउप्पायं जहाहियं । न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ॥ २३ ।। पिया मे सवसारंपि, दिजाहि मम कारणा । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥ २४ ॥ माया य मे महाराय, पुत्तसोगदुहदिया । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाया ॥ २५ ॥ भायरो मे महाराय, सगा जेट्टकणिढगा। न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया ॥ २६ ॥ भइणीओ मे महाराय, सगा जेट्टकणिट्टगा। न य दुक्खा विमोयन्ति, एसा मज्झ अणाहया । २७ ।। भारिया मे महाराय, अणुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुण्णेहिं नयणेहिं, उरं मे परिसिंचई ।। २८ ॥ अनं च पाणं ण्हाणं च, गन्धमल्लविलेवणं । मए नायमणायं वा, सा बाला नेव भुंजई ॥ २९ ॥ खणं पि मे महाराय, पासाओ मे न फिट्टई । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया ॥ ३० ॥ तओ हं एवमाहंसु, दुक्खमा हु पुणो पुणो । वेयणा अणुभविउं जे, संसारम्मि अणन्तए ॥ ३१ ॥ सई च जइ मुच्चेजा, वेयणा विउला इओ। खन्तो दन्तो निरारम्भो, पवए अणगारियं ॥ ३२ ॥ एवं च चिन्तइत्ताणं, पसुत्तो मि नराहिवा । परियत्तन्तीए राईए, वेयणा मे खयं गया ॥ ३३ ॥ तओ कल्ले पमायम्मि, आपुच्छित्ताण बन्धवे । खन्तो दन्तो निरारम्भो, पवइओऽणगारियं ॥ ३४ ॥ तो हं नाहो जाओ, अप्पणो य परस्स य । सवे सिं चेव भूयाणं, तसाण थावराण य ॥ ३५ ।। अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नन्दणं वणं ॥ ३६॥ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुक्खाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठियसुपढिओ ।। ३७ ॥
इमा हु अन्ना वि अणाहया निवा, तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि । नियण्ठधम्म लहीयाण वी जहा, सीयन्ति एगे बहुकायरा नरा ॥ ३८ ॥ जो पञ्चइत्ताण महत्वयाई, सम्मं च नो फासयई पमाया । अनिग्गहप्पा य रसेसु गिद्धे, न मूलओ छिन्नइ बन्धणं से ॥ ३९ ॥ आउत्तया जस्स न अस्थि काइ, इरियाए भासाए तहेसणाए । आयाणनिक्खेवदुगंछणाए, न धीरजायं अणुजाइ मग्गं ॥ ४०॥ चिरं पि से मुण्डरुई भवित्ता, अथिरवए तवनियमेहि भट्टे । चिरं पि अप्पाण किलेसइत्ता, न पारए होइ हु संपराए ।। ४१॥ पोले व मुट्ठी जह से असारे, अयन्तिए कूड कहावणे वा । राढामणी वेरुलियप्पगासे, अमहग्घए होइ हु जाणएसु ॥ ४२ ।।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-विसमाध्ययनम्
कुसीललिंग इह धारइत्ता, इसिज्झयं जीविय बृहइत्ता । असंजए संजयलप्पमाणे, विणिग्यायमागच्छइ से चिरंपि ॥ ४३ ॥ विसं तु पीयं जह कालकूडं, हणाइ सत्थं जह कुग्गहीयं ।। एसो वि धम्मो विसओववन्नो, हणाइ वेयाल इवाविवन्नो ॥ ४४ ॥ जे लक्खणं सुविण पउंजमाणे, निमित्तकोऊहलसंपगाढे । कुहेडविजासवदारजीवी, न गच्छई सरणं तम्मि काले ॥ ४५ ॥ तमं तमेणेव उ से असीले, सया दुही विपरियामुवेइ । संधावई नरगतिरिक्खजोणिं, मोणं विराहेत्तु असाहुरूवे ।। ४६ ॥ उद्देसियं कीयगडं नियागं, न मुंच्चई किं च अणेसणिज । अग्गी विवा सबभक्खी भवित्ता, इत्तोचुए गच्छइ कटु पावं ।। ४७ ॥ न तं अरी कंठछेत्ता करेइ, जं से करे अप्पणिया दुरप्पया। से नाहइ मच्चुमुहं तु पत्ते, पच्छामितावेण दयाविहूणो ॥ ४८ ।। निरट्ठिया नग्गरुई उ तस्स, जे उत्तम विवज्जासमेइ। इमे वि से नत्थि परे वि लोए, दुहओ वि से भिजइ तत्थ लोए ।। ४९ ॥ एमेव हा छन्दकुसीलरूवे, मग्गं विराहेत्तु जिणुत्तमाणं । कुररी विवा भोगरसाणुगिद्धा, निरसोया परियासमेइ ॥ ५० ॥ सोचाण मेहावि सुभासियं इमं, अणुसासणं नाणगुणोववेयं । मग्गं कुसीलाण जहाय सवं, महानियण्ठाण वए पहेण ॥ ५१॥ चरित्तमायारगुणन्निए तओ, अणुत्तरं संजम पालियाण । निरासवे संखवियाण कम्मं, उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं ॥५२॥ एवुग्गदन्ते वि महातवोधणे, महामुणी महापइन्ने महायसे ।। महानियण्ठिज्जमिणं महासुयं, से कहेई महया वित्थरेणं ॥ ५३ ॥ तुट्ठो य. सेणिओ राया, इणमुदाहु कयंजली । अणाहत्तं जहाभूयं, मुटु मे उवदंसियं ॥ ५४ ॥ तुझं सुलद्धं खु मणुस्स जम्म, लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी ।। तुब्भे सणाहा य सबन्धवा य, जं भेठिया मग्गे जिणुत्तमाणं ॥ ५५ ॥ तं सि नाहो अणाहाणं, सवभूयाण संजया । खामेमि ते महाभाग, इच्छामि अणुसासिउं ।। ५६ ॥ पुच्छिऊण मए तुभं, आणविग्घाओ जो कओ। निमन्तिया य भोगेहि, तं सत्वं मरिसेहि मे । ५७ ॥ एवं थुणित्ताण स रायसीहो, अणगारसीहं परमाइ भत्तीए । सओरोहो सपरियणो सबन्धवो,धम्माणुरत्तो विमलेण चेयसा ॥५८ ॥ ऊससियरोमकूवो, काऊण य पयाहिणं ।
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(३३)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
अभिवन्दिऊण सिरसा, अइयाओ नराहिवो ॥ ५९ ॥ इयरो वि गुणसमिद्धो, तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरओ य । विहग इव विमुको, विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥ ६० ॥ त्ति बेमि ॥ इअ महानियण्ठिजं समत्तं ॥
१ ॥
६ ॥
७ ॥
८ ॥
॥ अह समुद्दपालीयं एगवीसइमं अज्झयणं ॥ चम्पाए पालिए नाम, सावए आसि वाणिए । महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महप्पणो ॥ निरन्थे पावणे, सावए से वि कोविए । पोएण ववहरन्ते, पिहुण्डं नगरमानए ॥ २ ॥ पिण्डं वहन्तस्स, वाणिओ देह धूयरं । तं ससत्तं पइगिज्झ, सदेसमह पत्थिओ || ३ || अह पालियस्स घरिणी, समुद्दम्मि पसवई । अह बालए तहिं जाए, समुद्दपालि चि नामए ॥ ४॥ खेमेण आगए चम्पं, सावए वाणिए घरं । संवडई तस्स घरे, दारए से सुहोइए ॥ ५ ॥ वावतरी कलाओ य, सिक्खई नीइकोविए । जोवणेण य संपन्ने, सुरूवे पियदंसणे ॥ तस्स ववई भज्ज, पिया आणेह रुविणि । पासाए कीलए रम्मे, देवो दोगुन्दओ जहा ॥ अह अन्नया कयाई, पासायालोयणे ठिओ । वज्झमण्डणसोभागं, वज्झं पासइ बज्झगं ॥ तं पासिऊण संवेगं, समुद्दपालो इणमब्ववी | अहोऽसुमाण कम्माणं, निजाण पावगं इमं ॥ ९॥ संबुद्धो सो तहिं भगवं, परमसंवेमागओ । आपुच्छमापियरो, पवए अणगारियं ॥ १० ॥ जहि सग्गन्थमहाकिलेसं, महन्तमोहं कसिणं भयावहं । परियायधम्मं चमिरोय एज्जा, वयाणि सीलाणि परीसहे य ॥ ११ ॥ अहिंससच्चं च अतेणगं च तत्तो य बम्भं अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंच महवयाणि, चरिज धम्मं जिणदेसियं विदू ॥ १२ ॥ सहिं भूएहिं दयानुकम्पी, खन्तिक्खमे संजमबम्भयारी | सावज्जजोगं परित्रज्जयन्तो, चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए । १३ ।। काले कालं विहरेज रट्ठे, बलाबलं जाणिय अप्पणो य । सीहो व सद्देण न सन्तसेज्जा, वयजोग सुच्चा न असच्चमाहु || १४ || उहमाणो उ परिवजा, पियमप्पियं सब तितिक्खएज्जा । न सब सवत्थ ऽभिरोयएजा, न यावि पूयं गरहं च संजए ।। १५ ।। अणे गच्छन्दामिह माणवेहिं, जे भावओ संपगरेइ भिक्खू | भय भेरवा तत्थ उइन्ति भीमा, दिवा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥ १६ ॥ परीसहा दुब्विसहा अणेगे, सीयन्ति जत्था बहुकायरा नरा । से तत्थ पत्ते न वहिज भिक्खू, संगामसीसे इव नागराया ॥ १७ ॥ सीओ सिणा दंसमसाय फासा, आयंका विविहा फुसन्ति देहं । 'अकुक्कुओ तत्थऽहियास हेज, रयाइ खेवेज पुरे कमाई ॥ १८ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-एगविसमाध्ययनम्
(३७)
पहाय रागं च तहेव दोसं, मोहं च भिक्खू सततं वियक्खणो। मेरु व्व वाएण अकम्पमाणो, परीसहे आयगुत्ते सहेजा ॥ १९ ॥ अणुन्नए नावणए महेसी, न यावि पुयं गरहं च संजए। स उज्जभावं पडिवज, संजए, निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ॥ २०॥ अरइरइसहे पहीणसंथवे, विरए आयहिए पहाणबं । परमट्ठपरहिं चिट्टई, छिन्नसोए अममे अकिंचणे ॥ २१ ॥ विवित्तलयणाइ भएन ताई, निरोवलेवाइ असंथडाई । इसीहि चिण्णाइ महायसेहिं, काएण फासेज परीसहाई ॥ २२ ॥ सन्नाणनाणोवगए महेसी, अणुत्तरं चरिउं धम्मसंचयं । अणुत्तरे नाणधरे जसंसी, ओभासई सूरिए वन्तलिक्खे ॥ २३ ॥ दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं, निरंगणे सव्यओ विप्पमुक्के । तरित्ता समुदं व महाभवोधं, समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥ २४ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ समुद्दपालीयं समत्तं ॥
॥ अह रइनेमिजं बावीसइमं अज्झयणं ॥ सोरियपुरम्मि नयरे, आसि राया महिड्डिए । वसुदेवु त्ति नामेणं, रायलक्खणसंजुए ॥१॥ तस्स भन्जा दुवे आसी, रोहिणी देवई तहा । तासिं दोण्हं दुवे पुत्ता, इट्ठा रामकेसवा ॥२॥ सोरियपुरम्मि नयरे, आसि राया महिड्डिए । समुद्दविजए नामं, रायलक्खणसंजुए ॥ ३ ॥ तस्स भज्जा सिवा नाम, तीसे पुत्तो महायसो। भगवं अरिट्टनेमि त्ति, लोगनाहे दमीसरे ॥ ४ ॥ सो ऽरिट्टनेमिनामो उ, लक्खणस्सरसंजुओ। अट्ठसहस्सलक्खणधरो, गोयमो कालगच्छवी ॥५॥ 'बजरिसहसंघयणो, समचउरंसो झसोयरो। तस्स रायमईकन्नं, भजं जायइ केसवो ॥६॥ अह सा रायवरकन्ना, सुसीला चारुपेहणी । सबलक्खणसंपन्ना, विज्जुसोयामणिप्षभा ॥ ७॥ अहाह जणओ तीसे, वासुदेवं महिड्डियं । इहागच्छउकुमारो, जा से कन्नं ददामि हं ॥ ८॥ सबोसहीहिं एहविओ, कयकोउयमंगलो। दिवजुयलपरिहिओ, आभरणेहिं विभूसिओ ॥९॥ मत्तं च गन्धहत्थि, वासुदेवस्स जेट्टगं । आरूढो सोहए अहियं, सिरे चूडामणि जहा ॥ १०॥ अह ऊसिएण छत्तेण, चामराहि य सोहिए। दसारचक्केण य सो, सबओ परिवारिओ ॥ ११॥ चउरंगिणीए सेणाए, रइयाए जहकमं । तुरियाण सनिनाएण, दिव्वेण गगणं फुसे ॥ १२॥ एयारिसाए इड्डीए, जुत्तीए उत्तमाइ य । नियगाओ भवणाओ, निजाओ वहिपुंगवो ॥ १३ ॥ अह सो तत्थ निजन्तो, दिस्स पाणे भयदुए । वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्ध सुदुक्खिए ॥ १४ ॥ जीवियन्तं तु सम्पत्ते, मंसट्ठा भक्खियवए । पासेत्ता से महापन्ने, सारहिं इणमब्बवी ॥ १५ ॥ कस्स अट्ठा इमे पाणा, एए सवे सुहेसिणो । वाडेहिं पंजरेहिं च, सन्निरुद्धा य अच्छहिं ॥ १६ ॥ अह सारही तओ भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो। तुज्झं विवाहकजम्मि, भोयावेउं बहुं जणं ॥ १७ ॥
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(३८)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
सोऊण तस्स वयणं, बहुपाणिविणासणं । चिन्तेइ से महापनो, साणुकोसे जिए हिऊ ॥ १८ ॥ जह मज्झ कारणा एए, हम्मन्ति सुबहू जिया । न मे एयं तु निस्सेसं, परलोगे भविस्सई ॥ १९ ॥ सो कुण्डलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो। आभरणाणि य सबाणि, सारहिस्स पणामए ॥ २०॥ मणपरिणामे य कए, देवा य जहोइयं समोइण्णा । सवड्डीइ सपरिसा, निक्खमणं तस्स काउंजे ॥ २१॥ देवमणुस्सपरिवुडो.सीयारयणं तओसमारूढो, निक्खिमय वारगाओ, रेवयम्मि ठ्ठिओ भगवं ॥ २२ ॥ उजाणं संपत्तो, ओइण्णो उत्तमाउ सीयाओ। साहस्सी परिवुडो, मह निक्खमई उशित्ताहिं ॥ २३ ॥ अह से सुगन्धगन्धीए, तुरियं मउकुंचिए । सयमेव भुंचई केसे, पंचमुट्ठीहिं समाहिओ ॥ २४ ॥ वासुदेवो य णं भणइ, लुत्तकेसं जिइन्दियं । इच्छिरियमणोरहं तुरियं, पावसू तं दमीसरा ॥ २५॥ नाणेणं दंसणेणं च, चरित्तेण तहेव य। खत्तीए मुत्तीए, वड्डमाणो भवाहि य ॥ २६ ॥ एवं ते रामकेसवा, दसारा य बहू जणा। अरिडणेमिं वन्दित्ता, अभिगया दारगापुरिं ॥ २७॥ सोऊण रायकन्ना, पवजं सा जिणस्स उ । नीहासा य निराणन्दा, सोगेण उ समुत्थिया ॥ २८ ॥ राईमई विनिन्तेइ, धिरत्थु मम जीवियं । जा हं तेण परिचत्ता, सेयं पव्वइउं मम ॥ २९ ॥ अह सा भमरसन्निभे, कुच्चफणगसाहिए । सयमेव लुचई केसें, धिइमन्ता ववस्सिया ॥३०॥ वासुदेवो य णं भणइ, लुत्तकेसं जिइन्दियं । संसारसागरं घोरं, तर कन्ने लहुं लहुं ॥ ३१ ।। सा पव्वइया सन्ती, पवावेसी तहिं वहुँ सयणं परियणं चेव, सीलवन्ता बहुस्सुया ॥ ३२॥ गिरि रेवतयं जन्ती, वासेणुल्ला उ अन्तरा । वासन्ते अन्धयारम्मि, अन्तो लयणस्स सा ठिया ॥ ३३ ।। चीवराई विसारन्ती, जहा जाय त्ति पासिया। रहनेमी भग्गचित्तो, पच्छा दिट्टो य तीइ वि ॥ ३४।। मीया य सा तहिं दटु, एगन्ते संजयं तयं । वाहाहिं काउ संगोप्फं, वेवमाणी निसीयई ॥ ३९ ॥ अह सो वि रायपुत्तो, समुद्दविजयंगओ। भीयं पवेवियं दटुं, इमं वकं उदाहरे ॥ ३६ ॥ रहनेमी अहं भद्दे, सुरूवे चारुभासिणी । ममं भयाहि सुयणु, न ते पीला भविस्सई ॥ ३७॥ एहि ता भुजिमो भोए, माणुस्सं खुसुदुल्लहं। भुत्तभोगी पुणो पच्छा, जिणमग्गं चरिस्समो ॥ ३८ ॥ दटुण रहनेमिं तं, भग्गुजोयपराजियं । राईमई असम्भन्ता, अप्पाणं संवरे तहिं ।। ३९ ॥ अह सा रायवरकन्ना, सुट्टिया नियमबए। जाई कुलं च सीलं च, रक्खमाणी तयं वए ॥ ४०॥ जइ सि रूवेण वेसमणो, ललिएण नलकुवरो। तहा वि ते न इच्छामि, जइ सि सक्खं पुरंदरो ।। ४१॥ धिरत्थु तेऽजसोकामी, जो तं जीवियकारणा । वन्तं इच्छसि आवाउं, सेयं ते मरणं भवे ॥ ४२ ॥ अहं च भोगरायस्स, तं च सि अन्धगवण्हिणो। मा कुले गन्धणा होमो, संजमं निहुओ चर ॥ ४३ ।। जइ तं काहिसि भावं, जा जा दच्छसि नारिओ। वायाइद्धो व हढो, अहिअप्पा भविस्ससि ॥ ४४ ॥ गोवालो भण्डवालो वा, जहा तद्दवणिस्सरो। एवं अणिस्सरो तं पि, सामणस्स भविस्ससि ॥ ४५ ॥ तीसे सो वयणं सोचा, संययाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाइओ ॥ ४६ ॥ मणगुत्तो वायगुत्तो, कायगुत्तो जिइन्दिए । सामण्णं निच्चलं फासे, जावजीवं दढवओ ॥ ४७ ॥ उग्गं तवं चरित्ताणं, जाया दोणि वि केवली। सवं कम्मं खवित्ताणं, सिद्धि पत्ता अणुत्तरं ।। ४८ ।। एवं करेन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा। विणियदृन्ति भोगेसु, जहा सो पुरिसोत्तमो ॥ ४९ ॥
त्ति बेमि ॥ रहनेमिजं समत्तं ।।
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श्री उत्तराध्ययनसूत्र - तेविस माध्ययनम्
॥ अह केसिगोयमिज्जं तेवीसइमं अज्झयणं ॥
WAL
(३९)
१ ॥
११ ॥
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१२ ॥
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१३ ॥
१४ ॥
जिणे पासित्ति नामेण, अरहा लोगपूड़ओ । संबुद्धप्पा य सव्वन्नू, धम्मतित्थयरे जिणे ॥ aa लोग पदीवस्स, आसि सीसे महायसे । केसी कुमारसमणे, विज्जाचरणपारगे || २ || ओहिनाणसुए बुद्धे, सीससंघसमाउले । गामाणुगामं रीयन्ते, सावस्थि पुरमा गए || ३ || तिन्दुयं नाम उज्जाणं, तस्सि नगरमण्डले । फासुए सिज्जसंथारे, तत्थ वासमुवा ॥ ४ ॥ अह तेणेव कालेणं धम्मतित्थयरे जिणे । भगवं वद्धमाणि त्ति, सव्वलोगम्मि विस्सु ॥ ५ ॥ तर लोग पदीवस आसि सीसे महायसे । भगवं गोयमे नामं, विज्जाचरणपारए || ६ | बारसंगविऊ बुद्धे, सीससंघसमाउले । गामाणुगामं रीयन्ते, से वि सावत्थिमागए ॥ ७ ॥ कोट्ठगं नाम उज्जाणं, तम्मी नगरमण्डले । फासुए सिजसंथारे, तत्थ वासमुवा ॥ ८ ॥ केसी कुमारसमणे, गोयमे य महायसे । उभओ वि तत्थ विहरिंसु, अल्लीणा सुसमाहिया ॥ ९ ॥ उमओ सीससंघाणं, संजयाणं तदस्सिणं । तत्थ चिन्ता समुप्पन्ना, गुणवन्ताण ताइणं ॥ १० ॥ रिसो वा इमो धम्मो, इमो धम्मो व केरिसो । आयारधम्म पणिही, इमा वा साव के रिसी ॥ चाउज्जामो य जो धम्मो, जो इमो पंचसिक्विओ । देसिओ वद्धमाणेण, पासेण य मामुणी अचेलओ य जो धम्मो, जो इमो सन्तरुत्तरो । एगकज्जपवन्नाणं, विसेसे किं नु कारणं अह ते तत्थ सीसाणं, विन्नाय पवितकिय | समागमे कयमई, उभओ केसिगोमा ॥ गोमे पडिवग्नू, सीससंघसमाउले । जेङ्कं कुलमवेक्खन्तो, तिन्दुयं वणमागओ ।। केसी कुमारसमणे, गोयमं दिस्समागयं । पडिरूवं पडिवत्ति सम्मं संपडिवञ्जई ॥ पलाल फासूयं तत्थ, पंचमं कुसतणाणि य । गोयमस्स निसेज्जाए, खिप्पं संमणामए || केसी कुमारसमणे, गोयमे य महायसे । उभओ निसण्णा सोहन्ति, चन्दसूरसमप्पभा ॥ समागया बहू तत्थ, पासण्डा कोउगा मिया । गिहत्थाणं चणेगाओ, साहस्सीओ समागया देवदाणवगन्धव्वा, जक्खरक्खस किन्नरा । अदिस्साणं च भूयाणं, आसी तत्थ समागमो ॥ पुच्छामि ते महाभाग, केसी गोयममब्बवी । तओ केसिं बुवन्तं तु, गोयमो इणमब्वी ॥ पुच्छ भन्ते अहिच्छं ते, केसिं गोयममब्बवी । तओ केसी अणुनाए, गोयमं इणमब्बवी || २२ | चाउज्जामोय जो घम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ । सिओ वद्धमाणेण, पासेण य महामुनी ।। २३ ।। एगकज्जपवन्नाणं, विसेसे किं नु कारणं । धम्मे दुविहे मेहावी, कहं विष्पच्चओ न ते ।। २४ ॥ तओ केसिं बुवन्तं तु, गोयमो इ मब्बवी । पन्ना समिक्खए धम्मतत्तं तत्तविणिच्छि ं ।। २५ । पुरिमा उज्जुजडा उ, वंकजडाय पच्छिमा । पज्झिमा उज्जुपन्ना उ, तेण धम्मे दुहा कए || २६ ॥ पुरिमाणं दुविसोझो उ, चरिमाणं दुरणुपालओ । कप्पो मज्झिमगाणं तु, सुविसोज्झो सुपालओ ॥ २७ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो सन्तरुत्तरो । देसिओ वद्धमाणेण, पासेण य महाजसा ॥ एगजपवन्नाणं, विसेसे किं नु कारणं । लिंगे दुविहे मेहावी, कहं विप्पच्चओ न ते
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२० ॥
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श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला.
३३ ॥
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४३ ॥
केसिमेवं बुवाणं तु, गोयमो इणमव्यवी । विन्नाणेण समागभ्म, घम्मसाहणमिच्छियं ॥ ३१ ॥ पच्चयत्थं च लोगस्स, नाणाविहविगप्पणं । जत्तत्थं गणहत्थं च, लोगे लिंगपओयणं ॥ ३२ ॥ अह भवे पन्ना उ, मोक्खसन्भूयसाहणा । नाणं च दंसणं चैव चरितं चैव निच्छए ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संमओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा अणे गाणं सहस्साणं, मज्झे चिट्ठसि गोयमा । ते य ते अहिगच्छन्ति, कहं ते निज्जिया तुमे एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस । इसहा उ जिणित्ताणं, सङ्घमत्तु जिणामहं || सत्तू य इइ के बुत्ते, केसी गोयम मन्धवी । तओ केसिं बुवंतं तु. गोयमो इणमब्बवी गप्पा अजिए संतु, कसाया इन्दियाणि य । ते जिणित्त जहानायं, विहरामि अहं मुणी साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो, अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा दीसन्ति यहवे लोए, पासबद्धा सरीरिणो । मुक्कपासो लहुन्भुओ, कहं विहरिसी मुणी ते पासे सहसो चित्ता निहन्तूण उवायओ । मुक्कपासो लहुन्भुओ, कहं विहरामि अहं मुणी पासा य इइ के बुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्धवी ॥ रागद्दोसादओ तिवा, नेहपामा भयकरा । ते छिन्दित्ता जहानायं विहरामि जहक ॥ साहु गोयम पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ अन्तोहिययसंभूया, लया चिट्ठह गोयमा । फलेइ विसभक्खीणि, सा उ उद्धरिया कहं तं लयं सङ्घसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलियं । विहरामि जहानायं, मुक्को मि विसभक्खणं ॥ या य इह का वुत्ता, केसी गोयममब्ववी । के सिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ भवतण्हा लया वृत्ता, भीमा भीमफलोदया । तमुद्धिच्चा जहानायं, विहरामि जहासुहं ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो, मे संमओ इमो । अन्नो वि संमओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ ४९ ॥ संपज्जलिया घोरा, अग्गी चिट्ठइ गोयमा । जे डहन्ति सरीरत्थे, कहं विज्झाविया तुमे ।। ५० ।। महापसूयाओ, गिज्झ वारि जलुत्तमं । सिंचामि समयं देहं सित्ता नो व डहन्ति मे ।। ५१ ॥ अग्गीय इइ के वुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु. गोयमो इणमब्बवी ॥ ५२ ॥ कसाया अग्गिणो वुत्ता, सुयसीलतवा जल । सुयधाराभिहया सन्ता, भिन्ना हु न डहन्ति मे ॥ ५३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ । अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ५४ ॥ अयं साहसिओ भीमो दुट्ठस्सो परिघावई । जंसि गोयममारूढो, कहं तेण न हीरसि ॥ ५५ ॥ पधावन्तं निगिण्हामि, सुयरस्सीसमाहियं । न मे गच्छइ उम्मग्गं, मग्गं च पडिवज्जई || ५६ ॥ आसे य इह के बुत्ते, केसी गोयममध्यवी । केसिमेवं बुवंतं तु,
४४ ॥
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४५ ।।
४६ ॥
४७ ॥
४८ ॥
T
गोयमो इणमब्बवी ॥
५७ ॥
५८ ॥
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५९ ॥
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६० ॥
साहसिओ भीम, दुट्ठस्सो परिधावई । तं सम्मं तु निगिण्हामि, धम्मसिक्ख इ कन्थगं ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो । अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा कुप्पहा बहवो लोए, जेहिं नासन्ति जन्तुणो । अद्धाणे कह वट्टन्ते, तं न नाससि गोयमा जे य मग्गेण गच्छन्ति, जे य उम्मग्गपट्टिया । ते सधे वेइया मज्जं, तो न नस्सामहं मुणी ।। इइ के कुत्ते, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, कुष्पवयणपासण्डी, सबै उम्मग्गपट्टिया । सम्मग्गं तु जिणक्खायं,
६१ ॥
(४०)
गोयमो इणमब्बवी ॥ एस मग्गे हि उत्तमे ॥
३७ ॥
३८ ॥
३९ ॥
४० ॥
४१ ॥
४२ ॥
६२ ॥ ६३ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-तेविसमाध्ययनम् साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ६४ ॥ महाउदगवेगेण, बुज्झमाणाण पाणिणं । सरणं गई पइट्ठा य, दीवं कं मन्नसी मुणी ।। ६५ ॥ अत्थि एगो महादीवो, वारिमझे महालओ । महाउदगवेगस्स, गई तत्थ न विजई ॥ ६६ ॥ दीवे य इइ के वुत्ते, केसी गोयममब्यवी। के सिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ।। ६७ ॥ जरामरणवेगेणं, बुज्झमाणाण पाणिणं । धम्मो दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं ॥ ६८ ।। साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसुगोयमा ॥ ६९ ॥ अण्णवंसि महोहंसि, नावा विपरिधावई । जंसि गोयममारूढो, कहं पारं गमिस्मसि ।। ७० ।। जा उ सस्साविणी नावा,न सा पाररस गामिणी। जा निरस्साविणी नावा,साउ पारस्स गामिणी ॥ ७१ ॥ नावा य इइ का वुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ७२ ।। सरीरमाहु नाव त्ति, जीवे वुच्चइ नाविओ। संसारो अण्णवो वुत्तो, जं तरंति महेसिणो ॥ ७३ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झ, तं मे कहसु गोयमा ॥ ७४ ॥ अन्धयारे तमे घोरे, चिट्ठन्ति पाणिणो बहू । को करिस्सइ उज्जोयं, सबलोयम्मि पाणिणं ।। ७५ ॥ उग्गओ विमलो भाणू , सबलोयपभंकरो । सो करिसइ उज्जोयं, सबलोयम्मि पाणिणं ।। ७६ ।। भाणू य इइ के वुत्ते, केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ७७ ॥ उग्गओ खीणसंसारो, सवन्नू जिणभक्खरो । सो करिस्सइ उज्जोयं, सबलोयम्मि पाणिणं ॥ ७८ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ॥ ७९ ॥ सारीरमाणसे दुक्खे, बज्झमाणाण पाणिणं । खेमं सिवमणाबाहं, ठाणं किं मन्नसी मुणी ।। ८० ।। अत्थि एगंधुवं ठाणं, लोगग्गम्मि दुरारुहं । जत्थ नत्थि जरा मच्चू, वाहिणो वेयणा तहा ॥ ८१ ।। ठाणे य इइ के वुत्ते, केसी गोयममबवी। केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ८२ । निव्वाणं ति अबाहं ति, सिद्धी लोगग्गमेव य । खेमं सिर्व अणाबाहं, जं चरंति महेसिणो ।। ८३ ।। तं ठाणं सासयं वासं, लोयग्गम्मि दुरारुहं । जं संपत्ता न सोयन्ति, भवोहन्तकरा मुणी ॥ ८४ ॥ साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो। नमो ते संसयातीत, सव्वसुत्तमहोयही ।। ८५ । एवं तु संसए छिन्ने, केसी घोरपरक्कमे । अभिवन्दित्ता सिरसा; गोमयं तु महायसं ॥ ८६ ॥ पंचमह वयधम्मं, पडिवाजइ भावओ । पुरिमस्स पच्छिमम्मि, मग्गे तत्थ सुहावहे ॥ ८७ ।। केसीगोयमओ निचं, तम्मि आसि समागमे । सुयसीलसमुकंसो, महत्थत्थविणिच्छओ।' ८८ ।। तोसिया परिसा सवा, सम्मग्गं समुवटिया । संथुया ते पसीयत्तु. भयवं केसिगोयमे ॥ ८९ ।।
. त्ति बेमि ॥ केसिगोयमिजं समत्तं ॥ २३ ॥
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(४२)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला । ॥ अह समिईओ चउवीसइमं अज्झयणं ॥
अट्ठ पवयणमायाओ, समिई गुत्ती तहेव य । पंचेव य समिईओ, तओ गुत्तीउ आहीया ॥१॥ इरियाभासेसणादाणे, उच्चारे समिई इय । मणगुत्ती वयगुत्ती, कायगुत्ती य अट्ठमा ॥ २॥ एयाओ अट्ट समिईओ, समासेण वियाहिया । दुवालसंगं जिणग्वायं, मायं जत्थ उ पवयणं ।। ३॥ आलम्बणेण कालेण, मग्गेण जयणाय य । चउकारणपरिसुद्धं, संजए इरियं रिए ॥ ४ ॥ तत्थ आलम्बणं नणं दंसणं चरणं तहा । काले य दिवसे वुत्ते, मग्गे उप्पहवज्जिए ॥५॥ दवओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा । जायणा चउबिहा वुत्ता, तं मे कित्तयओ सुण ॥ ६ ॥ दव्वओ चक्खुसा पेहे, जुगमित्तं च खेत्तओ । कालओ जाव रीइज्जा, उवउत्ते य भावओ ॥ ७ ।। इन्दियत्थे विवजित्ता, सज्झायं चेव पञ्चहा । तम्मुत्ती तप्पुरकारे, उवउत्ते रियं रिए ॥ ८॥ कोहे माणे य मायाए, लोभे य उवउतया। हासे भए मोहरिए, विकहासु तहेव य ।। ९ ।। एयाइं अट्ठ ठाणाई, परिधज्जित्तु संजए । असावजं मियं काले, भासं भासिज पनवं ॥ १० ॥ गवेसणाए गहणे य, परिभोगेसणाय य । आहारोवहिसेजाए, एए तिन्नि विसोहए ॥ ११ ॥ गग्गमुप्पायणं पढमे, वीए सोहेज एसणं । परिभोयम्मि चउकं, विसोहेज जयं जई ॥ १२ ॥ ओहोवहोवग्गहियं, भण्डगं दुविहं मुणी । गिण्हन्तो निक्खिवन्तो वा, पउंजेज इमं विहिं ॥ १३ ॥ चक्खुसा पडिलेहित्त, पमजेन जयं जई । अइए निक्खिवेजा वा, दुहओ वि समिए सया ॥ १४ ॥ उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाणजल्लियं । आहारं उवहिं देहं , अन्नं वावि तहाविहं ॥ १५ ॥ अणावायमसंलोए, अणोवाए चेव होइ संलोए । आवायमसंलोए, आवाए चेव संलोए ॥ १६ ॥ अणावायमसंलोए, परस्सणुवघाइए। समे अज्झुसिरे यावि, अचिरकालकयम्मि य ॥१७॥ वित्थिण्णे दूरमोगाढे, नासन्ने विलवजिए । तसपाणवीयरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे ॥ १८ ॥ एयाओ पश्च समिईओ, समासेण वियाहिया। एत्तोय तओ गुत्तीओ, वोच्छामि अणुपुत्वसो ॥ १९ ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भे य तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा य, मणगुत्तीओ चउविहा ॥ २० ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भ य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु, नियत्तेन जयं जई ॥ २१ ॥ सच्चा तहेव मोसा य, सचमोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा य, वइगुत्ती चरबिहा ॥ २२ ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भे य तहेव य । वयं पवत्तमाणं तु, नियतेज जयं जई ॥ २३ ॥ ठाणे निसीयणे चेव, तहेव य तुयट्टणे । उल्लंघणपल्लंघणे, इन्दियाण य झुंजणे ।। २४ ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भम्मि तहेव य । कायं पवत्तमाणं तु, नियत्तेन्ज जयं जई ॥ २५॥ एयाओ पश्च समिईओ, चरणस्स य पवत्तणे । गुत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु सहसा ॥ २६ ॥ एमा पत्रयणमाया, जे सम्मं आयरे मुणी। खिप्पं सत्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिए ।। २७
त्ति बेमि ॥ इअ समिईओ समत्ताओ
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श्री उत्तराध्ययन सूत्र - पञ्चविस माध्ययनम्
|| अह जन्नइज्जं पञ्चवीसइमं अज्झयणं ॥
१ ॥
२ ॥
३ ॥
१० ॥
माहणकुलसंभूओ, आसि विप्पो महायसो । जायाई जमजन्नम्मि, जयघोसि त्ति नामओ ॥ इन्दियग्गमनिगाही, मग्गगाभी महामुणी । गामाणुग्गामं रीयंते, पत्ते वाणारसिं पुरिं ॥ वाणरसीए बहिया, उज्जाणम्मि मणोरमे । फासुए सेज्जसंथारे, तत्थ वासमुवागए ॥ अह तेणेव कालेणं, पुरीए तत्थ माहणे । विजयघोसि त्ति नामेण, जन्नं जयइ पेयवी ॥ ४ ॥ अह से तत्थ अणगारे, मासक्खमणपारणे । विजयघोसस्स जन्नम्मि, भिक्खमट्ठा उवट्टिए || ५ ॥ समुट्ठियं तहिं सन्तं, जायगो पडिशेहिए। न हु दाहामि ते भिक्खं, भिक्खू जायाहि अन्नओ || ६ || जे य वेयविऊ विप्पा, जन्नट्ठ । य जे दिया । जो संगविऊ जे य, जे य धम्माण पारगा ॥ ७ ॥ जे समत्था समुद्धनुं, परमप्पाणमेव य । तेसिं अन्नमणिदेयं, भो भिक्खू सहकामियं ॥ ८ ॥ सो तत्थ एव पडिसिद्धो, जायगेण महामुणी । न वि रुट्ठो न वि तुट्ठो, उत्तिमदुगवेसओ ॥ ९ ॥ नन्न पाउं वा, नवि निवारणाय वा । तेसिं विमोक्खणट्टाए, इणं वयणमब्बवी ॥ नवि जाणसि वेयमुहं, नवि जन्नाण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं जं च, जं च धम्माण वा मुहं जे समत्था समुद्ध, परमप्पाणमेव य । न ते तुमं वियाणासि, अह जाणासि तो भण ॥ तस्सक्खेवपमोक्खं तु, अवयन्तो तहिं दिओ । सपरिसो पंजली होउं, पुच्छई तं महामुनिं वेयाणं च मुहं ब्रूहि, ब्रूहि जन्नाण जं मुहं । नक्खत्ताण मुहं ब्रूहि, बूहि धम्माण वा मुहं जे समत्था समुद्ध, परमप्पाणमेव य । एयं मे संसयं सवं, साहू कह अच्छिओ ॥ efore वेया, अन्नट्ठी वेयसा मुहं । नक्खत्ताण मुहं चन्दो, धम्माण कासवो मुहं ॥ जहा चन्दं गहाईया, चिट्ठन्ती पंजलीउडा | वन्दमाणा नर्मसन्ता, उत्तमं मतहारिणो अजाणगा जन्नवाई, विज्जामाहणसंपया । गूढा सज्झायतवसा, भासच्छन्ना इवग्गणो नो लोए बम्भणो वृत्तो, अग्गीव महिओ जहा । सया कुसलसंदिकं तं वयं बूम माहणं जो न सज्जइ आगन्तुं, पच्चयन्तो न सोयइ । रमइ अज्जवयणम्मि, तं वयं ब्रूम माहणं जायरूवं जहामङ्कं निद्धन्तमलपावगं । रागदोसभयाईयं तं वयं बूम माहणं
॥
॥
॥
तवस्सियं किसं दन्तं अवचियमंससोणियं । सुवयं पत्तनिवाणं, तं वयं बूम माहणं तसपाणे वियाणेत्ता, संगहेण य थावरे । जो न हिंसइ तिविहेण, तं वयं बूम माइणं
।।
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(४३)
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११ ॥
१२ ॥
१३ ।।
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२० ॥
२१ ॥
हावा जइ वा हासा, लोहा वा जइ वा भया । मुसं न वयई जो उ, तं वयं बूम माहणं चित्तमन्तमचित्तं वा, अप्पं वा जइ वा बहुं । न गिण्हाइ अदत्तं जे, तं वयं बूम माहणं दिवमाणुसतेरिच्छं, जो न सेवइ मेहुणं । मणसा कायवक्केणं, तं वयं वूम माहणं
बूम माहणं
बूम माहणं
जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पड़ वारिणा । एवं अलित्तं कामेहिं तं वयं अलोलुयं मुहाजीविं, अणगारं अकिंचणं । असंसतं गिहत्थेसु तं वयं जहित्ता पुवसंजोगं. नाइसंगे य बन्धवे । जो न सज्जइ भोगेसुं तं वयं बूम माहणं पसुबन्धा सङ्घवेया य, जङ्कं च पात्रकम्मुणा । न तं तायन्ति दुस्सील, कम्माणि बलवन्ति हि ॥ ३० ॥
२२ ॥
२३ ॥
२४ ॥
२५ ॥
२६ ॥
२७ ॥
२८ ॥
२९ ॥
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(४४)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
३१ ॥
३२ ॥
३३ ॥
वयं बूम माहणं ॥ परमप्पाणमेव य जयघोसं महामुनिं ।।
॥
३७ ॥
न वि मुण्डिएण समणो, न ओंकारेण वम्भणो । न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण तावसो ॥ समयगए समणो होइ बम्भचेरेण वम्मणो | नाणेण उ मुणी होड़, तवेण होइ तावसो || कम्णा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ । वइसो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवड़ कम्मुणा ॥ एए पाउकरे बुद्धे, जेहिं होइ सिणायओ । सङ्घकम्मविणिम्मुकं तं एवं गुणसमाउत्ता, जे भवन्ति दिउत्तमा । ते समत्था उ उद्धत्तुं एवं तु संसए छिन्न, विजयघोसे य माहणे । समुदाय तयं तं तु तुट्ठेय विजयघोसे, इणमुदाहु कथंजली | माहणतं जहाभूयं, मुट्ठ मे उचदंसियं । तुब्भे जड़या जन्नाणं, तुब्भे वेयविऊ विऊ । जो संगविऊ तुम्भे, तुम्भे धम्माण पारगा || ३८ ॥ तु समत्था उद्ध, परमप्पाणमेत्र य । तमणुग्गहं करेहम्हं. भिक्खेणं भिक्खु उत्तमा । न कज्जं मज्झ भिक्खेण, खिप्पं निक्खमसू दिया । मा भमिहिसि भयावडे, घोरे संसारसागरे ॥ उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पई । भोगी ममइ संसारे, अभोगी विष्पमुचई ॥ उल्लो सुक्खो य दो छूढा, गोलया मट्टिया मया । दो वि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो सोऽत्थ लग्गई एवं लग्गन्ति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति, जहा से सुक्खगोल ए ।। एवं से विजयघोसे, जयघोसस्स अन्तिए । अणगारस्स निक्खन्तो, धम्मं सोचा अणुत्तरं ॥ खवित्ता पुव्त्रकम्माई, संजमेण तवेण य । जयघोसविजयघोमा, सिद्धं पत्ता अणुत्तरं ॥ त्ति बेमि || इस जन्नइज्जं समत्तं ॥ २५ ॥
३९ ॥
४० ॥
४१ ॥
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४२ ॥
४३ ।।
४४ ॥
४५ ॥
३४ ॥
३५ ॥
३६ ।।
॥ अह सामायारी छवीसइमं अज्झयणं ॥
I
सामायारिं पवक्खामि, सवदुवखविमोक्खाणि । जं चरिताण निग्गन्धा, तिण्णा संसारसागरं ॥ १ ॥ पढमा आवस्निया नाम, बिइया य निसीहिया । आपुच्छणा य तइया, चउत्थी पडिपुच्छणा ॥ २॥ पंचमी छन्दणा नाम, इच्छाकारो य छडओ । सत्तमो मिच्छकारो य, तहक्कारो य अट्ठमो ॥ ३॥ अभुट्ठाणं च नवमं, दसमी उपसंपदा । एसा दसंगा साहूणं, सामायारी पवेइया ॥ ४ ॥ गमणे आवस्सियं कूज्जा, ठाणे कुञ्ज निसीहियं । आपुच्छणं सयंकरणे, परकरणे पडिपुच्छणं ॥ ५ ॥ छन्दणा दवजाएणं, इच्छाकारो य सारणे । मिच्छाकारो य निन्दाए, तहक्कारो पडिस्सुए || अब्भुट्ठाणं गुरुपूया, अच्छणे उवसंपदा । एवं दुपंच संजुत्ता, सामायारी पवेइया ॥ ७ ॥ पुल्लिमि चउभाए, आइचम्मि समुट्ठिए । भण्डयं पडिलेहित्ता, वन्दित्ता य तओ गुरुं ॥ ८ ॥ पुच्छित्र पंजलीउडो, किं काय मए इह । इच्छं निओइउं भन्ते, वेयावच्चे व सज्झाए ।। ९ ।। वेयावचे निउत्तेण, काय अगिला ओ । सज्झाए वा निउत्तेण, सवदुक्ख विमोक्खणे ॥ १० ॥ दिवसस्स चउरो भागे, भिक्खू कुञ्जा वियक्खणो । तओ उत्तरगुणे कुज्जा, दिणभागेषु चउसुवि ॥ पढमं पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायई । तइयाए भिक्खायरियं पुणो चउत्थीइ सज्झायं ॥ आसाढे मासे दुवया, पोसे मासे चउप्पया । चित्तासोएस मासे, तिप्पया हवइ पोरिसी अंगुलं सत्तरत्तणं, पक्खेणं च दुरंगलं । वड्ढए हायए वावि, मासेणं चउरंगुलं ॥
॥
११ ॥
१२ ॥
१३ ॥
१४ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-छविसमाध्ययनम्
(४५)
आसाढबहुलपक्खे, भद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुणवाइसाहेसु य, बोद्धव्वा ओमरत्ताओ ॥ १५॥ जेट्ठामूले आसाढसावणे, छहिं अंगुलेहिं पडिलेहा। अहहिं बीयतम्मि, तइए दस अट्टहिं चउत्थे ॥ १६ ॥ रत्तिं पि चउरो भागे, भिक्खू कुजा वियक्खणो। तओ उत्तरगुणे कुजा, राइभाएसु चउसु वि ॥ १७ ॥ पढमं पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायई। तइयाए निदमोक्खं तु. चउत्थी भुजो वि सज्झायं ॥ १८ ॥ जं नेइ जया रतिं, नक्खत्त तम्मि नहचउम्भाए। संपत्त विरमेजा, सज्झायं पओसकालम्मि ।। १९ ।। तम्मेव य नक्खत्ते, गयणचउब्भागसावसेसम्मि। वेरत्तियपि कालं, पडिलेहित्ता मुणी कुजा ॥ २० ॥ पुल्लिम्मि चउब्भाए, पडिले हित्ताण भण्डयं । गुरुं वन्दित्तु सज्झा, यकुजा दुक्खविमोकावणं ॥ २१॥ पोरिसीए चउभाए, वन्दित्ताण तओ गुरुं । अपडिक्कमित्ता कालस्स, भायणं पडिलेहए ॥ २२ ॥ मुहपोति पडिलेहित्ता, पडिलेज गोच्छगं । गोच्छगलइयंगुलिओ, वत्थाई पडिलेहए ॥ २३ ॥ उर्दू थिरं अतुरियं, पुवं ता वत्थमेव पडिलेहे । तो बिइयं पप्फोडे, तइयं च पुणो पमजिज ॥ २४ ॥ अणच्चावियं अवलियं, अणाणुबन्धिममोसलिं चेव । छप्पुरिमा नव खोडा, पाणीपाणिविसोहणं ॥ २५ ॥ आरभडा सम्म द्दा, वजेयत्वा य मोसलो तइया। पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया छट्ठी ॥ २६ ॥ पसिढिलपलम्बलोला,एगा मोसाअणेगरूवधुणा। कुणइ पमाणिपमाय,संकियगणणोवगं कुज्जा ॥ २७ ।। अणूणाइरित्तपडिलेहा, अविवच्चासा तहेव य । पढमं पयं पसत्थं, सेसाणि य अप्पसत्थाई ॥ २८ ॥ पडिलेहणं कुणन्तो, मिहो कहं कुणइ जणवयकहं वा। देइ व पच्च क्खाणं, वाएइ सयं पडिच्छइ वा ॥ २९॥ पुढवी आउकाए, तेऊ-वऊ-वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणापमत्तो, छण्हं पि विराहओ होइ ॥ ३० ।। पुढवी-आउक्काए, तेऊ वाऊ वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणाआउत्तो, छण्हं संरक्खओ होइ ॥ ३१ ॥ तइयाए पोरिसीए, भत्तं पणं गवे सए । छण्हं अनयराए, कारणम्मि समुट्टिए ॥ ३२ ॥ वेयण वेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमट्टाए । तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्मचिन्ताए ॥ ३३॥ निग्गन्थो धिइमन्तो, निग्गन्थी वि न करेज छहिं चेव । थाणेहि उ इमेहिं, अणइक्कमणाइ से होइ ॥ ३४ ॥ आयके उवसग्गे, तितिक्खया बम्भचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेडं, सरीरवोच्छे यणट्ठाए ॥ ३५ ॥ अवसेसं भएडगं गिज्झ, चक्खुसा पडिलेहए । परमद्धजोयणाओ, विहारं विहरए मुणो ॥ ३६ ॥ चउत्थीए पोरिसीए, निक्खि वित्ताण भायणं । सज्झायं तओ कुज्जा, सवभावविभावणं ॥ ३७॥ पोरिसीए चउन्माए, वन्दित्ताण तओ गुरुं । पडिक्कमित्ता कालस्स, सेजं तु पडिलेहए ॥ ३८ ॥ पासवणुचारभूमि च, पडिलेहिज जयं जई । काउस्सगं तओ कुजा, सव्वदुक्ख विमोक्खणं ॥ ३९ ॥ देवसियं च अईयारं, चिन्तिज्जा अणुपुत्वसो । नाणे य दंसणे चेव, चरित्तम्मि तहेव य ॥ ४०॥ पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । देसियं तु अईयारं, आलोएज जहक्कम्मं ॥ ४१ ॥ पडिक्कमिनु निस्सल्लो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुजा, सव्वदुक्ख विमोक्खणं ॥ ४२ ॥ पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । थुइमंगलं च काऊण, कालं संपडिलेहए ॥ ४३ ।। पढमं पोरिसि सज्झायं, वितियं झाणं झियायई। तइयाए निदमोक्खं तु, सज्झायं तु चउत्थिए ॥ ४४ ॥ पोरिसीए चउत्थीए, कालं तु पडिलेहिया । सज्झायं तु तओ कुजा, अबोहेन्तो असंजए ॥ ४५ ॥ पोरिसीए चउब्भाए, वन्दिऊण तओ गुरुं । पडिकमित्तु कालास, कालं तु पडिलेहए ॥ ४६ ॥ आगए कायवोस्सग्गे; सबदुक्खविमोक्खणे । काउस्सग्गं तओ कुन्जा सबदुक्खविमोक्खणं ॥ ४७ ।।
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(४६)
श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
॥
४८ ॥
४९ ॥
५० ॥
राइयं च अईयरं चिन्तिज्ज अणुपुवसो । नाणंमि दंसणंमि य, चरितमि तवंमि य पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । राइयं तु अईयारं, आलोएज्ज जहकम्मं ॥ पडिकमित्त निस्सल्लो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुजा, सङ्घदुक्खणं ॥ किं तवं षडिवज्जामि, एवं तत्थ विचिन्तए । काउस्सग्गं तु पारिता, वन्दई य तओ गुरुं ॥ पारिय काउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । तवं तु पडिवजेज्जा, कुज्जा सिद्धाण संथवं ॥ एसा सामायारी, समासेण वियाहिया । जं चरित्ता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं ।। ५३ ॥ ति बेमि ॥ इअ सामायारी समत्ता ॥ २६ ॥
५१ ॥
५२ ॥
॥ अह खलुंकिजं सत्तवीसइमं अज्झयणं ॥
२ ॥
३ ॥
४ ॥
५ ॥
६ ॥
थेरे गहरे गग्गे, मुणी आसि विसारए । आइण्णे गणिभावम्मि, समाहिं पडिसंघ ॥ १ ॥ वहणे व माणस. कन्तरं अइवत्तई । जोगे वहमाणस्स, संसारो अइवतई ॥ खलुंके जो उ जोएइ, विहम्माणो किलिस्साई | असमाहिं ज वेएइ, तोत्तओ से य भज्जई ॥ एगं डसइ पुच्छम्मि, एगं विन्धइ भिक्खणं । एगो भंजइ समिल, एगो उपहदडिओ ॥ एगो पडइ पासेणं, निवेस निवजई । उक्कुहइ उप्फिडइ, सढे बालगवी वए ॥ माई मुद्धेण पडइ, कुद्धे गच्छे पडिप्पहं । मयलक्खेण चिट्ठाई, वेगेण य पहामई ॥ छिन्नाले छिन्दई सेलिं, दुद्दन्तो भंजए जुगं । सेवि य सुस्सुयाइत्ता, उज्जहित्ता पलायए ॥ ७ ॥ खलुंका जारिसा जोज्जा, दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजाणम्मि, भजन्ती धिइदुब्बला ॥ ८ ॥ इड्डीगारविए एगे, एगेत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे, एगे सुचिरकोहणे ॥ ९ ॥ भिक्खालसिए एगे, एगे ओमाणभीरुए । थद्धे एगे आणुसासम्मी, हेऊहिं कारणेहि य ॥ १० ॥ सो वि अन्तरभासिल्लो, दोसमेव पकुवई । आयरियणं तु वयणं, पडिकूलेइऽभिक्खणं ॥ न सा ममं वियाणाइ; न य सा मज्झ दाहिई । निग्गया होहिई मन्ने, सहू अन्नोत्थ वच्चउ || पेसिया पलिउंचन्ति, ते परियन्ति, समन्तओ । रायवेट्ठि च मन्नन्ता, करेन्ति भिउडिं मुहे वाइया संगहिया चेव, भत्तपाणेण पोसिया । जायपक्खा जहा हंसा, पक्कमन्ति दिसो दिसिं ॥ अह सारही विचिन्तेइ, खलुंकेहिं समागओ । किं मज्झ दुट्ठसीसेहिं, अप्पा मे अवसीयई ।। जारिसा मम सीसाओ, तारिसा गलिगदहा । गलिगद्दहे जहित्ताणं, दढं पगिण्हई तवं मिउमद्दवसंपन्नो, गम्भीरो सुसमाहिओ । विहरइ महिं महप्पा, सीलभूषण अप्पणं ॥ त्ति बेमि ॥ खलुकिज्जं समत्तं ॥ २७ ॥
११ ॥
१२ |
॥
१३ ॥
१४ ॥
१५ ।।
॥
१६ ॥
१७ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-अट्ठाविसमाध्ययनम् ॥ अह मोक्खग्गगई अहावीसइमं अज्झयणं ॥
मोक्खमग्गगई तचं, सुणेह जिणभासियं । चउकारणसंजुत्तं, नाणदंसणलक्खणं ॥१॥ नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा । एसः मग्गु त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥ २ ॥ नाणं च दंसणं चैव, चरित्तं च तवो तहा । एयमग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गइं ॥ ३ ॥ तत्थ पंचविहं नाणं, सुयं आभिनिबोहियं । ओहिनाणं तु तइयं, मणनाणं च केवलं ॥ ४ ॥ एवं पंचविहं नाणं, दवाण य गुणाण य । पजवाण य सवेसि, नाणं नाणीहि दंसियं ॥५॥ गुणाणमासओ दवं, एगदवस्सिया गुणा । लक्खणं पजवाणं तु अभओ अस्सिया भवे ॥ ६ ॥ धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गल-जन्तवो । एस लोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥ ७ ॥ धम्मो अहम्मो आगासं, दवं इक्विकमाहियं । अणन्ताणि य दव्वाणि, कालो, पुग्गलजन्तोवो ॥ ८ ॥ गइलक्खणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्षणो । भायणं सव्वदध्वाणं, नहं ओगाहलक्खणं ॥ ९॥ वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उवओगलक्खणो । नाणेणं दंसणेणं च, सुहेण य दुहेण य ॥ १० ॥ नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा । वीरियं अवओगो य, एयं जीवस्स लक्खणं ॥ ११ ॥ सहन्धयार-उज्जोओ, पहा छाया तवे इ वा । वण्णरसगन्धफासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥ १२॥ एगत्तं च पुहत्तं च, संखा संठाणमेव य । संजोगा य विभागा य, पजवाणं तु लक्षणं ॥ १३ ॥ जीवाजीवा य बन्धो य, पुण्णं पावासवा तहा । संवरो निन्जरा मोक्खो, सन्तेए तहिया नव ।। १४ ॥ तहियाणं तु भावाणं, सब्भावे उवएमणं । भावेणं सहहन्तस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं ॥ १५ ॥ निसग्गुवएसरुई, आणरुई मुत्त-बीयरुइमेव । अभिगम-वित्थाररुई, किरिया-संखेव धम्मरुई ॥ १६ ॥ भूयत्थेणाहिगया, जीवाजीवा य पुण्णपावं च । सहसम्मुइयासवसंवरो य रोएइ उ निस्सग्गो ॥ १७ ॥ जो जिणदिटे भावे, चउबिहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नन्नह त्ति य, स निसग्गरुइ त्ति नायवो ॥ १८ ॥ एए चेव उ भावे, उवइटे जो परेण सद्दहई। छउमत्थेण जिणेण व, उवएसरुइ ति नायवो ॥ १९ ॥ रागो दोसो मोहो, अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोएंतो, सो खलु आणारुई नामं ॥ २० ॥ जो सुत्तमहिजन्तो, सुरण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बहिरेण व, सो सुत्तरुइ ति नायबो ।। २१ ॥ एगेण अणेगाई, पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं । उदए व तेल्लविन्द, सो बीयरुइ त्ति नायवो ॥ २२ ॥ सो होइ अभिगमरुई, सुयनाणं जेण अत्थओ दिटुं । एकारस अंगई, पइण्णगं दिद्विवाओ य ॥ २३ ॥ दवाण सवभावा, सत्वपमाणेहि जस्स उवलद्धा । सबाहि नयविहीहि, वित्थाररुइ ति नायवो ॥ २४ ॥ दंसणनाणचरित्ते, तवविणए सबसमिइगुत्तीसु । जो किरियाभाबरुई, सोखलु किरियारुई नाम ॥ २५॥ अणभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइ त्ति होइ नायबोअविसारओ पवयणे,अणभिंगहिओ य सेसेसु ॥ २६ ॥ जो अत्थिकायधम्मं,सुधम्मं खलु चरित्तधम्मं च। सद्दहइ जिणाभिहियं,सो धम्मरु त्ति नायवो ॥ २७ ॥ परमत्थसंथवो वा, सुदिट्ठपरमत्थसेवणं वा वि । वावन्नकुदंसणवजणा, य सम्मत्तसदहणा ॥ २८ ॥ नत्थि चरितं सम्मत्तविहूणं, दसणे उ भइयवं । सम्मत्तचरित्ताई, जुगवं पुवं व समत्तं ।। २९ ॥
नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नथि अमोक्स्वस्स निवाणं
॥३०॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. निस्संकिय-निकंखिय निवितिच्छा अमूढदिट्ठी य । उववृह थिरीकरणे, वच्छल पभावणे अट्ठ ॥ ३१॥ सामाइत्थ पढम, छेओवट्ठावणं भये बीयं । परिहारविसुद्धीय, सहुमं तह संपरायं च ॥ ३२ ॥ अकसायमहक्खाय, छउमथत्स्स जिणस्स वा । एवं चयरित्तकरं, चारित्तं होइ आहियं ॥ ३३ ॥ तवो य दुविहो वुत्तो, वाहिरब्भन्तरो तहा। बाहिरो छबिहो वुत्तो, एमेवब्भण्तरो तवो ।। ४ ।। नाणेण जाणई भावे. दंसणेण य सदहे । चरितण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झई ।। ३५ ॥ खवेत्ता युवकमाई, संजमेण तवेण य । सबदुक्खपहीणहा, पक्कमन्ति महे सिणो ॥ ३६ ।।
त्ति बेमि ॥ इअ मोक्खमग्गगई समत्ता ॥ २८ ॥
॥ अह सम्मत्तपरकम एगूणतीसइमं अज्झयणं ॥ सुयं मे आउसं-तेण भगवया एवमक्वायं । इह खलु सम्मत्तपरक्कमे नाम अज्झयणे समणेण भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइए, जं सम्मं सदहित्ता पतियाइत्ता रोयइत्त फासित्ता पालइत्ता तीरित्ता कित्तइत्ता सोहइत्ता आराहित्ता आणाए अणुपालइत्त बहवे जीवा सिज्झन्ति बुज्झन्ति मुच्चन्ति परिनिहायन्ति सबदुक्खाणमन्तं करेन्ति । तस्स णं अयम? एवमाहिजइ, तंजहा-संवेगे १ निवेए २ धम्मसद्धा ३ गुरुसाहम्मियसुरसूसणया ४ आलोयणया ५ निन्दणया ६ गरिहणया ७ सामाइए ८ चउबीसत्थवे ९ वन्दणे १० पडिक्कमणे ११ काउस्सग्गे १२ पच्चक्खाणे १३ थवथुईमंगले १४ कालपडिलेहणया १५ पायच्छित्तकरणे १६ खमावयवया १७ सज्झाए १८ वायणया १९ पडिपुच्छणया २. पडियट्टणया २१ अणुप्पेहा २२ धमकहा २३ सुयस्स आराहणया २४ एगग्गमणसंनिवेसणया २५ संजमे २६ तवे २७ वोदाणे २८ सुहसाए २९ अपडिवद्धया ३० विवित्तसयणासणसेवणया ३१ विणियपृणया ३२ संभोगपञ्चक्खाणे ३३ उवहिपञ्चक्खाणे ३४ आहारपञ्चक्खाणे ३५ कसायपच्चक्स्वाणे ३६ जोगपञ्चक्खाणे ३७ सरीरपञ्चक्खांणे ३८ सहायपच्चक्खाणे ३९ भत्तपचक्खाणे ४० सब्भावपञ्चक्खाणे ४१ पडिरूवणया ४२ वेयावच्चे ४३ सव्वगुणसंपुण्णया ४४ वीयरागया ४५ खन्ती ४३ मुत्ती ४७ मद्दवे ४८ अजवे ४९ भावसच्चे ५० करणसच्चे ५१ जोगसच्चे मणगुत्तया ५३ वयगुत्तया ५४ कायगुत्तया ५५ मणसमाधारणया ५६ वयसमाधारणया ५७ कायसमाधारणया ५८ नाणसंपन्नया ५९ सणसंपन्नया ६० चरित्तसंपन्नया ६१ सोइन्दियनिग्गहे ६२ चक्खिन्दियनिग्गहे ६३ घाणिन्दियनिग्गहे ६४ जिभिन्दियनिग्गहे ६५ फासिन्दियनिग्गहे ६६ कोहविजए ६७ माणविजए ६८ मायाविजए ६९ लोहविजए ७० पेजदोसमिच्छादसणविजए ७१ सेलेसी ७२ अकम्मया ॥ ७३ ॥
संवेगेणं भन्ते जीवे किं जणयइ। संवेगणं अणुत्तरं धम्मसद्धं जणयइ । अणुत्तराए धम्मसद्धाए संवेगं हव्वमागच्छइ अणन्ताणुबन्धिकोहमाणमायालोमे खवेइ । कम्मं न बन्धइ । तप्पच्चयं च णं मिच्छत्तविसोहि काऊण दंसणाराहए भवइ । दंसणविसोहीए य णं विसुद्धाए अत्जेगइए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झई । सोहीए य णं विसुद्धाए तच्चं पुणो भवग्गहणं नाइक्कमइ ॥ १ ॥ निव्वेदेणं
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र- एगूणतीस माध्ययनम्
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भन्ते जीवे किं जणयइ । निवेदेणं दिवमाणुसते रिच्छएसु कामभोगेसु निवेयं हवमागच्छेइ सवविसएसु विरजड़ । सङ्घविसएस विरज्जमाणे आरम्भपरिच्चायं करेइ । आरम्भपरिचायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिन्दइ, सिद्धिमग्गं पडिवन्ने य भवइ | २ || धम्मसद्धाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ | धम्मसद्धाए
सायासोक्खे रज्जमाणे विरज्जइ । आगारधम्मं च णं चय । अणगारिए णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं छेयणभेयणसंजोगाईणं वोच्छेयं करे अव्वाबाहं च सुहं निव्वत्तेड़ || ३ || गुरुसाहम्मियसुस्साए णं विणयपडिवत्तिं जणयइ । विणयपडिवन्न य णं जीवे अणाच्चासायणसीले नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्स देवदुग्गईओ निरुम्मः । वण्णसंजलणभत्तिबहुमाणयाए मणुस्सदेवगईओ निबन्धर, सिद्धिं सोगाई च विसोहेइ । पसत्थाई च णं विणयामूलाई सवकज्जाई साहे अन्ने य बहवे जीवे विणिइत्ता भव ||४ | आलोयणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । आलोयणाए णं मायानियाणमिच्छादंसण सल्लाणं मोक्खमग्गविग्वाणं अनंतसंसारबन्धणाणं उद्धरणं करेइ । उज्जुभावं च जणयइ । उज्जुभावपडित य णं जीवे अमाई इत्थीवेयनपुंसगवेयं च न बन्धइ । पुवबद्धं च णं निज्जरेइ ॥ ७ ॥ निन्दणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । निन्दणयाए णं पच्छाणुतावं जणयइ । पच्छाणुतावेणं विरजमा करणगुणसेटिं पडिवजः । करणगुणसेढी पडिवन्ने य णं अणगारे मोहणिज्जं कम्मं उग्धाए ॥ ६ ॥ गरहणयाए णं भंते जीवे किं जणयइ । गरहणयाए अपुरेकारं जणयइ । अपुरेक्कारगए णं जीवे अप्पसत्थेहिंतो जोगेहिंतो नियत्तेड़. पसत्थे य पडिवज्जइ । पसत्थजोगपडिवन्ने य णं अणगारे अणन्तघाइपजवे खवेइ ७ ||सामाइएणं भन्ते जीवे किं जगगइ । सामाइएणं सावज्जजोगविरई जणयः ॥ ८ ॥ चउव्वीसत्थएणं भन्ते जीवे किं जणयइ । च० दंसणविसोहिं जणय || ९| वन्दणएणं भन्ते जीवे किं जणयइ ।
०नीयागोयं कम्मं खवेइ । उच्चागोयं कम्मं निबन्धइ सोहग्गं च णं अपडिहियं आणाफलं निवत्तेइ | दाहिणभावं च णं जणयः || १० || पडिक्कमणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । प० वयछिद्द णि पिइ । पिहियवयछिद्दे पुण जीवे निरुद्धासवे असबलचरित्ते अट पवयणमायासु उवउत्ते अपुहत्ते सुप्पणिहिंइंदिए विहरइ || ११ || काउसरणं भन्ते जीवे कि जणयइ । का० तीयपडुप्पन्नं पायच्छित्तं विसोइ । विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निच्वयहियए ओहरिभरु व भारवहे पसत्थज्झाणोवगए सुहं सुणं विरइ || १२ || पच्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जणय । प० आसवदाराई निरुम्भः । पच्चक्खाणेणं इच्छानिरोहं जणयइ । इच्छानिरोहं गए य णं जीवे सन्धदव्वेसु विणीयत हे सीइए वि हरइ || १३ ॥ थवथुइ मंगलेणं भन्ते जीवे किं जणयः । य० नाणदंसणचरित्तबोहिलाभं जणयइ । नाणदंसणचरितबोहिलाभ संपन्ने य णं जीवे अन्तकिरियं कष्पविमाणोत्रवत्तिगं आराहणं आराहेइ || १४ ॥ कालपडिलेहणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । का० नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ ॥ १५ ॥ पायच्छित्तकरणं भन्ते जीवे किं जणयइ । पा० पावविसोहिं जणयइ, निरइयारे वावि भवइ । सम्मं चणं पायच्छित्तं पडिवज्जमाणे मग्गं च मग्गफलं च विसोहेइ, आयारं च आयारफलं च आराहेड़ ॥ १६ ॥ खमावणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ख० पल्हायणभावं जणयइ । पल्हायणभावमुवग य सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु - मेत्तीभावमुप्पाएइ । मेत्तीभावमुवगए यावि जीवे भावविसोहिं काऊण निव्भए भवइ ||१७|| सज्झाएण भन्ते जीवे किं जणयइ । स० नाणावर णिज्जं कम्मं खवेइ ।। १८ ।। वायणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । वा० निजरं जणयइ सुयस्स य अणासायणाए
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श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
यसअणासाणा वट्टमाणे तित्थधम्मं अवलम्बइ । तित्थधम्मं अलम्बमाणे महानिजरे महापजवसाणे भवइ ॥ १९ ॥ पडिपुच्छणयाए णं भन्ते जीवे किं जणय | प सुत्तत्थतदुभयाई विसोहेइ | कंखामोहणिज्जं कम्मं वोच्छिन्दइ || २० || परियट्टणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । प० वंजणाई जणय, वंजणलद्धिं च उप्पाएइ || २१ || अणुप्पेहाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । अ० आउयवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ घणियबन्धणबद्धाओ सिढिलबन्धणलद्धाओ पकरेइ । दीहकालट्ठियाओ हस्सकालठिई आसी पकरेइ । तिवाणुभावाओ मन्दाणुभावाओ पकरेइ । (बहुपए सग्गाओ अप्पपएसगाओ पकts) आउयं च णं कम्मं सिया बन्धइ, सिया नो बन्धइ । असावेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुजो भुजो उवचिणाइ । अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकन्तारं खिप्पामेव वी - वमइ ||२२|| धम्मकहाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ध० निजरं जणयइ | धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ | पत्रयणपभावेणं जीवे आगमेसस्स महत्ताए कम्मं निबन्धइ ॥ २३ ॥ सुयरस आराहणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । सु० अन्नाणं खवेइ न य संकिलिस्सइ || २४ || एगग्गमणसंनिवेसण• या णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ए० चित्तनिरोहं करे || २५ || संजमएणं भन्ते जीवे किं जणयह । स० अणण्हयत्तं जणय ।। २६ ।। तवेणं भन्ते जीवे किं जणयइ || तवेणं वोदाणं जणयइ ॥ २७ ॥ वोदाणं भन्ते जीवे किं जणयइ । वो० अकिरियं जणयइ । अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ मुच्च परिनिधाय सवदुक्खाणमन्तं करेइ || २८ || सुहसाएणं भन्ते जीवे किं जणय | सुं० अणुस्मुयत्तं जणय | अणुस्सुयाए णं जीवे अणुकम्पए अणुब्भडे विगयसोगे चरि मोहणिज्जं कम्मं खवेइ ।। २९ ।। अप्पडिबद्धयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । अ० निस्संगतं जणय | निस्संगत्तेणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य राओ य असज्जमाणे अप्पडिबद्धे यावि विहरइ || ३० || विवित्तसयणासणयाए णं भन्ते जीवे किं जणय | वि० चरितगुत्तिं जणय | चरितगुत्ते य णं जीवे विवित्ताहारे दढचरिते एगन्तरए मोक्खभाव पडिवन्ने अट्ठविहकम्मगंठिं निजरेइ ||३१|| विनियट्टयाए णं भन्ते जीवे किं जणयः । वि० पावकम्माणं अकरणयाए अन्भुट्ठे । पुवबद्धा य निजरणयाए तं नियत्ते । तओ पच्छा चाउरन्तं संसारकन्तारं वीइवयइ || ३२ || संभोगपच्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जणयइ । सं० आलम्बणाई खवेइ । निरालम्बणस्स य आयट्ठिया योगा भवन्ति । सएणं लाभेणं संमुस्सइ, परलाभं नो आसादेइ, परलाभं नो तक्केइ, नो पीहेड़, नो पत्थेइ, नो अभिलस । परलाभं अणस्सायमाणे अतकेमाणे अपीहमाणे अपत्येमाणे अणभिलसमाणे दुचं सुहसेज्जं उवव संपज्जित्ता णं विहरड् ।। ३३ ।। उवहिपच्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जणयः । उ० अपलिमन्थं जणय | निरुत्रहिए णं जीवे निकंखी उवहिमन्तरेण य न संकिलिस्सई ||३४|| आहारपच्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जणय | आ० जी वियासंसप्पओगं वोच्छिन्दइ । जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दित्ता जीवे आहारमन्तरेणं न संकिलिस्सः || ३५ || कसायपच्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जण इ । क० वीयरागभावं जणयः । वीयरागभाव पडिव ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ ॥ ३६ ॥ जोगपच्चक्खाणं भन्ने जीवे किं जणय | जो० अजोगतं जणयह अजोगे णं जीवे नवं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धं निजरेइ || ३७ || सरीरपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ | स० सिद्धाइसयगुणकित्तणं निवत्तेइ सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गमुनगए परमसुंही भवइ || ३८ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-एगणतीसमाध्ययनम्
सहायपच्चक्खाणेण भन्ते जीवे किं जणयइ । स० एगीभावं जणयइ । एगीभावभूए वि य णं जीवे एगत्तं भावेमाणे अप्पझंझे अप्पकलहे अप्पकसाए अप्पतुमंतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि भवइ ॥३९॥ भत्तपच्चक्खाणेण भन्ते जीवे किं जणयइ । भ० अणेगाइं भवसयाई निरुम्भइ ॥४०॥ सम्भावपञ्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ स० अनियट्टि जणयइ। अनियहिपडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ तंजहा-वेयणिजं आउयं नाम गोयं । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ सबदुक्खाणमन्तं करेइ ।। ४१ ।। पडिरूवणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । प० लापवियं जणयइ । लघुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसथलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सवपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिज रूवे अप्पडिलेहे जिइन्दिए विउलतवसमिइससन्नागए यावि भवइ ।। ४२॥ वेयावच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । वे० तित्थयरनामगोतं कम्मं निबन्धइ ।। ४३ ॥ सत्वगुणसंपबयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । स० अपुणरावति पत्तए य णं जीवे सारीरमाणमाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ ॥ ४४ ॥ वीयरागयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । धी. नेहाणुबन्धणाणि तण्हाणुबन्धणाणि य वोच्छिन्दइ, मणुन्नामणुनेसु सद्दफरिसरूवरसगन्धसु चेव विरजइ ॥ ४५ ॥ खन्तीए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ० ख० परीसहे जिणइ ॥ ४६॥ मुत्तीए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । मु० अकिंचणं जणयइ । अकिंचणे य जीवे अत्थलोलाणं अपत्थणिज्जो भवइ ।। ४७ ॥ अजवयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । अ० काउन्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ । अ. विसंवायणसंपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ ।।४८।। मद्दवयाए णं भन्ते जीवे किंजणयइ। म० अणुस्सियत्तं जणयइ । अणुस्सियत्तेण जीवे मिउमदवसंपन्ने अट्ठ मयठाणाई निट्ठावेइ ॥ ४९ ।। भावसच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । भा. भावविसोहि जणयइ । भावविसोहिए वट्टमाणे जीवे अ. रहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अष्भुटेइ । अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुद्वित्ता परलोगधम्मस्स आराहए भवइ ॥ ५० ॥ करणसच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । क० करणसत्ति जणयइ । करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहा वाई तहा कारी यावि भवइ ।। ५१ ॥ जोग सच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । जो० जोगं विसोहेइ ॥ ५२ ॥ मणगुत्तयाए णभन्ते जीवे किं जणयइ म. जीवे एगग्ग जणयइ । एगग्गचित्ते णं जीवे मणगुते संजमाराहए भवइ ॥ ५३ ॥ वयगुत्तयाए णं भन्ते जीव किं जणयइ। व० निवियारं जणयइ। निवियारे णं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगसाहणजुत्ते यावि विहरइ ॥ ५४ ॥ कायगुत्तयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । का० संवरं जणयइ । संवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोहं करेइ ॥ ५५ ॥ मणसमाहारणयाए णं भन्ते जीवे किं जण यइ । म एगग्गं जणयइ । एगग्गं जणइत्ता नाणपजवे जणयइ । नाणपञ्जवे जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छतं च निजरेइ ॥ ५६ ।। वयसमाहारणयाए भन्ते जीवे किं जणयइ । व० वयसमाहारणदंसणपज्जवे विसोहेइ । वयसाहारणदंसणपज वे विसोहित्ता सुलहबोहियत्तं निवत्तेइ, दुल्लहबोहियत्त निज रेइ ।। ५७॥ कायसमाहारणयाए णं भन्ते जीवें किं जणयइ । का० चरित्तपञ्जवे विसोहेइ। चरित्तपज्जवे विसोहित्ता अहक्खायचरितं विसोहेइ । अहक्खायचरित्तं विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मं से खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिवाइ सबदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ ५८ ॥ नाणसंपन्नयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ना० जीवे सद्दभावाहिगम जणयइ । नाणसंपन्ने जीवे चाउरन्ते संसारकन्तारे न विणस्सइ।
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श्रीजैन सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
जहा सूई सत्ता न विणस्सइ तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विणस्सइ, नाणविणयतवचरितजोगे संपाउणइ, ससमयपर समय विसारए य असंघायणिज्जे भवइ ।। ५९ ।। दंसणसंपन्नयाए णं भंते जीवे किं जणय | दं० भवमिच्छत्तछेयणं करेइ न विज्झायइ । परं अविज्झाएमाणें अणुत्तरेणं नागदंसणेणं अप्पाणं संजोएमाणे सम्मं भावेमाणे विहरइ || ६० || चरितसंपन्नयाए णं भंते जीवे किं जणय | च० सेलेसीभावं जणयः । सेलेसिं पडिवने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेड़ । तओ पच्छा सिज्झइ बुझइ मुच्च परिनिवाय सवदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ ६१ ॥ सोइन्दिय निग्गणं भन्ते जीवे किं जणयइ । सो० मणुन्नमणुन्नेसु सदेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धं च निजरेइ ।। ६२ । चक्खिन्दियनिग्गणं भन्ते जीवे किं जणयइ । च० मणुन्नामणुन्नेसु रूवेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पचइयं कम्मं न बन्धड़, पुवबद्धं च निज्जरेइ ॥ ३३ ॥ घाणिन्दियनिग्गणं भन्ते जीवे किं जणयइ । घा० मणुन्नामणुन्नेसु गन्धेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तमच्चइयं कम्मं न बन्धर, पुवबद्धं च निज्जरेइ || ६४ || जिब्भिन्दियनिग्गणं भन्ते जीवे किं जणयइ | जि० मणुन्नामन्न रसेसु रागदोषनिग्गहं जणुयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धं च निजरेइ || ६५ || फासिन्दियनिग्गणं भन्ते जीवे किं जणयइ । फा० यणुन्नामणुन्ने फासेसु रागदोषनिरहं जणय, तप्पच्चइयं कम्मं न वन्धइ, पुवबद्धं च निजरेइ || ६६ || कोह विजरणं भन्ते जीवे किं जणय | को खन्ति जणय. कोहवेयणिज्जं कम्मं न बन्धर, पुवबद्धं च निजरेइ | ६७ || माणविजएणं भन्ते जीवे किं जणय | मा० मद्दवं जणय, मायावेयणिज्जं कम्मं न बन्धर, पुवबद्धं च निज्जरेइ || ६८ || मायाविजएणं भन्ते जीवे किं जणयइ । मा० अज्जवं जणयइ, मायावेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धं च निजरेइ ।। ३९ ।। लोभविजरणं भन्ते जीवे किं जणयइ । लो० संतोसं जणय, लोभवेयणिजं कम्मं न बन्धर, पुवलद्धं च निजरेइ || ७० || पिज्जदोस मिच्छादंसणविजएणं भन्ते जीवे किं जणय | पि० नाणदंसणचरिताराहण्याए अब्भुट्ठे । अट्ठविहस्स कम्मस्स कम्ममोयया तप्पढमयाए जहाणुपुवीए अट्ठट्ठवीसइविहं मोहणिज्जं कम्मं उग्घाएइ, पञ्चविहं नाणावर णिज्जं, नवविहं दंसणावरणिज्जं पंचविहं अन्तराइयं, एए तिनि वि कम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा अणुत्तरं कसिणं पडिपुत्णं निरावरणं दितिमरं विशुद्धं लोगालोग पभावं केवलवरना णदंसणं समुप्पाडे । जाव सजोगी भवः, ताव ईरियावहियं कम्मं निबन्धइ सुहफरिसं दुसमयठियं । तं पढमसमए बर्द्ध, विइयसमए वेइयं, तइयसमए निजिणं, तं बद्धं पुङ्कं उदीरियं वेइयं निजिणं सेयाले य अकम्भयाच भवइ ॥ ७१ ॥ अह आउयं पालइत्ता अन्तोमुहुत्तद्धाय से साए जोगनिरोहं करेमाणे मुहुमकिरियं अप्पडिवाई सुक्कज्झाणं झायमाणे तप्पढमयाए मणजोगं निरुंभइ वयजोगं निरुंभइ, कायजोगं निरंभ, आणपाणु निरोहं करेइ, ईसि पंचरहस्सक्खरुच्चारणट्ठाए य णं अणगारे समुच्छिन्नकिरियं अनियसुकझाणं झियायमाणे वेयणिज्जं आउयं नामं गोत्तं च एए चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवे ॥ ७२ ॥
ओ ओरालियतेयकम्माई सवाहिं विप्पजणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढिपत्ते अफुसमाणगई उडूं एगसमएणं अविग्गणं तत्थ गन्ता सागारोवउत्ते सिज्झइ बुज्झर जाव अंत करेइ ॥ ७३ ॥ एस खलु सम्मत्तपरकम्मस्स अज्झयणस्स अट्ठे समणेण भगवया वहावीरेणं आघविए पनविए परूविए दंसिए उवदेसिए | ७४ ॥ त्ति बेमि || इअ सम्मत्तपरक्कमे समत्ते ॥ २९ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-तीसमाध्ययनम्
॥ अह तवमग्गं तीसइमं अज्झयणं ॥
जहा उ पावगं कम्मं, रागदोससमज्जियं । खवेइ तवसा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण ॥ १॥ पाणिवहमुसावायाअदत्तमेहुणपरिग्गहा विरओ। राईभोयणविरओ, जीवो भवइ अणासवो ॥२॥ पंचसमिओ तिगुत्तो, अकसाओ जिइन्दिओ। अगारवो य निस्सल्लो, जीवो होइ अणासवो ॥३॥ एएसिं तु विबच्चासे, रागदोससमन्जिय । खवेइ उ जहा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण ॥ ४ ॥ जहा महातलायस्स, सनिरुद्धे जलागमे । उस्सिचणाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे ॥५॥ एवं तु संजयस्सावि, पावकम्मनिरासवे । भवकोडीसंचियं कम्म, तवसा निजरिजइ ।। ६ ॥ सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरम्भन्तरो तहा । बाहिरो छबिहो वुत्तो, एवमन्भन्तरो तवो ॥ ७ ॥ अणसणमूणोयरिया,भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ। कायकिलेसोसंलीणया य बज्झो तवो होइ ॥ ८ ॥ इत्तरिय मरणकाला य, अणसणा दुविहा भवे । इत्तरिय सावकंखा, निरवकंखा उ बिइजिया ॥ ९ ॥ जो सो इतरियतवो, सो समासेण छविहो । सेढितवो पयरतवो, घणो य तह होइ वग्गो य ॥ १० ॥ तत्तो य वग्गवग्गो, पंचमो छडओ पइण्णतवो। मणइच्छियचित्तत्थो, नायबो होइ इतरिओ ॥ ११ ॥ जा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा वि वियाहिया। सवियारमवियारा, कायचिद्रं पई भवे ॥ १२ ॥ अहवा सपरिकम्मा, अपरिकम्मा य आहिया। नीहारिमनीहारी, आहारच्छेओ दोसु वि ॥ १३ ॥ ओमोयरणं पंचहा, समासेण वियाहियं । दवओ खेत्तकालेणं, भावेणं पज्जवेहि य ।। १४ ॥ जो जस्स उ आहारो, तत्तो ओमं तु जो करे। जहन्नेणेगसित्थाई, एवं दवेण ऊ भवे ॥ १५ ॥ गामे नगरे तह रायहाणिनिगमे य आगरे पल्ली । खेडे कब्बडदोणमुहपट्टणमडम्बसंबाहे ॥ १६ ॥ आसमपए विहारे, सन्निवेसे समायघोसे य । थलिसेणाएन्धारे, सत्थे संवट्टकोट्टे य ॥ १७ ॥ वाडेसु व रच्छासु व, घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं । कप्पई उ एवमाई, एवं खेत्तेण ऊ भवे ॥ १८॥ पेडा य अद्धपेडा, गोमुत्तिपयंगवीहिया चेव । सम्बुक्कावट्टाययगन्तुंपञ्चागया छट्ठा ॥ १९ ॥ दिवसस्स पोरुसीणं, चउण्झपि उ जत्तिओ भवे कालो। एवं चरमाणो खलु, कालोमाणं मुणेयवं ॥ २० ॥ अहवा तइयाए पोरिसीए ऊणाइ घासमेसन्तो। चउभागृणाए वा, एव कालेण ऊ भवे ॥ २१ ॥ इत्थी वा पुरिसो वा, अलंकिओ वानलंकिओवावि। अन्नयरवयत्थो वा, अन्नयरेणं व वत्थेणं ॥ २२ ।। अन्नेण विसेसेणं, वण्णेणं भावमणुमुयन्ते उ । एवं चरमाणो खलु, भावोमाणं मुणेयत्वं ॥ २३ ॥ दवे खेत्ते काले, भावम्मि य आहिया उजे भावा। एएहि ओमचरओ, पजवचरओ भवे भिक्खू ॥ २४ ॥ अट्टविहगोयरग्गं तु, तहा सत्तेव एसणा। अभिग्गहा य जे अन्ने, भिक्खायरियमाहिया ॥ २५ ॥ खीरदहिसप्पिमाई, पणीयं पाणभोयणं । परिवजणं रसाणं तु, भणियं रसविवजणं ॥ २६ ॥ ठाणा वीरासणाईया, जीवस्स उ सुहावहा। उग्गा जहा धरिजन्ति, कायकिलेसं तमाहियं ॥ २७ ॥ एगन्तमणावाए, इत्थीपसुविवजिए। सयणासणसेवणया, विवित्तसयणासणं ।। २८ ।। एसो बाहिरगतवो, समासेण वियाहिओ। अन्भिन्तरं तवं एत्तो, वुच्छामि अणुपुत्वसो ॥ २९ ॥ पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं च विउसग्गो, एसो अन्भिन्तरो तवो ॥ ३० ॥
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(१४)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
आलोयणारिहाईयं, पायच्छित्तं तु दसविहं । जं भिक्खू वहई सम्मं, पायच्छित्तं तमाहियं ॥ ३१ ॥ अब्भुट्ठाणं अंजलिकरणं, तहेवासणदायणं । गुरुभत्तिभावसुस्सूसा, विणओ एस वियाहिओ ॥ ३२ ॥ आयरियमाईए, वेयावच्चम्मि दसविहे। आसेवणं जहागामं, वेयावच्चं तमाहियं ॥ ३३ ॥ वायणा पुच्छणा चेव, तहेव परियट्टणा। अणुप्पेहा धम्मकहा, अज्झाओ पञ्चहा भवे ॥ ३४ ॥ अदृरुदाणि वजित्ता, झाएज्जा सुसमाहिए। धम्मसुक्काई झाणाई, झाणं तं तु बुहावए ॥ ३५ ॥ सयणासणठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे । कायस्स विउस्सगो, छट्ठो सो परिकित्तिओ ॥१६॥ एवं तवं तु दुविहं, जे सम्मं आयरे मुणी । सो खिप्पं सबसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिओ ॥ ३७ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ तवमग्गं समत्तं ॥ ३० ॥
॥अह चरणविही एगतीसइमं अज्झयणं ॥ चरणविहिं पवक्खामि, जीवस्स उ सुहावहं । जं चरित्ता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं ॥ १ ॥ एगओ विरई कुजा, एगओ य पवत्तणं । असंजमे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं ॥ २ ॥ रागदोसे य दो पावे, पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्खू रंभई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ३ ॥ दण्डणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू चयई निच, से न अच्छइ मण्डले ॥४॥ दिवे य जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे । जे भिक्खू सहई जयई, से न अच्छइ मण्डले ॥ ५ ॥ विगहाकसायसन्नाणं, झाणाणं च दुयं तहा । जे वजई निन, से न अच्छइ मण्डले ॥६॥ वएसु इन्दियत्थेसु, समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ७ ॥ लेसासु छसु काएस, छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ८ ॥ पिण्डोग्गहपडिमासु, भयहाणेसु सत्तम् । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ९ ॥ मदेसु बम्भगुत्तीसु, भिक्खुधम्मम्मि दसविहे। जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १०॥ उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूणं पडिमासु य। जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ११ ॥ किरियासु भूयगामेसु, परमाहम्मिएमु य । जे भिक्खू जयई निचं, सं न अच्छइ मण्डले ॥ १२ ॥ गाहासोलसएहि, तहा असंजम्मि य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १३ ॥ बम्भम्मि नायज्झणेमु, ठाणेसु य समाहिए। जे भिक्खू जयइ निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १४ ॥ एगवीसाऐ सबले, बावीसाए परीसहे । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १५ ॥ तेवीसाइ सूयगडे, रूवाहिएसु सुरेसु अ । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १६ ॥ पणुवीसभावणासु, उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १७ ॥ मणगारगुणेहिं च, पगप्पम्मि तहेव य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ।। १८ ।। पायमुयपसंगेसु, मोहठाणेसु चेव य । जे भिक्खू जयइ निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १९ ॥ सिद्धाइगुणजोगेसु, तेत्तीसासायणासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ २० ॥ इय एएसु ठाणेसु, जे भिक्खू जयई सया। खिप्पं सो सवसंसारा, विप्पमुञ्चइ पण्डियो ॥ २१ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ चरणविही समत्ता ॥ ३१॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-वतीसमाध्ययनम् ॥ अह पमायठाणं बत्तीसइमं अज्झयणं ॥
अच्चन्तकालस्य समूलगस्स सबस्स दुक्खस्स उ जो पमोक्खो। तं भासओ मे पडिपुण्णचित्ता, सुणेह एगन्तहियं हियत्थं ॥१॥ नाणस्स सबस पगासणाए, अन्नाणमोहस्स विवजणाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥ २॥ तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा, विवज्जणा बालजणस्स दूरा । सज्झायएगन्तनिसेवणा य, सुत्तत्थसंचिन्तणया धिई य ॥ ३ ॥ आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं, सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धिं । नि केयमिच्छेज विवेगजोग्गं, समाहिकामे समणे तवस्सी ॥ ४ ॥ न य लभेजा निउणं सहयं, गुणाहियं वा गुणओ समं वा । एको वि पवाइ विवजयन्ततो, विहरेज कामेसु असज्जमाणो ॥५॥ जहा य अएडप्पभवा बलागा, अण्डं बालागप्पभवं जहा य । एमेव मोहाययणं खु तण्हा, पोहं च तण्हाययणं वयन्ति ॥ ६ ॥ रागो य दोसो विय कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयन्ति । कम्मं च जाइमरणस्स मलं, दुक्खं च जाईमरणं वयन्ति ।। ७ ।। दुक्खं हयं जस्सन होइ मोहो, मोहो हओजस्स न होइ तण्हा । तण्हा हया जस्स न होइ लोहो, लोहो हओ जस्स न किंचणाई ॥ ८ ॥ रागं च दोसं च तहेव मोहं, उद्धत्तु कामेण समूलजालं । जे जे उवाया पडिवजियवा, ते कित्तइस्सामि अहाणुपुच्विं ॥ ९ ॥ रसा पगामं न निसेवियवा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिद्दवन्ति, दुमं जहा साउफलं व पक्खो ॥१०॥ जहा-दवग्गी पउरिन्धणे वणे, समारुओ नोवसमं उवेइ । एविन्दियग्गी वि पगामभोइणो,न बम्भयारिस्स हियायि कस्सई ॥११॥ विवित्तसेज्जासणजन्तियाणं, ओमासणाणं दमिइन्दियाणं । न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराइओ वाहिरिवोसहेहिं ॥१२॥ जहा विरालावसहस्स मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे, न बम्भयारिस्स स्वमो निवासो ॥ १३ ॥ न रूबलावण्णविलासहासं, न जंपियंइंगियपेहियं वा। इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता, द ववस्से समणे तवस्सी ॥ १४ ॥ अदंसणं चेव अपत्थणं च, अचिन्तणं चेव अकित्तणं च । इत्थीजणस्सारियज्माणजुग्गं, हियं सया बम्भवए रयाणं ॥ १५ ॥
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५६)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
कामं तु देवीहि विभूसियाहिं, न चाइया खोभइउं तिगुत्ता । तहा वि एगन्तहियं ति नच्चा, विवित्तचासो मुणिणं पसत्थो ॥१६॥ मोक्खाभिकंखिस्स उमाणवस्स,संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे । नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए, जहित्थिओ बालमणोहराओ ॥ १७॥ एए य संगे समइक्कमित्ता, सुदुत्तरा चेव भवन्ति सेसा । जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गङ्गासमाणा ॥१८॥ कामाणुगिद्धिप्पभवं ख दुक्खं, सबस्स लोगस्स सदेवमस्स । ... जे काइयं माणसियं च किंचि, तस्सन्तगं गच्छइ वीयरागो ॥ १९ ॥ जहा य किम्पागफला मणोरमा, रसेण वण्णेण य भुज्जमाणा । ते खुड्डए जीविय पच्चमाणा, एओवमा कामगुणा विवागे ॥ २० ॥ जे इन्दियाणं विसया मणुन्ना न तेसु भावं निसिरे कयाइ । न यामणुन्नेसु मणं पि कुजा, समाहिकामे समणे तक्स्सी ॥ २१ ॥ चक्खुस्स चक्खं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु. समो य जो तेसु स वीवरागो ॥ २२ ॥ रूवस्स चक्खु गहणं वयन्ति, चक्खुम्स रूवं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स - हेउं अमणुन्नमाहु ॥ २३ ॥ रूवेसु जो गेहिमुवेइ तिवं, अकालियं पावइ से विणासं । । रागाउरे से जह वा पयंगे, आलोयलोले समुवेइ मच्चु ।। २४ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिवं, तंसिक्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किञ्चि रुवं अवरज्झई से ॥ २५ ॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि रूवे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स सम्पीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागा ॥ २६ ॥ रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइ तेणरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तद्वगुरू किलिट्टे ॥ २७ ॥ रूवाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहं सुहं से, वए सम्भोगकाले य अतित्तलामे ॥ २८ ॥ रूवे अतित्ते य परिगहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि । अतुढिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ २९ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रूवे अतितस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा विमुच्चई से ॥ ३० ।। मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, रूवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ३१ ॥ रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किश्चि ।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-बतीसमाध्ययनम् तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निवत्तई जस्स करण दुक्खं ॥ ३२ ॥ एमेव रूवम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ३३ ॥ रूवे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमज्झे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ३४ ॥ सोयस्स सई गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ३५ ॥ सदस्स सोयं गहणं वयन्ति, सोयस्स सदं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेडं अमणुन्नमाहु ॥ ३६॥ सद्देसु जो गेहिमुवेइ तिवं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे हरिणमिगे व मुद्धे सद्दे अतित्ते समुवेइ मच्चु ॥ ३७॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिवं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किञ्चि सदं अवरुज्झई से ॥ ३८ ॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि सद्दे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स सम्पीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ३९ ॥ सद्दाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अतद्वगुरू किलिडे ॥ ४० ॥ सदाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खगसनिओगे । वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥ ४१ ॥ सद्दे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहि । अतुद्विदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ४२ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ४३.॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओय, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, सद्दे अतितो दुहिओ अणिस्सो ॥ ४४ ।। सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निवत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ४५ ॥ एमेव सद्दम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ४६ ॥ सद्दे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पए भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ४७ ॥ घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति, तं राअहेउं तु मणुनमाहु । तं दोसहेउं अमनमाह, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥४८॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला
गन्धस्स घाणं गहणं वयन्ति, घाणस्स गन्धं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ४९ ॥ गन्धेसु जो गेहिमुवेइ तिवं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे ओसहगन्धगिद्धे, सप्पे बिलाओ विव निक्खमंते ॥ ५० ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिवं, तंसिक्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू , न किंचि गन्धं अवरुज्झई से ॥ ५१॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि गन्धे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ५२ ॥ गन्धाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिडे ॥ ५३ ॥ गन्धाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥ ५४ ॥ गन्धे अतिते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुर्हि । अतुद्विदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ५५ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्त हारिणो, गन्धे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुबई से ॥ ५६ ॥ मोसस्स पच्छाय पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, गन्धे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ५७ ॥ गन्धाणुरसस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निवतई जस्स कएण दुक्खं ॥ ५८॥ एमेव गन्धम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ५० ॥ गन्धे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि सन्तो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ६० ॥ जिन्भाए रसं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुनमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेमु स वीयरागो ।। ६१ ।। रसस्स जिन्भं गहणं वयंति, जिन्भाए रसं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुनमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ६२ ॥ रसेसु जो गेहिमुवेइ तिवं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे वडिसविभिन्नकाए, मच्छे जहा आमिसभोगसिद्धे ॥ ६३ ।। जे यावि दोसं समुवेइ तिवं, तंसिक्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि रसं अवरुज्झई से ॥ ६४ ।। एमन्तरत्ते रुहरंसि रसे, अतालिसे से कुणई पओसं
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-बतीसमाध्ययनम् दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥६५॥ रसाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरेहिंसइऽणेगरूवे । चिंत्तेहि ते परितावेइ वाले, पीलेइ अत्तगुरू किलढे ॥ ६६ ॥ रसाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलामे ॥ ६७ ॥ रसे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवे तुहि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ६८॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रसे अदत्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं बड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ६९ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओय, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ७० ॥ रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निवतई जस्स कएण दुक्खं ॥ ७१ ॥ एमेव रसम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तोय चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ७२ ।। रसे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ७३ ॥ कायस्स फासं गहणं वयन्ति, तं रागडेउं तु मणुन्नमाहु। तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥७४ ॥ फासस्स कायं गहणं वयन्ति, कायस्स फासं गहणं वयंति । गगस्स हेउं समणुन्नमाहु दोसस्स हेडं अमणुन्नमाहु ।। ७५ ॥ फासेसु जो गेहिमुवेइ तिवं, अकालिय पावइ से विणासं । रागाउरे सीयजलावसन्ने, गाहग्गहीए महिसे विवन्ने ॥ ७६ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिवं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सपण जन्तू, न किंचि फासं अवरुज्झई से ॥ ७७॥ एगन्तरत्तं रुइरंसि फासे, आतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो॥ ७८ ॥ फासाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । . चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरूकिलिट्ठ ॥ ७९ ॥ फासाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतितलामे ॥ ८ ॥ फासे अतिते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहि । अतुढिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ८१ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो,फासे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ८२ ।। मोसस्स पच्छा य पुरत्थओय, पओगकाले य दुही दुरत्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो,फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ८३ ।। फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो मुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निवतई जस्स कएण दुक्खं ॥ ८४ ॥ एमेव फासम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ८५ ॥ फासे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥८६॥ मणस्स भावं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ८७ ॥ भावस्स मणं गहणं वयन्ति, मणस्स भावं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ८८॥ भावेसु जो गेहिमुवेइ तिवं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे, करेणुमग्गावहिए गजे वा ॥ ८९ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिचं, तंसिक्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि भावं अवरुज्झई से ॥ ९०॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि भावे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ९१ ॥ भावाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ठयुरू किलिडे ॥ ९२ ।। भावाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतितलामे ॥ ९३ ॥ भावे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुद्धि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ९४ ॥ तण्हामिभूयस्स अदत्तहारिणो, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइलोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ९५ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समात्यायन्तों, भावेजतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ९६ ॥ भावांणुरत्तस्स-नरस्स एवं कनों सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवंभोगेविकिले सदुक्ख, निवतेई जम्स कएण दुक्खं ॥ ९७ ॥ एमैव भावम्मि गओ पोस, उबेइ दुक्खोहपरंपराओ।
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-बतीसमाध्ययनम्
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पदुद्दचित्तोय चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ९८ ।। भावे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणी पलासं ॥ ९९ ॥ एविन्दियत्था य मणस्स अत्था,दुक्खस्स हेउं मणुयस्स रागिणो । ते चेव थोवं पि कयाइ दुक्खं, न वीयरागस्स करेन्ति किंचि ॥ १० ॥ न कामभोगा ससयं उवेन्ति, न यावि भोगा विगई उवेन्ति । जे तप्पओसी य परिग्गही य, सो तेमु मोहा विगई उवेइ ॥ १०१ ॥ . कोहं च माणं च तहेव मायं, लोहं दुगुच्छं अरइं रइं च । हासं भयं सोगपुमिथिवेयं, नपुंसवेयं विविहे य भावे ॥ १०२ ।। आवजई एवमणेगरूवे, एवंविहे कामगुणेसु सत्तो। अन्ने य एयप्पभवे विसेसे, कारुण्णदीणे हिरिमे वहस्से ॥ १०३ ।। कप्पं न इच्छिज्ज सहायलिच्छू, पच्छाणुतावे न तवप्पभावं । एवं बियारे अमियप्पयारे, आवजई इन्दियचोरवस्से ॥१०४ ।। तओ से जायन्ति पओयणाई, निमिजिउं मोहमहण्णवम्मि । सुहेसिणो दुक्खविणोयणट्ठा, तप्पच्चयं उज्जमए य रागी॥१०५ ॥ विरजमाणस्स य इन्दियत्था, सद्दाइया तावइयप्पगारा । न तस्स सवे वि मणुन्नयं वा, निवत्तयन्ती अमणुनयं वा ॥ १०६ ।। एवं ससंकप्पविकप्पणासुं, संजायई समयमुवट्ठियस्स । अत्थे असंकप्पयओ तओ से, पहीयए कामगुणेसु तण्हा ॥ १०७ ॥ स वीयरागो कयसबकिचो, खवेइ नाणावरणं खणेणं । तहेव जं दंसणमावरेइ, जं चन्तरायं पकरेइ कम्मं ॥ १०८॥ सवं तओ जाणइ पासए य, अमोहणे होइ निरन्तराए । अणासवे झाणसमाहिजुत्ते, आउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे ॥ १०९ ॥ सो तस्स सबस्स दुहस्स मुक्को, जं वाहई सययं जन्तुमेयं । दीहामयं विप्पमुक्को पसत्थो, तो होइ अञ्चन्तसुही कयत्थो ॥ ११० ॥ अणाइकालप्पभवस्स एसो, सबस्स दुक्खस्स पमोक्खमग्गो । वियाहिओ जं समुविच सत्चा, कमेण अचन्तसुही भवन्ति ॥ १११ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ पमायट्ठाणं समत्तं ॥ ३२॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला.
