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श्रीजैन सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
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तत्थ से चिट्ठमाणस्स, उवसग्गाभिधारए । संकाभीओ न गच्छेज्जा, उट्ठित्ता अन्नमासणं ॥ उच्चावयाहिं सेज्जाहिं, तवस्सी भिक्खू थामवं । नाइवेलं विहम्मेज्जा, पावदिट्ठी हिम्मई ॥ पइरिक्कुवस्सयं लब्धुं, कल्लाणमदुवा पावयं । किमेगराई करिस्सर, एवं तत्थऽहियासए । अक्कोसेज्जा परे भिक्खु, न ते सि पडिसंजले । सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू न संजले ॥ सोच्चाणं फरुसा भासा, दारुणा गामकण्टगा । तुसिणीओ उवेहेज्जा, न ताओ मणसीकरे || ओन संजले भिक्खू, मणंपि न पओसए । तितिक्खं परमं नच्चा, भिक्खू धम्मं समायरे || समणं संजयं दंतं, हणिज्जा कोइ कत्थई । नत्थि जीवस्स नासुत्ति, एवं पेहेज्ज संजए ॥ दुक्करं खलु भो निचं, अणगारस्स भिक्खुणो । सव्वं से जाइयं होइ, नत्थि किंचि अजाइयं गोरग्गपविस, पाणी नो सुप्पसारए । सुओ अगारवासुत्ति, इइ भिक्खू न चिंतए रेसु घासमेसेंज्जा, भोयणे परिणिडिए । लद्धे पिण्डे अलद्धे वा, नाणुतप्पेज्ज पंडिए अज्जेवाहं न लग्भामि, अत्रि लाभो सुए सिया । जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो तं न तज्जए नच्चा उपइयं दुक्खं, वेयणाए दुहट्टिए । अदीणो थावए पन्नं, पुट्ठो तत्थऽहियासए ॥ तेइच्छं नाभिनंदेज्जा संचिक्खत्तगवेसए । एवं खु तस्स सामण्णं, जं न कुज्जा न कारवे ॥ अचेलगस्स लूहस्स, संजयस्स तवसिणो । तणेसु सयमाणस्स, हुज्जा गायविराहणा || आयवस्स निवारण, अउला हवइ वेयणा । एवं नच्चा न सेवंति, तंतुजं तणतज्जिया ॥ ३५ ॥ किलिन्नगाए मेहावी, पंकेण व रएण वा धिंसु वा परियावेण, सायं नो परिदेवए || ३६ || वेज्ज निज्जरापेही, आरियं धम्मणुत्तरं । जाव सरीरभेउत्ति, जल्लं कारण धारए || ३७ ॥ अभिवायणमब्भुट्ठाणं, सामी कुज्जा निमंतणं । जे ताइं पडि सेवन्ति, न तेसिं पीहए मुणी ॥ ३८ ॥ अणुक्कसाई अप्पिच्छे, अनाएसी अलोलुए । रसेसु नाणुगिज्झेज्जा, नाणुतप्पेज्ज पन्नवं ।। ३९ ॥ से नूणं मए पुव्वं, कम्माऽणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि, पुट्ठो के कण्हुई || ४० ॥ अह पच्छा उइज्जन्ति, कम्माडणाणफला कडा । एवमस्सासि अप्पाणं, नच्चा कम्मविवागयं ॥ ४१ ॥ निरट्ठगम्मि विरओ, मेहुणाओ सुसंवुडो । जो सक्खं नाभिजाणामि, धम्मं कल्लाणपावगं ॥ ४२ ॥ तवोवहाणमादाय, पडिमं पडिवज्जओ । एवं पि विहरओ मे, छउमं न नियट्टई नत्थि नूणं परे लोए, इड्ढी वावि तवसिणो । अदुवा वंचिओमित्ति, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ अभ्रू जिणा अस्थि जिणा, अदुवावि भविस्सई । मुसं ते एवमाहंसु, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ एए परीसहा सब्वे, कासवेण निवेइया । जे भिक्खू न विहम्मेज्जा, पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥
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त्ति बेमि ॥ इ दुइअं परिसहज्झयणं समत्तं ॥ २ ॥
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