॥ अह कम्मप्पयडी तेत्तीसइमं अज्झयणं ।
अट्ठ कम्माइं वोच्छामि. आणुपुत्विं जहाकम । जेहिं बद्धो अयं जीवो, संसारे परिवई ॥१॥ नाणस्सावरणिज, दसणावरणं तहा। वेयणिजं तहा मोहं, आउकम्मं तहेव य ॥ २ ॥ नामकम्मं च गोयं च, अन्तरायं तहेव य । एवमेयाइ कम्माइं, अद्वेव उ समासओ ॥ ३ ॥ नाणावरणं पञ्चविहं, सुयं आभिणिबोहि । ओहिनाणं च तइयं, मणनाणं च केवलं ॥ ४ ॥ निद्दा तहेव पयला, निद्दानिदा पयलपयला य । तत्तो यथीणगिद्धी उ, पंचमा होइ नायबा ॥५॥ चक्खुमचक्खूओहिस्स, दसणे केवले य आवरणे । एवं तु नवविगप्पं, नायवं ईसणावरणं ॥ ६ ॥ वेयणीयंपि य दुविहं, सायमसाहियं च अहियं । सायस्स उ बहू भेया, एमेव असायस्स वि ॥ ७ ॥ मोहणिज्जंपि च दुविहं, दंसणे चरणे तहा। दंसणे तिविहं वुत्तं, चरणे दुविहं भवे ॥ ८॥ सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं, सम्मामिच्छत्तमेव य। एयाओ तिनि पयडीओ, मोहणिजस्स दंसणे ॥९॥ चरित्तमोहणं कम्म, दुविहं तं वियाहियं कसायमोहणिजं तु, नोकसायं तहेव य ॥१०॥ सोलसविहभेएणं, कम्मं तु कसायजं । सत्तविहं नवविहं वा, कम्मं च नोकसायजं ॥ ११ ॥ नेरइयतिरिक्खाउं, मणुस्साउं तहेब य । देवाउयं चउत्थं तु, आउं कम्मं चउन्विहं ॥ १२॥ नामं कम्मं तु दुविहं, सुहममुहं च आहियं । सुभस्म उ बहू भेया, एमेव अमुहस्स वि ॥ १३॥ गोयं कम्मं दुविहं, उच्चं नीयं च आहियं । उच्चं अट्ठविहं होइ, एवं नीयं पि आहियं ॥ १४ ॥ दाणे लामे य भोगे य, उवभोगे वीरिए तहा । पञ्चविहमन्तरायं, समासेण वियाहियं ॥ १५॥ एयाओ मूलपयडीओ, उत्तराओ य आहिया । पएसग्गं खेत्तकाले य, भावं च उत्तरं सुण ॥ १६ ॥ सवेसिं चेत्र कम्माणं, पएसग्गमणन्तगं । गणिठयसत्ताईये, अन्तो सिद्धाण आहियं ॥ १७ ॥ सबजीवाण कम्मं तु, संगहे छद्दिसागयं । सवेसु वि पएसेसु, सवं सव्वेण बद्धगं ॥ १८ ॥ उदहीसरिसनामाण, तीसई कोडिकोडिओ । उक्कोसिय टिई होइ, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १९ ॥ आवरणिज्जाण दुहंपि, वेयाणिज्जे तहेव य । अन्तराए य कम्मम्मि, ठिई एसा वियाहिया ॥२०॥ उदहोमरिसनामाण, सत्तर कोडिकोडीओ । मोहणिजस्स उ कोसा, अ तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ २१ ॥ तेत्तीस सागरोवमा, उक्कोसेण वियाहिया । ठिई उ आउकम्मस्स, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ २२ ॥ उदहीसरिसनामाण, वीसई कोडिकोडीओ । नामगोताणं उक्कोसा, अट्ट मुहुत्ता जहनिया ॥ २३ ।। सिद्धाणणन्तभागो य, अणुभागा हवन्ति उ । सम्बेसु वि पएसग्गं, सबजीवे अइच्छियं ॥ २४ ॥ तम्हा एएसि कम्माणं, अणुभागा वियाणिया । एएसि संवरे चेव, खवणे य जए बृहो ॥ २५ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ कम्मप्पयडी समत्ता ॥ ३३ ।।
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श्री उत्तराध्ययनसूत्र - चोत्तीस माध्ययनम्
॥ अह लेसज्झयणं चोत्तीसइमं अज्झयणं ॥
(६३)
४ ॥
लेसज्झयणं पवक्खामि, आणुपुविं जहकमं । छण्हंपि कम्म लेसाणं, अणुभावे सुहेण मे ॥ १ ॥ नामाई वण्णरसगन्धफासपरिणामलक्खणं । ठाणं ठिई गई चाउं, लेसाणं तु सुणेह मे || २ || कहा नीला य काऊ, तेऊ पहा तहेव य । सुक्कलेसा य छट्ठा य, नामाई तु जहक्कमं ॥ ३ ॥ जीसूपनिद्धसंकासा, गवलरिट्ठगसन्निभा । खंजणनयणनिभा, किण्हलेसा उ वण्णओ ॥ नीला सोगसं कासा, चास पिच्छ समप्पभा । वेरुलियनिद्धसंकासा, नीललेसा उ वण्णओ ॥ ५ ॥ oranges संकामा कोइलच्छदसन्निभा । सुयतुण्ड पईवनिभा, काउलेसा उ वण्णओ || ६ || हिंगुल घाउ संकासा, तरुणाइच्चसन्निभा । सुयतुण्ड पईवनिभा, तेऊलेसा उवण्णओ ॥ ७ ॥ हरियाल मेयसंकासा, हलिदाभेयसमप्पभा सणासणकुसुमनिभा पम्हलेसा उ वण्णओ ॥ ८ ॥ संकुन्दसङ्कासा, खीरपूरसमप्पभा । रयणहारसंकासा, सुकलेसा उवण्णओ ॥ ९ ॥ जह कडुयतुम्बगरसो, निम्बरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो य कि हाए नायवो ॥ १० ॥ जह तिगडुयस्स य रसो, तिक्खो जह हत्थिपिप्पलीए वा । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ नीलाए नायवी ॥ ११ ॥ जह परिणअम्बगरसो, तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ काऊण नायव्वो ॥ १२ ॥ जह परिणयम्बगरसो, पक्ककविट्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ तेऊण नाय वो ॥ वरवारुणीए वारसो, विविहाण व आसवाण जारिसओ ।
१३ ॥
१५ ।।
॥
१६ ॥
॥
१७ ॥
महुमेरयस्स व रसो, एतो पम्हाए परएणं ।। १४ । खज्जूमुद्दियरसो, खीररसो खंडसक्करसो वा । एत्तो वि अनंतगुणो, रसो उ सुक्काए नायवी ।। जह गोमडस्स गंधो सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स। एत्तो वि अनंतगुणो, लेसाणं जप्पमत्थाणं जह सुरहिकुसुमगंधो, गंधवासाण पिस्समाणाणं । एत्तो वि अनंतगुणो, पसत्थलेसाण तिन्हं पि जह करगयस्स फासो, गोजिन्भाए य सागपत्ताणं । एत्तो वि अनंतगुणो, लेसाणं अपहत्थाणं ॥ जह बूरस्स व फासो, नवणीयस्म व सिरीस कुसुमाणं । एत्तो वि अणतगुणो, पसत्थलेसाण तिण्हंपि ।। तिविहो व नवविहोवा, सत्तावीसइवि हेक्कसीओ वा । दुसओ तेयालो वा, लेसाणं होइ परिणामो ॥ पंचासवप्पवतो, तीहिं अगुत्तो छसुं अविरओ य। तिवारंभ परिणओ, खुड्डो साहसिओ नरो ॥ २१ ॥ निद्धन्धसपरिणामो, निस्संसो अजिइन्दिओ । एयजोगस माउत्तो, किण्हलेसं तु परिणमे ॥ २२ ॥ इस्ता अमरिस चतवो, अविज्जमाया अहीरिय । गेही पओसे य सढे, पमत्ते रसलोलुए || २३ || सागवेस य आरम्भाओ अविरओ, खुड्डी साहस्सिओ नरो। एयजोगसमाउत्तो, नीललेसं तु परिणमे २४ के कसमायारे, नियड्डिले अणुज्जुए । पलिउंचगओवहिए, मिच्छदिट्ठी अणारिए || २५ ॥ उष्फासगदुदुवाई य, तेणे यावि य मच्छरी । एयजोगसमाउत्तो, काऊलेसं तु परिणमे ॥ २६ ॥
२० ॥
१८ ॥
१९ ।।
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(६४)
श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
परिणमे ॥ उवहाणवं ॥ परिणमे ॥
२९ ॥
३० ॥
३१ ॥
३२ ॥
॥
३५ ।।
३६ ॥
॥
३७ ॥
३९ ।।
४० ॥
नीयावती अचबले, अमाई अकुऊहले । विणीयविणए दन्ते, जोगवं उवहाणवं ॥ २७ ॥ पियधम्मे दधम्मेऽवज्जभीरू हिएसए । एयजोगसमाउत्तो, तेउलेसं तु २८ ॥ पणुको हमाणे य, मायालोभे य पयणुए । पसन्तचित्ते दन्तप्पा, जोगवं तहा पयणुवाई य, उवसन्ते जिइन्दिए । एयजोगसमाउत्तो, पम्हलेसं तु अट्ठरुद्दाणि वज्जित्ता, धम्मसुक्काणि झायए । पसन्तचित्ते दन्तप्पा, समिए गुत्ते य गुत्तिसु ॥ सरागे वीयरागे वा, उवसन्ते जिइन्दिए । एयजोगसमाउत्तो, सुक्कलेसं तु परिणमे || असंखिजाणोसप्पिणीण, उस्सप्पिणीण जे समया । संखाईया लोगा, लेसाण हवन्ति ठाणाई ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसा सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायवा किण्हलेस ए मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस उदही पलियमसंखभागन्भहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा नीललेसाए ।। मुद्धं तु जहन्ना, तिष्णुदही पलियमसंखभागम भहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायच्चा काउलेसाए ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दोष्णुदही पलियमसंखभागमन्भहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा तेउले साए मुद्धं तु जहन्ना, दस होन्ति य सागरा मुहुत्तहिय । उक्कोसा होइ ठिई, नायवा पहले|ए मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा सुकलेसाए । एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई वष्णिया होइ। चउसु वि गईसु एत्तो, लेसाण ठिई तु वोच्छामि ॥ दस वास सहरसाई, काऊए ठिई जहन्निया होइ। तिष्णुदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥ तिण्णुदही पलिओम संखभागो जहन्नेण नील ठिई। दस उदही पलिओम असंखभागं च उक्कोमा ॥ दसउदही पलिओ मअसंखभगं जहन्निया होइ। तेत्तीससागराई उक्कोसा, होइ किण्हाए लेसए एसा रइयाणं, लेसाण ठिई उ वण्णिा होइ । तेण परं वोच्छामि, तिरियमणुस्साण देवाणं अन्तोमुहुत्तमद्धं, लेलाण जहिं जहिं जाउ । तिरियाण नराणं वा, वज्जित्ता केवलं लेसं मुद्धं तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुक्कोडीओ । नवहि वरिसेहि ऊणा, नायवा कसुलेसा ॥ एसा तिरियनराणं, लेसाण ठिई उ वणिया हो । तेण परं वोच्छामि, लेसाण ठिईउ देवाणं ॥ ४७ ॥ दस वाससहस्सई, किण्हाए ठिई जहन्निया होइ । पलियम संखिज्ज इमो, उक्कोसो होइ कहाए ॥ ४८ ॥ जा किन्हाए ठिई खल, उक्कोसा साउ समयमग्भहिया । जहन्नेणं नीलाए, पलियमसंखं च उक्कोसो ॥ ४९ ॥ जा नीसाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमम्भहिया । जहन्नेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा ।। ५० ।।
४१ ॥
४२ ॥
४३ ॥
॥
४४ ॥
॥
४५ ॥
४६ ॥
५१ ॥
॥
५२ ॥
ते परं वोच्छामि, तेजलेसा जहा सुरगाणं । भवणवइवाणमन्तरजोइस वेमाणियाणं च ॥ पलिओवमं जहन्नं, उक्कोसा सागरा उ दुन्नंहिआ । पलियमसंखेज्जेणं, होइ भागेण तेऊए दस वास सहरसाईं, तेऊए ठिई जहन्निया होइ। दुन्नुदही पलिओवमअसंखभागं च उक्कोसा ॥ जा तेंऊण ठिई खलु, उक्कोसा साउ समयमन्भहिया । जहन्नेणं पम्हाए, दस उ मुहुचाहियाइ उक्कोसा ॥ ५४ ॥
५३ ॥
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३३ ॥
३४ ॥
३८ ||
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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र - चोत्तीस माध्ययनम्
(६५)
५५ ॥
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५६ ॥
५७ ॥
जा पहाए ठिई खल, उक्कोसा सा उ समयमन्भहिया । जहन्त्रेणं सुक्काए, तेत्तीस मुहुत्तमन्भहिया ॥ किण्हा नीला काऊ, तिन्नि वि एयाओ अहंमलेसाओ । एयाहि तिहिवि जीवो, दुग्गइं उववजई तेऊ पहा सुक्का, तिन्निवि एयाओ धम्मलेसाओ। एयाहि तिहिवि जीवो, सुग्गइं उववज्जई ॥ साहिं सवाहिं, पढमे समयमिं परिणया हिं तु । न हु कस्सइ उववाओ, परे भने अस्थि जीवस्स ।। ५८ ॥ लेसाहिं सवाहिं, चरिमे समयमिं परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववाओ. परे भवे होइ जीवस्स ।। ५९ ॥ अन्तमुहुत्तम्मि गए अन्तमुहुत्तम्मि सेसए चैव । लेसाहि परिणय । हिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥ ६० ॥ तम्हा यासि लेसाणं, आणुभावे वियाणिया । अप्पसत्थाओ वज्जित्ता, पसत्थाओ हिट्टिए मुणि ॥ त्ति बेमि ॥ इअ लेसज्झयणं समत्तं ॥ ३४ ॥
६१ ॥
|| अह अणगारज्झयणं णाम पंचतीसइमं अज्झयणं ।
सुण मे एगग्गमणा, मग्गं बुद्धेहि देखियं । जमायरन्तो भिक्खू, दुक्खाणन्त करे भवे ॥ १॥ गिहवासं परिच्चज्ज, पवज्जामस्सिए मुणी । इमे संगे वियाणिज्ज, जेहिं सज्जन्ति माणवा ॥ २ ॥ तदेव हिंसं अलियं, चोजं अबम्भसेवणं । इच्छाकामं च लोभं च, सज्जओ परिवज्जए ॥ ३॥ मणोहरं चित्तधरं, मल्लधूवेण वासियं । सकवाडं पण्डुरुल्लोचं, मणसावि न पत्थए ॥ ४ ॥ इन्दियाणि उ भिक्खुस, तारिसम्म उवस्सए । दुक्कराई निवारे, कामरागविवडणे ॥ ५ ॥ सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इक्कओ । पइरिक्के परकडे वा, वासं तत्थाभिरोय || ६ || फासुम्मि अणाबाहे, इत्थीहिं अणभिदुए | तत्थ संकप्पr वासं भिक्खू परमसंजए || ७ || न सयं गिहाई कुविना क्षेत्र अन्नेहिं कारए । गिहकम्मसमारम्भे, भूयाणं दिस्सए वहो ॥ ८ ॥ तसाणं थावराणं च सुहुमाणं बादगण य । तम्हा गिहसमारम्भं, संजओ परिवज्जए ॥ ९ ॥ तहेत्र भत्तपाणेसु, पयणे पयावणेसु य । पाणभूयदयडाए, न पए न पयावए ॥ जलधननिस्सिया जीवा, पुढवीकट्ठनिस्सिया । हमन्ति भत्तपाणेसु तम्हा भिक्खू न पयावर ॥ विसप्पे सओ धारे, बहुपाणिविणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए ।। हिरणं जायख्वं च, मणसा वि न पत्थए । समलेट्ठकंचणे भिक्खू, विरए कयविकए || किन्तो कओ होइ, विक्किणन्तो य वाणिणो । कयविक्कयम्मि वट्टन्तो, भिक्खू न भवइ तारिसी ॥ भिक्खियचं न केयवं, भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा । कयविकओ महादोसो, भिक्खवत्ती सुहावहा ।। समुयाणं उंछ मेसिज्जा, जहासुत्तमणिन्दियं । लाभालाभम्मि संतुट्ठे पिण्डवायं चरे मुणी ॥ अलीले न रसे गिद्धे, जिग्भादन्ते अमुच्छिए । न रसट्ठाए भुंजिज्जा, जत्रणट्ठाए महामुणी ॥ अच्चणं रणं चैव वन्दणं पूयणं तहा । इड्डीमक्कारसम्माणं, मणमा वि न पत्थए । सुकझाणं झियाज्जा, अणियाणे अकिंचणे । वोसट्टकाए विहरेज्जा, जाव कालस्स पजओ || १९ ॥ निज्जू हिऊण आहारं, कालधम्मे उबट्ठिए । जहिऊण माणुसं बोन्दि, पहू दुक्खे विमुच्चई || २० | निम्मे निरहंकारे, वीयरागो अणासवो । संपत्तो केवलं नाणं, सासयं परिणिव्वुए ।। २१ ॥ त्ति बेमि || इअ अणगारज्झयणं समत्तं ॥ ३५ ॥
१३ ॥
१४ ॥
१५ ।।
१६ ॥
१७ ॥
१८ ।
1
१० ॥ ११ ॥
१२ ।
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
॥ अह जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं ।
जीवाजीवविभत्ति, सुणेड मे एगमणा इओ । जं जाणिऊण भिक्खू , सम्म जयइ संजमे ॥ १ ॥ जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए । अजीवदेसमागासे, अलोगे से वियाहिए ॥ २॥ दव्वओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा । परूवणा तेसि भवे, जीवाणमजीवाण य ॥ ३॥ रूविणो चेवरूवी य, अजीवा दुविहा भवे । अरूबी दसहा वुत्ता, रूविणो य चउबिहा ॥ ४ ॥ धम्मत्थिकाए तद्देसे, तप्पएसे य आहिए । अहम्मे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए ॥ ५ ॥ आगासे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए । अद्धासमए चेव, अरूवी दसहा भवे ॥६॥ धम्माधम्मे य दो चेव, लोगमित्ता वियाहिया। लोगालोगे य आगासे, समए समयखेत्तिए ॥ ७॥ धम्माधम्मागासा, तिन्निवि एए अणाइया । अपज्जवसिया चेव, सव्वद्धं तु वियाहिया ॥८॥ समएवि सन्तइं पप्प, एवमेव वियाहिए । आएसं पप्प साईए, सप्पन्जवसिएवि य ॥९॥ खन्धा य खन्धदेसा य, तप्पएसा तहेव य । परमाणुणो य बोधवा, रूविणो य चउबिहा ॥ १० ॥ एगत्तेण पुहत्तेण, खन्धा य परमाणुणो । लोएगदेसे लोए य, भइयचा ते उ खेत्तओ ॥ ११ ॥
___ इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउविहं ॥ १२ ॥ संतई पप्प तेऽणाई, अप्पज्जवसियावि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपन्जवसिया वि य ॥ १३ ॥ असंखकालमुक्कोसं,एको समओ जहन्नयं । अजीवाण य रूवीण, ठिई एसा वियाहिया ॥ १४ ॥ अणन्तकालमुक्कोसमेको, समओ जहन्नयं । अजीवाण य रूवीण, अन्तरेयं वियाहियं ॥ १५ ॥ वण्णओ गन्धओ चेव,रसओ फासओ तहा। संठाणओ य विनओ, परिणामो तेसि पंचहा ॥ १६ ॥ वण्णओ परिणया जे उ,पञ्चहा ते पकित्तिया। किण्हा नीला य लोहिया,हलिद्दा सुकिला तहा ॥ १७॥ गन्धओ परिणया जे उ,दुविहा ते वियाहिया। सुब्भिगन्धपरिणामा,दुब्भिगन्धा तहेव य ॥ १८ ॥ रसओ परिणया जे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया । तित्तकडुयकसाया, अम्बिला महुरा तहा ॥ १९ ।। फासओ परिणया जे उ, अट्टहा ते पकित्तिया। कक्खडा मउआ चेव, गरुया लहुवा तहा ॥ २० ॥ सोया उण्हा य निद्धा य,तहा लुक्खा य आहिया। इय फासपरिणया एए,पुग्गला समुदाहिया ॥२१॥ संठाणओ परिणयाजे उ, पञ्चहा ते पकित्तिया। परिमएडला य वट्टा य, तंसा चउरंसमायया ॥ २२ ॥ वण्णओ जे भवे किण्हे, भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २३ ॥ वण्णओ जे भवे नीले, भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २४ ॥ वण्णओ लोहिए जे उ, भइए से उ गन्धओ। रसओ फासओ चेव भइए संठाणओवि य ॥ २५ ॥ वण्णवो पीयए जे उ, भइए से उ गन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। २६ ॥ वण्णओ सुकिले जे उ, भइए से उ अन्धओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २७ ॥ गन्धओ जे भवे सुब्भी, भइए से उ वण्णओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ २८ ॥ गन्धओ जे भवे दुम्भी, भइए से उ बण्णओ। रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ।। २९ ।। रसओ तित्तए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३०॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र- छतीस माध्ययनम्
३७ ॥
३८ ॥
३९ ॥
४० ॥
ओ कडुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३१ ॥ रसओ कसा जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३२ ॥ रसओ अम्बिले जे उ. भइए से उ वण्णओ । गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओविय ॥ ३३ ॥ रसओ महुरए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३४ ॥ फासओ कक्खडे जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चैव भइए संठाणओवि य ।। ३५ ।। फासओ भइए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य || ३६ ॥ फासए गुरूए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चैव, भइए संठाणओवि य ॥ फासओ लहुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ फासए सीए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ फासओ उन्ह जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ फासओ निद्धए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ फासओ लक्खए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ परिमण्डलसंठाणे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चैव, भइए से फासओवि य ॥ संठाणओ भवे वट्टे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ संठाणओ भवे तंसे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ठाणओ जे चउरंसे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चैव, भइए से फासओवि य ॥ जे आययसंठाणे, भइए से वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ एसा अजीवविभत्ती, समासेण वियाहिया । इत्तो जीवविभत्ति, वुच्छामि अणुपुवसो । संसारत्थाय सिद्धाय, दुविहा जीवा वियाहिया । सिद्धाणेगविहा वृत्ता, तं मे कियतओ सुण ॥ इत्थो पुरिससद्धा य, तहेव य नपुंसगा । सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिंगे तहेव य उक्कोसोगाहणाए य, जहन्नमज्झिमाह य । उड्डुं अहे तिरियं च समुद्दम्मि जलम्मि य ॥ दस य नपुंसएसु. वीसं इत्थियासु य । पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झई ।। चत्तारिय गिहलिंगे, अन्नलिंगे दसेव य । सलिंगेण अट्ठसय, समएगेण सिज्झई ॥ उकोसो गाहणाए य, सिज्झन्ते जुगवं दुवे । चत्तारि जहन्नाए, मज्झे अट्टुत्तरं सयं ॥ चउरुलो यदुवे समुद्दे, तओ जळे वीसमहे तहेव य । सयं च अद्भुत्तरं तिरियलोए, समणेगेण सिज्झई धुवं ॥
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४७ ॥
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५३ ॥
५४ ॥
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॥ ५५ ॥
कहिँ पडिहया सिद्धा, कहिं सिद्धा पइट्टिया । कहिं बोन्दि, चइत्ताणं, कत्थ गन्तूण सिज्झई || ५६ ॥ आलोए पहिया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्टिया । इहं बोन्दि चइत्ताणं, तत्थ गन्तूण सिज्झई ॥ ५७ ॥ चारसहिं जोयणेहिं, सङ्घट्टस्सुवरिं भवे । ईसिप भारनामा, पुढवी छत्तसंठिया ॥ ५८ ॥ पणयालसय सहस्सा, जोयणाणं तु आयया । तावइयं चैव वित्थिष्णा, तिग्गुणो तस्सेव परिसणो ॥ ५९ ॥ अजोयणबाहुला, सा मज्झम्मि वियाहिया । परिहायन्ती चरिमन्ते, मच्छिपत्ताउ तणुयरी ।। ६० ।। अज्जुण सुवण्णगमई, सा पुढवी निम्मला सहावेण । उत्ताणगच्छत्तगसंठिया य, भणिया जिणवरेहिं ॥ ६१ ॥
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(६८)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला संखककुंदसंकासा, पण्डुरा निम्मला सुहा। सीयाणे जोयणे तत्तो, लोयन्तो उ वियाहिओ ॥ ६२॥ जोयणस्स उ जो तत्थ, कोसो उवरिमो भवे। तस्स कोसस्स सब्भाए, सिद्धाणोगाहणा भवे ॥ ६३ ।। तत्थ सिद्धा महाभागा, लोगग्गम्मि पइट्ठिया। भवपपंचओ मुक्का, सिद्धिं वरगई गया ॥ ६४ ॥ उस्सेहो जेसिं जो होइ, भवम्मि चरिमम्मि उ । तिभागहीणो तत्तो य, सिद्धाणोगाहणा भवे ॥ ६५ ।। एगत्तेण साईया, अपज्जवसियावि य । पुहत्तेण अणाइया, अपजसियावि य ॥ ६६ ।। अरूविणो जीवघणा, नाणदंसणसन्निया । अउलं सुहं संपन्ना, उवमा जस्स नत्थि उ ॥ ६७ ॥ लोगेगदेसे ते सवे, नाणदंसणसन्निया । संसारपारनित्थिण्णा, सिद्धिं वरगई गया ॥ ६८ ॥ संसारत्था उ जे जीवा, दुविहा ते वियाहिया । तसा य थावरा चेव, थावरा तिविहा तहिं ॥ ६९ ॥ पुढवी आउजीवा य, तहेव य वणस्सई । इच्चेए थावरा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ ७० ॥ दुविह पुढवीजीवा य, मुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ ७१ ।। बायरा जे उ पन्नता, दुविहा ते वियाहिया । सहा खरा य बोधवा, सण्हा सत्तविहा तहिं ।। ७२ ।। किण्हा नीला य रुहिरा य, हलिद्दा सुकिला तहा । पण्णुपणगमट्टिया, खरा छत्तीसईविहा || ७३ ।।
पुढवी य सकरा बालुया य, उबले सिला य लोणूसे । अय-तम्ब तउय-सीसग-रुप्प-सुवण्णे य वइरे य ॥
॥१४॥ हरियाले हिंगुलुए, मणोसिला सासगंजण-पवाले । अब्भपडलब्भवालय, बायरकाए मणिविहाले ॥
॥ ७५ ॥ गोमेजए य रुयगे, अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय मसारगल्ले,भुयमोयग-इन्दनीले य ॥ ७६ ॥ चन्दण गेरुय हंसगब्मे, पुलए सोगन्धिए य बोधवे। चन्दप्पहवेरुलिए, जलकन्ते सूरकन्ते य ॥ ७७ ॥ एए खरपुढवीए, भेया छत्तीसमाहीया । एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया ॥ ७८ ॥ सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउविहं ॥ ७९ ॥ संतई पप्णाईया, अपञ्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपन्जवसियावि य ॥ ८॥ बावीससहस्साई, वासाणुकोसिया भवे । आउठिई पुढवीणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ।। ८१॥ असंखकालेमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पुढवीणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ ८२ ।। अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमहत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए. पुढविजीवाण अन्तरं ॥ ८३ ।। एएसं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफसओ। संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ ८४ ।। दुविहा आऊजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ।। ८५ ॥ बायरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदए य उस्से, हरतणू महिया हिमे ॥ ८६ ॥ एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया । मुहुमा सबलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा ।। ८७ ॥ सन्तई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि। ठिई पडद्य साईया, सपज्जवसियावि य ॥ ८८ ॥ सत्तेव सहस्साई, वासाणुकोसिया भवे । आइठिई आऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ।। ८९ ॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई आऊणं. तं कायं तु अमुंचओ ॥ ९० ॥ अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, आऊजीवाण णन्तरं ॥ ९१ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ ९२ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-छतीसमाध्ययनम्
दुविहा वणस्सईजीवा, सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुणो ।। ९३ ॥ बायरा जे उ पजत्ता, दुविहा ते वियाहिया। साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य ॥ ९४ ॥ पत्तेगसरीराओऽणेगहा ते पकित्तिया। रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा ॥ ९५ ॥ चलया पवगा कुहुणा, जलरुहा ओसही तहा । हरियकाया बोधवा, पत्तेगाइ वियाहिया ॥ ९६ ॥ साहारणसरीराओऽणेगहा ते पकित्तिया। आलुए मूलए चेव, सिंगबेरे तहेव य ॥ ९७ ॥ हरिली सिरिली सस्सिरिली, जावई केयकन्दली । पलण्डुलसणकन्दे य, कन्दली य कुडुंवए ॥९८॥ लोहिणीहू य थीहू य, कुहगा य तहेव य । कन्दे य वजकन्दे य, कन्दे सूरणए तहा ॥ ९९ ॥ सस्सकणी य बोधवा, सीहकण्णी तहेव य । मुसुण्ढी य हलिद्दा, य णेगहा एवमायओ ॥१०॥ एगविहमणाणत्ता, मुहुमा तत्थ वियाहिया सुहुमा सबलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा ॥ १०१ । संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपञ्जवसियावि य ॥ १०२ ॥ दस चेव सहस्साई, वासाणुकोसिया पणगाणं । वणप्फईण आउं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १०३ ।। अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पणगाणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १०४ ॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, पणगजीवाण अन्तरं ॥ १०५ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १०६ ॥ इच्चए थावरा तिविहा, समासेण वियाहिया। इत्तो उ तसे तिविहे, वुच्छामि अणुपुत्वसो ॥ १०७॥ तेऊ वाऊ य बोधबा, उराला य तसा तहा । इच्चेए तसा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १०८ ॥ दुविहा तेऊजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ १०९ ॥ बायरा जे उ पज्जत्ताणेगहा ते वियाहिया। इंगाले मुम्मुरे अगणी, अच्चिजाला तहेव य ॥११॥ उक्का विज्जू य बोधवा णेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता, मुहुमा ते वियाहिया ॥ १११॥ मुहुमा सबलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु. तेसिं वुच्छं चउविहं ॥ ११२ ॥ संतई पप्पणाईया, अपजवसियावि य । ठिई पडुच्च साइया, सपजवसियावि य ॥ ११३ ॥ तिण्णेव अहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई तेऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ ११४ ॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुतं जहन्नयं । कायठिई तेऊणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ ११५ ।। अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, तेऊजीवाण अन्तरं ॥ ११६ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ ११७ ।। दुक्हिा वाउजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पन्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ ११८ ॥ बायरा जे उ पज्जत्ता, पञ्चहा ते पकित्तिया। उक्कलिया भण्डलिया, घणगुज्जा सुद्धवाया य ।। ११९ ॥ संवदगवाया यणेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया ॥ १२० ।। मुहुमा सबलोगम्मि, एगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउविहं ।। १२१ ॥ सन्तइं पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ १२२ । तिण्णेव सहस्साइं, वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई काऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १२३ ।। असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई वाऊणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १२४ ॥ अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, काऊजीवाण अन्तरं ॥ १२५ ।।
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(७०)
श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला
एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो ॥ १२६ ॥ उराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया । बेइन्दिय-तेइन्दिय-चउरो पंचिन्दिया चेव ॥ १२७॥ बेइन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तमपज्जत्ता, तेसिं मेए सुणेह मे !! १२८ ॥ किमिणो सोमंगला चेव, अलसा माइवाहया। वासीमुहा य सिप्पिया, संख संखणगा तहा ॥ १२९ ॥ घल्लोयाणुल्लया चेव, तहेव य वराडगा । जलुगा जालगा चेव, चन्दणा य तहेव य ॥ १३० ॥ इइ बेइन्दिया एएऽणेगहा एयमायओ। लोगेगदेसे ते सत्वे, न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १३१ ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपञ्जवसियावि य ॥ १३२ ॥ वासाइं बारसा चेव, उक्कोसेण वियाहिया । बेइन्दियआउठिई अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १३३ ॥ संखिजकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १३४ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियजीवाणं, अन्तरं च वियाहियं ॥ १३५ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १३६ ॥ तेइन्दिया उजे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १३७ ॥ कुन्थुपिवीलिउडंसा, उक्कलेदेहिया तहा । तणहारकट्ठहारा य, मालुरा पत्तहारगा ।। १३८ ।। कप्पासहिम्मि जायन्ति, दुगा तउसमिंजगा। सदावरी य गुम्भी य, बोधवा इन्दगाइया ॥ १३९ ॥ इन्दगोवगमाईयाणेगहा एवमायओ। लोगेगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १४० ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिई पड्डुच्च साईया, सपजवसियावि य ॥ १४१ ॥ एगूणपण्णहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । तेइन्दियआउठिई, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १४२ ॥ संखिजकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ।। १४३ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियजीवाणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १४४ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्सजो ।। १४५ ॥ चउरिन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया। पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १४६॥ अन्धिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा। भमरे कीडपयंगे य, ढिंकुणे कंकणे तहा ॥ १४७॥ कुक्कुडे भिंरीडी य, नन्दावत्ते य विच्छुए । टोले भिंगारी य, वियडी अच्छिवेयए ॥ १४८ ॥
अच्छिले माहए अच्छिरोडए, विचित्ते चित्तपत्तए ।
उहिंजलिया जलकारी य, नीया तन्तवयाइया ॥ ॥१४९ ॥ इय चउरिन्दिया, एएऽणेगहा एवमायओ । लोगेगदेसे ते सके, न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १५० ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ १५१ ।। छच्चेव मासाऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउरिन्दिदयआउठिई, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १५२ ॥ संखिज्जकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १५३ ॥ अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियजीवाणं, अन्तरं च वियाहियं ॥ १५४ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥ १५५ ।। पंचिन्दिया उजे जीवा, चउबिहा ते वियाहिया। नेरइयतिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया ॥ १५६ ॥ नेरइया सत्तविहा, पुढवीसु सतसू भवे । रयणाभसकराभा, वालुयाभा य आहिया ॥ १५७ ॥
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HUTHIHAN WHO
श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-छत्तीसमाध्ययनम्
(७१) पंकामा धूमाभा, तमा तमतमा तहा। इइ. नेरइया एए, सत्तहा परिकित्तिया ॥ १५८ ॥ लोगस्स एगदेसम्मि, ते सत्वे उ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउविहं ॥ १५९ ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साइया, सपन्जवसियावि य ॥ १६०॥ सागरोवममेगं तु, उक्कोसेण वियाहिया। पढमाए जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥ १६१ ॥ तिण्णेव सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । दोचाणं जहन्नणं, एगं तु सागरोवमं ॥ १६२ ॥ सत्तेव सागरा ऊ, उक्कोसेण विगाहिया । चउत्थीए जहन्नेण, तिण्णेव सागरोवमा ॥ १६३ ॥ दस सागरोवमा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया। चउत्थीए जहन्नेणं, सत्तेव सागरोवमा ॥ १६४ ॥ सत्तरस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउत्थीए जहन्नेणं, सत्तेव नागरोवमा ॥ १६५ ॥ बावीस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । छट्ठीए जहन्नणं, सत्तरस सागरोवमा ॥ १६६ ॥ तेत्तीस सागरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया। सत्तमाए जहन्नेणं, बावीसं सागरोवमा ॥ १६७ ॥ जा चेव य आयठिई, नेरइयाणं वियाहिया। सा तेसिं कायठिई, जहन्नुकोसिया भवे ॥ १६८॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्त जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, नेरइयाण अन्तरं ॥ १६९ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १७० ।।
पंचिन्दियतिरिक्खाओ, दुविहा ते वियाहिया ।। समुच्छिमतिरिक्खाओ, गम्भवकन्तिया तहा ॥
॥१७१ ॥ दुविहा ते भवे तिविहा, जलयरा थलयरा तहा। नहयरा य बोधवा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १७२ ॥ मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा । सुसुमारा य बोधवा, पंचहा जलहराहिया ॥ १७३ ।। लोएगदेसे ते सबे, न सवण्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउविहं ॥ १७४ ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ १७५ ॥ एगा य पुत्वकोडी, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई जलयराण, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १७६ ।। पुवकोडिपुहत्तं तु, उक्कोसेण वियाहिया । कायट्टिई जलयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ १०७ ।। अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, जसयराणं अन्तरं ॥ १७८ ॥ चउप्पया य परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे । चउप्पया चउविहा, ते मे कियनओ सुण ॥ १७९ ॥ एगखुरा दुखुरा चेव, मण्डीपयसणहप्पया। हयमाइगोणमाइगयमाइसीहमाइणो ॥ १८० ।। भुओरगपरिसप्पा य, परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई गहिमाई य, एकेकाणेगहा भवे ॥ १८१ ।। लोएगदेसे ते सव्वे, न सत्वत्थ वियाहिया। एत्तो कालविभागं तु, वोम्छ तेसिं चरव्विहं ॥ १८२ ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ १८३ ॥ पलिओवमाई तिण्णि उ, उक्कोसेण वियाहिया। आउठिई थलयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १८४ ॥ पुवकोडिपुहत्तेणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया । कायठिई थलयराणं, अन्तरं तेसिमं भवे ॥ १८५ ।। कालमणन्तमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, थलयराणं तु अन्तरं ॥ १८६ ॥
___ चम्मे उ लोमपक्खी य, तइया समुग्गपक्खिया।
विययपक्खी य बोधवा, पक्खिणो य चउव्विहा ॥ ॥१८७ ॥ लोगेगदेसे ते सवे, न सवत्थ वियाहिया। इत्तो कालविभागं तु, वोच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ १८८॥
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(७२)
श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला.
॥
संतई पप्पाईया, अपज्जवसियावि य | ठिई पहुच साईया, सपज्जवसियाविय ॥ पलिओवमस्स भागो, असंखेज्जइमो भवे । आउठिई खहयराणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ असंखभाग पलियस्स, उक्कोसेण उ साहिया । पुचकोडीपुहत्तेणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ ठिई खयराणं, अन्तरे तेसिमे भवे । कालं अणन्तकोसं, मुकोर्स, अन्तोमुहुत्तं, जहन्नयं ॥ refसं वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ मणुया दुविहया उते मे कित्तयओ सुण । संमुच्छिमा य मणुया, गन्भक्कन्तिया तहा ।। भवन्तिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया । कम्मअकम्मभूमा य, अन्तरद्दीवया तहा पन्नरस तीसविहा, भेया अहवीसई । संखा उ कम्मसो तेसिं, इइ एसा वियहिया ।। मुच्छिमाण एसेव, भेओ होइ वियाहिओ । लोगस्स पगदेसम्मि ते सव्वे विवियाहिया ।। संत पप्पणाईया, अपज्जवसियाविय । ठिडं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ पलिओवमाउ तिष्णवि, असंखेज्जइमो भवे । आउट्टिई मणुयणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ पलिओ माई तिष्णि उ, उक्कोसेण उ साहिया । पुवको डिपुहत्तेणं, अन्तीमुहुत्तं जहन्निया || काठई मणुयाणं, अन्तरं तेसिमं भवे । अणन्तकालमुकोर्स, अन्तोमुद्दत्तं जहन्नयं ॥ २०९ ॥ सिं, वण्णओ चैव गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो || २०२ ॥ देवा विहा वृत्ता, ते मे कित्तयओ गुण । भोमिज्जवाणमन्तरजोड्सवेमाणिया तहा ।। २०३॥ दसहा उ भवणवासी, अट्ठहा वणचारिणो ! पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ॥ २०४ ॥ असुरा नागसुवण्णा, विज्जू अग्गी वियाहिया । दीवोदहिदिसा वाया, धणिया भवणवासिणो ॥ पिसायभूया जक्खा य, रवरूसा किन्नरा किंपुरिसा । महोरगा य गन्धवा, अट्ठविहा वाणमन्तरा ||
१९९ ॥
२०० ||
चन्दा राय नक्खत्ता, गहा तारागणा तहा ।
ठिया विचारिणो चेव, पंचहा जोइसालया ||
मज्झिमा मज्झिमा चेव, मज्झिमा उवरिमा तहा । उवरमा हेट्टिमा चेव, उवरिमा मज्झिमा तहा ॥
१८९ ॥
१९० ॥
१९९ ॥
१९२॥
११३ ॥
१९४ ॥
माणिया उजे देवा, दुविहा ते वियाहिया । कप्पोवगा य बोधव्वा, कप्पाईया तव य ॥ कप्पोवग्गा बारसहा, सोहम्मीसाणगा तहा | सणं कुमारमाहिन्द बम्भलोगा य सन्तगा ।। महासुका सहस्सारा, आणया पाणया तहा । आरणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोमा सुरा ।। कप्पाईया उ जे देवा, दुविहा ते विद्याहिया । गेविज्जाणुत्तरा चेव, गेविज्जा नवविहा तहिं हेट्टिमा हेट्ठिमा चैव, हेट्ठिमा मज्झिमा तहा । हेट्ठिमा उवरिमा चेत्र, मज्झिमा हेडिमा तहा
॥
॥
१९५ ॥
१९६ ॥
१९७ ॥
१९८ ॥
॥ २०५ ॥
॥ २०६ ॥
॥ २०७ ॥
२०८ ॥
२०९ ।।
२१० ॥
२११ ॥
२१२ ॥
।। २१३ ॥
वरमा उवरिमा चेव, इय गेविज्जगा मुरा। विजया वेजयन्ता य, जयन्ता अपराजिया || २१४ ॥ सव्वत्थसिद्धगा चेव, पंचहाणुत्तरा सुरा । इय वेमाणिया एएणेगहा एवमायओ ।। २१५ ।। लोगस्स गदेसम्म ते सवेवि वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउन्विहं ।। २१६ ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य। ठि पहुच साइया, सपज्जवसियावि य ।। २१७ ॥
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र- छतीस माध्ययनम्
(७३)
I
२३० ॥
२३१ ॥
साहीयं सागरं एकं, उक्कोसेण ठिई भवे । भोमेज्जाणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥ २१८ ॥ पलिओममेगं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । वन्तराणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया || २९९ ॥ पलिओवममेगं तु. वासलक्खेण साहियं । पलिओ मट्टभागो, जोइसेसु जहन्निया ॥ २२० ॥ दो चैव सागराई, उक्कोसेण वियाहिया । सोहम्मम्मि जहनेणं, एगं च पलिओवमं ।। २२१ ॥ सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोसेण वियाहिया । ईसाणम्मि जहन्नणं, साहियं पलिओवमं ।। २२२ ।। सागराणि य सत्तेव, उक्कोसेण ठिई भवे । सणकुमारे जहनेणं, दुन्नि उ सागरोवमा || २२३ || साहिया सागरा मत्त, उक्कोसेणं ठिई भवे । माहिन्दम्मि जहन्नेणं, साहिया दुन्नि सागरा || २२४ || दस चेव सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । बम्भलोए जहन्नेणं, सत्त ऊ सागरोवमा ।। २२५ ॥ चउदस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । लन्तगम्मि जहनेणं, दस उ सागरोवमा ॥ २२६ ॥ सत्तरस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । महासुके जहन्नेणं, चोदस सागरोवमा || २२७ ॥ अट्ठारस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । सहस्सारम्मि जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा ।। २२८ ॥ सागरा अडणवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । आणयम्मि जहन्नेणं, अट्ठारस सागरोवमा ।। २२९ ॥ वीसं तु सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । पाणयम्मि जहन्नेणं, सागरा अणवीसई ॥ सागरा इकवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । आरणम्मि जहन्नेणं, वीसई सागरोवमा ॥ बावीसं सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । अच्चुयम्मि जहन्नेणं, सागरा इक्कवीसई || तेवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । पढमम्मि जहन्नेण, बावीसं सागरोवमा ॥ चवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । बिइयम्मि जहन्नेणं, तेवीसं सागरोवमा ।। पणवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । तइय जहन्नेणं, चउवीसं सागरोवमा ॥ छवीस सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । चउत्थम्मि जहन्नेणं, सागरा पणुवीसई ॥ सागरा सत्तवीसं तु, उक्कोसेण ठिई मवे । पञ्चमम्मि जहनेणं, सागरा उ छवीसई || सागरा अट्ठवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । छट्ठम्मि जहनेणं, सागरा सत्तसई ॥ सागरा अणतीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । सतमम्मि जहन्नेणं, सागरा अट्ठवीसई || तसं तु सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । अट्ठमम्मि जहनेणं, सागरा अउणतीसई ॥ सागरा इकतीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । नवमम्मि जहन्नेणं, तीसई सागरोवमा ॥ तेत्तीसा सागराई, उक्कोसेण ठिई भवे । चउसुंपि विजयाईसु, जहनेणेक्कतीसई || २४२ ॥ अजहन्नमणुक्कोसा, तेत्तीस सागरोवमा | महाविमाणे संघट्टे, ठिई एसा वियाहिया ॥ २४३ ॥ जा चैव उ आउठिई, देवाणं तु वियाहिया । सा तेसिं कायठिई, जहन्नमुक्कोसिया भवे || २४४ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, देवाणं हुआ अन्तरं ।। २४५ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफायओं । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो || २४६ ।। संसारत्थाय सिद्धाय, इय जीवा वियाहिया । रूविणो चेवरुवीय, अजीवा दुहिहावि य इय जीवमजीवे य, सोचा सद्दहिऊण य । सवनयाणमणुमए रमेज्ज संजमे मुणी तओ बहूणि वासाणि, सामण्णमणुपालिय । इमेण कम्मजोगेण, अप्पाणं संलिहे मुणी बारसेव उ वासाई, संलेहुक्कोसिया भवे । संवरच्छरमज्झिमिया, छम्मासा य जहन्निया ।।
॥
२४७ ॥
॥
२४८ ॥
॥
२४९ ॥
२५० ॥
२३२ ॥
२३३ ॥ २३४ ॥
२३५ ॥
२३६ ॥
२३७ ||
२३८ ॥ २३९ ॥
२४० ॥
२४९ ॥
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(७४)
श्री जैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला.
पढमे वासचकम्मि, विगई- निज्जूहणं करे । बिईए वासचउक्कम्मि, विविसं तु तत्रं चरे ॥ २५१ ॥ एगन्तरमायामं, कट्टु संबच्छरे दुवे । तओ संवच्छरद्धं तु, नाइविगङ्कं तवं चरे ।। २५२ ॥ तओ संबच्छरद्धं तु, विगिट्ठे तु तवं चरे । परिमियं चेव आयामं, तम्मि संवच्छरे करे ।। २५३ ॥ कोडी सहियमायाम, कट्टु, संवच्छरे मुणी । मासद्धमासिएणं तु, आहारेण तवं चरे ।। २५४ ॥ कन्दप्पमाभिओगं च, किव्विसिय मोहमासुरुत्तं च । एयाउ दुग्गईओ, मरणम्मि विराहिया होन्ति ॥
।। २५५ ॥
मिच्छादंसणरत्ता, सनियाणा उ हिंसगा । इय जे मरन्ति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोही ।। सम्मर्द्दसणरत्ता, अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा । इय जे मरन्ति जीवा, तेसिं सुलहा भवे बोही ।। मिच्छादंसणस्ता, सनियाणा कण्हलेसमोगाढा । इय जे मरन्ति जीवा, तेंसिं पुण दुल्लहा बोही ॥
॥ २५८ ॥
जिणवणे अणुरत्ता, जिणवयणं करेन्ति भावेण । अमला असङ्किलिड्डा, ते होन्ति परित्तसंसारी ॥ २५९ ॥ बालमरणाणि बहुसो, अकाममरणाणि चैव य बहूणि । मरिहन्ति ते वराया, जिणवयणं जे न जाणन्ति ॥
।। २६० ॥
२६१ ॥
२६२ ।।
२६३ ।।
बहुआयमविन्नाणा, समाहिउप्पायगा य गुणगाही । एएणं कारणेणं, अरिहा आलोयणं सोउं ।। कन्दप्पक्कुक्कुयाई, तहसीलसहावहसणविगहाई । विम्हावेन्तोवि परं, कन्दप्पं भावणं कुणइ ।। मन्ताजोगं काउं, भूईकम्मं च जे पउंजन्ति । साय-रस-इ स- इड्डिहेडं, अभिओगं भावणं कुणइ नाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स सङ्घसाहूणं । माई अवण्णवाई, किचिसियं भावणं कुणड़ अणुबद्धसपसरो, तह य निमित्तम्मि होइ पडिसेवी । एएहि कारणेहिं, आसुरियं भावणं कुणइ ।। सत्यगहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसो य । अणायारभण्ड सेवा, जम्मणमरणाणि बंधन्ति ॥
||
२६४ ॥
२६५ ॥
।।
२५६ ॥
२५७ ॥
॥ २६६ ॥
इय पाउकरे बुद्धे, नायए परिनिबुए | छत्तीसं उत्तरज्झाए, भवसिद्धीयसंबुडे || २६७ ॥ त्ति वेमि ॥ जीवाजीव विभत्ती ममत्ता ॥ ३६ ॥
॥ इअ उत्तरज्झयण सुत्तं समत्तं ॥
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॥ णमो समणस्स भगवओ महावीरस्स ॥ ॥ सिरि-दसवेआलियं-सुत्तं ॥
॥ दुमपुफ्फिया पढमं अज्झयणं ॥ धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥१॥ जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो आवियइ रसं । ण य पुप्फ किलामेइ, सो अ पीणेइ अप्पयं ॥ २ ॥ एमेए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो। विहंगमा व पुष्फेसु, दाणभत्तेसणे रया ॥३॥ वयं च वित्तिं लब्भामो, ण य कोइ उवहम्मइ । अहागडे सु रीयंते, पुप्फेमु भमरा जहा ॥ ४ ॥ महुगा (का) रसमा बुद्धा, जे भवंति अणिस्सिया । नाणपिंडरया दंता, तेण वुचंति साहुणो ॥ ५ ॥
त्ति बेमि ॥ दुमपुफिया पढममज्झयणं समत्तं ॥
॥ अह सामण्णपुव्वयं दुइअं अज्झयणं ॥ कई नु कुजा सामण्णं, जो कामे न निवारए । पए पर विसीअंतो, संकप्पस्स वसं गओ॥१॥ वत्यगंधमलंकारं, इत्थीओ सयणाणि य । अच्छंदा जे न भुंजंति, न से चाइ ति वुच्चइ ॥२॥ जे य कंते पिए भोए, लद्धे वि पिडि कुबइ । साहीणे चयइ भोए, से हु चाइ ति वुच्चइ ॥३॥
समाइ पेहाइ परिवयंतो, सियां मणो निस्साई बहिद्धा । न सा महं नोकि अहं कि तीसे, इच्चेव ताओ विणइज रागं ॥ ॥४॥ आयावयाही चय सोगमलं, कामे कमाहि कमियं खु दुक्खं ।
छिंदाहिं दोसं विणएज्ज रागं, एवं सुही होहिसि संपराए ॥ ॥५॥ पक्वंदे जलियं जोइं, धूमकेउं दुरासयं । नेच्छति वंतयं भोत्त, कुले जाया अधंगणे ॥६॥ धिरस्थु तेऽजसोकामी, जो तं जीवियकारणा। वंत इच्छसि आवेडे, सेयं ते मरणं भवे ॥ ७॥ अहं च भोमरायस्स तं चऽसि अंधगविण्हिणो। मा कुले गंधणा होमो, संजनं निहुओ चर ॥ ८॥ जह तं काहिसि भावं, जा जा दिच्छसि नारिओ। कायाविद्धो व हडो,अद्विअप्पा भविस्सति ॥९॥ तीसे सो क्षणं सोचा, संजयाइ सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाइओ ॥१०॥ एक करति संबुद्धा, पंडिया पषियक्खणा । विणियति भोगेसु, जहा से परिसुत्तमो ॥ ११ ॥
त्ति बेमि। इअ सामण्णपुव्वयं नाम अज्झयणं समत्तं ॥ २ ॥
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(७६)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
॥ अह खुड्डयायारकहा तइमं अज्झयणं ॥ संजमे सुद्विअप्पाणं, विप्पमुक्काण ताइणं । तेसिमेयमणाइण्णं, निग्गंथाण महेसिणं ॥१॥ उद्देसियं कीयगडं, नियागमभिहडाणि य । राइभत्ते सिणाणे य, गंधमल्ले य वोयणे ॥२॥ संनिही गिहिमत्ते य, रायपिंडे किमिच्छए। संवाहणा दंतपहोयणा य, संपुच्छणा देहपलोयणा य ॥ ३ ॥ अट्ठावए य नालीए, छत्तस्स य धारणट्ठाए । तेगिच्छं पाहणापाए, समारंभं च जोइणो॥४॥ सिज्जायरपिंडं च, आसंदीपलियंकए। गिहतरनिसिज्जा य, गायस्सुबट्टणाणि य ॥ ५॥ गिहिणो वेआवडियं, जा य आजीववत्तिया। तत्तानिव्वुडभोइत्तं, आउरस्सरणाणि य ॥ ६॥ मूलए सिंगबेरे य, उच्छुखंडे अनिव्वुडे । कंदे मूले य सचित्त, फले बीए य आमए ॥ ७॥ सोवच्चले सिंघवे लोणे, रोमालोणे य आमए । समुद्दे पंसुखारे य, कालालोणे य आमए ॥ ८॥ धुवणे ति वमणे य, वत्थीकम्भविरेयणे । अंजणे दंतवणे य, गायभंगविभूसणे ॥ ९॥ सवमेयमणाइन्नं; निग्गंथाण महेसिणं । संजमम्मि अ जुत्ताणं, लहुभूयविहारिणं ॥ १० ॥ पंचासवपरिणाया, तिगुत्ता छसु संजया । पंचनिग्गहणा धीरा, निग्गंथा उज्जुदंसिणो ॥ ११॥ आयावयंति गिम्हेसु, हेमंतेसु अवाउडा । वासासु पडिसलीणा, सजया सुसमाहिया ॥ १२ ॥ परीसहरिऊदंता, धूअमोहा जिइंदिया। सवदुक्खपहीणट्ठा, पक्कमन्ति महेसिणो ॥ १३ ॥ दुक्कराइं करित्ताणं, दुस्सहाई सहित्तु य । केइत्थ देवलोएसु, केइ सिज्झन्ति नीरया ॥ १४ ॥ खवित्ता पुवकम्माइं, सज्जमेण तवेण य । सिद्धिमग्गमणुप्पत्ता, ताइणो परिणिचुडे ॥ ॥ १५॥
त्ति बेमि || इअ खड़यायारकहा नाम तइयमज्गयणं ।।
॥ अह छज्जीवणियानामं चउत्थं अज्झयणं ॥ सुझं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं, इह खलु छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भग. वया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुअक्खाया सुपनत्ता सेअं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपण्णत्ती ॥१॥ कयरा खलु साछज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुअक्खाया सुपन्नत्ता सेअं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपण्णत्ती ॥ २॥ इमा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुअक्खाया सुपन्नत्ता सेअं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती ॥ तंजहा-पुढविकाइया १, आउकाइया २, तेउकाइया ३, वाउकाइया ४, वणस्सइकाइया ५, तसकाइया ६ । पुढवी चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं । आऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं । वाऊ चित्तमंत. मक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं । वाऊ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढो. सत्ता अन्नत्थपरिणएणं । वणस्सई चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसता अनत्थ सत्थपरिणएण तंजहा–अग्गवीया, मूलवीया, पोरबीया, खंधवीया, बीयरुहा, संमुच्छिमा, तणलया, वणस्सइका. इया, सबीया चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं । से जे पुण इमे
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श्रीदसवैकालिकरत्र-चतुर्थाध्ययनम् अणेगे बहवे तसा पाणा; तंजहा-अंडया, पोयया, जराउया, रसया, संसेइमा, संमुच्छिमा उभिया उववाइया, जेसिं केसिंचि पाणाणं, अभिकंतं, पडिकंतं, संकुचियं, पसारियं, रुयं, भंतं, तसियं, पलाइयं आगइगइविनाया; जे अ कीडपयङ्गा, जा य कुंथुपिपीलिया, सो बेइंदिया, सो तेइंदिया, सवे चउरिंदिया, सो पंचिंदिया, सवे तिरिक्खजोणिया, सवे नेरइया, सवे मणुआ, सो देवा, सर्वे पाणा, परमाहम्मिआ, एसो खलु छट्ठो जीवनिकाओ तसकाओ त्ति पवुच्चह । इच्चेसिं छण्हं जीवनिकायाणं चेव सयं दंडं समारंभिज्जा, नेवन्नेहिं दंडं समारंभाविजा, दंडं समारंभन्ते वि अन्ने न समणुजाणामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन न समणुजाणामि । तस्स भंते पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामि ॥
पढमे भन्ते ! महत्वए पाणाइवायाओ वेरमणं । सवं भन्ते ! पाणाइवायं पञ्चक्खामि । से सुहुमं वा, वायरं वा, तसं वा, थावरं वा, नेव सयं पाणे अइवाइज्जा, नेवऽन्नेहिं पाणे अइवायाविजा, पाणे अइवायन्तेऽवि अने न समणुजाणामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामि । पढमे भन्ते ! महबए उवडिओ मि सबाओ पाणाइवायाआ वेरमणं ॥१॥ ____अहावरे दुच्चे भन्ते ! महत्वए मुसावायाओ वेरमणं । सत्वं भन्ते ! मुसावायं पच्चक्खामि । से कोहा वा, लोहा वा, भया वा, हासा वा, नेव सयं मुसं वइज्जा, नेवहिं मुसं बायाविजा, मुसं वयन्ते वि अन्ने न समणुजाणामि जावजीवाए, तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन न समणुजाणामि तस्स भन्ते ! पडिकमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामि । दुच्चे भन्ते ! महबए उवडिओ मि सबाओ मुसावायाओ वेरमणं ।। २ ।।
अहावरे तच्चे भन्ते ! महत्वए अदिन्नादाणाओ वेरमणं । सवं भन्ते ! अदिन्नादाणं पच्चक्खामि । से गामे वा, नगरे वा, रण्णे वा, अप्पं वा, बहु वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा, नेव सयं अदिन्नं गिव्हिज्जा, नेवन्नेहिं अदिन्नं गिण्डाविजा, अदिन्नं गिण्हन्ते वि अने न समगुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमिकरंतंपि अनं न समणुजाणामि । तस्स भन्ते ! पडिकमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामि । तच्चे भन्ते ! महबए उवडिओ मि सबाओ अदिनादाणाओ वेरमणं ।। ३ ॥
- अहावरे चउत्थे भन्ते ! महबए मेहुणाओ वेरमणं । सवं भन्ते ! पञ्चक्खामि । से दिवं वा, माणुसं वा, तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं सेविजा, नेवन्नेहिं मेहुणं सेवाविजा, मेहुणं सेवन्ते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवरए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भन्ते ! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामि । चउत्थे भन्ते ! महबए उवडिओ मि सबाओ मेहुणाओ वेरमणं ॥४॥
अहावरे पश्चमे भन्ते ! महन्वए परिग्महाओ वेरमणं । सवं भंते ! परिग्गहं पञ्चक्खामि । से अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा। नेव सरंपरिग्गहं परिगिव्हिज्जा,
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
नेवन्नेहिं परिग्गहं परिगिण्हन्ते वि अन्ने न समणुजाणिज्जा जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं । वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं समणुजाणामि, तस्स भन्ते ! पडिकमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामि। पञ्चमे भन्ते ! महब्बए उवडिओ मि सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ॥५॥
अहावरे छढे भन्ते ! वए राइभोअणाओ वेरमणं । सव्वं भन्ते ! राइभोयणं पच्चक्खामि । से असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा । नेव सयं राई अँजिज्जा, नेव राई भुंजिज्जा, नेवन्नेहि राई भुंजाविजा, तई झुंजतेऽवि अन्ने न समणुजाणामि जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणाबि । तस्स भन्ते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । छट्टे भंते ! वए उवडिओ मि सव्याओ राइभोअणाओ वेरमण ॥६॥ इच्चेयाई पंचमहत्वयाई राइभोअणवेरमणछट्ठाई अत्तिहियट्टियाए उवसंपज्जित्ता णं विहरामि ॥ .
से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे, दिआ वा, राओ वा, एगओ वा, परिसागओ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से पुढविं वा, भित्तिं वा, सिलं वा, लेलु वा, ससरक्खं वा कायं, ससरक्खं वा बत्थं, हत्थेण वा, पाएण वा, कट्टेण किलिंचेण वा, अंगुलियाए वा, सिलागाए वा, सिलागहत्थेण वा न आलिहिज्जा, न विलिहिज्जा, न घट्टिन्जा, न भिंदिजा, अन्नं न आलिहाविजा, न विलिहाविजा, न घटाविजा, न भिंदाविजा, अन्नं आलिहंतं वा, विलिहंतं वा, घटतं वा, भिंदंत वा नसमणुजाणिज्जाजावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स । भंते ! पडिकमामि उिंदामि गरिहामि अप्पाणं होसरामि ।। १॥
से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे, दिआ वा, राओ वा, एगओ वा, परिसागओ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से उदगं वा, ओसं वा, हिमं वा, महियं वा, करगं वा, हरिगणुगं वा, सुद्धोदगं वा, उदउल्लं वा वत्थं, ससिणिद्धं वा कायं, ससिणिद्धं वा वत्थं न आमुसिज्जा, न संफुसिज्जा, न आवीलिज्जा, न पवीलिज्जा, न अक्खोडिज्जा, न पक्खोडिजा, न आयाविजा, न पयाविजा, अन्ने न आमुसाविजा, न संफुसाविजा, न आवीलाविज्जा, न पवीलाविजा, न अक्खोविजा, न पक्खोडाविजा, न आयाविजा, न पयाविज्जा, अन्नं आमुसंतं वा, संफुसंत वा, आवीलंत वा, पवीतं वा, अक्खोडंतं वा, पक्खोडंत वा, आयावन्तं वा, पयावन्तं वा न समणुजाणिज्जा, जावज्जीवाए, तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भन्ते ! पडिकमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामि ॥२॥
से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे, दिआ वा, राओ वा, एगओ वा, पस्सिागओ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे या, से अगणिं वा, इंगालं वा, मुम्मुरं वा, अचिं वा, जालं वा, अलायं वा, सुद्धागणिं वा, उक्कं वा, न उजिजा, न घट्टिजा, न भिंदिजा, न उज्जालिज्जा, न पन्जालिज्जा, न निवाविजा, अन्नं न उन्जाविजा, न घटाविजा, न भिंदाविजा, न
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श्रीदसवैकालिकसूत्र-चतुर्थाध्ययनम्
(७९) उज्जालाविजा, न पजालाविजा, न निवाविजा, अन्नं उजन्तं वा, घटुंतं वा, भिदंतं वा, उज्जालंतं वा, पज्जालंतं वा, निवावंतं वा, न समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स मन्ते ! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामि ॥ ३ ॥
से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, सञ्जयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे, दिआ वा, राओ वा, एगओ वा, परिसागओ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, ने सिएण वा, विहुयणेण वा, तालियंटेण वा, पत्तेण वा, पत्तभंगेण वा, साहाए वा, साहाभंगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुणलत्थेण वा, चेलेण वा, चेलकन्नण वा, हत्थेण वा, मुहेण वा, अप्पणो वा कायं, बाहिरं वा वि पुग्गलं न फुमिज्जा, न बीएज्जा, अन्नं न फूमाविज्जा, न वीआविज्जा, अन्नं फूमंतं वा, वीअंतं वा न समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्न न समणुजाणामि । तस्स भन्ते ! पडिकमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामि ॥ ४॥
से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, संजयविरयपडिहयपञ्चक्खायपावकम्मे, दिआ वा, राओ वा, एगओ वा, परिसागओ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से वीएसु वा, वीयपइडेसु वा, रूढेसु वा, रूढपइद्वेसु वा, जाएसु वा, जायपइद्वेसु वा, हरिएसु, हरियपइद्वेसु वा, छिन्नेसु वा, छिन्नेसु वा, छिन्नपइद्वेसु वा, सचित्तेसु वा, सचित्तकोलपडिनिस्सिएसु वा न गच्लेज्जा, न चिटुंज्जा, न निसीइज्जा, न तुअहिज्जा, अनं न गच्छाविज्जा, न चिट्ठाविज्जा, न निसीआविज्जा, न तुअट्टाविज्जा, अन्नं गच्छंतं वा, चिट्ठतं वा, निसीअंतं वा, तुयद॒तं वा न समणुजामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भन्ते ! पडिक्कमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामि ॥५॥
से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे, दिआ वा, राओ वा, एगओ वा, परिसागओ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से कीडं वा, पयंगं वा, कुंथु वा, पिपीलियं वा, हत्थंसि वा, पायंसि वा, बाहुंसि वा, उरुंसि वा, उदरंसि वा, सीसंसि वा, वत्थंसि वा, पडिग्गहंसि वा, कंबलंसि वा, पायपुच्छणंसि वा, रयहरणंसि वा, गुच्छगंसि वा, उंडगंसि वा. दंडगंसि वा, पीढगंसि वा, फलगंसि वा, संथारगंसि वा, अन्नयरंसि वा तहप्पगारे उवगरणजाए तओ संजयामेव पडिलेहिय पडिलेहिय पमज्जिअ एगंतमवणिज्जा, नो ण संघायमावज्जिज्जा ॥६॥ अजयं चरमाणो अ, पाणभूयाइ हिंसइ । बन्धह पावयं कम्म, तं से होइ कडुअं फलं ॥१॥ अजयं चिट्ठमाणो अ, पाणभूयाइ हिंसइ । बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुअं फलं ॥२॥ अजयं आसमाणो अ, पाणभूयाइ हिलइ । बन्धइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुअं फलं ॥३॥ अजयं सयमाणो अ, पाणभूयाइ हिंसइ । बंधड़ पावयं कम्मं, तं से होइ कडुअं फलं ॥ ४ ॥ अजयं भुंजमाणो अ, पाणभूयाइ हिंसइ । बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुअं फलं ॥५॥ अजयं भासमाणो अ, पाणभूयाइ हिंसइ । बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुअं फलं ॥६॥
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श्रीजैनसिद्धान्त - खाध्यायमाला
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कहं चरे कहं चिट्ठे, कहमाए कहं सए । कहं भुंजन्तो भासतो, पावकम्मं न बंधइ ॥ ७ ॥ जयं चरे जयं चिट्ठे, जयमासे जयं सए । जयं भुंजन्तो भासतो, पावकम्मं न बंधइ ॥ ८ ॥ सर्व्वभूयप्पभूयस्स, सम्मं भूयाइ पासओ । पिहिआसवस्स दंतस्स, पावकम्मं न बंधइ ॥ ९ ॥ पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठइ सङ्घसंजए । अन्नाणी किं काही, किं वा नाही सेयपावगं ॥ १० ॥ सोचा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं । उभयं पि जाणइ सोच्चा, जं सेयं तं समायरे ॥। जो जीवे विनयाण, अजीवे वि न याणइ । जीव जीवे अयाणंतो, कहं सो नाहीइ संजमं ॥ जो जीवे विया, अजीवे वि वियाणइ । जीवाजीवे वियाणतो, सो हु नाहीइ संजमं जय जीवमजीवे य, दोबि एए वियाणइ । तया गई बहुविहं सवं जीवाण जाण ॥ जया गई बहुविहं, सङ्घजीवाण जाणइ । तथा पुण्णं च पात्रं च, बंधं मुक्खं च जाणइ जया पुणं च पावंच, बंधं मुक्ख च जाणइ । तया निव्विंदए भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे || जया निव्विंद भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे । तया चयइ संजोगं, सब्भिन्तरं बाहिरं जया चयइ संजोगं, सब्भितरं बाहिरं । तया मुंडे भवित्ताणं, पचइए अणगारियं जया मुंडे भवित्ताणं, पवइए अणगारियं । तया संवरमुकिहुं, धम्मं फासे अणुत्तरं जया संवरमुक्किडं, धम्मं फासे अणुत्तरं । तया धुगइ कम्मरयं, अबोहिकल कर्ड ॥ जया धुणइ कम्मरयं, अबोहिकलसं कडं । तया सच्चत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छइ जया सव्वत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छइ । तया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली ॥ जया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली । तया जोगे निरंभित्ता, सेलेसिं पडिवजइ ॥ २३ ॥ जया जोगे निरंभित्ता, सेलेर्सि पडिवज्जइ । तया कम्मं खविचाणं, सिद्धिं गच्छइ नीरओ || २४ ॥ जया कम्पं खवित्ताणं, सिद्धिं गच्छइ नीरओ । तथा लोगमत्थथत्थो, सिद्धो हवइ सासओ ॥ २५ ॥ मुह सायगहस समणस्स, साया उलगस्स निगामसाइस्स । उच्छोलणापहोअस्स, दुल्लहा सुगई तारिसगस्स ॥ २६ ॥ तवोगुणपहाणस्स, उज्जुमइ खन्तिसंजमरयस्स । परीसहे जिणंतस्स, सुलहा सुगई तारिसगस्स ॥ ६७ ॥ पच्छा वि ते पयाया, खिष्पं गच्छंति अमरभवणाई । जेसिं पिओ तो संजमो अ, खंती अ वभचरं च ।। २८ ।। इच्चेयं छज्जीवणिअं, सम्मदिट्ठी सया जए । दुल्लहं लहित्तु सामण्णं, कम्पुणा न विराहिञ्जासि ॥ २९ ॥
२० ॥
॥
२१ ॥
२२ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ छज्जीवणिआ णामं चउत्थं अज्झयणं समत्तं ॥ ४ ॥
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१३ ॥
१७ ॥
१८ ॥
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श्रीदसवैकालिकसूत्र-पञ्चमाध्ययनम्
॥ अह पिंडेसणा णाम पंचमज्झयणं ॥
संपत्ते भिक्खकालम्मि, असंभंतो अमुच्छिओ। इमेण कमजोगेण, भत्तपाणं गवेसए ॥१॥ से गामे वा नगरे वा, गोअरग्गगो मुणी । चरे मंदमणुविग्गो, अवक्खित्तेण चेअसा ॥२॥ पुरओ जुगमायाए, पेहमाणो महिं चरे। वज्जतो बीअहरियाई, पाणे अदगमट्टिकं ॥३॥
ओवायं विसमं खाणुं, विज्जलं परिवजए । संकमेण न गच्छिज्जा, विजमाणे परक्कमे ॥ ४॥ पवडते व से तत्थ, पक्खलंते व संजए। हिंसेज पाणभूयाई, तसे अदुव थावरे ॥ ५। तम्हा तेण न गच्छिज्जा, संजए सुसमाहिए। सइ अण्णेण मग्गेण, जयमेव परक्कमे ॥ ६॥ इंगाले छारियं रासिं, तुसरासिं च गोमयं । ससरक्खेहिं पाएहिं, संजओ तं नइक्कमे ॥७॥ न चरेज वासे वासंते, महियाए पडंतिए । महावाए व वायंते, तिरीच्छसंपाइमेसु वा ॥ ८ ॥ न चरेज वेससामंते, बंभचेरवसाणुए। बंभयारिस्स दंतस्स, होज्जा तत्थ विसोहिआ ॥९॥ अणाययणे चरंतस्स, संसग्गीए अभिक्खए । होज वयाणं पीला, सामणम्मि अ संसओ ।। १० ।। तम्हा एअं विआणित्ता, दोसं दुग्गइवड्वणं । वजए वेससामन्तं, मुणी एगंतमस्सिए ॥ ११ ॥ साणं सूइअं गाविं, दित्तं गोणं हयं गयं । संडिब्भं कतेहं जुद्धं, दूरओ परिवजए ॥ १२ ॥ अणुन्नए नावणए, अप्पहिढे अणाउले। इंदिआई जहाभाग, दमइत्ता मुणी चरे ॥ १३ ॥ दवदवस्स न गच्छेज्जा, भासमाणो अगोचरे। हसन्तो नाभिगच्छेजा, कुलं उच्चावयं सया ॥ १४ ॥ आलो थिग्गलं दारं, संधिं दगभवणाणि अ। चरन्तो न विणिज्झाए, संकट्ठाणं विवजए ॥ १५ ॥ रनो गिहवईणं च, रहस्सारविक्खयाण य । संकिलेसकरं ठाणं, दूरओ परिवजए ॥ १६ ॥ पडिकुटुं कुलं न पविसे, मामगं परिवजए। अचियत्तं कुलं न पविसे, चियत्तं पविसे कुलं । १७ ॥ साणीपावारपिहिअं, अप्पणा नावपंगुरे । कवाडं नो पणुल्लिज्जा, उग्गहंसि अणाइआ ॥ १८ ॥ गोअरग्गपविट्ठो अ, वच्चमुत्तं न धारए । ओगासं फासु नचा, अणुनविय वोसिरे ॥ १९ ॥ णीयं दुवारं तमसं, कुट्ठगं परिवजए। अचक्खुविसओ जत्थ, पाणा दुप्पडिलेहगा ॥ २० ॥ जत्थ पुप्फाई बीआई, विप्पइन्नाई वोहए । अहुणोवलित्तं उल्लं, दट्ठणं परिवजए ॥ २१ ॥ एलगं दारगं साणं, वच्छगं वा वि कुट्ठए । उल्लंघिआ न पविसे, विउहित्ताण व संजए ॥ २२ ।। असंसत्तं पलोइजा, नाइदुरावलोअए । उप्फुल्लं न विणिज्झाए, नियट्टिज़ अयंपिरो ॥ २३ ॥ अइभूमि न गच्छेजा, गोअरग्गगओ मुणी । कुलस्स भूमि जाणि ता, मिश्र भूमि परक्कमे ॥ २४ ॥ तत्थेव पडिलेहिज्जा, भूमिभागविअक्खणो । सिणाणस्स य वच्चस्स, संलोगं परिवजए ॥ २५ ॥ दममटिअआयाणे, बीआणि हरिआणि अ । परिवज्जतो चिट्ठिजा, सविंदिअसमाहिए ॥ २६ ॥ तत्य से चिट्ठमाणस्स, आहारे पाणभोअणं । अकप्पिरं न इच्छिज्जा, पडिगाहिज कप्पिरं ।। २७ ॥ आहारन्ती सिआ तत्थ, परिसाडिज भोअणं । दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ २८ ।। संमद्दमाणी पाणाणि, बीआणि हरिआणि अ। असंजमकरिं नच्चा, तारिसिं परिवजए ॥ २९ ।। साहट निक्खिवित्ता णं, सचित्तं घट्टियाणि य । तहेव समणुट्ठाए, उदगं संपणुल्लिया ॥ ३० ।।
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(८२)
- श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला. ओगाहइत्ता चलइत्ता, आहारे पाणभोअणं । दितिअं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ३१ ॥ पुरेकम्मेण हत्थेण, दव्वीए भायणेण वा । दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ३२ ॥ एवं उदउल्ले ससिणिद्धे, ससरक्खे मट्टिआओसे। हरिआले हिंगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे ॥ ३३ ॥ गेरुअवनिअसेढिअ, सोरडिअपिट्ठकुक्कुसकए अ । उक्किट्ठमसंसद्धे, संसढे चेव बोद्धव्वे ॥ ३४ ॥ असंसद्वेण हत्थेण, दवीए भायणेण वा । दिजमाणं न इच्छिज्जा, पच्छाकम्मं जहिं भवे ॥ ३५ ॥ संसटेण य हत्थेण, दम्चीए भायणेण वा । दिजमाणं पडिच्छिजा, जं तत्थेसणियं भवे ॥ ३६ ॥ दुण्हं तु भुंजमाणाणं, एगो तत्थ निमंतए । दिजमाणं न इच्छिज्जा, छंदं से पडिलेहए ॥ ३७ ।। दुहं भुंजमाणाणं, दो वि तत्थ निमंतए । दिज्जमाणं पडिच्छिन्ना, जं तत्थेसणियं भवे ॥ ३८ ॥ गुविणीए उवण्णत्थं, विविहं पाणभोअणं । भुंजमाणं विवज्जिज्जा, भुत्तसेसं पडिच्छए ॥ ३९ ॥ सिआ य समणट्टाए, गुग्विणी कालमासिणी । उद्विआ वा निसीइजा, निसन्ना वा पुणुहुए ॥ ४० ॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पि। दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ।। ४१ ॥ थणगं पिज्जमाणी, दारगं वा कुमारिअं । तं निक्खिवित्तु रोअंतं, आहारे पाणभोयणं ॥ ४२ ।। तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितिअं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ४३ ॥ जं भवे भत्तपाणं तु, कप्पकप्पम्मि संकियं । दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ४४ ॥ दगवारेण पिहि, नीसाए पीढएण वा । लोढेण वा विलेवेण, सिलेसेण वा केणइ ।। ४५ ॥ तं च उभिदिआ दिज्जा, समणट्ठा एव दावए । दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिस ।। ४६ ॥ असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा। जं जाणिज्जा सुणिज्ज वा, दाणट्ठा पगडं इमं ॥ ४७ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिरं । दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ४८ ॥ असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा । जं जाणिज्जा सुणिज्जा वा, पुण्णट्ठा पगडं इमं ॥ ४९ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिरं । दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिस ॥ ५० ॥ असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा । जं जाणिज्जा सुणिज्जा वा, वणिमट्ठा पगडं इमं ॥ ५१ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु. संजयाण अकप्पिरं । दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५२ ॥ असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा । जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, समणट्ठा पगडं इमं ॥ ५३ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अप्पिों । दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५४ ॥ उद्देसियं कीयगडं, पूइकम्मं च आहडं । अज्झोअरपामिच्चं, मीसजायं विवज्जए ॥ ५५ ॥ उग्गमं से अ पुच्छिज्जा, कस्सट्ठा केण वा कडं । सुच्चा निस्संकियं सुद्धं, पडिगाहिज्ज संजए ॥५६॥ असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा। पुप्फेसु हुज उम्मीस, बीएमु हरिएसु वा ।। ५७ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पि। दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५८ ॥ असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा । उदगम्मि हुज निक्खित्तं, उत्तिंगपणगेसु वा ॥ ५९॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिअं। दितिशं पडिआइक्खे, नमे कप्पइ तारिसं ॥ ६ ॥
असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा । उम्मि (अगणिग्मि) होज निक्खित्तं, तं च संघट्टिा दए । ॥ ६१ ॥
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श्रीदसवैकालिकसूत्र-पश्चमाध्ययनम् तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिरं । दिति पडिआउक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६२ ॥
एवं उस्सिकिया ओसक्किया, उज्जालिआ पज्जालिआ निवाविया। ___ उस्सिचिया निस्सिचिया, उववत्तिया (उच्वत्तिया)ओवारिया दए ॥ ॥६३ ॥ तं भवे भत्तपाणं तु, मंजयाण अकप्पिधे । दितिअं पडिआइक्खे, न मे कम्पइ तारिसं ॥ ६४ ॥ हुन्ज कटुं सिलं वावि, इट्टालं वावि एगया । ठविअं संकमट्ठाए, तं च हुन्ज चलाचलं ॥६५॥ न तेण भिक्खू गच्छिन्ना, दिट्ठो तत्थ असंजमो। गंभीरं मुसिरं चेव, सबिदिअ समाहियं ॥ ६६ ॥ निस्सेणिं फलगं पीढं, उस्सवित्ता ण मारुहे। मंचं कीलं च पासायं, समणट्ठा एव दावए ॥ ६७ ॥
दुरूहमाणी पडिज्जा, (पडिवजा) हत्थं पायं व लूसए।
पुढवीजीवे वि हिंसेज्जा, जे अ तन्निस्सिआ जगे ॥ ॥६८ ।। एआरिसे महादोसे, जाणिऊण महेसिणो। तम्हा मालोहडं भिक्खं, न पडिगिण्हंसि संजया ॥ ६९॥ कंदं मूलं पलंबं वा, आमं छिन्नं च सनिरं । तुवागं सिंगबेरं च, आमगं परिवजए ॥ ७० ॥ तहेव सत्तुचुम्नाई, कोलतुन्नाई आवणे । सक्कुलिं फालिअं पूअं, अन्नं वा वि तहाविहं ।। ७१ ॥ विक्कायमाणं पसढं, रएण परिफासि । दितिअं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ७२ ॥ बहुअट्ठिअं पुप्गलं, अणिमिसं वा बहुकंटयं । अत्थियं तिंदुयं बिल्लं, उच्छुखंडं व सिंबलिं ॥ ७३ ॥
अप्पे सिआ भोअणजाए, बहुउज्झिय धम्मिए (य)।
दितिअं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ॥७४ ॥ तहेवुच्चावयं पाणं, अदुवा वारधोअणं । संसेइमं चाउलोदगं, अहुणाघो विवजए ॥ ७५ ॥ जाजाणेजा चिरावाआ, मइए दंसणण वा, पडिपुच्छिऊण सुच्चा वा, जं च निस्संकियं भवे ।। ७६॥ अजी पडिणयं नच्चा, पडिगाहिज संजए। अह संकियं भविजा, आसाइत्ताण रोअए ॥ ७७ ॥ थोवमासायणढाए, हत्थगम्मि दलाहि मे । मामे अचंबिलं पूअं, नाणं तिण्हं विणित्तए ॥ ७८ ॥ तं च अचंबिल पूरं, नाणं तिण्हंविणित्तए । दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ७९ ॥ तं च हुन्जा अकामेण, विमणेण पडिच्छि। तं अप्पणा न पिदे । नो वि अन्नस्स दावए ॥ ८० ॥ एगंतमवकमित्ता, अचित्तं पडिलेहिआ। जयं पडिविजा, परिदृप्प पडिक्कमे ॥ ८१॥ सिया अ गोअरग्गओ इच्छिन्ना परिभुत्तुअं। कुट्टगं मित्तिमूलं वा, पडिलेहित्ताण फासुअं ॥ ८२ ।। अणुबवित्तु मेहावी, पडिच्छिन्नम्मि संवुडे । हत्थगं संपमजित्ता, तत्थ भुजिज संजए ॥ ८३ ॥ तत्थ से मुंजमाणस्स, अट्ठिअं कंटओ सिआ। तणकट्ठसकरं वावि, अन्नं वावि तहाविहं ॥ ८४ ॥ तं उक्खिवित्तु न निक्खिवे, आसएण न छट्टए । हत्थेण तं गहेऊण, एगंतमवक्कमे ॥ ८५॥ एगंतमवक्कमित्ता. अचित्तं पडिलेहिआ। जयं परिठ्ठविजा, परिठ्ठप्प पडिक्कमे ॥ ८६ ॥ सिआ आभिक्खूइच्छिज्जा, सिजमागम्म भुत्तुअं । सपिंडपायमागम्म, उंडुअं पडिलेहिआ ॥ ८७ ॥ विणएण पविसित्ता, सगासे गुरूणो मुणी। इरियावहियमाययाय, आगओ अ पडिक्कमे ॥ ८८ ॥ आभोइत्ताण नीसेस, अइआरं च जहक्कम । गमणागमणे चेव, भत्ते पाणे च संजए ॥ ८९ ॥ उज्जुप्पन्नो अणुविग्गो, अवक्खित्तेण चेअसा । आलोए गुरूसगासे, जं जहा गहियं भवे ।। ९० ॥ न सम्ममालोइअं हुजा, पुद्धि पच्छा व जं कडं। पुणो पडिकमे तस्स, वोसट्ठो चिंतए इमं ॥ ९१ ॥
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(८४)
श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
९२ ॥ ९३ ॥
९४ ॥
९५ ॥
९६ ॥
अहो जिणेहिं असावज्जा, वित्ती साहूण देसिआ । मुक्खसाहणहेउस्स, साहुदेहस्स धारणा ॥ णमुक्कारेण पारित्ता, करिता जिणसंथवं । सज्झायं पट्ठवित्ताणं, वीस मेज्ज खणं मुणी ॥ वीससंतो इमं चिंते. हियम लाभमट्ठिओ । मे अणुगहं कुजा, साहू हुजामि तारिओ ॥ साहवो तो चित्तेणं, निमंतिज्ज जहक्कमं । जइ तत्थ केइ इज्छिज्जा, तेहिं सद्धिं तु भुंजए ॥ अह कोइ न इच्छिज्जा, तओ भुंजिज एकओ । आलोए भायणे साहू. जयं अपरिसाडिअं ॥ तित्तगं च कडुअं च, कसायं अंबिलं च महुरं लवणं वा । एयलद्धमन्नत्थपउत्तं. महु घयं व भुंजिञ्ज संजए || ॥ ९७ ॥ अरसं विरसं वावि, सूइअं वा असूइअं । उल्लं वा जइ वा सुकं, मंथुकुम्मासभोअणं ॥ उप्पण्णं नाइहीलिजा, अप्पं वा बहु फासूअं | मुहालद्धं मुहाजीवी, भुंजिजा दोसवजिअं ॥ ९९ ॥ दुलहाओ मुहादाई, मुहाजीवी, वि दुल्लहा । मुहादाई मुहाजीवी, दो वि गच्छंति सुग्गइं ।। १०० ॥ ॥ इअ पिंडेसणाए पढमो उद्देसो समत्तो ॥
९८ ॥
पडिग्गहं संलिहित्ताणं, लेवमायाइ संजए । दुगंधं वा, सवं भुंजे सेज्जा निसीहियाए, अमावन्नो अगोचरे । अयावयट्ठा भुच्चाणं, जइ तेणं तओ कारणमुपपणे, भत्तपाणं गवेसए । विहिणा पुवउत्तेण, इमेणं कालेण निक्खमे भिक्खू, कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जित्ता (ज्जा ), काले कालं समायरे ॥ अकाले चरसि भिक्खू, कालं न पडिलेहिसि । अप्पाणं च किला मेसि, सन्निवेसं च गरिहासि ॥
न छडए ॥
न संथरे ॥ य
॥
उत्तरेण
१ ॥
॥
२ ॥
३ ॥
॥ ४ ॥
९ ॥
॥ ५॥ सइ काले चरे भिक्खू, कुज्जा पुरिसकारिअं । अलाभोत्ति न सोइज्जा, तवो त्ति अहियास || ६ || तबुच्चावया पाणा, भत्तट्ठाए समा गया । तं उज्जुअ न गच्छिज्जा, जयमेव परक्कमे ॥ ७ ॥ गोअरग्गपविट्ठो अ, न निसीइज्ज कत्थई । कहं च न पबंधिजा, चिट्ठित्ताण व संजए ॥ ८ ॥ अग्गलं फलिहं दारं, कवाडं वा वि संजए । अबलंविआ न चिट्ठिज्जा, गोअरग्गओ मुणो ॥ समणं माहणं वावि, किविणं वा वणीमगं । उवसंकमंत भत्तट्ठा, पाणट्टाए व संजय ॥ तमइकमित्तु न पविसे, न चिट्ठे चक्खुगोअरे । एगंतमवक्कमित्ता, तत्थ चिट्टिज्ज संजय ॥ after वा तस्स दायगस्सुभयस्स वा । अप्पत्तिअं सिआ हुज्जा, लहुत्तं पवयणस्स वा ॥ डिसेहिए व दिने वा, तओ तम्मि नियत्तिए । उवसंक्रमिज्ज भत्तट्ठा, पाणट्ठाए व संजए || उप्पलं परमं वावि, कुमुअं वा मगदंतिअं । अन्नं वा पुप्फसचितं तं च संचिआ दए तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिअं । दितिअं पडिआइक्खे, न मे कप्पर तारिसं ॥ उप्पलं परमं वावि, कुमुअ वा मगदंतिअं । अन्नं वा पुष्कपच्चित्तं तं च सम्मद्दिआ दए । तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिअं । दितिअं पडिआइक्खं, न मे कप्पर तारिसं सालुअं वा विरालिअं, कुमुअं उप्पलनालियं । मुणालिअं सासवनालिअं, उच्छुखंडं अनिव्वुडं ॥ १८ ॥ तरुणगं वा पबालं, रुक्खस्स तणगस्स वा । अन्नस्स वा वि हरिअस्स, आमगं परिवज्जए ।। १९ ।।
१२ ॥
१३ ॥
।
१४ ॥
१० ॥
११ ॥
१५ ॥
१६ ॥
१७ ॥
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श्रीदसवैकालिकसूत्र-पश्चमाध्ययनम्
(८५)
तरुणिकं वा छिवार्डि, आमिश्र भजियं सयं । दिति पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं २०॥ तहा कोलमणुस्सिन, वेलुअं कासवनालिअं। तिलपप्पडगं नीम, आमगं परिवज्जए ॥ २१ ॥ तहेव चाउलं पिटुं, विअडं तत्तनिव्वुडं । तिलपिट्ठपूइपिन्नागं, आमगं परिवज्जए ॥ २२ ॥ कविढे माउलिंग च, मूलगं मूलगतिअं, आमं असत्थपरिणयं मणसा वि न पत्थए ॥ २३ ॥ तहेव फलमंथूणि, बीचमंथूणि जाणिआ । विहेलगं पियालं च, आमगं परिवजए ॥ २४ ॥ समुआणं चरे मिक्खू, कुलमुच्चावयं सया । नीयं कुलमइक्कम्म, ऊसढं नाभिधारए ॥ २५ ॥ अदीणो वित्तिमेसिज्जा, न विसीएज पंडिए । अमुणम्मि भोअणम्मि, मायण्णे एमणारए ॥ २६ ॥ बहुं परघरे अत्थि. विविहं खाइमसाइमं । न तत्थ पंडिओ कुप्पे. इच्छा दिज परो नवा ॥ २७ ॥ सयणासणवत्थं वा, भत्तं पाणं च संजए। अदितस्स न कुप्पिज्जा, पञ्चक्खे वि अ दीसओ ॥ २८ ॥ इत्थिअं पुरिसं वावि, डहरं वा महल्लगं । वंदमाणं न जाइजा, नो अणं फरुसं वए ॥ २९ ॥ जे न वंदे न से कुप्पे, वंदिओ न समुक्कसे । एवमन्नेसमाणस्स, सामण्णमणुचिट्ठइ ॥ ३० ॥ सिआ एगइओ लधुं, लोभेण विणिगृहइ । मामेयं दाइयं संतं, दळूण सयमायए ॥ ३१ ॥
अत्तट्ठा गुरुओ लुद्धो, बहु पावं पकुबइ। दुत्तोसओ अ से (सो) होइ,निवाणं च न गच्छइ ॥ ३२ ॥ सिआ एगइओ ल , विविहं पाणभोअणं । भद्दगं भद्दगं भुच्चा, विवन्नं विरसमाहरे ॥ ३३ ॥ जाणंतु ता इमे समणा, आययट्ठी अयं मुणी। संतुट्ठो सेवए पंत, लूहवित्ती सुतोसओ ॥ ३४ ॥ पूयणट्ठा जसोकामी, माणसमाणकामए । बहुं पसवई पावं, मायासलं च कुवइ ।। ३५ ॥ सुरं वा मेरगं वावि, अन्नं वा मजगं रसं । ससक्खं न पिवे भिक्खू. जसं सारक्खमप्पणो ॥ ३६ ।। पियए एगओ तेणो, न मे कोई विआणइ । तस्स पस्सह दोसाई, नियडिं च सुणेह मे ॥ ३७ ।। वडई सुंडिआ तस्स, मायामोसं च भिक्खूणो। अयसो अनिवाणं, सययं च असाहुआ ॥ ३८ ॥ निच्चुबिग्गो जहा तेणो, अत्तकम्मेहिं दुम्मई । तारिसो मरणंते वि. न आराहेइ संवरं ॥ ३९ ॥ आयरिए नाराहेइ, समणे आवी तारिसो। गिहत्था वि णं गरिहंति, जेण जाणंति तारिसं ॥ ४० ॥ एवं तु अभुप्पेही, गुणाणं च विवजए । तारिसो मरणंते वि, ण आराहेइ संवरं ॥ ४१ ॥ तवं कुबइ मेहावी, पणीअं वजए रसं । मजप्पमायविरओ, तबस्सी अइउक्कसो ॥ ४२ ॥ तस्स पस्सह कल्लाणं, अणेगसाहुपूडअं। विरलं अत्थसंजुत्तं, कित्तइस्से सुणेह मे ॥ ४३ ।। एवं तु गुणप्पेही, अगुणाणं च विवजए (ओ)। तारिसो मरणंते वि, आराहेइ संवरं ॥ ४४ ॥ आयरिए आराहेइ, समणे आवि तारिसो । गिहत्था वि णं पूयंति, जेम जाणंति तारिसं ॥ ४५॥ तवतेणे वयतेणे, रुवतेणे, अ जे नरे। आयारभावतेणे अ, कुबइ देवकिविसं ॥ ४६ ।। लघृण वि देवत्तं, उववन्नो देवकिविसे । तत्थावि से न याणाइ. किं मे किच्चा इमं फलं ॥ ४७ ॥ तत्तो वि से चइत्ताणं, लब्भड एलमूअगं । नरगं तिरिक्खजोणिं वा, बोही जत्थ सुदुल्लहा ।। ४८॥ एअंच दोसं दट्टणं, नायपुत्तेण भासि । अणुमायं पि मेहावी, मायामोसं विवजए ॥ ४९ ॥ सिक्खिऊण मिक्खेसणसोहिं, संजयाण बुद्धाण सगासे । तत्थ भिक्खू सुप्पणिहिंदिए, तिव्वलज्जगुणवं विहरिबासि ॥५०॥ त्ति बेमि॥इअ पिंडेसणाए बीओ उद्देसो॥ पंचमज्झयण समत्तं ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला
॥ अह छठं धम्मत्थकामज्झयणं ॥
नाणदंसणसंपन्नं, संजमे अ तवे रयं । गणिमागमसंपन्न, उजाणम्मि समोसढं ॥१॥ रायाओ रायमच्चा य, माहणा अदुव खत्तिआ। पुच्छंति निहुअप्पाणो, कहं मे आयारगोयरो ॥२॥ तेसिं सो निहुओ दंतो, सवभूअसुहावहो, सिक्खाएमु समाउत्तो, आयक्खइ विअक्खणो ॥ ३॥ हंदि धम्मत्थकामाणं, निग्गंथाणं सुणेह मे । आयारगोअरं भीम, सयलं दुरहिहि ॥ ४ ॥ नन्नत्थ एरिसं वुत्तं, जे लोए परमदुच्चरं । विउलट्ठाणभाइस्स, न भूअं न भविस्सइ ॥ ५ ॥ सखुड्डगविअत्ताणं, वाहिआणं च जे गुणा । अक्खंडफुडिआ कायवा, तं सुणेह जहा तहा ॥ ६ ॥ 'दस अट्ठ य ठाणाई, जाइं बालोअवरज्झइ । तत्थ अन्नयरे ठाणे, निग्गंताओ भस्सइ ॥ ७ ॥ वयछक्कं कायछक्कं, अकप्पो गिहिभायणं । पलियंकनिस [सि] ज्जा य, सिणाणं सोहवज्जणं ॥ ८ ॥ तत्थिमं पढमं ठाणं, महावीरेण देसि। अहिंसा निउणा दिट्ठा, सबभूएसु संजमो ॥ ९ ॥ जावंति लोए पाणा, तसा अदुव थावरा । ते जाणमजाणं वा, न हणे णो विघायए ।। १०॥ सवे जीवा वि इच्छंति, जीविउंन मरिज्जिउं। तम्हा पाणिवहं घोरं, निग्गंथा वज्जयंति णं ॥ ११ ॥ अप्पणट्ठा परट्ठा वा, कोहा वा जइ वा भया। हिंसग न मुसं बूआ, नोवि अन्नं वयावए ॥ १२ ॥ मुसाबाओ य लोगम्मि, सवसाहूहिं गरिहिओ। भविस्साओ य भूआणं, तम्हा मोसं विवज्जए ॥ १३ ॥ चित्तमंतमचित्तं वा, अप्पं वा जइ वा बहुं । दंतसोहणमित्तं पि, उग्गहंसि अजाइया ॥ १४ ॥ तं अप्पणा न गिण्हंति, नो वि गिण्हावए परं। अन्नं वा गिण्हमाणं पि, नाणुजाणंति संजया ॥ १५ ॥ अबंभचरिअं घोरं, पमायं दुरहिट्ठिअं । नायरंति मुणी लोए, भेआयणवजिणो ॥ १६ ॥ मूलमेयमहम्मस्स, महादोससमुस्सयं । तम्हा मेहुणसंगग्गं, निग्गंथा वजयंति णं ॥ १७ ॥ विडमुम्भेइमं लोणं, तिल्लं सप्पि फाणिअं । न ते सन्निहिमिच्छंति, नायपुत्तवओरया ॥ १८ ॥ लोहस्सेसणुफासे, मन्ने अन्नयरामवि । जे सिया सन्निहिं कामे, गिही पवइए न से ॥ १९ ॥ जं पि वत्थं च पायं वा, कंबलं पायपुंछणं । तं पि संजमलजट्ठा, धारंति परिहरंति अ॥ २० ॥ न सो परिग्गहो वुत्तो, नायपुत्तण ताइणा । मुच्छा परिग्गहो वुत्तो, इइ वुत्तं महेसिणा ॥ २१ ॥ सवत्थुवहिणा बुद्धा, संरक्षणपरिग्गहे अवि अप्पणोऽवि देहम्मि, नायरंति ममाइयं ।। २२ ।। अहो निचं तवो कम्मं, सबबुद्धेहिं वन्नि । जा य लज्जासमा वित्ती, एगभत्तं च भोअणं ॥ २३ ॥ संति मे सुहुमा पाणा, तसा अदुव थावरा । जाइं राओ उपासंतो, कहमेसणि चरे ॥ २४ ॥ उदउल्लं वीअसंसत्तं, पाणा निवडिया महिं । दिआ ताइं विवजिजा, राओ एत्थ कहं चरे । २५ ॥ एरं च दोसं दट्ठणं, नायपुत्तण भासियं । सबाहारं न भुंजंति, निग्गंथा राइभोअणं ॥ २६ ॥ पुढविकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा। तिविहेण करणजोएण, संजया सुसमाहिआ ॥ २७ ॥ पुढविकायं विहिसंतो, हिंसई उ तयस्सिए । तसे अ विविहे पाणे, चक्खुसे अ अचक्खूसे ॥ २८ ॥ तम्हा एअं विआणित्ता, दोसं दुग्गइवढणं । पुढविकायसमारंभ, जावजीवाए वजए ॥ २९ ।। आउकायं न हिंसंति, मगसा वयसा कायसा। तिविहेण करणजोएण, संजया सुसमाहिआ ॥ ३० ॥
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श्रीदसवैकालिकसूत्र-पष्ठमाध्ययनम्
आउकायं विहिंसंतो, हिंसई तयस्सिए । तसे अ विविहे पाणे, चक्खुसे अ अचक्खुसे ॥३१॥ तम्हा एवं विआणित्ता, दोसं दुग्गइवड्डणं.। आउकायसमारंभ, जावजीवाए वजए ॥ ३२ ॥ जायते न इच्छंति. पावगं जलइत्तए । तिक्खमन्नयरं सत्थं, सबओ वि दुरासयं ॥ ३३ ॥ पाईणं पडिणं वापि, उड्डे अणुदिसामवि । अहे दाहिणिओ वा वि. दहे उत्तरओ बि अ॥ ३४ ॥ भूआणमेसमाधाओ, हववाहो न संसओ। तं पईवपयावट्ठा, संजश किंचि नारभे ॥ ३५ ॥ तम्हा एयंवियाणित्ता, दोसं दुग्गइवढणं । तेउकायसमारंभ, जावजीवाए वजए ॥ ३६ ॥ अणिलस्स समारंभ, बुद्धा मन्नति तारिस । सावजबहुलं चेअं, नेअं ताईहिं सेविअं ॥ ३७॥ तालिअंटेण पत्तेण, साहाविहुअणेण वा। न ते वीइउमिच्छंति, वीआवेऊण वा परं ॥ ३८॥ जं पि वत्थं व (च) पायं वा, कंबलं पायपुंछणं न ते वायमुईरंति, जयं परिहरंति अ॥ ३९ ॥ तम्हा एअं विआणित्ता, दोसं दुग्गइवड्डणं । वाउकायसमारंभ, जावज्जीवाए वजए ॥ ४०॥ वणस्सइं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करणजोएण, संजया सुसमाहिआ ॥ ४१॥ वणस्सइं विहिसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए । तसे अ विविहे पाणे, चक्खुसे अ अचक्खुसे ॥ ४२ ॥ तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं दुग्गइवड्डणं । वणस्सइ समारंभ, जावज्जीवाए वज्जए ॥ ४३ ॥ तसकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा। तिविहेण करणजोएण, संजया सुसमाहिआ ॥ ४४ ॥ तसकायं विहिंसंतो, हिंसई उ तयस्सिए । तसे अ विविहे पाणे, चक्खुसे अ अचक्खुसे ॥ ४५ ॥ तम्हा एअं विआणित्ता, दोसं दुग्गइवड्डणं । तसकायसमारंभ, जाज्जीवाए [३] वज्जए ॥ ४६॥ जाइं चत्तारि भुज्जाई, इसिणा हारमाइणि । ताई तु विवज्जतो, संजमं अणुपालए ॥ ४७॥ पिंडं सिज्जं च वत्थं च, चउत्थं पायमेव य । अकप्पिन इच्छिज्जा, पडिगाहिज्ज कप्पिरं ॥ ४८ ॥ जे नियागं ममायंति, कीअमुद्दोसिआहडं । वहं ते समणुजाणंति, इअ उ (बु)त्तं महेसिणा ॥ ४९ ॥ तम्हा असणपाणाई, कीयमुद्देसियाहडं । वज्जयंति दिअप्पाणो, निग्गंथा धम्मजीविणो ॥ ५० ॥ कंसेस कंसपाएमु कुंडभोएसु वा पुणो । भुजंतो असणपाणाई, आयरा परिभस्सइ ॥ ५१ ॥ सीओदगं समारंभे, मत्तधोअणछड्डणे जाई छनंति भूआई, दिट्ठो तत्थ असंजमो ॥ ५२॥ पच्छाकम्मं पुरेकम्मं, सिआ तत्थ न कप्पइ । एअमटुं न भुंजंति, निग्गथा गिहिभायणे ।। ५३ ॥ आसंदीपलिअंकेसु, मंचमासालएसु वा । अणायरिअमजाणं, आसइत्तु सइत्तु वा ॥ ५४॥ नासंदीपलिअंकेसु, न निसिजा न पीढए । निग्गंथा पडिलेहाए, बुद्धवुत्तमहिटगा ॥ ५५॥. गंभीरविजया एए, पाणा दुप्पडिलेहगा। आसंदी पलिअंको अ, एयमहं विवजिआ ॥ ५६ ।। गोअरग्गपविद्रस्स. निसिजा जस्स कप्पड । इमेणिसमणायारं, आवजह अबोहि॥५७ ॥ विपत्ती बंभचेरस्स, पाणाणं च वहे वहो । वणीमगपडिग्घाओ, पडिकोहो अणगारिणं ॥ ५८ ॥ अगुत्ती बंभचेरस्स, इत्थीओ वा वि संकणं । कुसीलवड्डणं, ठाणं, दूरश्रो परिवजए ॥ ५९॥ तिण्हमन्नयरागस्स, निसिज्जा जस्स कप्पड़ । जराए अभिभूअस्स, वाहिअस्स तवस्मिणो ॥ ६०॥ वाहिओ वा अरोगी वा, सिणाणं जो उ पत्थए । वुकंतो होइ आयारो, जढो हवइ संजमो ॥ ६१ ॥ संतिम सुहुमा पाणा, घसामु मिलगासु अ जे अ भिक्खू सिणायतो, विअडेणुप्पिलावए । ६२ ।। तम्हा ते न सिणायंति, सीएण उसिणेण वा । जावजीवं वयं घोरं, असिणाणमहिङगा ॥ ६३ ।।
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1-खाध्यायमाला.
सिणाणं अदुवा ककं, लुद्धं पउमगाणि अ। गायस्सुबट्टणट्ठाए, नायरंति कयाइ वि ॥ ६४ ॥ नगिणस्स वावि मुंडस्स, दीहरोमनहसिणो। मेहुणाओ उवसंतस्स, किं विभूसाय कारिजं ॥६५॥ विभूसावत्ति भिक्खू , कम्मं बंधइ चिक्कणं । संसारसायरे घोरे, जेणं पडइ दुरुत्तरे ॥ ६६ ॥ विभूसावति चेअं, बुद्धा मनति तारिसं । सावजं बहुलं चेअं, नेयं ताईहि सेविअं ॥ ६७ ।।
खवंति अप्पाणममोहदंसिणो, तवे. रया संजम अजवे गुणे । धुणंति पावाइं. पुरेकडाइं नवाई पावाई न ते करंति ॥ ॥६८ ॥ सओवसंता अममा अकिंचणा, सविजविजाणुगया जसंसिणो। उउप्पसन्ने विमले व चंदिमा। सिद्धि विमाणाइ उवेंति (वयंति) ताइणो ॥ ६९ ॥ त्ति बेमि ॥ इअ छठें धम्मत्थकामज्झयणं समत्तं ॥ ६॥
॥ अह सुबकसुद्धी णाम सत्तमं अज्झयणं ॥ चउण्हं खलु भासाणं, परिसंखाय पन्नवं । दुण्हं तु विणयं सिक्खे, दा न भासिज्ज सबसो ॥ १॥ जा अ सच्चा अवत्तवा, सच्चामोसा अजा मुसा। जा अ बुद्धेहिं नाइन्ना, न तं भासिज पन्नवं ॥ २ ॥ असच्चमोसं सच्चं च, अणवज्जमककसं । समुप्पेहमसंदिद्धं गिरं भासिज्ज पनवं ॥ ३ ॥ एयं च अट्ठमन्नवा, जंतु नामेइ सासयं । स भासं सच्चमोसं च पि तं (पि) धीरो विवज्जए ॥ ४ ॥ वितहं पि तहामुत्ति, जं गिरं भासओ नरो । वम्हा सो पुट्ठो पावेणं, किं पुण जो मुसं वए ॥५॥
तम्हा गच्छामो वक्खामो, अमुगं वा णे भविस्सइ ।
अहं वा णं करिस्सामि, एसो वा णं करिस्सइ ।। एवमाइ उ जा भासा, एसकालम्मि संकिआ । संपयाइअमढे वा, तं पि धीरो विवज्जए ॥ ७॥ अईअम्मि अ कालम्मि, पच्चुप्पण्णमणागए । जमढे तु न जाणिज्जा, एवमेअं ति नो वए ॥ ८॥ अईअम्मि अ कालम्मि, पच्चुप्पण्णमणागए । जत्थ संका भवे तं तु, एवमेअं तु नो वए ॥ ९ ॥ अईअम्मि य कालम्मि, पच्चुप्पणमणागए । निस्संकिअं भवे जे तु, एवमेअं तु निदिसे ॥ १० ॥ तहेव फरसा भासा, गुरुभूओवघाइणी । सच्चा वि सा न वत्तवा, जओ पावस्स आगमो॥११॥ तहेव काणं काण त्ति, पंडगं पंडगत्ति वा । वाहिअंवा वि रोगि ति, तेणं चोरे ति नो वए ॥ १२ ॥ एएणन्नेण अटेणं, परो जेणुवहम्मइ । आयारभावदोसन्नू, न तं भासिज्ज पण्णवं ॥ १३ ॥ तहेव होले गोलि त्ति, साणे वा वसुलि त्ति अ। दमए दुहए वा वि, नेवं भासिज्ज पण्णवं ॥ १४ ॥
अज्जिए पज्जिए वा वि, अम्मो माउस्सिअ त्ति अ। पिउस्सिए भायणिज्ज त्ति, धूए णत्तुणिअ त्ति अ॥ हले हलित्ति अन्नि ति, भट्टे सामिणि गोमिणि ।
होले गोले वसुलि ति, इत्थिअं नेवमालवे ॥ ॥१६॥ णामधिज्जेण णं बूआ, इत्थीगुत्तेण वा पुणो।जहारिहमभिगिज्झ, आलविज्ज लविज्ज वा ॥ १७॥
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श्रीदसवैकालिकसूत्र-सप्तमाध्ययनम् अन्जए पज्जए वा वि, बप्पो चुल्लपिउत्ति । माउलो भाइणिज त्ति, पुत्ते णतुणिअ ति अ॥ १८ ॥ हे भो! हलित्ति अन्नित्ति, भट्टा सामि अगोमिअ । होला गोल वसुलित्ति, पुरिसं नेवमालवे ॥ १९ ॥ नामधिज्जेण णं बूआ, परिगुत्तेण वा पुणो। जहारिहमभिगिज्झ, आलविज लविज वा ॥ २० ॥ पंचिंदिआण पाणाण, एस इत्थी अयं पुमं । जाव णं नो विजाणिजा, ताव जाइ त्ति आलवे ॥ २१ ॥ तहेव मणुसं एसुं, पक्खि वा वि सरीसिवं । थूले पमेइले वज्झे, पाइमि त्ति अ नो वए ॥ २२ ॥ परिघुड्ढे त्ति णं बूआ, बूआ उवविए त्ति अ। संजाए पीणिए वावि. महाकाय त्ति आलवे ॥ २३ ॥ तहेव गाओ दुज्झाओ, दम्मा गोरहग त्ति अ। वाहिमा रहजोगि त्ति, नेवं भासिज पण्णवं ।। २४ ।। जुवं गवि त्ति णं बूआ, घेणुं रसदय त्ति अ। रहस्से महल्लए वा वि, वए संवहाणि त्ति अ ॥ २५ ॥ तहेव गंतुमुज्जाणं, पत्वयाणि वणाणि अ । रुक्खा महल पेहाए, नेवं भासिज पण्णवं ॥ २६ ॥ अलं पासायखमाणं, तोरणाणि गिहाणि अ। फलिहग्गलनावाणं, अलं उदगदोणिणं ॥ २७ ॥ पीढए चंगबेरे अ, नंगले मइयं सिआ। जंतलट्ठी व नाभी वा, गंडिआ व अलं सिआ !॥ २८ ॥ आसणं सयणं जाणं, हुज्जा वा किंचुवस्सए । भूओवघाइणिं भासं, नेवं भासिज पण्णवं ॥ २९॥ तहेब गंतुमुज्जाणं, पचयाणि वणाणि अ । रुक्खा महल्ल पेहाए, एवं भासिज्ज पण्णवं ॥ ३० ।। जाइमंता इमे रुक्खा, दीहवट्टा महालया। पयायसाला विडिमा, वए दरिसणि त्ति अ ॥ ३१ ॥ तहा फलाई पक्काई, पायखजाइ नो वए । वेलोइयाई टालाइं, वेहिमाइ ति नो वए ।। ३२॥ असंथडा इमे अंबा, बहुनिवडिमा फला। वइज्ज बहुसंभूआ, भूअरूव ति वा पुणो ।। ३३ ॥ तहेवोसहीओ पक्काओ, नीलिआओ छवीइ अ। लाइमा भजिमाउत्ति, पिहुखज त्ति नो वए ॥ ३४ ॥ रूढा बहुसंभूआ, थिरा ओसढा वि अ । गम्भिआओ पसूआओ, संसाराउ त्ति आलवे ॥ ३५ ॥
तहेव संखडि नच्चा, किच्चं कजं ति नो वए । सेणगं वावि वज्झि त्ति, सुतिथि त्ति अ आवगा ॥ संखडि संखडि बूआ, पणिअट्ठ त्ति तेणगं । बहुसमानि तित्थाणि, आवगाणं विआगरे ।
॥३७॥ तहा नईओ पुण्णाओ, कायतिज ति नो वए । नावहिं तारिमाउ ति, पाणिपिज्ज त्ति नो वए ।
॥ ३८॥ बहुवाहडा अगाहा, बहुसलिलुप्पिलोदगा। बहुवित्थडोदगा आवि, एवं भासिज्ज पण्णवं ॥ ३९ ॥ तहेव सावज जोगं, परस्सट्टा अनिहि। कीरमाणं ति वा नच्चा, सावजं न लवे मुणी ॥ ४० ॥ सुकडि त्ति सुपक्कि त्ति, सुच्छिन्ने सुहडे मडे । सुनिट्ठिए सुलट्ठित्ति, सावज्ज वजए मुणी । ४१ ॥
पयत्तपक्कि त्ति व पक्कमालवे, पयत्तछिन्न त्ति व छिन्नमालवे ।।
__ पयत्तलट्ठित्ति व कम्महेउअं, पहारगाढि त्ति व गाढमालवे । ॥४२॥ सव्वुक्कसं परग्धं वा, अउलं नत्थि एरिसं । अविकिअमवत्तत्वं, अचिअत्तं चेव नो वए ॥ ४३ ।। सबमेअं वइस्सामि, सबमेअं त्ति नो वए । अणुवीइ सवं सवत्थ, एवं भासिज्ज पण्णवं ॥ ४४ ॥ सुक्की वा सुविक्की, अकिज्ज किजमेव वा । इमं गिण्ह इमं मुंच, पणिणं नो विआगरे ॥ ४५ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
अप्पग्धे वा गहग्घे वा, कए वा विक्कए वि वा। पडिअढे समुप्पन्ने, अणवलं विआगरे ॥ ४६॥ बहेवासंजयं धीरो, आस एहि करेहि वा। सयंचिट्ठ वयाहित्ति, नेवं भासिज्ज पण्णवं ॥४७॥ बहने इमे असाहू, लोए बुचंति साहुणो। न लवे असाहुं साहुत्ति, साहुं साहुत्ति आलवे ॥ ४८ ॥ नागदसणसंपन, संजमे अ तवे रयं । एवं गुणसमाउत्तं, संजय साहुमालवे ॥ ४९ ॥ देवाणं मणुआणं च, तिरिआणं च बुग्गहे। अमुगाणं जओ होउ, मा वा होउत्ति नो वए ॥ ५० ॥
वाओ वुटुं व सीउण्हं, खेमं धायं सिवं ति वा। कया णु हुज एयाणि, मा वा होउ ति नो वए ॥५१॥ ... तहेव मेहं व नहं व मणवं, न देवदेव ति गिरं वइज्जा । समुच्छिए उन्नए वा पओए, वइज्ज वा बुट्ट बलाहय त्ति ॥ ५२ ॥ अंतलिक्ख त्ति णं बृआ, गुज्झाणुचरिअ ति । रिद्धिमंतं नरं दिस्स, रिद्धिमंतं ति आलवे ॥ ५३ ॥ तहे सावजणुमोअणी गिरा, जा य परोवघायणी । से कोह लोह भय हास माणवो, न हासमाणो विगिरं वइजा ॥ ५४॥ सुवक्कसुद्धिं समुपेहिआ मुणी, गिरं च दुटुं परिवज्जए सया । मिश्र अदुढे अणुवीइ भासए, सयाण मज्झे लहई पसंसणं ॥ ५५ ॥ भासाइ दोसे अगुणे अजाणिआ,तीसेअदुढे परिवजए सया। छम संजए सामणिए सया जए, बइज्ज बुद्धे हिमाणुलोकं ॥ ५६ ॥ परिक्खभासी सुसमाहिइंदिए, चउक्कसायावगए अणिस्सिए ।
स निधुणे धुत्तमलं पुरेकडं, आराहए लोगमणिं तहा परं ।। ५७ ॥ त्ति बेमि ॥ इअ सुवक्कसुद्धीनामं सत्तमं अन्झयणं समत्तं ॥ ७ ॥
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श्रीदसवैकालिकसूत्र - अट्ठमाध्ययनम् ॥ अह आयारयणिही अट्टममज्झयणं ॥
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संथारं अदुवासणं परिट्ठाविज्ज संजय ॥
१ ॥
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२ ॥
१० ॥
११ ॥
१२ ॥
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।
आयारपणिहिं लधुं, जहा काय भिक्खुणा । तं मे उदाहरिस्सामि, आणुवि सुह मे पुढविदगअगणिमारुअ, तणरुक्खस्स वीयगा । तसा अ पाणा जीव त्ति, इइ वृत्तं महेसिणा ॥ तेर्सि अच्छणजोएण, निचं होअन्वयं सिआ । मणसा कायवक्केण, एवं हवइ संजए ॥ ३ ॥ पुढविं भित्तिं सिलं लेलुं, नेव भिंदे न संलिहे । तिविहेण करणजोएण, संजए सुसमाहिए || ४ || सुद्धपुढवीं न निसीए, ससरक्खम्मि अ आसणे । पमज्जित्तु निसीइज्जा, जाइत्ता जस्स उग्गहं || ५ || सीओदगं न सेविजा, सिलावुटुं हिमाणि अ । उसिणोदधं तत्तफासुअं, पडिगाहिज्ज संजए ॥ ६॥ उदउल्लं अप्पणो कार्य, नेव पुंछे न संलिहे । समुप्पेड तहाभूअं, नो णं संघट्टए मुणी ॥ ७ ॥ इंगालं अगणि अचि, अलायं वा सजोइअं । न उंजिज्जा न घट्टिज्जा, नो णं निव्वावए मुणी ॥ ८ ॥ तालिअंटेण पत्तेण, साहाए विहुयणेण वा । न वीइज्ज अप्पणो कार्य, वाहिरं वा वि पुग्गलं ॥ ९ ॥ तणरुक्खं न छिंदिज्जा, फलं मूलं च कस्सह । आमगं विविहं बीअं, मणसा वि ण पत्थए ॥ गणेसु न चिट्टिज्जा, वीएसु हरिएसु वा । उदगम्मि तहा निचं, उत्तिंगपणगेसु वा ॥ तसे पाणे न हिंसिज्जा, वाया अदुव कम्मुणा । उवरओ सवभूएसु, पासेज्ज विविहं जगं ॥ अट्ठ मुहुमाइ पेहाए, जाई जाणित्त संजए । दयाहिगारी भूएस, आस चिट्ठ सहि वा कराई अड्ड सुहुमाई, जाई पुच्छिज्ज संजए। इमाई ताई मेहावी, आइक्खिज्ज विअक्खणो सिहं पुप्फसुहुमं च, पाणुतिंग एहेव य पणगं बीअ हरिअं च, अंडसुहुमं च अट्टमं ॥ एवमेआणि जाणित्ता, सबभावेण संजए । अप्पमत्तो जए निचं, सविंदिअसमाहिए ॥ धुवं च पडिले हिज्जा, जोगसा पायकंबलं । सिज्जमुच्चारभूमिं च उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाणजल्लिअं । फासुअं पडिले हित्ता, विसित्तु परागारं पाणट्ठा भोअणस्स वा । जयं चिट्ठे मिअं भासे, न य रुवेसु मणं करे ॥ बहु सुणे कण्णेहिं, बहुं अच्छीहिं पिच्छइ । न य दिट्ठे सुअं सव्वं भिक्खू अक्खाउमरिह || सुअवा जइ वा दिट्ठ, न लविज्जोवघाइअं । न य केण उवाएणं, गिहिजोगं समायरे ॥ २१ ॥ निट्ठाणं रसनीज्जूट, भदगं पावगं ति वा । पुट्ठो वावि अपुट्ठो वा, लाभालाभं न निद्दिसे || २२ || नय भोअणम्मि गिद्धो, चरे उंछं अयंपिरो । अफासुंअं न मुजीज्जा, कीअमुद्दे सिआर्ड || २३ || सनिहीं च न कुव्विज्जा, अणुमायं पि संजए । भुहाजीची असंबद्धे, हविज्ज जगनिस्सिए ॥ २४ ॥ लहवित्ति सुसंतुट्ठे, अषिच्छे सुहरे सिआ । आसुरतं न गच्छिज्जा, सुचाणं जिणसासणं ।। २५ ।। कण्णसुक्खेहिं सहेर्हि, प्रेमं नामिनि वेसए । दारुणं ककसं फासं, कारण अहिआसए ।। २६ ।। खुहं पिवासं दुरिसज्जं, सीउन्हं अरई भयं । आहिआसे अव्बहिओ देहदुःखं महाकथं ।। २७ ॥ अत्थं गयम्मि आइच्चे, पुरत्था अ अणुग्गए । आहार भाइअं सव्वं, मणसा विण पत्थए || २८ ॥ अर्तितिणे अचवले, अप्पभासी, मिआसणे । हविज्ज उअरे दंते, थोवं लद्धुं न खििसए ।। २९ ।। न बाहिर परिभवे अत्ताणं न समुकसे । सुअलामे न मज्जिज्जा, जच्चा तबस्सि बुद्धिए ।। ३० ॥
१९ ॥
२० ||
१३ ॥
१४ ॥
१५ ॥
१६ ॥
१७ ॥
१८ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला. से जाणमजाणं वा, कटु आहम्मिश्र पयं । संवरे खिप्पमप्पाणं, बीअं तं न समायरे ॥ ३१॥ अणायारं परकम्म, नेव गृहे न निण्हवे । सुई सया वियडभावे, असंसत्ते जिंइदिए ॥ ३२ ॥ अमोहं वयणं कुज्जा, आयरीअस्स महप्पणो । तं परिगिज्झ वायाए, कम्मुणा उववायए ॥ ३३ ॥ अधुवं जीविअं नचा, सिद्धिमग्गं विआणिआ। विणिअट्टिज्ज मोगेमु, आउं परिमिअमप्पणो॥ ३४ ॥ बलं थामं च पेहाए, सद्धामारुग्ममप्पणो । खित्तं कालं च विनाय, तहप्पाणं निजुंजए ॥ ३५ ।। जरा जाव न पीडेइ, वाही जाव न वड्डइ । जाविदिआ न हायंति, ताव धम्मं समायरे ॥ ३६ ॥ कोहं माणं च मायं च, लोभं च पाववढणं । वमे चत्तारि दोसे उ, इच्छंतो हिअमप्पणो ॥ ३७ ॥ कोहो पीई पणासेइ, माणो विणयनासणो। माया मित्ताणि नासेइ, लोभो सबविणासणो ॥ ३८ ॥ उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे । मायम जवभावेण, लोभ संतोसओ जिणे ॥ ३९ ॥
कोहो अ माणो अ अणिग्गहीआ, माया अ लोभो अ पवड्डमाणा । . चत्तारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाइ पुणब्भवस्स ॥ ॥४०॥ रायणिएसु विणयं पउंजे, धुवसीलयं राययं न हावइज्रा।
कुम्मुच अल्लीणपलीणगुत्तो, परक्कमिजा तवसंजम्मि ॥ ॥४१ ।। निदं च न बहु मनिज्जा, सप्पहासं विवज्जए। मिहो कहाहिंन रमे, सज्झायम्मि रओसया ॥ ४२ ॥ जोगं च समणधम्मम्मि, जुजे अनलसो धुवं । जुत्तो अ समणधम्मम्मि, अटुं लहइ णणुत्तरं ।। ४३ ॥ इहलोगपारत्तहिअं, जेणं गच्छइ सुग्गई । बहुस्सुअं पज्जुवासिज्जा, पुच्छिज्जत्थविणिच्छअं ॥ ४४ ॥ हत्थं पायं च कायं च, पणिहाय जिइदिए । अल्लीणगुत्तो निसिए, सगासे गुरुणो मुणी ॥ ४५ ॥ न पक्खओ न पुरो, नेव किच्चाण पिट्ठओ। न य ऊरु समासिज्ज, चिट्ठिज्जा गुरुणतिए ॥ ४६ ।। अपुच्छिओ न भासिज्जा, भासमाणस्स अंबरा। पिट्टिमंसं न खाइज्जा, मायामोसं विवज्जए ॥ ४७ ॥
अप्पत्ति जेण सिआ, आसु कुप्पिज्ज वा परो। सव्वसो तं न भासिज्जा, भासं अहिअगामिणि ॥
॥४८॥ दिटुं मिअं असंदिद्धं, पडिपुन्नं विअं जिअं । अयंपिरमणुधिग्गं, भासं निसिर अत्तवं ॥ ४९ ॥ आयारपन्नत्तिधरं, दिट्ठिवायमहिज्जगं । वायविक्खलि नच्चा, न तं उवहसे मुणी ॥ ५० ॥ नक्खत्तं सुमिणं जोगं, निमित्तं मंतभेसजं । गिहिणो तं न आइक्खे, भूआहिगरणं पयं ।। ५१॥ अन्नदं पगडं लयणं, भइज्जा सयणासणं । उच्चारभूमिसंपन्न, इत्थीपसुविवज्जिअं ॥ ५२ ।। विवित्ता अ भवे सिज्जा, नारीणं न लवे कह। गिहिसंथवं न कुज्जा, कुज्जा साहूहि संथवं ॥ ५३ ॥ जहा कुक्कुडपोअस्स, निचं कुललओ भयं । एवं खु बंभयारिस्स, इत्थीविग्गहओ भयं ॥ ५४ ।। चित्तमित्तिं न निज्झाए, नारिं वा सअलंकि। भक्खरं पिव दळूणं, दिहि पडिससमाहरे ॥ ५५ ॥ हत्थपायपडिच्छिन्नं, कन्ननासविगप्पि। अवि वासमयं नारिं, बंभयारि विवज्जए ॥ ५६ ॥ विभूसा इत्थिसंसग्गी, पणीअं रसभोअणं । नरस्सत्तगवेसिस्स, विसं तालउडं जहा ॥ ५७ ॥ अंगपञ्चंगसंठाणं, चारुल्लविअप्पेहि। इत्थीणं तं न गिज्झाए, कामरागविवड्डणं ॥ ५८ ॥ विसएसु मणुण्णेसु, पेमं नाभिनिवेसए । अणिचं तेसि विण्णाय, परिणाम पुग्गलाण उ ॥ ५९॥
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श्रीदसवैकालिकसूत्र - अट्ठमाध्ययनम्
(९३)
६१ ॥
पोग्गलाणं परिणामं, तेसिं नच्चा जहा तहा । विणीअतिण्हो विहरे, सीईभूएण अप्पणा ॥ ६० ॥ बाइ सङ्ग्राह निक्खतो, परिआयट्ठाणमुत्तमं । तमेव अणुपालिज्जा, गुणे आयरियसंमए ॥ तवं चिमं संजमजोगयं च सज्झायजोगं च सया अहिट्ठ ए । सूरे व सेणाइ सम्मत्तमाउहे, अलमप्पणो होइ अलं परेसिं ।। ६२ ।। सज्झायसुज्झाणरयस्स ताइणो, अपावभावस्स तवे रयस्स । विसुज्झई जं सिमले पुरेकर्ड, समीरिअं रुप्पमलं व जोइणा ।। ६३ ।। से तारिसे दुक्खसहे जिइंदिए, सुएण जुत्ते अममे अकिंचणे । विरायई कम्मघणम्मि अवगए, कसिणन्भपुडावगमै व चंदिम ॥ ६४ ॥ तिमि || इअ आयारपणिही णाम अट्ठममज्झयणं समत्तं ॥ ८ ॥
॥ अह विणयसमाही णाम नवममज्झयणं ॥ थंभा व कोहा व मयप्पमाया, गुरुस्सगासे विणयं न सिक्खे । सो चेव उ तस्स अभूइभावो, फलं व कीअस्स वहाय होइ ॥ १ ॥ जे आवि मंदिति गुरुं वित्ता, डहरे इमे अप्पसुए त्ति नच्चा । हीलंति मिच्छं पडिवजमाणा, करंति आसायण ते गुरूणं ॥ २ ॥ पईए मंदा विभवंति एगे, डहरा वि अ जे सुअबुद्धोववेआ । आयारमंता गुणसुट्ठिअप्पा, जे हीलिआ सिहिरिव भास कुजा || ३ || जे आवि नागं डहरं ति नच्चा, आसायए से अहिआय होइ । वारियों पि हु हीलयंतो, निअच्छई आइपहं खु मंदो (दे) ॥ ४ ॥ सीविसो वावि परं सुरुट्ठो, किं जीवनासाउ परं न कुजा । आयरिआया पुण अप्पसन्ना, अबोहिआसायण नत्थि मुक्खो ॥ ५ ॥ जो पावगं जलिअमवक्कमिज्जा, आसीविसं वा वि हु कोवइज्जा । जो वा विसं खायइ जीविअट्ठी, एसोवमासायणगा गुरूणं ॥ ६ ॥ सिआ हु से पावय नो डहिज्जा, आसी विसो वा कुबिओ न भक्खे | सिआ विसं हालहलं न मारे, न आवि मुक्खो गुरुहीलणाए ॥ ७ ॥ जो पवयं सिरसा भित्तुमिच्छे, सुत्तं व सीहं पडिबोहइज्जा । जो वा दए सत्तिअग्गे पहारं, एसोबमासायणया गुरूणं ॥ ८ ॥ सिआ हु सीसेण गिरिं पि भिंदे, सिआ हु सीहो कुविओ न भक्खे | सिआन भिंदिन वसत्तिअग्गं, न आवि मुक्खो गुरुहीलसाए ॥ ९ ॥ आयरिअ पाया पुण अप्पसन्ना, अबोहिआसायण नत्थि मुक्खो । तम्हा अणाबाहसुहाभिकंखी, गुरुप्पसायाभिमुो रमिज्जा ॥ १० ॥ जहाहि अग्गी जलणं नमसे, नाणाहुईमंतपयाभिसित्तं ।
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(९४)
-खाध्यायमाला.
एवायरिअं उवचिट्ठइज्जा, अणंतनाणोवगओ वि संतो ॥११॥ जस्संतिए धम्मपयाइ सिक्खे, तस्संतिए वेणइयं पउंजे । सकारए सिरसा पंजलीओ, कायग्गिरा भो मणसा अ निचं ॥ १२ ॥ लज्जा दया संजमबंभचेरं, कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं । जे मे गुरू सययमणुसासयंति, तेहिं गुरू सययं पूजयामि ॥ १३ ॥ जहा निसंते तवणचिमाली, पभासई केवलभारहं तु । एवायरिओ सुअसीलबुद्धिए, विरायई सुरमझे व इंदो ॥ १४ ॥ जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो, नक्खत्ततारागणपरिवुडप्पा । खे सोहई विमले अब्भमुक्के, एवं गणी सोहइ भिक्खुमुज्झे ॥ १५॥ महागरा आयरिआ महेसी, समाहिजोगे सुअसीलबुद्धिए । संपाविउकामे अणुत्तराई, आराहए तोसइ धम्मकामी ॥ १६ ॥ सुच्चा ण मेहावी सुभासिआई, सुस्स्सए आयरिअप्पमत्तो। आराहइत्ताण गुणे अणेगे, से पावई सिद्धिमणुत्तरं त्ति बेमि ॥ १७ ॥ ॥ इअ विणयसमाहिज्झयणे पढमो उद्दसो समत्तो ॥
मूलाउ खंघप्पभवो दुमस्स, खंधाउ पच्छा समुर्विति साहा ।
साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता, तओसि (से)पुष्पं च फलं रसोअ॥ ॥१॥ एवं धम्मस्स विणओ, मूलं परमो अ से मुक्खो, जेण कित्तिं सुअं सिद्धं, नीसेसं चाभिगच्छइ ॥ २ ॥ जे अ चंडे मिए थद्धे, दुबाई नियडी सढे। बुज्झइ से अविणीअप्पा, कटुं सोअगयं जहा ॥३॥ विणयम्मि जो उवाएणं, चोइओ कुप्पइ नरो । दिव्वं सो सिरिमिजंति, दंडेण पडिसेहिए ॥४॥ तहेव अविणीअप्पा, उववज्झा हया गया। दीसंति दुहमेहंता, आभिओगमुवडिआ ॥५॥ तहेव सुविणीअप्पा, उववज्झा हया गया। दीसंति सुहमेहंता, इड्डि पत्ता महायसा ॥ ६ ॥ तहेव अविणीअप्पा, लोगम्मि नरनारिओ । दीसंति दुहमेहंता, छाया ते विगलिंदिआ ॥ ७ ॥ दंडसत्थपरिज्जुन्ना, असब्भवयणेहि अ । कलुणा विवन्नछंदा, खुप्पिवासपरिग्गया ॥ ८॥ तहेव खुविणीअप्पा, लोगसि नरनारिओ । दासंति सुहमेहंता, इढिं पत्ता महायसा ॥९॥ तहेव अविणीअप्पा, देवा जक्खा अ गुज्झगा । दीसंति दुहमेहंता, आभिओगमुवट्टिआ। १० ॥ तदेव सुविणीअप्पा, देवा जक्खा अ गुज्झगा। दीसंति सुहमेहंता, इड्डेि पत्ता महायसा ॥ ११ ॥ जे आयरिअउवज्झायाणं, मुस्सूसावयणं करे । तेसिं सिक्खा पवड्दंति, जलसित्ता इव पायवा ॥ १२ ॥ अप्पणट्ठा परट्ठा वा, सिप्पा णेउणिआणि अ । गिहिणो उपभोगट्ठा, इहलोगस्स कारणा ॥ १३ ॥ जेण बंधं वहं घोरं, परिआवं च दारुणं । सिक्खमाणा निअच्छंति, जुत्ता ते ललिइंदिआ ॥ १४ ॥ ते वि तं गुरु पूअंति, तस्स सिप्पस्स कारणा । सकारंति नमसंति, तुट्ठा निर्देसवत्तिणो ।। १५ ।। किं पुण जे सुअग्गाही, अणंतहिअकामए । आयरिआ जं वए भिक्खू, तम्हा तं नाइवत्तए ॥ १६ ॥
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श्रीदसवैकालिकसूत्र-नवमाध्ययनम्
नीअं सिज्जं गई ठाणं, नीअंच आसणाणि अ। नीअंच पाए वंदिज्जा, नीअंकुज्जा अ अंजलिं ॥ १७ ॥ संघट्टइत्ता काएणं, तहा उवहिणामवि । खमेह अवराहं मे, वइज्ज न पुणु त्ति अ॥१८॥ दुग्गओ वा पओएणं, चोइओ वहइ रहं । एवं दुबुद्धि किच्चाणं, वुत्तो कुत्तो पकुबइ ॥ १९॥ आलवंते लवंते वा, न निसिज्जाए पडिस्सुणे । मुत्तूण आसणं धीरो, सुस्सूसाए पडिस्सणे ॥ २० ॥ कालं छंदोवयारं च, पडिलेहिताण हेउहिं । तेण तेण उवाएण, तं तं संपडिवायए ॥ २१ ॥ विवति अविणीअम्स, संपत्ती विणिअस्स य । जस्सेयं दुहओ नायं, सिक्खं से अभिगच्छइ ॥ २२ ॥
जे आवि चंडे मइइड्डिगारवे, पिमुणे नरे साहसडीणपेसणे । अदिट्टधम्मे विणए अकोविए,असंविभागी न हु तस्स मुक्खो ॥ ॥२३॥ निद्देसवित्ती पुण जे गुरूणं, सुअत्थधम्मा विणयम्मि कोविआ।
तरित्तु ते ओधमिणं दुरुत्तरं, खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया ॥ ॥२४॥ त्ति बेमि इअ विणयसमाहिणामज्झयणे बीओ उद्देसो समत्तो॥
आयरिअ(अ) अग्गिमिवाहिअग्गी, सुस्सूसमाणो पडिजागरिजा । • आलोइंअं इंगिअमेव नच्चा, जो छंदमाराहयई स पुज्जो ॥१॥
आयारमट्ठा विणयं पउंजे, सुस्सूममाणो परिगिज्झ वकं । जहोवइ8 अभिकंखमाणो, गुरुं च नासायइ जे स पुज्जो ॥२॥ रायणिएसु विणयं पउंजे. डहरा वि अ जे परिआयजिट्ठा । नीअत्तणे वट्टइ सच्चवई, ओवायवं वक्करे स पुजो ॥ ३ ॥ अन्नायउंछं चरई विसुद्धं, जवणट्ठया समुआणं च निचं ।। अलधुरं नो परिदेव इज्जा, लडुं न विकत्थई स पुज्जो ॥ ४ ॥ संथारसिजासणभत्तपाणे, अपिच्छया अइलाभे वि संते । जो एवमप्पाणभितीसइज्जा, संतोसपाहन्नरए स पुज्जो ॥५॥ सक्का सहेउं आसाइ कंटया, अओमया उच्छहया नरेणं । अणासए जो उ सहिज कंटए, वईमए कन्नसरे स पुज्जो ॥ ६ ॥ मुहुत्तदुक्खा उ हवंति कंटया, अओमया ते वि तओ सुउद्धरा । वायादुरुत्ताणि दुरुद्धराणि, वेराणुबंधीणि मयुम्भयाणि ॥ ७॥ समावयंता वयणाभिघाया, कन्नंगया दुम्मणिरं जाणंति । धम्मु त्ति किच्चा परमग्गसूरे, जिहदिए जो सहई स पुजो ॥ ८ ॥ अवण्णवायं च परम्मुहस्स, पञ्चक्खओ पडिणीअं च भासं । ओहारणिं अप्पिअकारणिं च, भासं न भासिज्ज सया स पुज्जो ॥९॥ अलोलए अक्कुहए अमाई, अपिमुणे आवि अदीणवित्ती । नो भावएनो वि अ भाविअप्पा, अकोउहल्ले असया स पुजो ॥ १० ॥
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(९६)
श्रीजैनसिद्धान्त- - खाध्यायमाला
गुणेहि साहू अगुणेहि साहू, गिण्हाहि साहू गुण मुंचऽसाहू | विआणिआ अप्पगमप्पणं, जो रागदोसेहिं समो स पुज्जो ॥ ११ ॥ तदेव डहरं च महल्लगं वा, इत्थी पुमं पवइअं गिहिं वा । at for a वि अखंसइज्जा थंभं च कोहं च चए पुज्जो ॥ १२ ॥ जे माणिआ सयययं माणयंति, जत्तेण कन्नं व निवेशयंति । ते माण माणरि तवस्सी, जिइंदिए सच्चरए स पुज्जो तेसिं गुरूणं गुणसायराणं, सुच्चाण मेहावि सुभासिआई । चरे मुणी पंचरए तिगुत्तो, चउकसायावगए स पुज्जो ॥ १४ ॥ गुरुमिह सय डिगरिअ मुणी, जिणमयनिउणे अभिगमकुसले | धुणिअ रयमलं पुरेकडं, भासुरमउलं गईं वइ ( गय ) ॥ १५ ॥ त्ति बेमि || इअ विणयसमाहीए तइओ उद्देसो समत्तो ॥
॥ १३ ॥
I
सुअं मे आउलं - तेणं भगवथा एवमक्खायं । इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमा - हिठाणा पन्नत्ता । कयरे खलु ते थेरेहिं भगवतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता । इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमा हिट्ठाणा पन्नत्ता । तं जहा - विणयसमाही, सुअसमाही, तवसमाही, आयारसमाही । “विणऐ सुए अ तवे, आयारे निच्च पंडिआ । अभिरामयंति अप्पाणं, जे भवंति जिइंदिआ " चउबिहा खलु विणयसमाही भवः । तंजहा - अणुसासिज्जतो, सुस्वसइ । सम्मं पडिवज्जइ । वयमाराहइ । न य भवइ अत्तसंपग्गहिए । चउत्थं पयं भवइ । भवइ अ इत्थ सिलोगो ॥ "पे हिसाणुसासणं, सुस्सूसइ तं च पुणो अहिट्ठिए । न य माणमएण मज्जर, विणयसमाहिआययट्ठिए" || २ || चउविहा खलु सुअसगाही भवइ । तंजहा - सुअं मे मविस्सर ति अज्झाइअन्वं भवइ । एगग्गचित्तो भविस्सामि त्ति अज्झाइअवयं भवइ । अप्पाणं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइअवयं भवइ । ठिओ परं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइअवयं भवइ । चउत्थं पथं भवः । भवइ अ इत्थ सिलोगो || " नाणमेगग्गचित्तो अ, ठिओ अ ठावड़ परं । सुआणि अ अहिज्जित्ता, रओ सुअसाहिए" ॥ ३॥ चहा खलु तवसमाही भवइ । तंजहा - नो इहलोगट्टयाए तवमहिट्ठिज्जा, नो परलोगट्टयाए तवमहिट्टिज्जा, नो कित्तिवन्नसह सिलोगडआए तवमहिट्ठिजा, नन्नत्थ निज्जरट्टयाए तत्रमहिद्विज्जा ।
उत्थं पर्यं भवइ । भवइ अ इत्थ सिलोगो || "विविहगुणतवोरए, नित्वं भवइ थिरासए निजरट्ठिए । तवसा धुण पुराणपावगं, जुत्तो सया तवसमाहिए" || ४ || चउव्विहा खलु आयारसमाही भवइ । तं जहा - नो इहलो गट्टयाए आयारम हिट्ठिज्जा, नो नो परलो गट्टयाए आगारमहिडिज, नो कित्तिवन्नसद्द सिलोगट्टयाए आयारमहिट्ठिज्जा, नन्नत्थ - आरहंतेहिं हेऊहिं आयारम हिट्ठिज्जा । चउत्थं पयं भवइ । भवइ अ इत्थ सिलोगो । “जिगत्रयणरए अर्तितणे, पडिपुन्नाययमाययट्ठिए । आयारसमाहिसंवुडे, भवइ अ दंते भावसंघ || ४ || अभिगम चउरो समाहिओ, सुविसुद्ध सुसमाहिअप्पणो । विउलहिअं सुद्दावहं पुणो, कुवइ अ सो पयखे ममप्पणी || ६ || जाइमरणाओ मुच्चर इत्थत्थं
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श्रीदसवैकालिकसूत्र-दसमाध्ययनम् च चएइ सबसो । सिद्धे वा हवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्किए ॥ ७ ॥ त्ति बेमि ॥ इअ विणयसमाही नाम.चउत्थो उद्देसो नवममज्झयणं समत्तं ॥९॥
॥ अह भिक्खू नामं दसममज्झयणं॥ तिक्खम्ममाणाइ'अ बुद्धवयणे, निचं चित्तसमाहिओ हविज्जा । इत्थीण वसं न आवि गच्छे, वंतं नो पडिआवइ जे स भिक्खू ॥१॥ पुढविं न खणे न खणावए, सीओदगं न पिए न पिआवए । अगणि सत्थं जहा सुनिसिअं, तं न जले न जलावए जेस भिक्खू ॥ २ ॥ अनिलेण न वीए न वीयावए, हरियाणि न छिंदे न छिंदावए । बीआणि सया विवज्जयतो, सचित्तं नाहारए जे स भिक्खू ॥३॥ वहणं तसथावराणं होइ, पुढवितणकट्ठनिस्सिआणं । तम्हा उद्देसि न भुंजे नो वि, पए न पयावए जे स भिक्खू ॥ ४ ॥ रोइअ नायपुत्तवयणे, अत्तसमे मनिज छप्पि काए। पंच य फासे महत्वयाई, पंचासवसंवरे जे स भिक्खू ॥ ५ ॥ चत्तारि वमे सया कसाए, धुवजोगी हविज बुद्धवयणे । अहणे निजायरूवरयए, गिहिजोगं परिवजए जे स भिक्खू ॥ ६ ॥ सम्मदिट्ठी सया अमूढे, अस्थि हु नाणे तवे संजमे अ । तवसा धुणइ पुराणपावगं, मणवयकायमुसंवुडे जे स भिक्खू ।। ७ ॥ तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमसाइमं लभित्ता । होही अट्ठो सुए परे वा, तं न निहे न निहावए जे स भिक्खू ॥ ८ ॥ तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमसाइमं लभित्ता । छदिअ साहम्मिआण मुंजे, भुच्चा सज्झायरए जे स भिक्खू ॥ ९ ॥ न य वुग्गहिअं कहं कहिज्जा, न य कुप्पे निहुइंदिए पसंते । संजमधुवजोगजुत्ते, उवसंते उवहेडए जे स भिक्खू ॥ १० ॥ जो सहइ हु गामकंटए, अक्कोसपहारतजणाओ अ। भयभेरवसहसप्पहासे, समसुहदुक्खसहे अ जे स भिक्खू ॥ ११ ॥ पडिम पडिवजिआ समाणे, नो भायए भयभेरवाई दिस्स । विविहगुणतवोरए अनिच्चं, न सरीरं चाभिकंखए जे स भिक्खू ॥ १२ ॥ असई वोसिट्ठचत्तदेहे, अढे व हए लूसिए वा । पुढविसमे मुणी इविजा. अनिआणे अकोउहल्ले जे स भिक्खू ॥ १३ ॥ अभिभूअ कारण परीसहाई, समुद्धरे जाइपहाउ अप्पयं । विउत्तु जाईमरणं महन्भयं, तवे रए सामणिए जे स भिक्खू ॥ १४॥
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(९८)
श्रीजैन सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
१७ ॥
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हत्थसंज पायसंजए, वायसंजर दिए । अज्झप्परए सुसमाहिअप्पा, सुत्तत्थं च विआणइ जे स भिक्खू ।। १५ ।। उबहिम्मि अमुच्छिए अगिद्धे, अन्नायउंछं पुलनिप्पुलाए । कथविक्कयसन्निहिओ विरए, सबसंगावगए अ जे स भिक्खू ॥ १६ ॥ अलोल(लु)भिक्खू न रसेसु गिज्झे, उंछं चरे जीविअनाभिकखी । इड्डि च सकारण पूअणंच, चए ठिअप्पा अणिहे जे स भिक्खू ॥ न परं वइज्जासि अयं कुसीले, जेणं च कुप्पिज न तं वइज्जा । जाणिअ पत्ते पुन्नपावं' अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू ॥ न जाइत्ते न य रूत्रमत्ते, न लाभमत्ते न सुएण मत्ते । मयाणि सव्वाणि विवज्जइत्ता, धम्मज्झाणरए जे स भिक्खू ॥ १९ ॥ पवेअए अजपयं महामुणी, धम्मे ठिओ ठावयइ परं पि । निक्खम्म वज्जिज्ज कुसील लिंगं, न आवि हासं कुहए जे स भिक्खु ॥ २० ॥ तं देहवासं असुई असासयं, सया चए निच्चहिअट्ठिअप्पा | छिंदत्तु जाइमरणस्स बंधणं, उवेइ भिक्खू अपुणागमं गई ॥ २१ ॥ त्ति बेमि || इअ भिक्खु नामं दसमज्झयणं समत्तं ॥
१८ ॥
|| अह रइवका पढमा चूलिआ ||
इह खलु भो पचइएण उप्पण्णदुक्खेणं संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं ओहाणुप्पेहिणा अणोहाइएण चैव हयरस्सिगयंकुसपोयपडागाभूआई इमाई अट्ठारस ठाणाई सम्मं संपडिलेहिअवाइं भवंति । तंजहा हं भो ! दुस्समाइ दुप्पजीवी || १ || लहुसगा इत्तरिआ गिहीणं कामभोगा || २ || भुज्जो अ सायबहुला मणुस्सा || ३ || इमे अ मे दुक्खे न चिरकालोवट्ठाइ भविस्सइ ॥ ४ ॥ ओमजणपुरकारे ||५|| तस्स य पडिआयणं || ६ || अहरगइवासोवसंपया || ७ | दुल्लहे खलु भो ! गिहीणं धम्मे गिहिवासमझे वसंताणं ||८|| आयंके से वहाय होइ || ९ || संकप्पे से वहाय होइ ||१०|| सोवकेसे गिहवासे, निरुवकेसे परिआए || ११ || बंधे गिहवासे, मुक्खे परिआए || १२ || सावज्जे गिहवासे, अणजे परिआए || १३ || बहुसाहारणा गिहोणं कामभोगा ॥ १४ ॥ पत्तेअं पुन्नभावं ।। १५ ।। अणिच्चे खलु भो! मणुआण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले || १६ | बहुं च खलु भो! पावं कम्मं पगडं || १७ || पावाणं च खलु भो ! कडाणं कम्माणं पुत्रिं दुच्चिन्नाणं दुष्पडिकंताणं वेत्ता मुक्खो नत्थि अवेइत्ता तवसा वा झोसइत्ता || १८ || अट्टारसमं पर्यं भवइ, भवइ अ इत्थ सिलोगोजयाय चयई धम्मं, अणजो भोगकारणा । से तत्थ मुच्छिए बाले, आयई नावबुझई ॥ १ ॥ जया ओहाविओ होइ, इंदो वा पडिओ छमं । सवधम्मपरिब्भट्ठो, स पच्छा परितप्पइ ॥ २ ॥ जया अ वंदिमो होइ, पच्छा होइ अदिमो । देवया व चुआ ठाणा, स पच्छा परितप्पड़ || ३ ॥ जया अ पूइमो होइ, पच्छा होड़ अपूइमो, राया व रज्जप-भट्ठो, स पच्छा परितप्पड़ || ४ |
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श्रीदसवैकालिकसूत्र-दसमाध्ययनम्
जया अमाणिमो होइ, पच्छाहोइ अमाणिमो । सिट्टित्व कबडे छूढो, स पच्छा परितप्पइ ॥५॥ जया अथेरओ होइ, समइकंतजुवणो। मच्छुच्च गलिं गलित्ता, स पच्छा परितप्पइ ॥६॥ जया अ कुकुडुंबस्स, कुतत्तीहिं विहम्मइ । हत्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पइ ॥ ७॥ पुत्तदारपरिकिन्नो, मोहसंताणसंतओ। पंकोसन्नो जहा नागो, स पच्छा परितप्पइ ॥८॥ अज्ज आहं गणी हुँतो, भाविअप्पा बहुस्सुओ । जइ हरमंतो परिआए, सामन्ने जिणदेसिए ॥९॥ देवलोगसमाणो अ, परिआओ महेसिणं । रयाणं, अरयाणं च, महानरयसारिसो ॥१०॥
अमरोवमं जाणिअ सुक्खमुत्तमं, रयाण परिआए तहारयाणं । निरओवमं जाणिअ दुक्खमुत्तम, रमिज तम्हा परिआयपंडिए ॥ ११ ॥ धम्माउ भट्ट सिरिओववेयं, जन्नग्गि विज्झायमिवप्पते। हीलंति णं दुविहिरं कुसीला, दाढुद्धिअं घोरविसं व नागं ॥ १२ ॥ इहेव धम्मो अयसो अकित्ती, दुनामधिज्जं च पिहुज्जणम्मि । चुअस्स धम्माउ अहम्मसेविणो, संभिन्नवित्तस्स य हिट्ठओ गई ॥ १३ ॥ मुंजित्तु भोगाइं पसज्झ चेअसा, तहाविहं कटु असंजमं बहुं । गइंच गच्छे अणहिज्झि दुहं, बोही असे नो सुलहा पुणो पुणो ॥ १४ ॥ इमस्स ता नेरइअस्स जंतुणो, दुहोवणीअस्स किलेसवत्तिणो । पलिओवमं झिज्जइ सागरोवमं, किमंग पुण मज्झ इमं मणोदुहं ॥ १५ ॥ न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सइ, असासया भोगपिवास जंतुणो । न चे सरीरेण इमेण विस्सइ, अविस्सई जीविअपञ्जवेण मे ॥ १६॥ जस्सेवमप्पा उ हविज निच्छिओ, चइज देहं न हु धम्मसासणं । तं तारिमं नो पइलिंति इंदिआ, उविति वाया व सुदंसणं गिरिं ॥ १७॥ इच्चेव संपस्सिअ बुद्धिमं नरो, आयं उवायं विविहं विआणिआ। कारण वाया अदु माणसेणं तिगुत्तिगुत्तो जिणवयणमहिट्ठिजासि ॥ १८ ॥ त्ति बेमि ।। इअ रइवक्का पढमा चूला समत्ता ॥१॥
JOB04
॥ अह विवित्तचरिया बीआ चूलिआ ॥ चूलिअं तु पवक्खामि, सुअं केवलिभासिअं । जं सुणित्तु सुपुण्णाणं, धम्मे उप्पज्जए मई ॥१॥ अणुसोअपट्ठिए बहुजणम्मि परिसोअलद्धलक्खणं । पडिसोअमेव अप्पा, दायवो होउकामेणं ॥ २ ॥ अणुसोअसुहोलोओ,पडिसोओ आसवो सुविहिआणाअणुसोओसंसारो,पडिसोओ तस्स उत्तारो ॥३॥ तम्हा आयारपरक्कमेण संवरसमाहिबहुलेणं । चरिआ गुणा अ नियमा अ, हुंति साहूण दट्ठवा ॥४॥
अणिएअवासो समुआणचरिआ, अन्नायउंछं पयरिक्कया अ। अप्पोवही कलहविवज्जणा अ, विहारचरिआ इसिणं पसत्था ॥ ५ ॥ आइन्नओ माणविवज्जणा अ, ओसन्नदिट्ठाहडभत्तपाणे ।
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(१००)
श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
संसदृकप्पेण चरिज्ज भिक्खू, तञ्जायसंसट्ट जई जइजा || ६ || अमज्जमंसासि अमच्छरीआ, अभिक्खणं निविगई गया अ । अमिक्खणं काउस्सग्गकारी, सज्झायजोगे पयओ हविज्जा ॥ ७ ॥ न पनि विज्जा सयणासणाई, सिजं निसिज्जं तह भत्तपाणं । गामे कुले वा नगरे व देसे, ममत्तभावं न कहिं पि कुज्जा ॥ ८ ॥ गिहिणो वेआवडिअं न कुज्जा, अभिवायणं वंदणपूअणं वा । असं किलिट्ठेहिं समं वसिज्जा, मुणी चरित्तस्स जओ न हाणी ।। ९ ।। नया लभेज्जा निणं सहायं, गुणाहिअं वा गुणओ समं वा । इक्को वि पावाईं विवज्जयंतो, विहरिज्ज कामेसु असज्जमाणो ॥ १० ॥ संवच्छरं वा वि परं पमाणं, बीअं च वासं न तहिं वसिज्जा । सुत्तस्स मग्गेण चरिज्जभिक्खू, सुतस्स अत्थो जह आणवे ॥ ११ ॥ जो पुवरत्तावररत्तकाले, संपिक्खए अप्पगमपणं । किं मे कडं किं च मे किचसेस, किं सकणिजं न समायरामि ॥ १२ ॥ किं परा पासइ किंच अप्पा, किं वाहं खलिअं न विवज्जयामि । sara सम्म अणुपासमाणो, अणागयं नो पडिबंध कुज्जा ॥ १३ ॥ जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं, कारण वाया अदु माणसेण । तत्थेव धीरो पडिसाह रिज्जा, आइन्नओ खिप्पमित्र क्खलीणं ॥ १४ ॥ जस्सेरिसा जोग जिंइदिअस्स, घिईमओ सप्पुरिसस्स निच । तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी, सो जीअइ संजमजीविएणं ॥ १५ ॥ अप्पा खलु सययं रक्खि अव्वो, सव्विंदिएहिं सुसमाहिएहिं । अरक्खिओ जाइप उवेइ, सुरक्खिओ सव्वदूहाण मुच्चइ || १६ || त्ति बेमि || इअ विवित्तचरिआ बीआ चूला समत्ता ॥
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॥ इअ दसवेआलिअं सुत्तं समत्तं ॥
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॥ श्रीमद्देवऋद्धिगणिक्षमाश्रमणप्रणीत ।। श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः।
जयइ जग जीव जोणी वियाणओ। जगगुरू जगाणंदो ॥ जगणाहो जगबंधू, जयइ जगप्पियामहोभयवं ॥ १॥ जयइ सुआणं पभवो । तित्थथराणं अपच्छिमो जयइ ॥ जयइ गुरूलोगाणं । जयइ महप्पा महावीरो ॥२॥ भदं सवं जगुज्जोयगस्स । भदं जिणस्स वीरस्स ॥ भई सुरासुरनमंसियस्स । भदं धुयरयस्स ॥ ३ ॥ गुणभवणगहण । सुयरयण भरियदंसणविसुद्धरत्थागा संघ नगर भदं ते । अखंड चारित्तपागारा ॥ ४ ॥ संजम तव तुंबारयस्स । नमो सम्मत्त पारियल्लस्स ॥ अप्पडिचक्कस्स जओ होउ सया संघचकस्स ।। ५॥ भदं सील पडागूसियस्स । तव नियम तुरय जुत्तस्स ॥ संघरहस्स भगवओ । सज्झाय सुनंदिघोसस्स ॥ ६ ॥ कम्मरय जलोह विणिग्गयस्स । सुयरयण दीहनालस्स ।। पंच महत्वय थिरकन्नियस्स । गुणकेसरालस्स ॥ ७ ॥ सावग जण महुअरि परिवडस्स । जिण सूर तेय बद्धस्स ॥ संघपउमस्स भद्द । समण गण सहस्स पत्तस्स ॥ ८॥ तव संजम मयलंछण । अकिरिय राहुमुह दुद्धरिसनिचं । जय संघ चंद । निम्मल सम्मत्त विसुद्ध जोहागा ॥ ९ ॥ पर तित्थिय गह पह नासगस्स । तवतेय दित्त लेसस्स ॥ नाणु जोयस्स जए भई दम संघ सूरस्स ॥ १०॥ भदं घिइ वेला परिगयस्स । सज्झाय जोग मगरस्स ॥ अक्खोहस्स भगवओ । संघ समुदस्स रुंदस्स ॥ ११ ॥ सम्म इंसण वर वइर दढ रूंढ गाढावगाढ पेढस्स ॥ धम्म वररयण मंडिय चामीयर मेहलागस्स ॥ १२ ॥ निय मूसिय कणय सिलायलुञ्जल जलंत चित्तकू. डस्स ॥ नंदण वण मणहर सुरभि सील गंधुद्धमायस्स ॥ १३ ॥ जीवदया सुंदर कंद रुद्दरिय मुणिवर मइंद इन्नस्स ॥ हेउ सय धाउ पगलंत रयणदित्तोसहि गुहस्स ॥ १४ ॥ संवर वर जल पग लिय उज्झर पविराय माणहारस्स ।। सावग जण पउर रवंत मोर नचंत कुहरस्स ।। १५ ॥ विणय नय पवर मुणिवर फुरंत विज्जुजलंत सिहरस्स । विविह गुण कप्प रुक्खग फलभर कुसुमाउल वणस्स ॥ १६ ॥ नाण वर रयण दिप्पंत कंत वेरुलिय विमल चूलस्स || वंदामि विणय पणओ संघ महामंदर गिरिस्स ॥ १७ ।। गुण रयणुजल कडयं सील सुगंधि तब मंडिउद्देसं ।। सुयवारसंगसिहरं संघ महामंदरं वंदे ॥ १८ ॥ नगर रह चक्क पउमे चंदे सूरे समुद्द मेरुम्मि ॥ जो उवमिजइ सययं तं संघगुणायरं वंदे ॥ १९॥ वंदे उसभं अजियं संभव मभिनंदण सुमइ सुप्पंभ सुपास।
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श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला.
ससि पुष्पदंत सीयल सिजसं वासुपुजं च ॥२०॥ विमल मणंत य धम्म सन्ति कुंथु अरं च मल्लिं : च ।। मुनिसुव्वय नमिनेमि पासं तह वद्धमाणं च ॥ २१ ॥ पढमत्थि इंदभूइ बीए पुणहोइ अग्गिभूइत्ति ॥ तईए य वाउभूई तओ वियत्ते सुहम्मेय ॥ २२ ॥ मंडिअ मोरिय पुत्ते अकंपिऐ चेव अयल भायाय ॥ मे यज्जेय पहासेय गणहरा हुंति वीरस्स ॥ २३ ॥ निव्वुइ पह सासणयं जयइ सया सब भाव देसणयं॥ कु समय मय नासणयं जिणिंदवर वीर सासणयं ॥२४॥ सुहम्मं अग्गिवेसाणं जंबुनामं च कासवं पभवं ॥ कच्चायणं वंदे वच्छं सिजेभवं तहा ॥ २५ ॥ जसमदं तुंगियं वंदे संभूयं चेव माढरं ।। भद्दबाहुं च पाइन्नं थूलभदं च गोयमं ॥ २६ ॥ ऐलावच्चसगोत्तं वंदामि महागिरि मुहत्थि च ॥ तत्तो कोसियगोतं बहुलस्स सरिवयं वन्दे ॥ २७ ॥ हारिय गुत्तं साइं च वंदिमो हारियं च सामजं ॥ वन्दे कोसिय गोत्तं संडिल्लं अन्ज जीयधरं ॥ २८ ॥ तिसमुदखायकित्तिं दीव समुद्देसु गहिय पेयालं ।। वंदे अञ्ज समुदं अक्खुभिय समुद्दगंभीरं ॥ २९ ॥ भणगं करगं झरगं पभावगं णाणदंसण गुणाणं ॥ वंदामि अज मंगुं सुय सागर पारगं धीरं ॥३०॥ वंदामि अज धर्म तत्तो वंदे य भद्द गुत्तं च ॥ तत्तोय अज वइरं तव नियम गुणेहिं वइरं समं ।। ३१ ।। वंदामि अन्ज रक्खिय खमणे रक्खिय चारित्त सबस्से ।। रयण करडंग भूओ अणुओगो जेहिं ॥ ३२ ॥ नाणम्मि दसण म्मिय तव विणए णिच्च काल मुज्जुत्तं ॥ अजं नंदिलखमणं सिरसा वंदे पसन्नमणं ॥ ३३ ॥ चड्ढउ वायगवंसो जलवंसो अन्ज नागहीणं ।। वागरण करण भंगिय कम्मपयडी पहाणाणं ॥३॥ जच्चजण धाउ समप्पहाण मुद्दिय कुवलय निहाणं ॥ वड्वउ वायगवंसो रेवइनक्खत्त नामाणं ॥३०॥ अयलपुरा णिक्खंते कालियसुय आणुओगिए धीरे ॥ बंभद्दीवगसीहे वायगपय मुत्तमं पत्ते ।'३६॥ जेसिं इमो अणु ओगो पयरइ अजाविअड्ढभरहम्मि ।। बहु नयर निग्गय जसे ते वंदे खंदिलाय. रिए ॥ ३७ ॥ तत्तो हिमवन्त महंत विक्कमे धिइ परक्कम मणंते ।। सज्झाय मणंतधरे हिमवंते वंदि. मो सिरसा ॥ ३८ ॥ कालिय सुय अणु ओगस धारए धारए य पुव्वाणं ॥ हिमवंत खमा समणे वंदे णागज्जुणायरिये ।। ३९ ।। मिउमद्दव संपन्ने आणुपुब्बि वायगत्तणं पत्ते ॥ ओहसुय समायारे नाज्जुण वायए वंदे ॥ ४० ॥ गोविंदाणं पि नमो अणुओगे विउल धारिणिं दाणं ॥ णिचं खंति दयाणं परुवणे दुल्लभि दाणं ॥ ४६॥ तत्तो य भृयदिन्नं निच तव संजमे अनिविणं ॥ पंडिय जण सामण्णं वंदामो संजम विहिण्णु ॥ ४२ ॥ करकणगतविय चंपग विमउलवर कमल गब्भ सरिवन्ने ॥ भविय जणहिययदइए दयागुण विसारए धीरे॥४३॥ अड्ड भरहप्पहाणे बहुविह सज्झाय सुमुणिय पहाणे । अणुओगिय वर वसभे नाइल कुल वंसनंदिकरे ॥४४॥ भूयहियअपगब्भे वंदेऽहं भूयदिन्न मायरिए ।। भवभय वुच्छेय करे सीसे नागज्जुण रिसीणं ॥४५॥ सुमुणिय निच्चा निच्चं सुमुणिय मुत्तत्थ धारयं वन्दे ॥ सम्भावुब्भावणया तत्थं लोहिचणामाणं ॥ ४६ ॥ अत्थ महत्थक्खाणिं सुसमण वक्खाण कहण निवाणिं॥ पयईए महुरवाणि पयओ पणमामि दूसगणिं ।। ४७ ।। तव नियम सच्च संजम विणयजव खंति मद्दवरयाणं । सील गुणगद्दियाणं अणुओग जुगप्पहाणाणं ॥४८॥ सुकुमाल कोमल तले तेसिं पणमामि लक्खण पसत्थे पार पावयणीणं पडिच्छ सय एहि पणि वइए ॥ ४९ ॥ जे अन्ने भगवन्ते कालिय सुय आणु ओगिए धीरे ॥ ते पणमिऊण सिरसा नाणस्स परूवणं वोच्छा ॥ ५० ॥
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॥ श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः ॥
इति ।
(१०३)
२
9
४
३
५
६ ७
८
99
९
१.२
१०
सेल - घण, कुडग, चालणि, परिपूणग, हंस. महिस, मेसे य, मसग, जलूग, बिराली जाहग, गो,
१३
१४
मेरी आभीरी ॥ ५१ ॥
" सा समासओ तिविहा पन्नत्ता तंजहा जाणिया, अजाणिया, दुब्बियड्डा" जाणिया जहा खीरमित्र, जहा हंसा जे घुट्टन्ति इह गुरुगुण समिद्धा दोसे थ विवर्जति तं जाणसु जाणियं परिसं ॥५२॥ अजाणिया जहा - जा होइ पगइमहुरा मियछावय सीह कुक्कुडय भूआ । रयणमिव असंठविया । अजाणिया साभवे परिसा ।। ५३ ।। दुद्द्वियड्ढा जह - नय कत्थइ निम्माओ न य पुच्छइ परिभवस्स दोसेणं । वत्थववाय पुण्णो फुट्टह गामिल्लयवियड्डो दुधियड्डो ॥ ५४ ॥ ( सूत्र ) नाणं पञ्चविहं पन्नतं, तंजा - आभिणि बोहियनाणं सुयनाणं, ओहिनाणं, मणपञ्जवनाणं, केवलनाणं ॥ १ ॥ तं समासओ दुविहं पणतं, तंजा - पच्चक्खं च परोक्खं च || सू० २ ।। से किं तं पच्चक्खं ? पच्चक्खं दुविहंपण्णत्तं, तंजडा इंदियपच्चक्खं । नोइंदियपञ्चक्खं च ।। सू० ३ || से किं तं इंदिय पच्चक्खं ? इंदियपचक्खं पञ्चविहं पण्णत्तं, तंजहा- सो इंदियपच्चक्खं । चत्रिंखदिय पच्चक्खं । घाणिदिय पच्चक्खं । जिभिदिय पच्चक्खं । फासिंदिय पच्चक्खं । सेतं इंदियपच्चक्खं ।। सू० ४ ।। से किं तं नोइंदियपचक्खं ? नोइंदियपच्चक्खं तिविहं पण्णत्तं तं जहा - ओहिनाण पच्चक्खं । मणपज्जवनाण पच्चक्खं । केवलनाण पच्चक्खं ॥ ५ ॥ से किं तं ओहिनाण पञ्चक्खं ? ओहिनाण पच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा - भवपच्चइयंच खा ओवसमियं च || ६ || से किं तं भवपच्चइयं १ भवपच्चइयं दुण्हं, तंजहा - देवाय नेरइयाय ॥ ७ ॥ से किं तं खा ओवसमियं ? स्वा ओवसमयं दुण्हं, तंजहा - मणूसाण य पंचेंदिय तिरिक्ख जोणियाण य । को देऊ खाओवसमियं ? खाओवसमियं तयावरणि जाणं कम्माणं उदिष्णाणं खणं अणुदिण्णाणं उवसमेणं ओहिनाणं समुप्पजइ । सू० ८ || अहवा गुण
१
विनस अणगारस्स ओहिनाणं समुप्पजड़ तं समासओ छविहं पण्णत्तं, तंजहा - आणुगामियं,
२
३
६
अणाणुगामियं, वडमाणयं, हीयमाणयं, पडिवाइयं, अपडिवाइयं || ६ || से किं तं आणुगामियं आगामियं ओहिनाणं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा - अंतगयं च मज्झगयं च । से किं तं अंतगयं ? अंतगयं तिविहं पण्णत्तं तेजहा पुरओ अंतगयं ९ मग्गओ अंतगयं । पासओ अंतगयं से किं तं पुरओ अंतगयं ? पुरओ अंतगयं से जहा नामए केइ पुरिसे उक्कवा चडुलियं वा अलायं वा मणिं वा पईवं वा जोई वा पुरओ काउं पणुल्लेमाणे २ गच्छेज्जा, से तं पुरओ अंतगयं । से किं तं मग्गओ अंतगयं ? मग्गओ अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलियं वा अलायं वा मणि वा पईवं वा जोई वा मग्गओ काउं अणुलडूढेमाणे २ गच्छिजा, से तं अंतगयं । से किं तं पासओ अंतगयं ? पासओ अंतगयं सेजहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चडुलियं वा अलायं वा मणि चाप वा जोई वा पासओ काउं परिकड्ढे माणे २ गच्छिज्जा, से तं पासओ अंतगयं से तं अंतगयं । से किंत मज्झगयं ? मज्झगयं से जहा नामए के पुरसे उक्त्रं वा चडुलियं वा अलायं वा
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(१०४)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
मणिं वा पईवं वा जोइं वा मत्थए काउं समुबह माणे २ गच्छिज्जा सेतं मझगयं । अंतगयस्स .. मज्झगयस्स य को पइविसेसो । पुरओ अंतगएणं ओहि नाणेणं पुरओ चेव संखिज्जाणि वा असंखेजाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ मग्गओ अंतगएणं ओहिनाणेणं मग्गओ चेव संखिज्जाणि वा असंखिजाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । पासओ अंतगएणं ओहिनाणेणं पासओ चेव संखिजाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । मज्झगएणं ओहिनाणेणं सबओ समंता संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । से तं आणुगामियं ओहिनाणं ॥ १० ॥ से किं तं अणाणुगामियं ओहिनाणं अणाणु गामियं ओहिनाणं से जहानामए केइ पुरिसे एगं महंतं जोइट्ठाणं काउं तस्सेव जोइट्टाणस्स परिपेरं तेहिं परिपेरंतेहिं, परिघोले माणे परिघोलेमाणे तमेव जोइट्टाणं पासइ, अन्नत्यगए न जाणइ न पासइ एवामेव अणाणुगामियं ओहिनाणं जत्थेव समुप्पजइ तत्थेव संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा संबद्धाणि वा असंबद्धाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ; अन्नत्थगएण पासइ, से तं अणाणुगामियं ओहिनाणं ॥ ११ ॥ से किं तं वड्डमाणयं ओहिनाणं ? बड्डमाणयं ओहिनाणं पसत्थेसु अज्झवसायट्ठाणेसु वड्डमाणस्स वड्डमाण चरित्तस्स । विसुज्झमाणस्स विमुज्झमाण चरित्तस्स । सबओ समंता ओहि वड्डइ___जावइआ तिसमयाहारगस्स सुहुमस्स पणगजीवस्स ॥ ओगाहणा जहन्ना ओहीखित्तं जहन्न तु ॥ ५५ ॥ सव्व बहु अगणि जीवा निरंतरं अत्तियं भरिजंसु ॥ खित्तं सव्वदिसागं परमोही खेत्तनिहिट्ठो ।। ५६ ।। अंगुलमावलियाणं भाग मसंखिज दोसु संखिज्जा । अंगुलमावलियंतो आवलिया • अंगुल पुहुत्तं ॥ ५७ ॥ हत्थम्मि मुहुत्ततो, दिवसंतो गाउयम्मि बोद्धव्यो । जोयण दिवसपुहुत्तं,
पक्खंतो पन्नवीसाओ ॥ ५८ ॥ भरहम्मि अद्धमासो, जम्बुद्दीवम्मि साहिआ मासा ॥ वासं च मणुय लोए, वासपुहुत्तं च रुयगम्मि ॥५९ ॥ संखिजम्मि उ काले, दीवममुद्दावि हुंति संविजा॥ कालम्मि असंखिज्जे, दीवसमुद्दा उ भइयव्वा ॥ ६०॥ काले चउण्हवुड्डी, कालो भइयव्वु खित्त वुड्डीए ॥ वुड्डीए पचपजव, भइयत्वा खित्तकाला उ ।। ६१ ॥ सुहुमो य होइ कालो, तत्तो सुहुमयरं हवइ खित्तं अंगुल सेढी मित्ते, ओसप्पिणिओ असंखिज्जा ॥ ६२ ।। से तं वड्डमाणयं ओहिनाणं सू॥ १२ ॥ से किं तं हीयमाणयं ओहिनाणं? हीयमाणयं ओहिनाणं अप्पसत्थेहिं अज्झवसायट्ठाणेहिं वड्डमाणस्स वड्डमाणचरित्तस्स संकिलिस्स माणस्स संकिलिस्समाणचरित्तस्स सबओ समन्ता ओही परिहायइ से तं हीयमाणयं ओहिनाणं ॥ १३॥ से किं तं पडिवाइ ओहिनाणं ? पडिवाइ ओहिनाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिजय भागं वा संखिजय भागं वा बालग्गं वा बालग्ग पुडुत्तं वा लिक्खं वा लिक्खपुहुत्तं वा, जूयं वा जूथंपुहुत्तं वा, जवं वा जव पुहुत्तं वा । अंमुलं वा अंगुलपुहुत्तं वा । पायं वा पायपुहुत्तं वा । विहत्थि वा विहत्थि पुहुत्तं वा । रयणिं वा रयणि पृहुत्तं वा। कुच्छि कुच्छिपुहुत्तं वा, धणुं वा धणुपहुतं वा । गाउअं वा गाउयपुहुत्तं वा। जो यण वा जोयणं पुहुत्तं वा । जोअणसयं वा जोयणसय पुहुत्तं वा जोयण सहस्सं वा जो यणसहस्स पुहुत्तं वा । जो. यणलक्खं वा जोयणलक्ख पुहुत्तं वा । जोयणकोडिं वा जोयणकोडाकोडि पुहुत्तं वा। जोयणकोडाकोडिं वा जोयणकोडाकोडि पुहुत्तं वा । [ जो अणसंखिजं वा जो अणसंखिज्ज पुहुत्तं वा जो अण
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॥ श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः ।।
(१०५))
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असंखेज्जंवा जो अणअसंखेज्जपुहुंत्तंवा ।] उक्कोसेणं लोगं वा पासि ताणं पडिवइजा । से तं पडिवाइ ओहिणं ॥ १४ ॥ से किं तं अपडिवाइ ओहिनाणं । अपडिवाइ ओहिनाणंजेणं अलोगस्स एग
आगाप जाणइ पासइ तेण परं अपडिवाइ ओहिनाणं । से तं अपडिवाइ ओहिनाणं ॥ १५ ॥ तं समासओ चउहिं पण्णत्तं, तंजहा दवओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्व ओ णं ओहिनाणी नेणं अता रूविदव्वाई जाणइ पासइ उक्कोसेणं सवाई रूविदव्वाई जाणइ पासइ. खित्तओ ओहिनाणी जहणं अंगुलस्स असंखिज्जय भागं जाणइ पास, उक्कोसेणं असंखि ज्जाई अलोगे लमाण मित्ताई खंडाई जाणड़ पासर, कालओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं आवलियाए असंखिज्जय भागं जाणइ पास, उक्कोसेणं असंखिज्जाओ उस्सप्पिणीओ अवसप्पिणीओ अईय मणागयं च कालं जाण, पासइ, भावओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं अणते भावे जाणइ पासइ, उक्केसेणवि अणंते भावे जाणड़ पास | सच्च भावाण मणत भागं भावे जाणइ पास || १६ || ओही भवपच्चइओ गुणपच्चओ वणिओ दुविहो । तस्स य बहू विगप्पा दवे खित्ते य कालेय | नेरइयदेवतित्थंकरा य ओहिस्सबाहिरा हुंति । पासंति सव्वओ खलु सेसा देसेण पासंति । से तं ओहिनाणपचक्खं से किं तं मणपज्जवनाणं ? मणपज्जवनाणे णं भंते । किं मणुस्साणं उप्पज्जइ अमणुस्साणं ? गोयमा ! मणुस्साणं नो अमणुस्साणं० ? जड़मणुस्साणं किं संमुच्छिममणुस्साणं गब्भवकंतिय मणुस्साणं ? गोमा नमुच्छिम मणुस्साणं उपजाई गन्भवकंतियमणुस्साणं । जइगन्भवक्कंतियमणुस्ताणं किं कम्मभूमिय गब्भवकंतिय मणुस्साणं, अकम्मभूमिय गव्भवक्कंतिय मणुस्साणं, अन्तरदीवगगन्भवकंतिय मणुस्साणं, गोयमा ? कम्मभूमिय गन्भकंतियमणुस्साणं नो अक्रम्मभूमिय गन्भवकंतियमस्साणं, नो अन्तरदीवग गन्भ वक्कंतियमणुस्साणं जड़ कम्मभूमियगन्भवतियमणुस्साणं, किं संखिज्जवासाउयकम्मभूमिय गन्भवकंतियमणुस्साणं असंखिजवासाउयकम्मभूमिय गन्भवकंतिय मणुसाणं ? गोयमा ? संखैज्जवासाउय कम्मभूमिय मन्भवकंतिय मणुस्साणं, नो असंखेज्ज वासाउय कम्मभूमि मणुस्साणं । जइ संखेज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवकंतिय मणुस्साणं, किं पज्जत्तग संखेजवासाउयकम्मभूमिय गन्भवकंतिय मणुस्साणं, अपजचग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवकंतिय मणुस्माणं ? गोयमा ! पजत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गग्भवकंतिय मणुस्साणं, नो अपज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवकंतिय मणुस्साणं । जइ पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं० किं सम्मदिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवकं तिय मणुस्साणं, मिच्छदिट्ठि पज्जत्तग संखेज्जवासाज्य कम्मभूमिय गन्भवतिय मणुस्साणं, सम्मा मिच्छदिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाज्य कम्मभूमिय गव्भवकंतिय मणुस्साणं ? गोयमा ! सम्म छिट्टि पज्जतग संखेज्जावासाउय कम्मभूमिय गभवकंतिय मणुस्साणं नो मिच्छद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमि गन्भवकंतिय मणुस्साणं०, नो सम्मामिच्छद्दिट्टि पज्जत्तग संखेज्ज वासाय कम्मभूमि गम्भवकंतिय मणुस्साणं. जइ सम्मद्दिट्ठिपज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभू मिय गब्भवकंतिय मणुस्साणं किं संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाज्य कम्मभूमिय गव्भवकंतिय मणुस्साणं, असंजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवकंतिय मस्साणं । संजया संजय सम्मदिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गव्भवकंतिय मणु
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श्री जेनसिद्धान्त - खाध्यायमाला
स्त्राणं ? गोयमा ! संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय मन्भवकंतिय मणुस्साणं, नो असंजय सम्मद्दिडि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवक्कंतिय मणुस्साणं । नो संजग्रासंजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्जवासाय कम्मभूमिय गब्भवकंतिय मणुस्साणं । जइ संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवकंतिय मणुस्साणं किं पमत्त संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भबक्कंतिय मणुस्साणं, अपमत्त संजय सम्मद्दिट्टि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गव्भवकंतिय मणुस्साणं ? गोयमा ! अपमत्त संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवक्कंतिय मणुस्साणं, नो पमत्त सञ्जय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाज्य कम्मभूमिय गन्भवकंतिय मणुस्साणं । जइ अपमत्त संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय क्रम्मभूमिय गन्भवकंतिय मणुस्साणं, किं इड्डीपत्त अपमत्त संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गग्भवकंतिय मणुस्साणं अणिड्डीपत्त अपमत्त संजय सम्मछिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गन्भवकंतिय मणुस्साणं ? गोयमा ! इड्डीपत्तअपमत्त संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज वासाउय कम्मभूमिय गब्भवकंतिय मणुस्साणं, नो अणिड्डीपत्त अपमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठि पज्जत्तग संखेज्ज बासाउय कम्मभूमिय मणुस्साणं । मणपज्जवनाणं समुप्पज्जइ || सू० || १७ ॥ तं च दुविहं उप्पज्जइ तंजहा उज्जुमई य विउलमई य तं समासओ चउब्विहं पन्नत्तं तं जहा - दवओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दवओणं उज्जुमई अनंते अनंत एसिए खंधे जाणइ पासइ, तं चेत्र विउलमई अन्महियंतराए विउलतराए विसुद्धतराए वितिमिरतर जाणइ पासइ । खित्तओणं उज्जुमई यजहनेणं अंगुलस्स असंखेज्जय भागं उक्कोसेणं अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेट्ठिल्ले खुड्डग पयरे उड्ड जाव जोइसस्स उवरिमतले, तिरियं जात्र अन्तोमणुस्णुस्सखित्ते अड्डाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पन्नरस्ससु कम्मभूमिसु तीसाए अकम्मभूमिसु छपन्नाए अन्तरदीवगेसु सन्निपंचेंद्रियाणं पञ्जत्तयाणं मणोगए भावे जाणइ पास तं चैव विउलमई अड्डाईज्जेहिमंगुलेहिं अब्भहियत्तरं विउलतरं विसुद्धतरं वितिमिरतरागं खेत्तं जाणइ पासइ । कालओ णं उज्जुमई जहनेणं पलिओवमस्स असंखिज्जयभागं उक्को सेण वि पलिओवमस्स असंखिज्जयभागं अतीयमणागयं वा कालं जाणड़ पासइ । तं चैव विउलमई अन्महियतरागं विउलतरागं विमुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ पासइ । भावओ णं उज्जुमई अणंते भावे जाणइ पासइ, सङ्घभावाणं अनंतभागं जाणइ पासइ । तं चेत्र विउलमई अब्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतगंगं वितिमिरतरागं जाणइ पासइ । मणपज्जवनाणं पुण जणमणपरिचिंतियत्थपागडणं। माणुसखित्तनिबद्धं गुणपच्चइयं चरितवओ ।। ६५ ।। से तं मणपज्जवनाणं सू० || १८ || से किं तं केवलनाणं ? केवलनाणं दुविहं पन्नत्त, तंजहा - भवत्थ केवलनाणं च सिद्ध केवलनाणं च । से किं तं भवत्य केवलनाणं ? भवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा - सजोगिभवत्थकेवलनाणं च अजोगि भवत्थ केवलनाणं च । से किं तं सजोगिभवत्थ केवलनाणं ? सजोगिभवत्थकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा - पढमसमय सजोगि भवत्थ, केवलनाणं च अपढम समय संजोगिभवत्थकेवलनाणं च अहवा, चरमसमयसजोगि भवत्थकेवलनाणं च अचरमसमयसजोगि भवत्थकेवलनाणं च, से तं सजोगिभवत्थ केवलनाणं । से किं तं अजोगभवत्थ केवल नाणं १ अजोगि भवत्थकेवलनाणं दुविहं पन्नत्तं, तंजहा- पढमसय अजोगि
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॥ श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः॥ भवत्थकेवलनाणं च अपढमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं च अहवा चरमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं च अचरमसमयअजोगिभवत्थकेवलनाणं च, से तं अजोगिभवत्थकेवसनाणं, से चं भवत्थकेचलनाणं ॥ सू० ॥ १९ ॥ से किं तं सिद्धकेवलनाणं? सिद्धकेवलनाणं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा-अणंतरसिद्धकेवलनाणं च परंपरसिद्धकेवलनाणं च ।। सू० ॥ २० ॥ से किं तं अणंतरसिद्धकेवलनाणं ? अणंतरसिद्धकेवलनाणं पन्नरस विहं पण्ण, तंजहा-तित्थसिद्धा १, अतित्थसिद्धा २, तित्थयरसिद्धा ३, अतित्थेयरसिद्धा४ , सयंबुद्धसिद्धा ५, पचेयबुद्धसिद्धा ६, बुद्धबोहियसिद्धा, ७ इथिलिंगसिद्धा ८, पुरिसलिंगसिद्धा ९, नपुंसगलिंगसिद्धा १०, सलिंगसिद्धा ११, अन्नलिंगसिद्धा १२, गिहिलिंगसिद्धा १३, एगसिद्धा १४, अणेगसिद्धा १५, से चे अणंतरसिद्धकेवलनाणं ॥ सू० ॥ २१ ॥ से किं तं परंपरसिद्धकेवलनाणं? परंपरसिद्धकेवलनाणं अणेगविहं पण्णचं, तंजहा-अपढमसमयसिद्धा, दुसमयसिद्धा, तिसमयसिद्धा, चउसमयसिद्धा, जाव दससमयसिद्धा, संखिजसमयसिद्धा, असंखिज्जसमयसिद्धा, अणंतसमयसिद्धा, से परंपरसिद्धकेवलनाणं, से सिद्धकेवलनाणं ॥ तं समासओ चउबिहं पण्णचं, तंजहा-दवओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दवओ णं केवलनाणी सबदचाई जाणइ पासइ । खित्तओ णं केवलनाणी सवं खिचे जाणइ पासइ । कालओ णं केवलनाणी सवं कालं जाणइ पासइ । भावओ णं केवलनाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ । अह सव्वदव्बपरिणाम, भावविण्णत्तिकारणमणंतं । सासय मप्पडिवाइ, एगविहं केवलं नाणं ॥ ६६ ॥ सू० ॥ २२ ॥ केवलनाणेणऽत्थे. नाउं जे तत्थ पण्णवणजोगे । ते भासइ तित्थयरो, वइजोगसुयं हवइ सेसं ॥ ६७ ।। से सं केवलनाणं, से सं नोइंदियपच्चक्खं. से पच्चक्खनाणं ।। सू० ॥ २३ ॥ से किं तं परोक्खनाणं ? परोक्खनाणं दुविहं पन्न, तंजहा--आभिणिबोहियनाणपरोक्खं च, सुयनाण परोक्खं च, नत्थ आभिणिबोहियनाणं तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुयनाणं तत्थाभिणिबोहियनाणं, दोऽवि एयाई अण्णमण्णमणुगयाई, तहवि पुण इत्थ आयरिया नाणचे पण्णवयंति-अभिनिबुज्झइति आभिणिबोहियनाणं, सुणेइत्ति सुयं,मइपुव्वं जेण सुयं, न मई सुयपुल्विया ॥ सू० ॥ २४ ॥ अविसेंसिया मई, मइनाणं च मइअन्नाणं च । विसेसिया सम्मदिहिस्स मई मइनाणं मिच्छदिहिस्स मई मइणनाणं । अविसेसियं सुयं सुयनाणं च सुयअन्नाणं च । विसेसियं सुयं सम्मदिद्विस्स सुयं सुयनाणं, मिच्छदिहिस्स सुयं सुयअन्नाणं ॥ सू० २५ ॥ से किं तं आभिणिबोहियनाणं ? आभिणिबोहियनाणं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा-सुयनिस्सियं च, अम्सुयनिस्सियं च। से किं तं अस्सुयनिस्सियं ? अस्सुयनिस्सियं चउव्विहं पण्णत्तं, तंजहा-उत्पत्तिया १ वेणइया २, कम्मया ३, परिणामिया ४ । बुद्धि चउबिहा वुत्ता, पंचमा नोवलब्भइ ॥ ६८ ॥ सू० ।। २६ ।। पुव्यमदिट्ठमस्सुयमवेइय, तक्खणविसुद्धगहियत्था । अव्वाहयफलजोगा, बुद्धि उप्पत्तिया नाम ॥ ६९ ॥ भरहसिल १ पणिय २ रुक्खे ३ खुडग ४ पड ५ सरड ६ काय ७ उच्चारे ८ । गय ९ घयण १० गोल ११ खंभे १२, खुड्डग १३ मग्गि १४ त्थि १५ पइ १६ पुत्ते १७ ॥ ७० ॥ भरह १ सिल २ मिंढ ३ कुक्कुड ४, तिल ५ वालुय ६ हत्थि ७ अगड ८ वणसंडे ९। पायस १० अइया ११ पत्ते १२, खाडहिला १३ पंच पिअरो य १४ ॥ ७१ ॥ महुसित्थ १८ मुद्दि १९ अंक २०, य नाणए २१ भिक्खु २२ चेडगनिहाणे २३ सिक्खा २४ य अत्थसत्थे २५, इत्थी य महं १६ सयसहस्से २७ ॥ ७२ ॥
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. भरनित्थरणसमत्था, तिवग्गसुत्तत्थगहियपेयाला । उभओलोगफलवई, विणयसमुत्था हवइ बुद्धी ।। ७३ ॥ निमित्ते १ अत्थसत्थे य २. लेहे ३ गणिए य कूव ५ अस्से ६ य । गद्दभ ७ लक्षण ८ गंठी ९, अगए १० रहिए ११ य गणिया १२ य ।। ७४ । सीया साडी दीहं, च तणं अवसव्वयं च कुंचस्स १३ निव्वोदए १४ य गोणे, घोडगपडणं च रुक्खाओ १५ ॥ ७५ ॥ उवओगदिट्ठसारा, कम्मपसंगपरिघोलणविसाला । साहुक्कारफलवई, कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ॥ ७६ ॥ हेर. ण्णिए १ करिसए २, कोलिय ३ डोवे ४ य मुत्ति ५ घय ६ पवए ७ तुनाए ८ वड्डइय ९ पूयइ १० घड ११ चित्तकारे १२ य ॥ ७७ ।। अणुमाणहेउदिटुंतसाहिया वयविवागपरिणामा । हियनिस्सेयसफलवई, बुद्धी परिणामिया नाम ॥ ७८ ॥ अभए १ सिद्धि कुमारे, ३, देवी ४ उदिओदए हवइ राया ५ साहू य नंदिसेणे ६, धणदत्ते ७ सावग ८ अमच्चे ९ ।। ७९ ॥ खमए १० अमच्चपुत्ते ११, चाणक्के १२ चेव थूलभद्दे १३ य। नासिकसुंदरिनंदे १४ वइरे परिणामिया बुद्धी ८०॥ चलणाहण १६ आभंडे १७, मणी १८ य सप्पे १९ य खग्गि २० थूभिंदे २१ । परिणामियबुद्धीए, एवमाई उदाहरणा ॥ ८१ ॥ सेत्तं अस्सुयनिस्सियं । से किं तं सुयनिस्सियं ? सुयनिस्सियं चरविहं पण्णत्तं, तंजहा-उग्गहे १ ईहा २ अवाओ ३ धारणा ४ ॥ सू० ।। २६ ॥ से किं तं उग्गहे ? दुविहे पणते, तंजहा-अत्थुग्गहे य वंजणुग्गहे य, ।। सू० ॥ २७ ॥ से किं तं वंजणुग्गहे ? वंजणुग्गहे चउबिहे पण्णत्ते, तंजहा-सोइंदियवजणुग्गहे, घाणिंदियवंजणुग्गहे जिभिदियवंजणुग्गहे फासिंदिरवंजणुग्गहे, से सं वंजणुग्गहे ॥ सू० ॥ ॥ २८ ॥ से. किं तं अत्थुग्गहे ? अत्थुग्गहे छविहे पण्णत्ते, तंजहा-सोइंदियअत्थुग्गहे, चक्खिदियअत्युग्गहे, घाणिंदियअत्थुग्गहे, जिभिदियअत्थुग्गहे, फासिंदियअत्थुग्गहे, नोइंदियअत्थुग्गहे ॥ सू० ।। ॥ २९ ॥ तस्स णं इमे एगढिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तंजहाओगेण्हया, उवधारणया, सवणया, अवलंबणया, मेहा, से तं उग्गहे ॥ सू० ॥ ३० ॥ से किं तं ईहा ? छविहा पण्णत्ता, तंजहा-सोइंदियईहा, चक्खिदियईहा, घाणिंदियईहा, जिभिदियईहा, फासिंदियईहा, नोइंदियईहा, तीसेणं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणा वंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तंजहा-आभोगणया, मग्गणया, गवेसणया, चिंता, वीमंसा, से तं ईहा ।। सू० ॥ ३१ ॥ से कि तं अवाए ? अवाए छविहे पण्णत्ते, तंजहा-सोइंदियअवाए, चक्खि दियअवाए, घाणिदियमवाए जिभिदियअवाए, फासिंदियअवाए, नोइंदियअवाए, तस्स णं इमे एगढिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्जा भवन्ति, तंजहा-आउट्टणया, पञ्चाउट्टणया, अवाए, बुद्धी, विण्णाणे, से तं अवाए ॥ सू० ३२ ॥ से किं तं धारणा ? धारणा छबिहा पण्णत्ता, तंजहा-सोइंदियधारणा, चक्खिदियधारणा, घाणिदियधारणा, जिभिदियधारणा, फासिंदियधारणा, नोइंदियधारणा, तीसे णं इमे एगट्ठिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिजा भवंति, तंजहा-धरणा, धारणा, ठवणा, पइट्ठा, कोडे, से तं धारणा ।। सू० ।। ३३ ॥ उग्गहे इक्कसमइए, अंतोमुहुत्तिया ईहा, अंतोमुहुत्तिए अवा ए, धारणा संखेनं वा कालं असंखेजं वा कालं ॥ सू० ॥ ३४ ॥ एवं अट्ठावीसइविहस्स आभिणिबोहियनाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि पडिबोहगदिढ़तेण मल्लगदिटुंतेण । से किं तं पडिबोहगदिटुंणं? पडिबोहगदिद्वंतेणंसे जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं सुत्तं पडिबोहिन्जा,
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॥श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः ॥
अमुगा अमुगत्ति. तत्थ चोयगे पन्नवयं एवं वयासी-कि एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? जाव दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ? संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ?, असंखिऊ समयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति ?, एवं वयंतं चोयगं पण्णवए एवं वयासी-नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, जाव नो दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, से पडिबोहगदिटुंतेणं । से किं तं मल्लगदिट्टतेणं ? मल्लगदिद्रुतेणं से जहानामए केइ पुरिसे आवागसीसाओ मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिंदु पक्खेविज्जा, से नटे, अण्णेऽवि पक्खिने सेऽवि नटे, एवं पक्खिप्पमाणेसु पक्खिप्पमाणेसु होही से उदगबिंदू.जे णं तं मल्लगं रावेहिइति होही से उदगबिंदू, जे णं तंसि मल्लगंसि ठाहिति; होही से उदगबिंदु जे णं तं मल्लगं भरिहित होही से उदगबिंद, जे णं तं मल्लगं पवाहेहिति; एवामेव पक्खिप्पमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहिं अणंतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरियं होइ ताहेहुंति करेइ नो चेव णं जाणइ के वेस सद्दाइ ? तओ ईहं पविसई, तओजाणई अमुगे एस सद्दइ; तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ, तओ धारणं पविसइ, तओणं धारेइ संखिज्जं वा कालं, असंखिज्जं वा कालं, से जहानामए केइ पुरसे अव्व सदं मुणिज्जा, तेणं सद्दोति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस सदाइ; तओ ईह पविसइ. तओ जाणइ अमुगे एस मद्दे, तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ; तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अवचं रूवं पासिज्जा तेण रूवति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रूवत्ति; तओ ईहंपविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस रूवे, तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ, तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेनं वा कालं, असंखेज वा कालं । से जहानामए केइपुरिसे अव्वत्तं गंध अग्घाइजा तेणं गंधत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस गंधेत्ति; तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस गंधे; तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेह संखेनं वा कालं असंखेजं वा कालं । से जहानामएकेइ पुरिसे अव्वत्तं रसं आसाइजा तेणं रसोत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रसेत्ति तओ इहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस रसे, तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखिज वा कालं असंखिज्ज वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अध्वत्तं फासं पडिसंवेइज्जा तेणं फासेत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस फासओत्तितओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस फासे, तओ अवायं पविसइ, तओ से उहगयं हवइ, तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं । से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पासिज्जा तेणं सुमिणेत्ति उग्गहिएः नो चेव णं जाणइ के वेस सुमिणेत्ति, तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस सुमिणे; तओ अवायं पविसइ, तओ मे उवगयं हवइ, तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्ज वा कालं, से तं मल्लगदिट्टतेणं ।। स ० ३५।। तं समासओ चउव्विहं पण्णत्तं, तंजहा दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ, तत्थ दव्वओ णं आभिणियोहियनाणी आएसेणं सव्वाइं दवाइं जाणइ, न पासइ । खेत्तओणं आभिणिबोहियनाणी
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श्रीजैनसिबान्त-खाध्यायमाला. आएसेणं सव्वं खेत्तं जाणइ न पासइ। कालोणं आमिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वं कालं जाणई न पासइ । भावओ णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वे भावे जाणइ, न पासइ । - उग्गह ईहाऽवाओ, य धारणा एव हुंति चत्तारि । आभिणिवोहियनाणस्स भेयवत्थू समासेणं ॥८२॥ * अत्थाणं उग्गहणम्मि उग्गहो तह वियालणे ईहा। ववसायम्मि अवाओ, धरणं पुण धारण विति ॥ ८३ ॥. उग्गह इकं समयं, ईहावाया मुहुत्तमद्धं तु । कालमसंखं संखं, च धारणा होई नायव्वा ।। ८४ ॥ पुढे सुणेइ सई, रूवं पुण पासइ अपुढे तु । गंधं रसं च फासं च, बद्धपुढे वियागरे ॥ ८५ ॥ भासासमसेढीओ, सई जं सुणइ मीसियं सुणइ । वीसेढी पुण सई, सुणेइ नियमा पराघाए ॥ ८६ ॥ ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। सन्ना सई मई पना, सव् आभिणिबोहिय ।। ८७॥
से तं आभिणिबोहियनाणपरोक्खं, से तं मइनाणं ॥ सू० ॥ ३६ ॥ से किं तं सुयनाणपरोक्खं ? सुयनाणपरोक्खं चोदसविहं पण्णत्तं तंजहा-अक्खरसुयं १ अणक्खरसुयं २ सण्णिसुयं ३ असण्णिसुयं ४ सम्ममुयं ५ मिच्छसुयं ६ साइयं ७ अणाइयं ८ सपज्जवसियं ९ अपज्जवसिय १० गमियं ११ अगमियं १२ अंगपविट्ठ १३ अणंगपविट्ठ १४ ॥सू०३७।। से किं तं अक्खरमुयं? अक्खरसुयं तिविहं पण्णत्तं तंजहा-सन्नक्खरं वंजणक्खरं, लद्धिअक्खरं । से किं तं सन्नक्खरं ? सनक्खरं अक्खरस्स संठाणागिई, से तं सन्नक्खरं । से किं तं वंजणलक्खरं ? वंजणक्खरंअक्खरस्स वंजणाभिलावो, से तं वंजणक्खरं । से किं तं लद्धिअक्खरं ? लद्धिअक्खरं अक्खरलद्धियस्स लद्धिअक्खरं समुप्पजइ, तंजहा-सोइंदिय सद्धिअक्खरं, चक्खिदिय लद्धिअक्खरं, पाणिदिय लद्धिअक्खरं, रसप्रिंदिय लद्धिअक्खरं, फासिंदिय लद्धिअक्खरं, नोइंदिय लद्धिअक्खरं, से तं लद्धिअक्खरं, से तं अक्खरसुयं ॥ से किं तं अणक्खरसुयं? अणक्खसुयं अणेगविहं पण्णत्तं, तंजहा-ऊससियं नीससियं, निच्छूढं खासियं च छीयं च । निस्सिंघियमणुसारं, अणक्खरं छेलियाईयं ॥ ८८ ॥
से तं अणक्खरसुयं ॥ सू० ३८ ॥ से किं तं सण्णिसुयं? सण्णिसुयं तिविहं पण्णचं, तंजहाकालिओवएसेणं, हेऊवएसेणं, दिहिवाओवएसेणं । से किं तं कालिओवरसेणं? कालिओवएसेणं जस्स णं अत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा. गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से णं सण्णीति लब्भइ । जस्सणं नत्थि ईहा, अवोहो, मग्गणा, गवेसणा, चिंता, वीमंसा, से णं असण्णीति लब्भइ, से कालिओवएसणं । से किं तं हेऊवएसेणं हेऊवएसेणं जस्सणं अस्थि अभिसंधारणपुखिया करणसत्ती से णं सण्णीति लब्भइ । जस्स णं नत्थि अभिसंधारणपुब्बिया करणसत्ती से णं असण्णीति लब्भइ, से चं हेऊवएसेणं । से किं तं दिट्ठिवाओवएसेणं ? दिहिवाओवएसेणं सण्णिमुयस्स खओवसमेणं सण्णी लब्भइ, असण्णिसुयस्स खओवसमेणं असण्णी लगभइ, से गं दिहिवाओवएसेणं, से चे सण्णिसुयं, से चं असण्णिसुयं ॥ मू० ॥ ३९ ॥ से किं तं सम्मसुयं ? सम्मसुयं जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पण्णनाणदंसणधरेहिं तेलुकनिरिक्खयमहियपूइएहिं तीयपडुप्पण्णमणागयजाणएहिं सवण्णूहिं सव्वदरिसीहिं पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं, तंजहा-आयारो १ सूयगडो २ ठाणं ३ समवाओ
* अस्थाणं उग्गहणं, च उग्गहं तह वियालणं ईहं । ववसायं च अवायं भरगं पुण धारणं बिंति ॥१॥ इति पाठान्तरगाथा ।
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॥ श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः॥
(१११) ४ विवाहपण्णत्ती ५ नायाधम्मकहाओ ६ उवासगदसाओ ७ अंतगडदसाओ अंतगडदसाओ ८ अगुत्तरोवबाइयदसाओ ९ पण्हावागरणाई १० विवागसुयं ११ दिडिवाओ १२, इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं चोदसपुनिस्स सम्मसुयं, अभिण्णदसपुचिस्स सम्ममुयं, तेण परं भिण्णेसु भयणा, से
सम्मसुयं ॥ सू० ॥ ४० ॥ से किं तं मिच्छासुयं ? मिच्छासुयं जं इमं अण्णाणिएहि मिच्छादिहिएहिं सच्छंदबुद्धिमइविगप्पियं, तंजहा-भारहं, रामायणं, भीमासुरुक्खं, कोडिल्लयं, सगडभदियाओ, खोड (घोडग ) मुहं, कप्पासियं, नागसुहुमं, कणगसत्तरी, वइसेखियं, बुद्धवयणं, तेरासियं, काविलियं, लोगाययं, सद्वितंतं, माढरं, पुराणं, वागरणं, भागवयं, पायंजली पुस्सदेवयं, लेहं, गणियं, सउणरुयं नाडयाई, अहवा बावत्तरिकलाओ, चत्तारि य वेंया संगोवंगा, एयाई मिच्छदिहिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्छासुयं एयाइं चेव सम्मदिहिस्स सम्मत्तपरिग्गहियाइं सम्मसुयं, अहवा मिच्छदिहिस्सवि एयाइं चेव सम्मसुयं. कम्हा ? सम्मत्तहेउत्तणओ जम्हा ते मिच्छदिहिया तेहिं चेव समरहिं चोइया समाणा केइ सपक्खदिट्टीओ चयंति,से तं मिच्छा सुयं ॥ सू० ॥ ४१ ॥ से किं तं साइयं सपज्जवसियं, अणाइयं अपज्जवसियं च ? इच्चेइयं दुवालसंगं गणि पिडगं वुच्छित्तिनयट्ठयाए साइयं सपज्जवसियं अवुच्छित्तिनयट्टयाए अणाइयं अपज्जवसियं, तं समासओ चउविहं पण्णत्तं, तंजहा-दवओ, खित्तओ, कालओ, भावओ, तत्थ दवओ ण सम्मसुयं एगं पुरिसं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, बहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं, खेत्तओ णं पंच भरहाई पंचेरवयाइं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, पंच महाविदेहाई पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं, कालओ णं उस्सप्पिणि ओसप्पिणिं च पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, नो उस्सप्पिणिं नो ओसप्पिणि च पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं, भावओ ण जे जया जिणपन्नत्ता भावा आपविज्जति, पण्णविज्जति, परूविज्जति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति, ते तया भावे पडुच्च साइयं सपज्जवसियं खाओवसमियं पुण भावं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं, अहवा भवसिद्धियस्स सुयं साइयं सपज्जवसियं च, अभवसिद्धियस्स सुयं अणाइयं अपज्जवसियं च, सवागासपएसग्गं सबागासपएसेहिं अणंतगणियं पज्जवक्खरं निप्फज्जइ, सबजीवाणंपि य णं अक्खरस्स अणंतभागो,निच्चुग्घाडियो जइ पुण सोऽवि आवरिजा तेणं जीवो अजीव पाविजा,- "सुट्ठवि मेहसमुदए, होइ पभा चंदसराणं" से गं साइयं सपज्जवसियं, से तं अणाइयं अपज्जवसियं ॥ सू० ॥ ४२ ॥ से किं तं गमियं ? गमिगं दिहिवाओ, से किं तं अगमियं अगमियं कालियं सुयं, से तं गमियं, से तं अगमियं । अहवा तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तंजहा-अंगपविटुं, अंग बाहिरं च । से किं तं अंगबाहिरं ? अंगबाहिरं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा-आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च। से किं तं आवस्सयं ? आवस्सयं छव्यिहं पण्ण, तंजहा-सामाइयं; चवीसत्थओ, वंदणयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पञ्चक्खाणं; से सं आवस्सयं । से किं तं आवस्सयवइरित्तं ? आवस्सयवइरित्तं दुविहं पण्णचं, तंजहा-कालियं च, उक्कालियं च। से किं तं उक्कालियं २ अणेगविहं पण्णचं, तंजहा-दसवेयालियं, कप्पियाकप्पियं, चुल्लकप्पसुयं, महाकप्पसुयं, उववाइयं, रायपसेणियं, जीवाभिगमो, पण्णवणा, महापण्णवणा, पमायप्पमायं, नंदी, अणुओगदाराई, देविदत्थओ, तंदुलवेयालियं, चंदाविज्झयं, सूरपण्णत्ती, पोरिसिमण्डलं, मण्डलपवेसो, विजाचरणविणिच्छओ, गणिविजा, झाणविभत्ती, मरणविभत्ती, आयवि.
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.(११२)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
सोही, वीयरागसुयं, संडेहणासुयं, विहारकप्पो, चरणविही, आउरपच्चक्खाणं, महापच्चक्खाणं, एवमाई; से उकालियं । से किं तं कालियं? कालियं अणेगविहं पण्णचं, तंजहा-उत्तुरज्झयणाई, दसाओ, 'कप्पो, ववहारो, निसीहं, महानिसीह, इसिभासियाई, जम्बूदीवपन्नत्ती, दीवसा गरपन्नत्ती, चंदप“पन्नत्ती, खुड्डिया विमाणपविभत्तोमहल्लिया विमाणपविभत्ती, अंगचूलिया, वग्गचूलिया, विवाहचूलिया, अरुणोववाए, वरुणोववाए, गरुलोववाएं, धरणोववाए, वेसमणोववाए. वेलंधरोववाए, देविंदोववाए, णट्ठाणसुए, समुट्ठाणसुए, नागपरियावलियाओ, निरयावलियाओ कप्पियाओ, कप्पवाड. सियाओ, पुफियाओ, पुप्फचूलियाओ, वहीदसाओ, आसीविसभावणाणं, दिट्ठिविसभावणाणं, सुमिण भावणणं महासुमिणभावणाणं, तेयग्गिनिसग्गाणं, एवमाइयाइं चउरासीई पइन्नगसहस्साई "भगवओ अरहओ उसहसामिस्स आइतित्थयरस्स, तहा संखिज्जाइं पइन्नगसहस्साई मज्झिमगाणं जिणवराणं, चोद्दस पइन्नगसहस्साई भगवओ बद्धमाणसामिस्स, अवहा जस्स जत्तिया सीसा उप्पत्तियाए, वेणइयाए कम्मयाए, पारिणामियाए, चरविहाए बुद्धीए उववेया तस्स तशियाई पइण्णगसहस्साई, पत्तेयबुद्धावि तत्तिया चेव, से सं कालियं, से सं आवस्सयवइरि, से अणंगपविट्ठ ॥ सू० ॥४३॥ से किं तं अंगपविलु ? अंगपविट्ठ दुवालसविं पण्णत्तं, तंजहा-आयारो १ सूयगडो २ ठाणं ३ समवाओ ४ विवाहपन्नत्ती ५ नायाधम्मकहाओ ६ उवासदसाओ ७ अंतगडदसाओ ८ अणुत्तरोववाइयदमाओ ९ पण्हावागरणाई १० विवागसुयं ११ दिहिवाओ १२ ॥ सू० ४४ ॥ से किं तं आयारे ? आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयारगोयरविणयवेणइयसिक्खाभासाअभासाचरणकरणजायामायावित्तीओ आघविज्जति, से समा सओ पंचविहे पण्णते, तंजहा-नाणा. यारे दंसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे, आयारेणं परित्ता वायणा, संखेजा, अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीओ,संखिजाओ संगहणीओ, संखिजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीइ उद्देसणकाला, पंचासीइ समुद्देसणकाला, अट्ठारस पयसहस्साई पयग्गेणं, संखिजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पन्नविज्जंति, परुविज्जंति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति. उवदंसिज्जंति. से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से सं आयारे १ ॥ सू० ।। ४५॥ से किं तं सूयगडे ? सूयगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, लोयालोए सूइज्जइ, जीवा सूइज्जंति, अजीवा सूइज्जंति, जीवाजीवा सूइज्जति, ससमए सूइज्जद, परसमए सूइज्जइ, ससमयपरसमए सूइज्जइ, सूयगडे णं असीयस्स किरियावाइसयस्स, चउरासीइए अकिरियावाईणं, सत्तट्ठीए अण्णाणीयवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं, तिण्हं तेसट्ठाणं पासंडियसयाणं वृहं किचा ससमए ठाविजइ, सूय. गडे णं परित्ता वायणा, संखिजा, अगुओगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए बिइए अंगे, दो सुयक्खंधा, तेवीसं अज्झयणा, तित्तीसं उद्देमणकाला, तित्तीसं समुद्दे सणकाला, छत्तीसं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखिज्जा, अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पणविज्जति, परुविज्जति, दंसिज्जंति, निदं
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॥ श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः ॥ सिज्जति, उवदंसिजेति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से तं सूयगडे २ ॥ सू० ॥ ४६॥ से किं तं ठाणे ? ठाणे णं जीवा ठाविजंति, अजीवा ठाविनंति, जीवाजीवा ठाविजंति, ससमए ठाविजइ, परसमए ठाविज्जइ, ससमयपरसमएठाविजइ, लोएठाविजइ, अलोए ठाविजइ, लोयालोए ठाविजइ । ठाणे णं टंका, कूडा, सेला, सिहरिणो, पन्भारा, कुंडाई, गुहाओ, आगरा, दहा, नईओ, आघविजंति । ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्डीए दसट्ठाणगविवड्डियाणं भावाणं परूवणा आपविजइ। ठाणे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणु. ओगदारा, संखेजा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजाओ निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संगहणीओ; संखेजाओ पडिवत्तीओ से गं अंगठ्ठयाए तइए अंगे, एगे सुयक्रवंधे, दसअज्झयणा एगवीसं उद्देस. णकाला, एकवीसं समुद्देसणकाला, बावत्तरि पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपत्रत्ता भावा आघविजेति, पन्नविजंति, परूविजंति, दंसिजंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति । से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ, से तं ठाणे ३ ॥ सू० ॥ ४७ ॥ से किं तं समवाए ? समवाए णं जीवा समासिजति, अजीवा समासिअंति, जीवाजीवा समासिजंति, ससमए समासिञ्जइ, परसमए समासिजइ, ससमयपरसमए समासिज्जइ, लोए समासिजइ, अलोए समासिज्जइ लोयालोए समासिज्जइ। समवाए णं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसयविवड़ियाणं भावाणं परूवणा आपविञ्जह; दुवालसविहस्स य गणिपिढगस्स पल्लवगे समासिज्जइ, समवायस्स णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ, निज्जुत्तीओ, संखिजाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ, पडिवत्तीओ, से णं अंगट्ठयाएचउत्थे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे अज्झ. यणे, एगे उद्देसणकाले, एगे समुद्देसणकाले, एगे चोयाले सयसहस्से पयग्गेणं; संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पन्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविजंति, पण्णविज्जति, परूविज्जति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जति, उपदं सिजंति से एवं आया,एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ । से तं समवाए ४ सू०॥४८॥ से किं तं विवाहे? विवाहे णं जीवा विआहिजंति, अजीवा विआहिजंति, जीवाजीवा विआहिजंति, ससमए विआहिजति, परसमए विहिज्जति, ससमएपरसमए विआहिज्जति, लोए विआहिजति, अलोए विआहिजति, लोयालोए विआहिज्जति, विवाहस्सणं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा. संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्ठयाए पंचमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साई समुद्देसगसहस्साई, छत्तीसं वागरणसहस्साई, दो लक्खा अट्ठासीइं पयसहस्साई पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा. सासय कडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविजंति, पण्णविज्जति, परूविज्जति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, से तं विवाहे ५॥ सू० ॥ ४९ ॥ से किं तं नायाधम्मकहाओ? नायधम्मकहासु णं नायाणं नगराई, उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया,
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(११४)
श्रीजैन सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
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धम्म हाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओत्रगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति, दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ णं एगमेगा धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई, एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवाक्खाइया सयाई एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्वाइय उवक्खाइयासयाई एवामेव सपुबावरेणं अट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंतित्ति समक्खायं । नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखिज्जा वेढा, संखिज्जा सिलोगा, संखिजाओ निज्जुत्तीओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ । से गं अंगट्टयाए छट्ठे अंगे, दो सुयक्खंधा, एगूणवीसं अज्झयणा, एगूणवीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जा पथसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अणंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति पण्णविज्जंति परूविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विष्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, से त्तं नायाधभ्मकहाओ ६ || सू० ।। ५० ।। से किं तं उवालगदसाओ ? उवासगदसा - सुणं समणोवासयाणं नगराई, उज्जाणाई, चेइयाई. वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापिवरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइया इडिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा. तवोत्रहागाई सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववास पडिवज्जणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खांणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुलपच्चाईओ, पुणो हिलाभा, अंतकिरियाओ आघविज्जति उदासगदसाणं परिता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेजाओ संग्रहणीओ, संखेजाओ पडिवत्तीओ । से गं अंगट्टयाए सत्तमे अंगे, एगे, एगे सुयक्खंचे, दस अज्झनणा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा अनंता थावरा, सासयकड निबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविजंति पन्नविजति परूविजति दंसिजति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजह से चं उवासगदसाओ ७ ॥ ० ॥ ५१ ॥ सं किं तं अंतगडदसाओ? अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराई उज्जाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिचागा, पवज्जाओ परिआगा, सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाईं, पाओवगमणाई, अंतकिरियाओ, आघविजति; अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणी, संखेज्जाओ पडिव -
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ओ से गं अंगडयाए अट्टमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, अट्ठवग्गा अट्ठ उद्देसणकाला, अट्ठ समुद्देसणकाला संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं; संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासयकड निबद्ध निकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पन्नविज्जंति पर विज्जंति, डंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति से एवं आया, एवं नाया, एवं विन्नाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविजह से तं अंतगडदसाओ ८ ॥ ० ॥ ५२ ॥ से किं तं अणुत्तरोववाहयदसाओ?
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॥ श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः॥
(११५) अणुत्तरोववाइयदसामु णं अणुत्तरोववाइयाणं नगराई, उजाणाई, चेइयाई, वणसंडाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पवजाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चवखागाइं पाओवगमणाई, अणुत्तरोववाइय त्ति उववत्ती, सुकुलपञ्चायाईओ, पुणबोहिलाभा, अंतकिरियाओ, आघविजंति, अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेजा सिलोगा, संखेजाओ निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संगहणीओ, संखेजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए नवमे अंगे, ऐगे सुयक्वंधे, तिन्नि वग्गा, तिन्नि उद्देसणकाला, तिनि समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसइस्साई पयग्गेणं संखेजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणयरूवणा आघविज्जइ, से शं अणुचरोववाइयदसाओ ९ ॥ सू० ॥ ५३ ॥ से किं तं पण्हावागरणाई ? पण्हावागरणेसु णं अठुत्तरं पसिणयं, अटुत्तरं अपसिणसयं अटूठुत्तरं पसिणापसि. णसयं; तंजहा-अंगुठ्ठपसिणाई. वाहुपसिणाई, अद्दागपसिणाई, अन्नेविविचित्ता विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिवा संवाया आघविज्जंति, पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखेजा अणुओगदारा, संखेज्जा बेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ; से णं अंगठ्ठयाए दसमे अंगे एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, संखज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणेण; संखज्जा अक्खरा, अगंतागमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पण्णविनंति, परूविज्जति, दंसिज्जंति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जंति से एवं आया, एवं नाया, एवं विरणाया; एवं चरणकरणरूवणा आघविज्जइ; से पण्हावागरणाई १० ॥ सू० ॥ ५४ ॥ से किं तं विवागसुयं ? विवागसुए णं सुकडदुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जइ, तत्थ णं दस दुह विवागा दस मुहविवागा। से किं तं दुहविवागा ? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराई, उज्जाणाई, वणसंडाई, चेइयाई, समोसरणाई, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसोसा, निरयमणाई, संसारभवपवंचा दुहपरंपराओ, दुकुलपञ्चायाइओ, दुल्लहबोहियत्तं, आघविज्जइ; से दुहविवागा। से किं तं सुहविवागा ? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराई, उज्जणाई, वणसंडाइ चेइयाइ, समोसरणाइ, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइयपरलोइया इड्डिविसेसा, भोगपरिचागा, पवजाओ, परियागा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पाओवगमणाई, देवलोगगमणाई, सुहपरंपराओ, सुकुलपच्चायाईओ, पुणवोहिलाभा, अंतकिरियाओ, आघविज्जति । विवागसुयस्य णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जत्तीओ, संखिज्जाओ संगहणीओ, संखिज्जाओ पडिवत्तीओ । से णं अंगठ्याए इक्कारसमे अंगे, दो सुयक्खंधा, वीसं अज्झयणा, वीसं उद्देसणकाला, वीसं समुद्देसणकाला, संखिज्जाई पयसहस्साई षयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयक
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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. डनिबद्धनिकाइया जिणपण्णता भावा आपविजंति, पन्नविज्जंति, परूविनंति, दंसिजंति, निदसिज्जंति, से एवं आया, एवं नाया, एवं विनाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, से विवागसुयं ११ ॥ सू० ॥ ५५ ॥ से किं तं दिहिवाए ? दिहिवाएणं सबभावपख्वणा आघविजइ, से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-परिकम्मे १ सुत्ताई २ पुबगए ३ अणुओगे ४ चूलिया ५। से किं तं परिकम्मे ? परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते, तंजहा-सिद्धसेणिया परिकम्मे १ मणुस्ससेणियापरि. कम्मे २ पुट्ठसेणिया-परिकम्मे ३ ओगाढसेणियापरिकम्मे ४ उवसंपन्जसेणियापरिकम्मे ५ विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ६ चुयाचुयसेणियापरिकम्मे ७। से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे? सिद्धसेणियापरिकम्मे च उद्दसविहे पण्णत्ते, तंजहा-मउगापयाइं १ एगट्ठियपयाइं २ अट्ठपयाई ३ पाढोआगासपयाइं ४ केउभूयं ५ रासिबद्धं ६ एगगुणं ७ दुगुणं ८ तिगुणं ९ केइभूयं १० पडिग्गहो ११ संसारपडिग्गहो १२ नंदावनं १३ सिद्धावत्तं १४, से चं सिद्धसेणियापरिकम्मे १ । से किं तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे? मणुस्ससेणियापरिकम्मे चउद्दमविहे पण्णते, तंजहा-माउयापयाई १ एगट्ठियपवाइं २ अट्ठपयाई ३ पाढोआगासपयाई ४ केउभूयं ५ रासिबद्धं ६ एगगुणं ७ दुगुणं ८ तिगुणं ९ के उभूयं १० पडिग्गहो ११ संसारपडिग्गहो १२ वंदावत् १३ मणुस्साव १४ से चे मणुस्ससेणियापरिकम्मे २। से किं तं पुट्ठसेणियापरिकम्मे? पुट्ठसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पण्णचे, तंजहा पाढोआगासपयाइं १ केरभूयं २ रासबद्धं ३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केउभूयं ७ पडिग्गहो संसारपडिग्गहो ९ नंदावत् १० पुट्ठावत् ११, से पुट्ठसेणियापरिकम्मे ३ । से किं तं ओगाडसेणियापरिकम्मे ? ओगाढसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पण्णचे. तंजहा-पाढोआगासपयाइं १ केउभूयं. रासबद्धं ३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केउभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो ९ नंदा. व १० ओगाढावचं ११, से सं ओगाढसेणियापरिकम्मे ४ । से किं तं उवसंपजणसेणियापरिकम्मे ? उवसंपजणसेणिया परिकम्मे इक्कारस विहे पण्णत्ते, तंजहा-पाढोआगासपयाई ? केउभूयं २ रासिबद्धं ३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केइभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो ९ नंदावतं १० उवसंपन्जणवत्तं ११, से तं उवसंपन्जणसेणियापरिकम्मे ५। से किं तं विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ? विप्पजहणसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पण्णत्ते, तंजहा-पाढोआगासपयाई १ केउभूयं २ रासिबद्धं ३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केइभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो ९ नंदावतं १० विप्पजहणावत्तं ११, से त विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ६ । से किं तं चुयाचुयसेणियापरिकम्मे ? चुयाचुयसेणियापरिकम्मे इक्कारसविहे पन्नत्ते, तंजहा-पाढोआगासपयाई १ केइभृयं २ रासिबद्धं ३ एगगुणं ४ दुगुणं ५ तिगुणं ६ केइभूयं ७ पडिग्गहो ८ संसारपडिग्गहो ९ नंदावत्ते १० चुयाचुयवत्तं ११, से तं चुयाचुयसेणियापरिकम्मे ७ । छ चउक्कनइयाइं. सत्त तेरासियाई से तं परिकम्मे १ । से किं तं सुत्ताई बावीसं पन्नत्ताई, तंजहा- उज्जुसुये १ परिणयापरिणयं २ बहुभंगियं ३ विजयचरियं ४ अणंतरं ५ परंपरं ६ मामाणं ७ संजूहं ८ संभिण्णं ९ आहच्चायं १० सोवस्थियावरं ११ नंदावचे १२ बहुलं १३ पुट्ठापुढे १४ वियावत्तं १५ एवंभूयं १६ दुयावतं १७ वत्तमाण पयं १८ सममिरूढं १९ सबओभई २० पस्सासं २१ दुप्पडिग्गहं २२, इच्चेइयाई बावीसं मुत्ताई छिन्नच्छेयनइयाणि ससमयमुत्तपरिवाडीए; इच्चेइयाई बावीसं सुत्ताइ अच्छिन्नच्छेयनइयाणि
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॥ श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः ॥
(११७) आजीवियसुत्तपरिवाडीए; इच्चइयाई बावीसं सुत्ताइं तिगणइयाणि तेरासिय सुत्तपरिवाडीए; इच्चेइयाई बावीसं सुत्ताई चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए; एवामेव सपुवावरेणं अट्टासीई सुत्ताई भवंतित्ति मक्खायं, से तं सुत्ताई २। से किं तं पुनगए? पुवगए चउद्दसविहे पण्णत्ते, तंजहाउप्पायपुव्वं १ अग्गाणीयं २ वीरियं ३ अत्थिनत्थिप्पवायं ४ नाणप्पवायं ५ सच्चप्पावायं ६ आयप्पवायं ७ कम्मप्पवायं ८ पञ्चक्वाणप्पवायं ( पच्चक्खाणं) ९ विजणुप्पवायं १० अवंझं ११ पाणाऊ १२ किरियाविसालं १३ लोकबिंदुसारं १४ । उप्पाय पुवस्स णं दस वत्थू, चत्तारि चूलि. यावत्थू पण्णत्ता । अग्गाणीयपुवस्स णं चोद्दस वत्थू; दुवालस चूलियावत्थू पण्णत्ता । वीरियपुवस्स पं अट्ठ वत्थू अट्ट चूलियावत्थ पण्णत्ता। अत्थिनत्थिप्पवायपुवस्स णं अट्ठारस वत्थु, दस चूलियावत्थू पण्णत्ता । नाणप्पवायपुवस्स णं बारस वत्थू पण्णत्ता । सच्चप्पवायपुवस्स णं दोणिवत्थूपण्णत्ता । आयप्पवायपुवस्स णं सोलस वत्थू पण्णत्ता । कम्मप्पवायपुबस णे तीसं वत्थू पण्णत्ता । पच्चक्खाणपुवस्स णं वीसं वत्थू पण्णत्ता। विजाणुप्पवायपुवस्स णं पन्नरस वत्थू पण्णत्ता अवंझपुवस्स गं बारस वत्थू पण्णत्ता । पाणाउपुवस्स णं तेरस वत्थू पण्णत्ता। किरियाविसालं पुवस्स णं तीसं वत्यू पण्णत्ता । लोकबिंदुसारपुवस्स णं पणुवीसं वत्थू पण्णत्ता, गाहा- दस १ चोदस २ अट्ठ ३ ऽट्ठारसेव ४ बारस ५ दुवे ६ य वत्थूणि । सोलस ७ तीस ८ वीसा ९, पन्नरस १० अणुप्पवायम्मि ॥ ८९ ॥
बारस इक्कारसमे, बारसमे तेरसेव वत्थूणि । तीसा पुण तेरसमे, चोइसमे पण्णवीसाओ ॥९॥ चत्तारि १ दुवालस २ अट्ठ ३ चेवदस ४ चेव चुल्लवत्थूणि । आइल्लण च उण्हं, चूलिया नत्थि ॥९१॥ से तं पुवगए। से किं तं अणुओगे ? अणुओगे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-मूलपढमाणुओगे, गंडियाणुओगे य । से किं तं मूलपढमाणुओगे ? मूलपढमाणुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुवभवा, देव. गमणाई, आउं, चवणाई, जम्मणाणि अभिसेया रायवरसिरीओ, पवज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयाओ, तित्थपवत्तणाणि य, सीसा, गणहरा, अजपवत्तिणीओ संघस्स चरविहम्स जंच परिमाणं, जिणमणपजवओहिनाणी, सम्मत्तसुयनाणिणो य वाई अणुत्तरगईय, उत्तरवेउ, चिणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा, सिद्धिपहो जह देसिओ, जचिरं च कालं, पोआवगया जे जहिं जत्तियाई भत्ताई अणसणाए छेइत्ता अंतगडे. मुणिवरुत्तमे, तिमिरओघ विप्पमुक्के मुक्खसुहमणुत्तरं च पत्ते, एवमन्ने य ऐवमाइभावा मूलपढमाणुओगे कहिया, से तं मूलपढमाणुओगे से किं तं गंडियाणुओगे? गंडियाणुओगे कुलगरगंडियाओ, तित्थयरगंडियाओ, चक्कवट्टिगंडियाओ, दसारगंडियाओ, बलदेवगंडियाओ, बासुदेवगंडियाओ, गणधरगंडियाओ, भद्दबाहुगंडियाओ, तवोकम्मगंडियाओ, हरिवंसगंडियाओ उस्सप्पिणीगंडियाओ, ओसप्पिणीगंडियाओ, चित्तरगंडियाओ अमरनरतिरियनिरयगइगमणविविहपरियट्टणेसु एवमाइयाओ गंडियाओ आघविजंति, पण्णविनंति से सं गंडियाणुओगे, से अणुओगे ४ । से किं तं चूलियाओ ? आइल्लाणं चउण्हं पुत्वणं, चूलिया सेसाई पुत्वाइं अचूलियाई, से तं चूलियाओ। दिट्ठिवायरस णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेजा
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(११८)
श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला.
सिलोगा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखिजाओ निज्जुत्तीओ, संखेजाओ संगहणीओ से णं अंगट्टयाए बारसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, चोदस पुवाई, संखेज्जा वत्थू, संखेज्जा चूलवत्थू, संखेजा पाहुडा, संखेज्जा पहुडपाहुडा, संखेजाओ पाहुडियाओ, संखेज्जाओ पाहुडपाहुडियाओ, संखेजाई पयसदस्साई पयग्गंणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अनंता पजवा. परित्ता तसा अणंता थावरा, सासयकड निबद्धनिकाइया जिणपन्नत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जति, निदंसिज्जति, उवदंसिज्जंति । से एवं आया, एवं नाया एवं विष्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जंति, से तं दिट्टिवाए १२ || सू० ५६ || इचेइयंमि दुवालसंगे गणिपिडगे अणता भावा अणता अभावा, अणता हेऊ, अणंता अहेऊ, अनंता कारणा, अता अकारणा, अणता जीवा अतता अजीवा अनंता भवसिद्धिया अनंता अभवसिद्धिया अणंता सिद्धा, अनंता असिद्धा पण्णत्ताभावमभावा हे ऊमहेउ, कारणमकारणे चेव । जीवाजीवा भवियमभविया सिद्धा असिद्धा य ।। ९२ ।।
इच्चेइयं दुवाल संगं कणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकं - तारं अणुपरिमुचेइयं दुवाल संग गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियद्वंति । इच्चेइयं दुवालसँगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्सति । इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं बीई इंसु । इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुष्ण्णकाले परिता जीवा आणाए आराहित्ता चउरंतं संसारकंतारं वीईवयंति । इच्चेइयं दुवालसँगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईव - इस्संति । इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडिगं न कयाइ नासी, न कयाइ न भवइ, न कवाइ न भवि. स्सह, भुवि च, भवई य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए अवए, अवट्ठिए, निच्चे । से जहानाम ए पंचत्थिकाए न कयाइनासी न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सह, भुवं च, भवइ य, भविस्सइ, य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे, एवामेव दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सह, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे । से समासओ चउठिहे पण्णचे, तंजहा - दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ । तत्थ दव्वओ णं सुयनाणी उवउ सवदव्वाई जाणइ पास, खिओ णं सुयनाणी उवउचे सव्वं खेत्तं जाणइ पासर, कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते सवं खेत्तं जाणइ पासइ, भावओ णं सुयनाणी उवउते सव्वे भावे जाणइ पासइ || सू० ५७ ॥
1
अक्खर संन्नी सम्मं, साइयं खलु सपजवसियं च । गमियं अंगपविङ्कं सत्तवि एएसपडिव - क्खा ।। ९३ ।। आगमसत्थग्गहणं, जं बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिवं । बिंति सुयनाणलं भं, तं पुत्रविसारया धीरा ॥ ९४ ॥
सुस्सूसइ १ पडिपुच्छर २ सुणेइ ३ गिण्हइ ४ य ईहएयावि ५ । तत्तो अपोहए ६ वा, धारेइ ७ करेइ वा सम्मं ८ ।। ९५ ।।
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॥ श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः ॥
(११९) मूअं हुंकारं वा, वाढक्कारं पडिपुच्छ वीमंसा। तत्तो पसंगपारायणं च परिणि? सत्तमए ॥९६ ॥
सुत्तत्यो खलु पढमो, बीओ निज्जुत्तिमीसिओ भणिओ । तइओ य निरवसेसो, एस विही होइ अशुओगे ॥९७॥
से तं अंगपविद्वं, से गं सुयनाणं से चं परोक्खनाणं, से सं नंदी ॥ नंदी समत्ता ॥
__इअ नंदीसुत्तं समत्तम्
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(१२०)
श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला. उववाई सूतं
( बावीस गाथा ) कहिं पडिहया सिद्धा? कहिं सिद्धा पइट्ठिया । कहिं बोंदि चइत्ता णं, कत्थ गंतूण सिज्झई ॥१॥ अलोगे पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पडिट्ठिया । इहबोंदि चइत्ता णं, तत्थ गंतूण सिज्झई ? ॥२॥ जं संठाणं तु इहं भवं चयं तस्स चरिमसमयंमि । आसी य पएसघणं तं संठाणं तहिं तस्स ॥३॥ दीहं वा हस्सं वा जं चरिमभवे हवेज संठाणं । तत्तो तिभागहीणं सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥४॥ तिणि सया तेत्तीसाधणुत्तिभागो य होइ बोधवा । एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया ॥५॥ चत्तारि य रयणीओ रयणिति भागूणिया य बोधवा। एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिया ॥६॥ एक्का य होइ रयणी साहीवा अंगुलाइ कट्ट भवे । एसा खलु सिद्धाण जहण्णओगाहणा भणिया ॥ ७ ॥ ओगाहणाए सिद्धा भवतिभागेण होइ परिहीणा । संठाणमणित्थंथं जरामरणविप्पमुक्काणं ॥ ८॥ जत्थ य एगोसिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविमुक्का । अण्णोण्णसमोगाढा पुट्ठा सव्वे य लोगंते ॥९॥ फुसइ अणते सिद्धे सव्वपएसेहि णियमसा सिद्धो । ते चि असंखेज्जागुणा देसपएसेहिं जे पुट्टा ॥१०॥ असरीरा जीवघणा उवउत्ता सणे य णाणे य । सागारमणागार लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥ ११ ॥ केवलणाणुवउत्ता जाणंहि सव्वभावगुणभावे । पासंति सचओ खलु केवलदिट्ठीअणताहि ॥ १२ ॥ णवि अत्थि माणुसाणं तं सोक्खं णविय सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सोक्खं अध्वाबाहं उवगयाणं॥१३॥ जं देवाणं सोक्खं सव्वद्धापिडियं अणंतगुणं । ण य पावइ मुत्तिसुहं गंताहिं वग्गवग्गूहि ॥ १४ ॥ सिद्धस्स सुहो रासो सव्वद्धापिंडिओ जइ हवेजा । सोणतवग्गभइओ सव्वागासे ण माएज्जा ॥१५॥ जह णाम कोइ मिच्छो णगरगुणे वहुविहे वियाणंतो। ण चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंतीए॥१६॥ इय सिद्धाणं सोक्खं अणोवमं णत्थि तस्स ओवम्मं । किंचि विसेसेणेत्तो ओवम्ममि गं सुणह वोच्छं।।१७।। जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई । तण्हाछुहाविमुको अच्छेन्ज जहाअमियतित्तो॥१८॥ इय सव्वकालतित्ता अतुलं निव्वाणमुवगया सिद्धा । सासयमबाबाहं चिटुंति मुही सुहं पत्ता॥१९॥ सिद्धत्ति य कुद्धत्ति य पारगयत्ति य परंपरगयत्ति । उम्मुक्तकम्मकत्रया अजरा अमरा असंगा य॥२०॥ णिच्छिण्णसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणविमुक्का । अव्याबाहं सुक्खं अणुहोंती सासयं सिद्धा।॥२१॥ अतुलसुहसागरगया अव्वाबाहं अणोवमं पत्ता । सचमणागयमद्धं चिट्ठति सुहं पत्ता ॥ २२ ॥
॥ उववाइ उवंगं समत्तं ॥
भं भवतु ।
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श्रीमुख विपाक-सूत्रम्
॥ श्री सुखविपाक-सूत्रम् ॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे गुण सिलए चेइए सोहम्मे समोसढे जंबू जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जइ णं भंते ! समप्.णं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुह विवागाणं अयमद्वे पण्णत्ते सुहविवागाणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अ8 पण्णत्ते ? तते णं से सुहम्मे अणगारे जंबू अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंब! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता । तंजहा-सुबाहू १ भद्दनंदी य २, सुजाए य ३, सुवासवे ४। तहेव जिणदासे ५, धणपती य ६ महब्बले ७॥ १ ॥ भद्दनंदी ८ महचंदे ९ वरदत्ते १०॥
जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स सुहविवागाणं जाव के अढे पण्णत्ते ? तते णं से सुहम्मे अणगारे जंबू अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हथिसीसे णाम णयरे होत्था रिद्धिस्थिमियसमिद्धे तस्स णं हत्थिसीसस्स णगरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए एत्थ णं पुप्फकरंडए णामं उजाणे होत्था सव्वोउय. तत्थण कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था दिव्वे०, तत्थ णं हत्थिसीसे णयरे अदीणसत्तू णामं राया होत्था महया० वण्णओ, तस्स णं अदीणसत्तस्स रण्णो धारिणीपामुख देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्था । तते णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि जाव सीहं सुमिणे पासइ जहा मेहस्स जम्मणं तहा भाणियव्वं । सुबाहुकुमारे जाव अलं भोगस्समत्थे यावि जाणंति, जाणित्ता अम्मापियरो पंच पासायवडिंसगसयाइं करावेंति, अब्भुग्गय० भवणं एवं जहा महाबलस्स रण्णो, णवरं पुप्फचूलापामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकण्णयसयाणं एगदिवसेणं पाणिं गिण्हावेंति तहेव पंचसइओ दाओ जाव उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव विहरइ । तेणं कालेणं तेणं समएण समणे भगवं महावीरे समोसढे, परिसा निग्गया, अदीणसत्तू जहा कूणिओ तहेव निग्गओ सुबाहू विजहा जमाली तहा रहेणं निग्गए जाव धम्मो कहिओ गया परिसा पडिगया। तण्णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म हट्ट तुट्ठ० उट्ठाए उष्टेति जाव एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं० जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर जाव सत्थवाहप्पभिइओ मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइया नो खलु अगहणं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पबहत्तए अहण्णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुवइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजिस्सामि, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह । ततेणं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइय सत्त सिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजति पडिवजित्ता तमेव चाउग्घंटं आसरहं दुरूहति जामे व दिसं पाउन्भूए तामेवदिसं पडिगए । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे जाव एवं वयासी-अहो णं भंते ! सुबाहुकुमारे इढे इहरूवे कंते २ पिए २ मणुण्णे २ मणामे २ सोमे सुभगे पियदसणे सुरूवे
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श्रीजैन सिद्धान्त - खाध्यायमाला.
बहुजणस्सवि य णं भंते! सुबाहुकुमारे इट्ठे ५ सोमे ४ साहुजणस्सवि य णं भंते ! सुबाहुकुमारे
५ जाव सुरू | सुबाहुणा भंते ! कुमारेणं इमा एयारूवा उराला माणुस्सरिद्धी किण्णा लद्धा ? किण्णा पत्ता ? किण्णा अभिसमन्नागया ? के वा एस आसी पुव्त्रभवे ? एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे णामं णगरे होत्था रिद्ध० तत्थ हत्थिणाउरे नगरे सुमुहे नामं गाहावई परिवसई अड्डे ० तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा णाम थेरा जातिसंपन्ना जाव पंचहिं समणसएहिं सार्द्धं संपरिवुडा पुव्वाणुपुविं चरमाणा गामाणुगाम दुइजमाणा जेणेव हत्थिणाउरे नगरे जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अहापडिवं उग्गहं उग्गण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणा विहरंति । तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्म घोसा थेराणं अंतेवासी सुदत्ते णामं अणगारे उराले जाव लेस्से मासं मासेणं खममाणे विह रति तए णं से सुदत्ते अणगारे मासक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेति जहा गोयमसामी तहेव धम्मघोसे ( 'सुधम्मं ) थेरे आपुच्छति जाव अडमाणे सुमुहस्स गाहावतिस्स गेहे अणुपविट्ठे तणं से सुमुहे गाहावती सुदत्तं अणगारं एजमाणं पासति २ त्ता हट्टतुट्ठे आसणातो अट्ठेति २ ता पायपीढाओ पच्चोरुहति २ त्ता पाउयाओ ओमुयति २ त्ता एगासाडियं उत्तरासंग करेति २त्ता सुदत्तं अणगारं सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छति २ ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेह २ ता वंदति णमंसति ५ त्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छति २ त्ता सयहत्थेणं विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिला भेस्सामीति तुट्ठे पडिला भेमाणवि तुट्ठे पडिलाभिएवि तुट्ठे । तते णं तस्स सुमुहस्स गाहावइस्स तेणं दव्वसुद्धेणं दायगसुद्धेणं पडिगाहगसुद्वेणं तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं सुदत्ते अणगारे पडिलाभिए समाणे संसारे परितीकए मणुस्साउए निबद्धे गेहंसि य से इमाई पंच दिखाई पाउन्भूयाई तंजहा -
१२२
1
वसुहारा बुट्ठा १ दसद्भवन्ने कुसुमे निवातिते २ चेलक्खेवे कए : अहयाओ देवदुदुहीओ ४ अंतराविय आगासंसि अहो दाणमहो दाणं घुट्ठे य ५ । हत्थिणाउरे नयरे सिंघाडग जाव पहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खड़ ४- धणे णं देवाणुप्पिया ! सुमुहे गाहावई सुकयपुन्ने कयलक्खणे सुद्धे णं मणुसजम्मे सुकयरिद्धी य जाव तं धने णं देवाणुपिया ! सुमुहे गाहावई । तते णं से मु गाहावई बहू वाससयाई आउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव हत्थसी से एगरे अदीणसत्तस्स रनो धारिणीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्ने । तते णं सा धारिणीं देवी सयजिसि सुत्त जागरा ओहीरमाणी २ सीहं पासति सेसं तं चेत्र जाव उपि पासाए विहरति तं एवं खलु गोयमा ! सुबाहुणा इमा एयारूवा माणुस्सरिद्धी लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया पभू णं भंते ! सुबाहुकुमार देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वद्दत्तए ? हंता पभू । तते
से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति २ ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति । तते णं से समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई हत्थिसीसाओ नगराओ पुप्फकरंडाओ उखाणाओ कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणाओ पडिणिक्खमति २ त्ता बहिया जणवय •
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श्रीसुखविषाक-सूत्रम्
विहारं विहरति । तते णं से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाते अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलामेमाणे विहरेति । तते णं से सुबाहुकुमारे अन्नया कयाई चाउद्दसट्टमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छति २ ता पोसहसालं पमजति २ ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहति २ ता दमसंथारं संथरेइ २ ता दब्भसंथारं दुरूहइ २ ता अट्ठमभत्तं पगिण्हइ । चा पोसहसालाए पोसहिए अट्ठमभत्तिए पोसहं पडिजागरमाणे विहरति । तए णं तस्स सुगहुस्स कुमारस्स पुन्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणरस इमे एयारूवे अज्झथिए ५ समुप्पन्ने-धण्णा णं ते गामागरणगर 'जाव सन्निवसा जत्थ णं समणे भगवं महावीरे जाव विहरति, धन्ना णं तेराईसरतलवर जे गं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडा जाव पव्वयंति, धन्ना णं ते राईसरतलवर० जे गं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव गिहिधम्म पडिवज्जति, धन्ना णं ते राईसर जाव जे णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सुणेति, तं जति णं समणे भगवं महावीरे पुष्वाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दुइजमाणे इहमागच्छिज्जा जाव विहरज्जा तते णं अहं समणस्न भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वएज्जा । तते णं समणे भगवं महावीरे सुबाहुस्म कुमारस्स इमं इयारूवं अज्झत्थियं जाव पियाणित्ता पुव्वाणुपुचि जाव दुइजमाणे जेणेव हत्थिसीसे णगरे जेणव पुप्फकरंडे उजाणे जेणेव कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेष उवागच्छइ २ ता अहापडिरूवं उग्गहं उगिगिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरनि परिसा राया निग्गया । तते णं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स तं महया जहा पढमं तहा निग्गओ धम्मी कहिओ परिसा राया पडिगया । तते णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हट्ट तुट्ठ जहा मेहे तहा अम्मापियरो आपुच्छति, णिक्खमणाभिसेओ तहेव जाव अणगारे जाते ईरियासमिए जाव बंभयारी, ततेणं से सुबाहु अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंणाई अहिजति २ ता बहि चउत्थछट्टट्ठम० तवोविहाणे हिं अप्पाणं भावित्ता बहूई वासाई सामनपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सष्टिं भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवनाए उववन्ने, से णं ततो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइ. क्खएणं अणंतरं चयं चइता माणुस्सं विण्गहं लभिहिति २ ना केवलं बोहिं बुज्झिहिति २ ता तहारूवाणं थेराणं अंतिए मुंडे जाव पव्वइस्सति, से णं तत्थ बहूई वासाइं सामण्णं परियाग्गं पाउणिहिति आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते कालं करिहिति सणंकुमारे कप्पे देवत्ताए उववजिहिति, से णं तओ देवलोगाओ माणुस्सं पव्वज्जा बभलोए ततो माणुस्सं महासुक्के ततो माणुस्सं आणते देखें ततो माणुस्सं ततो आरणे देवे ततो माणुस्सं सव्वट्ठसिद्धे, से णं ततो अणंतरं उव्वद्वित्ता महाविदेहे वासे जाव अड्डाई जहा दढपइन्ने सिज्झिहिति ५ जाव एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते अज्झभयणं समत्तं ॥१॥
चितियस्स णं उपखेवो-एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे णगरे धूमकरंड.
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श्रीजैन सिद्धान्त - खाध्यायमाला.
उज्जाणे धन्नो जक्खो धणावहो राया सरस्सई देवी सुमिणदंसणं कहणं जम्मणं बालत्तणं कालाओ य जुवणे पाणिग्गणं दाओ पासाद० भोगा य जहा सुबाहुस्स, नवरं भद्दनंदी कुमारे सिरिदेवीपा मोक्खा णं पंचसया सामी समोसरणं सावगधम्मं पुब्वभवपुच्छा महाविदेहे वासे पुंडरी किणी नगरी विजयते कुमारे जुगबाहू तित्थयरे पडिला भिए माणुरसाउए निद्धे इहं उपपन्ने, सेसं जहा सुबाहुस्स जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुविहिति परिनिव्वाहिति सच्चदुवखाणमंतं करें हिति || बितियं अज्झयणं समत्तं ॥ २ ॥
१२४
तच्चस्स उक्खेवो-वीरपुरं नगरं मणोरमं उज्जाणं वीरकण्हे जक्खे मित्ते राया सिरि देवी सुजाए कुमारे बलसिरिपामोबखा पंचसयकन्ना सामी समोसरणं पुच्बभवपुच्छा उसुयारे नयरे उसभदत्ते गाहावई पुप्फदत्ते अणगारे पडिलाभिए मणुरसाउए निबद्धे इहं उत्पन्ने जाव महा विदेहे वासे सिज्झिहिति ५ ॥ तइयं अज्झयणं समत्तं ॥ ३ ॥
चोत्थस्स उक्खेवो - विजयपुरं नगरं णंदवणं [मणोरमं] उज्जाणं असोगो जक्खो वासवदते राया कहा देवी सुवासवे कुमारे भद्दापामोक्खा णं पंचसया जाव पुब्वभवे कोसंबी नगरी घणपाले राया वेसणभद्दे अणगारे पडिलाभिए इह जाव सिद्धे । चोत्थं अज्झयणं समत्तं ॥ ४ ॥
पंचमस्स उक्खेवओ - सोगंधिया नगरी नीलासोए उज्जाणे सुकालो जक्खो अप्पडिहओ राया सुकन्ना देवी महचंदे कुमारे तस्स अरहदत्ता भारिया जिणदासो पुत्तो तित्थयरागमणं जिगदासपुन्वभवो मज्झमिया णगरी मेहरहो राया सुधम्मे अणगारे पडिला भिए जाव सिद्धे || || पंचमं अज्झयणं समत्तं ॥ ५ ॥
छट्टस्स उक्खेवओ - कणगपुरं नगरं सेयासोयं उज्जाणं वीरभद्दो जक्खो पियचंदो राया सुभद्दा देवी वेसमणे कुमारे जुवराया सिरिदेवी पामोक्खा पंचसया कन्ना पाणिग्रहणं तित्थयरागमणं 'धनवती युवराय पुते जाव पुन्वभवो मणिवया नगरी मित्तो राया संभूतिविजए अणगारे पडिलाभिते जाव सिद्धे || छट्टु अज्झयणं समत्तं ।। ६ ।।
सत्तमस्स उक्खेवो– महापुरं नगरं रत्तासोगं उज्जाणं रत्तपाओ जक्खो बले राया सुभद्दा देवी महबले कुमारे रतवईपामोक्खाओ पंचसयाकन्ना पाणिग्गहणं तित्थयरागमणं जाव पुत्र्वभवो मणिपुरं नगरं नागदत्ते गाहावती इन्ददत्ते अणगारे पडिलाभिते जाव सिद्धे || सत्तमं अज्ञयणं समत्तं ॥ ७ ॥
अट्टमस उक्खेवो— सुघोरं नगरं देवरमणं उज्जाणं वीरसेणो जक्खो अज्जुण्णो राया तत्तवती देवी भद्दनंदी कुमारे सिरिदेवीपामोक्खा पंचसया जाव पुन्वभवे महाघोसे नगरे धम्मघोसे गाहावती धम्मसीहे अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे || अट्ठमं अज्झयणं समत्तं ॥ ८ ॥
णवमस्स उक्खेवो — चंपा णगरी पुन्नभद्दे उज्जाणे पुन्नभद्दो जक्खो दत्ते राया रत्तवई देवी महचंदे कुमारे जुराया सिरिकंतापामोक्खा णं पंच सया कन्ना जाव पुव्वभवो तिमिच्छी नगरी
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श्रीसुख विपाक-सूत्रम्
१२५
जियसत्तू राया धम्मवीरिए अणगारे पाडलाभिए जाव सिद्धे || नवमं अज्झयणं समत्तं ॥ ९ ॥
जति णं दसमस्स उक्खेवो - एवं खलु जंबू । तेणं कालेणं तेणं समएणं साएयं नामं नयरं होत्था उत्तरकुरुउज्जाणे पासमिओ जक्खो मित्तनंदी राया सिरिकंता देवी वरदत्ते कुमारे वरसेणापामोक्खा णं पंचदेवीसया तित्थयरागमणं सावरगधमं पुत्र्वभवो पुच्छा सत्तदुवारे नगरे विमलवाहणे राया धम्मरुई अणगारे पडिलाभिए संसारे परितीकए मणुस्साउए निबद्धे इहं उपपन्ने से जहा सुबाहुस्स कुमारस्स चिंता जाव पव्वज्जा कप्पंतरिओ जाव सव्वसिद्धे ततो महाविदेहे जहा दढपइनो जाव सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चहिति परि निव्वाहिति सन्वदुखाणमंतं करेहिति ॥ एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दसमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सेवं भंते ! सेवं भंते ! सुहविवागा || दसमं अज्झणं समत्तं ॥ १० ॥
नमो सुदेवाए- विवागसुयस्स दो सुयवखंधा दुहविवागो य सुहविवागो य, तत्थ दुहविवागे अज्झयणा दसं एकसरगा दससुचैव दिवसेसु उद्दिसिजति, एवं सुहविवागो वि सेसं जहा आयारस्स ।। इति एकारसमं अंगं समत्तं ॥
॥ इअ सुखविपाकसुत्तं समत्तम् ॥
॥ सूत्रकुलांगसूत्रे वीरस्तुत्याख्यं षष्टमध्ययनं ॥ पुच्छिस्सु णं समणा माहणा य, अगारिणो या परतित्थिआ य । से केइ गंतहियं धम्माहु, अणेलिस साहु समिक्खया ॥ १ ॥ कहं च गाणं कह दंसणं से, सीलं कहं नायसुतस्स आसी ! । जाणासि णं भिक्खु जहात देणं, अहासुतं बूहि जहा णिसंतं ॥ २ ॥ खेयन्नए से कुसलापन्ने (ले महेसी) अणंतनाणीय अणं तदंसी । जसंसिणो चक्खुप हे ठियस्स, जाणाहि धम्मं च धिरं च पेहि ॥ ३ ॥ उडूं अहेयं तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा । से णिचणिचेहि समिख्ख पन्ने, दीवे व धम्मं समियं उदाहु || ४ || से सवदसी अभिभूयनाणी, णिरामगंधे धिइमं ठितप्पा | अणुत्तरे सव्वजगंसि विज्ज, गंथा अतीते अभए अणाऊ ॥ ५ ॥ से भूइपणे अणिएअचारी, ओहंतरे धीरे अनंतचक्खू | - अणुत्तरं तप्पति सूरिए वा, वइरोयणिंदे व तमं पगासे || ६ || अणुत्तरं धम्ममिणं जिणाणं, णेया मुणी कासव आपन्ने । इंदेव देवाण महाणुभावे, सहस्सणेता दिवि णं विसिडे ॥ ७ ॥ से पन्नया अक्खयसागरे वा, महोदही वावि अनंतपारे । अणाइले बा अक्साइ मुक्के, सक्केव देवाहिवई जुईमं ॥ ८ ॥
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१२६
श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला.
णेगगुणोववे ॥ ९ ॥ पंडगवेजयंते ।
से वीरिएणं पडिपुन्नवीरिए, सुदंसणे वा णगसव्वसे । सुरालए वासिमुदागरे से, विरायए सयं सहस्साण उ जोयणाणं, तिकंडगे से जो वणवते सहस्से. उध्धुस्सितो हे सहस्समेगं ॥ १० ॥ पुट्ठे मे चिट्ठह भूमिवट्ठिए, जं सूरिया अणुपरिवट्टयंति । से हेमवने बहुनंदणे य, जंसी रतिं वेदयती महिंदा ॥ ११ ॥ से पब्वए सहमहप्पगासे, विरायती कंचणमवन्ने । अणुत्तरे गिरिषु यः पव्वदुग्गे, गिरीबरे से जलिएव भोमे ॥ १२ ॥ मही मज्झमि ठिते पगिंदे, पन्नायते सूरिय सुद्धले । एवं सिरीए उ स भूरिखने, मणोरमे जोयइ अचिमाली || १३ || सुदंसणस्सेव जसो गिरिस्स, पबुच्चई महतो पव्त्रयस्स । एतो मे समणे नायपुत्ते, जातीजसोदंसणनाणसी ॥ १४ ॥ गिरीवरे वा निसहाssययाणं, रुपए व सेट्ठे वलयायताणं । ओमे से जगभूइपन्ने, मुणीण मज्झे तमुदाहु प ।। १५ ।। अणुत्तरं धम्ममुईरइत्ता, अणुत्तरं झाणवरं झियाइं । सुसुकसुकं अपगंडमुक्कं, संखिदुए गंतवदात सुकं ॥ १६ ॥ अणुत्तरगं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता । सिद्धिं गते साइमणंतपत्ते, नाणेण सीलेण य दंसणेण ।। १७ ।। रुक्खेसु णाते जह सामली वा जसिं रतिं वेययती सुवन्ना । वसु वा णंदणमाहु सेहूं, जाणेण सीलेण य भूतिपन्ने ।। १८ ।। णियं व सहाण अणुत्तरे उ, चंदो व ताराण महाणुभावे । गंधे वा चंदणमाहु सेट्ठ, एवं मुणीण अपडिन्नमाहु || १९ ॥ जहा सयंभू उदहीण सेट्ठे, नागेसु वा धरणिंद माहु सेट्ठे । खोओदए वा रस वेजयंते, तवोवहाणे मुणिवेजयंते ॥ २० ॥ हत्थी एरावणमाहु णाए, सीहो मिगाणं सलिलाण गंगा । पक्खीसु वा गरुले वेणुदेवो, निव्वाणवादीणिह णायते ॥ २१ ॥ जो जाए जह वीससेणे, पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु | खत्तीण सेट्ठे जह दंतत्रके, इसीण सडे तह वद्धमाणे ।। २२ ।। दाणा से अभयप्पयाणं, सच्चेसु वा अणवजं वयंति । तवे वा उत्तम बंभचेरं, लोगुत्तमे समणे नायपुत्ते ॥ २३ ॥ ठिईण सेट्ठा लवसत्तमा वा सभा सुहम्मा वा सभाण सेट्ठा ।
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श्रीसुखविपाक-सूत्रम्
१.२७
निव्वाणसेट्ठा जह सव्वधम्मा, ण णायपुत्ता परमत्थि नाणी ॥ २४ ॥ पुढोवमे धुणइ विगयगेहि, न सणिहिं कुव्वति आसुपन्ने । तरिउं समुदं व महाभवोघं, भयंकरे वीर अणंतचक्खू ॥ २५ ॥ कोहं च माणं च तहेव मायं, लोभं चउत्थं अज्झत्थदोसा । एआणि वंत। अरहा महेसी, ण कुव्वई पावण कारवेइ ॥ २६ ।। किरियाकिरियं वेणइयाणु वायं, अण्णाणियाणं पडियच्च ठाणं । से सव्ववायं इति वेयइत्ता, उवट्टिए संजमदीहरायं ।। २७ ।। से वारिया इत्थी सराइभत्तं, उवहाणवं दुक्खखयट्ठयाए । लोग विदित्ता आरं परं च, सव्वं पभू वारिय सम्बवारं ॥ २८ ॥ सोचा य धम्मं अरहंतभासियं, समाहित अट्ठपदोवसुद्धं । तं सदहाणा य जणा अणाऊ, इंदा व देवाहिव आगमिस्संति ॥ २९ ॥
॥ इति श्रीवीरस्तुत्याख्यं षष्टमध्ययनम् ॥
॥ मोक्षमार्गनामकं एकादशाध्ययनम् ॥ तं मग्गं णुत्तरं सुद्धं, सव्वदुक्ख विमोक्खणं । जाणासि णं जहा भिक्खु, तं णो बृहि महामुणी ॥२॥ कयरे मग्गे अक्खाए, माहणेणं मईमता ! जं मग्गं उज्जु पावित्ता ओहं तरति दुत्तरं ॥१॥ जइ णो केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा । तेसिं तु कयरं मग्गं, आइक्खेज? कहाहि णो ॥ ३ ॥ जइ वो केइ पुच्छिज्जा, देवा सदुव माणुसा । तेसिमं पडिसाहिज्जा, मग्गसारं सुणेह मे ॥ ४ ॥ अणुपुब्वेण महाघोरं कासवेण पव्वेइयं, । जमादाय इओ पुव्वं, समुदं ववहारिणो ॥५॥ अंतरिमु तरंतेगे, तरिसंति अणागया । तं सोचा पडिवक्खामि, जंतवो तं सुणेह मे ॥ ६॥ पुढवीजीवा पुढो सत्ता, आउजीवा तहाऽगणी । वाउजीवा पुढो सत्ता, तणरुक्खा सबीयगा ।। ७ ।। अहावरा तसा पणा, एवं छक्काय आहिया । एतावए जीवकाए, णावरे कोइ विजई ॥ ८ ॥ सव्वाहिं अणुजुत्तीहि, मतिम पडिलेहिया । सव्वे अकंतदुक्खा य, अतो सव्वे न हिंसया ॥९॥ एयं खु णाणिओ सारं, जं न हिंसति कंचण । अहिंसा समयं चेव, एतावंतं विजाणिया ॥ १० ॥ उड्डे अहे य तिरियं, जे केइ तसथावरा । सव्वत्थ विरतिं विजा, संति निव्वाणमाहियं ॥ ११ ॥ पभू दोसे निराकिच्चा, ण विरुज्झेज केणई । मणसा वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो ॥ १२ ॥ संवुडे से महापन्ने, धीरे दत्ते सणं चरे। एसणासमिए णिच्चं, वजयंते अणेसणं ॥ १३ ॥ भूयाई च समारंभ, तमुदिसा य जं कडं । तारिसं तु ण गिण्हेज्जा, अन्नपाणं सुसंजए ॥ १४ ॥ पूईकम्मं न सेविजा एस धम्मे बुसीमओ । जं किंचि अभिकंखेज्जा, सव्यसो तं न कप्पए ॥१५॥ हणतं णाणुजाणेज्जा, आयगुत्ते जीइंदिए । ठाणाई संति सड्ढीणं, गामेसु नगरेसु वा ॥ १६ ॥ तहा गिरं समारब्भ, अस्थि पुण्णंति एगे वए । अहवा णस्थि: पुणंति, एवं मेयं महब्भयं ॥ १७ ॥
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१२८
श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला.
दाया य जे पाणा हम्मंति तस्थावरा । तेसिं सारक्खणट्ठाए, तम्हा अस्थिति णो वए ॥ १८ ॥ जेसिं तं उवकप्पंति, अन्नपाणं, तहाविहं । तेसिं लाभंतरायंति, तम्हा णत्थिति णो वए ।। १९ ।। जो य दाणं पसंति, वहमिच्छंति पाणिणं । जे य णं पडिसंहंति, वित्तिच्छेयं करंति ते ॥ २० ॥
६७ ॥
॥
ओवि तेण भाति, अस्थि वा नत्थि वा पुणो । आयं रयस्स हेच्चा णं निव्वाणं पाउणंति ते॥२९॥ निव्वाणं परमं बुद्धा, णक्खताण व चंदिमा । तम्हा सदा जए दंते, निव्वाणं संघर मुणी ।। २२ ।। वुज्झमाणण पाणाणं, किचंताण सकम्मुणा । आघाति साहु तं दीवं पतिट्ठेसा पच्चाई || २३ || आयगुते सया दंते, छिन्नसोए अणासवे । जे धम्मं युद्धमक्खाति, पडि पुन्नमणेलिसं ॥ २४ ॥ तमेव अविजाणता, अबुद्धा बुद्धमाणिणो । बुद्धा मोत्ति य मन्नंता, अंत एते समाहिए ।। २५ ।। तेय बीओदगं चैव तमुद्दिस्सा य जं कडं । भोच्चा झाणं झिया यंति, अखेयन्ना (अ) समाहिया : २६ ।। जहा ढंका य कंकाय, कुलला मग्गुका सिही । मच्छेसणं झियायंति. झाणं ते कलुलाधमं ॥ एवं तु समणा एगे, मिच्छद्दिट्ठी अणारिया । विसएसणं झियायंति, कंकावा कलुलाहमा ॥ सुद्धं मग्गं विराहित्ता, इहमेगे उ दुम्मती । उम्मग्गगता दुक्खं, धायमेसंति तं तहा जहा आसाविर्णि नावं जाइअंधो दुरूहिया । इच्छई पारमागंतु, अंतरा य विसीयति एवं तु समणा एगे, मिच्छद्दिट्ठी अणारिया । सोयं कसिण मावन्ना, आगंतरो मह भयं इमं च धम्ममादाय, कासवेण पवेदितं । तरे सोयं महाघोरं, अत्तताए परिव्व ॥ fare गामधम्मेहिं, जे केई जगई जगा । तेसिं अत्तुवमायाए, थामं कुव्वं अइमागं च मायं च तं परिन्नाय पंडिए । सन्त्रमेयं णिराकिच्चा, णिव्वाणं संघए मुणी ॥ संघ साहुधम्मं च, पावधम्मंः णिराकरे | उबहाणवीरिए भिक्खू, कोहं माणं ण पत्थए ॥ जे य बुद्धा अतिककता, जे य बुद्धा अणागया । संति तेसिं पट्टणं, भूयाणां जगती जहा ॥ अहं णं वयमावन्नं, फासा उच्चावयाफुसे । ण तेसु विणिहण्णेज्जा, वाएण व महागिरि ।। ३७ ।। संडे से महापने, धीरे दत्तेसणं चरे । निव्वुडे कालमाकंखी, एवं (यं) के बलिणोमयं ॥ ३८ ॥ ॥ इति मोक्षमार्गनामकं एकादशमध्ययनम् ॥
॥
३१ ॥
३२ ॥
परिव्वए ॥
३३ ॥
३४ ॥
६५ ॥
३६ ॥
॥
२८ ॥
२९ ॥
३० ॥
सुभाषित केटलीक गाथानो संग्रह.
पंचमहन्त्रयमुव्व मुलं, समणामणाइलख्खा दुसुच्चीन्नं । वेरविरामण पज्जवसाणं, सव्वसमुद्द मोहदधी तित्थं । १ । तिथंकरेहिंसु देसियमग्गं, नरगतिरि छविवज्झियमग्गं ।
सव्वं पवित्त सुनिम्मियसारं, सिद्धिविमाणं अवगुयदारं ॥ २ ॥ देवनदिन मंसिय पूर्य, सब्बजगुत्तममंगलमग्गं । उधरिसंगुणनायगमेगं, मोक्ख पहस्सवर्डिसंग भूयं ॥ ३ ॥ ( प्रश्नव्याकरणसूत्रे संवरद्वारे) 'धम्मारांमेचरेभिक्खू । पिइमं धम्मसारही । धम्मा समेरयादते । बंभचेरसमाहिए । ४ ॥
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प्रास्ताविक-गाथाओ
१२९ देवदाणवगंधव, जक्खरक्खस्सकिन्नरा । बंभयारिं नमसंति दुकरं जे करंतितं ॥ ५ ॥ एस धम्मे धुवे निच्चे, सासए जिणदेसिए । सिद्धा सिझंति चाणेणं, सिन्झिस्संति तहावरे ॥ ६ ॥
(उत्तराध्ययन सूत्रे) षोडशकाध्ययन । अरहंत सिद्ध पवयणगुरु थेर बहुस्सुरए तवस्सीसु । वच्छल्लया य तेसिं अभिक्खणाणणोवओगे य ॥ ७ ॥ दंसण विणए आवस्सए य, सीलबए निरइयारं । खणलव तव चियाए, वेयावच्चे समाही य ॥ ८॥ अपूछणाणगहणे सुयभत्ती, पचयणे पभावणया । एएहि कारणेहिं तित्थ्यरत्तं लहइ जीओ ॥९॥
(ज्ञाताधर्मकथासूत्रे) जिणवयणेअणुरत्ता जिणवयणं जे करंति भावेणं । अमलाअसंकिलिछा, तेऊतियपरित्तसंसारि ॥१०॥ एयंखुनाणीणोसारं, जं नहिं सई किंचण। अहिंसमयं चेव, एतावत्तं वियाणि य ॥ ११ ॥ जात्तिं च बुड्डिं च इह दूपासं, भृतेहिं जाणेहिं पडिलेहसायं ।
__ तम्हातिविझोपरमंतिणचा, सम्मचदंसी न करेई पावं ॥ १२ ॥ उम्मुच्चपासं इह मच्चिएहि, आरंभजीवीऊज्झपयाणुपस्सी।
कामेसु गिद्धवाणिचयंकरंति, संसिंचमाणापुणरेतिगझं ।। १३ ॥ सावणेनाणेविन्नाणे, पच्चमेक्खाणेयसंजभो । अणएहएत वेचेव, बोदाणे अकिरियासिद्धि ॥ १४ ॥ एगोहं गस्थि मे कोइ, नाह मन्नस्स कस्सइ । एवं अदीणमणस्सा, अप्पाणमणु सासइ ॥ १५ ॥ एगोमे सासओ अप्पा, नाणदंसणसंजओ। सेसामे बाहिरा भावा, सव्वं संजोग लख्खणा ॥ १६ ॥ जीविओ नाभिगच्छेजा मरण नो विपत्थए । दुहउ विनइन्छेजा, जीविओ मरणं तहा ॥ १७ ॥ सारं दसण नाणं, सारं तव नियम संजमसीलं । सारं जिण वर धम्म, सारसंलेहणापंडियमरणं ॥ १८ ॥ कल्लाणकोडिकारिणी, दुगइदुइ निठवणी, संसारजलतारणी, एगंतहोइजीवदया ॥ १९॥ आरंभे नस्थि दया, महिलएसंगनासाइभ । संकाएनासइसम्मत्तं, एव्यज्झाअत्थग्गहणं च ॥ २० ॥ मजविस यकसाय, निंदाविकहायमंचमाभणिया । ए ए पंचप्पमाया, जीवापडंतिसंसारे ॥२१॥ लझंति विमलाभोए, लझंति सुरसंपया । लझंति पुत्तमित्तं च । एगोधम्मो न लज्झई ।। २९॥ नविसुहीदेवतादेवलोए,नविसुहीपुठवीपइराया। नविमुहीसेठिसेणावइय,एगंतसुहीसुणीवीयरागी।।२३॥ नगरी सोहंति जलमूलबागे, नारीसोहंतिपरपुरुषत्यागे ।
राजसोहंत सभा पुराणी, साधुमोहंता अमृतवाणी ॥ ६ ॥ चलंतिमेरुचलंतिमंदिरं, चलंतितारारविचंद्रमंडलं ।
____ कदापि काले पृथ्वी चलंति, सत्पुरुषवाक्यो न चलंति धर्म ॥ २५ ॥ अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टि-दिव्यध्वनिश्वामरमासनं च ।
भामंडलं दुंदुभिरातपत्रं, सत्प्रातिहार्याणिजिनेश्वराणां ॥ २५ ॥ रुप अनोपम तुल्य न कोई, वाणीसुणंताश्रवणमुखहोई ।
देहरुंगधी हरे पुष्पवास, चउसठइंद्ररहे प्रभु पास ॥ २७ ॥ चउदपुरवधारकहियें,ज्ञानाचारवखाणीयें। जिननहिं पण जिनसरिखा, श्रीसुधर्मस्वामी जाणीए॥ २८ ॥ रूप अनोपम वखाणीए,देवताने वल्लभ लागे। एहवा श्रीजंबुखामी जाणीने,भावीए मन भावथी॥ २९ ।'
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॥ शुद्धिपत्रकम् ॥
उत्तराध्यन सूत्र अध्य. पृष्ट. गाथांक.
अशुद्ध
शुद्ध
अध्य. पृष्ट. गांथाक.
भशुद्ध
शुद्ध.
दुसील
, १
१ . ४ २ ३.
दुरस्सील निरुट्ठाइ
निरुट्टाइन
चरे सेओ
दुरुत्तरे
इम
१४ २३ ३५ भिक्खाचरियं भिक्खायरियं १४ २४ ५० धम्म
णवं सयगासाणं
सयणासणंसंजमबद्धले... -संजमबहूले
संवरबहले १७ २७३---निहाभाले निहाशीले १७ २८ १२ डदीरेइ उदीरेह १७ २८ २१ लोभिणं लोगभिणं
૧૮ सोजण सोउण १९ ३१ १८
जहाइम १९ ३१ ४५ द्धनन्तसो अनन्तसो १९ ३२ ५६ अनसे अवसे
सम्वक्ख सम्वदुक्ख
असंजया असंगया २२ ३८ २३ शित्ताहिं चित्ताहिं २२ ३८ २६ । खत्तीए खंतिए २३ ३९ १२ ममुामुणी महामुणी २३ ४० ५४ संसचो संसवो इमो २३ ४१ ८६. गोमयं. गोयम
सम्वदुक्खणं सव्वदुक्ख
विमोख्खणं
गारिसु
५
. २८
७
९
सुश्री अभिवायण भभिवाय कन्थुपीवालीया कथुपिपालिया वीसंसे
वीससे दुरुतरं महावीरण महावीरेण समारभइ समारंभ पमीओ
पम्पीओ गाविसु असंसिगो जसंसिणो अश्चिम
अच्चिमा मिक्खागे भिक्खाए पियान्डु पियाण्णुसा देवि
देवेत्ति नरए
नरएसु लाहा
लोहो मिहिला
मिहिलाओ मित्तणं भित्तूणं कामे
कामेभोगे अहो
अहो ते सद्धाए
सद्दाए निवडा निवदुइ चोइसहिं चोदस्सहिं मन्तेहिं
दन्तेहिं वदेह
वहेह महिडूढी महिढीओ कम्भाइ
कम्मा चफाउं
अकाउ भुचिण्ण
सुचिण हीयमाउं दीयमा सफला
सफला सुसंमिया सुसभिया
२८
s
९१ २२ ९ १२ ५३ ९ १२. ५६ ९ १२ ६. १. ३ .
लद्धाओ
बद्धाओ जेभि भाणुपाणा खन्धारे
आणपाणु एन्धारे
जेभिक्खु पावाइ
१२ १८ २७ १३ २० १९ १३ २१ ३२ १४ २१ ५
६ ३२ ५५ १२ ३२ ५६ २२
रूवं
पवाह दमिद चक्खु रक्खग रक्खण सायमसाहिवं सायमसायं काऊण काएण खज्जू .. खंडसकरसो. खंडसारस्सो
३३ ६२ . ३४ ६३ १२ ३४ ६३ १५
१४ २२ २५ १४ २३ ३.
खजूर .
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अध्य. पृष्ट. गाथांक.
भशुद्ध
अध्य पृष्ट. गाथांक.
अशुद्ध
अहेव
३४ ६३ १६ ३४ ६४ ४५ १४ ६४ ४६ ३४ ६६ २२ ३६ ६७ ३६ ३६ ७१ १६५
जप्पस्स्थाणं लेलाण नायब्वाक्क परिमएडला भइए सत्तेवना जिणवयणं
अप्पसत्थाणं लेसाण नायब्वामुक्क परिमंडला . महुए. दसचेवसा जिणवयणजे
भेआयण मेआयमण
तहेव
तहेव ८ ९१ २७ महाकसं महाफलं
भमप्पणो गमप्पणो
संजम्मि संजमि ८ ९३ ५ आयरिआया आयरियपाचा ८ ९३ ९ गुरुहीलसाए गुरुहीगाए ९ ९६ २२लींटी सुअसाहिए सुहसमाहिए ९ ९६ ३१ सुहावहं सुहावहं
दशवकालिक शुद्धिपत्रकम्
सिंधवे
Secem
३ ७६, ८ सिंबवे
७६ ८लींटी वाऊ ७८ १,, परिगहं ७० २३, वा, ७९ १९,, समणुजामि
वा, ७९ २९,, हिलइ ५ ८३ १२., कोलतुझाइ ५ ४५ ७, अपुणम्मि
रायओ
परिगिहाविस्ता वा, उद्घल्लंवाकायं समणुजाणिजा वा, संजंसिवा
नन्दीसूत्र शुद्धिपत्रकम् ૧૦૧ ૭
गुण उत्तमगुण १०२ ३२
जेहिं रक्खिओजेहिं ૧૦૨ ૪૦
नाज्जुण नागज्जुण १११ १ लींटी अंतगडेदसाओर अतगडदसामो १२ २९ ,, अगु ओगदारा अणु ओगदारा
संग संखिजाओसंग ११६ २., से उवहससिजं तसे ११८ ५७ गाथा खंतं. खेतकालं
हिंसइ
૧૧૪
कोलचुन्नाई अमुच्छिणो
रायाणो
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