________________
(६४)
श्रीजैन सिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
परिणमे ॥ उवहाणवं ॥ परिणमे ॥
२९ ॥
३० ॥
३१ ॥
३२ ॥
॥
३५ ।।
३६ ॥
॥
३७ ॥
३९ ।।
४० ॥
नीयावती अचबले, अमाई अकुऊहले । विणीयविणए दन्ते, जोगवं उवहाणवं ॥ २७ ॥ पियधम्मे दधम्मेऽवज्जभीरू हिएसए । एयजोगसमाउत्तो, तेउलेसं तु २८ ॥ पणुको हमाणे य, मायालोभे य पयणुए । पसन्तचित्ते दन्तप्पा, जोगवं तहा पयणुवाई य, उवसन्ते जिइन्दिए । एयजोगसमाउत्तो, पम्हलेसं तु अट्ठरुद्दाणि वज्जित्ता, धम्मसुक्काणि झायए । पसन्तचित्ते दन्तप्पा, समिए गुत्ते य गुत्तिसु ॥ सरागे वीयरागे वा, उवसन्ते जिइन्दिए । एयजोगसमाउत्तो, सुक्कलेसं तु परिणमे || असंखिजाणोसप्पिणीण, उस्सप्पिणीण जे समया । संखाईया लोगा, लेसाण हवन्ति ठाणाई ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसा सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायवा किण्हलेस ए मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दस उदही पलियमसंखभागन्भहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा नीललेसाए ।। मुद्धं तु जहन्ना, तिष्णुदही पलियमसंखभागम भहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायच्चा काउलेसाए ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, दोष्णुदही पलियमसंखभागमन्भहिया। उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा तेउले साए मुद्धं तु जहन्ना, दस होन्ति य सागरा मुहुत्तहिय । उक्कोसा होइ ठिई, नायवा पहले|ए मुहुत्तद्धं तु जहन्ना, तेत्तीसं सागरा मुहुत्तहिया । उक्कोसा होइ ठिई, नायव्वा सुकलेसाए । एसा खलु लेसाणं, ओहेण ठिई वष्णिया होइ। चउसु वि गईसु एत्तो, लेसाण ठिई तु वोच्छामि ॥ दस वास सहरसाई, काऊए ठिई जहन्निया होइ। तिष्णुदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥ तिण्णुदही पलिओम संखभागो जहन्नेण नील ठिई। दस उदही पलिओम असंखभागं च उक्कोमा ॥ दसउदही पलिओ मअसंखभगं जहन्निया होइ। तेत्तीससागराई उक्कोसा, होइ किण्हाए लेसए एसा रइयाणं, लेसाण ठिई उ वण्णिा होइ । तेण परं वोच्छामि, तिरियमणुस्साण देवाणं अन्तोमुहुत्तमद्धं, लेलाण जहिं जहिं जाउ । तिरियाण नराणं वा, वज्जित्ता केवलं लेसं मुद्धं तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुक्कोडीओ । नवहि वरिसेहि ऊणा, नायवा कसुलेसा ॥ एसा तिरियनराणं, लेसाण ठिई उ वणिया हो । तेण परं वोच्छामि, लेसाण ठिईउ देवाणं ॥ ४७ ॥ दस वाससहस्सई, किण्हाए ठिई जहन्निया होइ । पलियम संखिज्ज इमो, उक्कोसो होइ कहाए ॥ ४८ ॥ जा किन्हाए ठिई खल, उक्कोसा साउ समयमग्भहिया । जहन्नेणं नीलाए, पलियमसंखं च उक्कोसो ॥ ४९ ॥ जा नीसाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमम्भहिया । जहन्नेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा ।। ५० ।।
४१ ॥
४२ ॥
४३ ॥
॥
४४ ॥
॥
४५ ॥
४६ ॥
५१ ॥
॥
५२ ॥
ते परं वोच्छामि, तेजलेसा जहा सुरगाणं । भवणवइवाणमन्तरजोइस वेमाणियाणं च ॥ पलिओवमं जहन्नं, उक्कोसा सागरा उ दुन्नंहिआ । पलियमसंखेज्जेणं, होइ भागेण तेऊए दस वास सहरसाईं, तेऊए ठिई जहन्निया होइ। दुन्नुदही पलिओवमअसंखभागं च उक्कोसा ॥ जा तेंऊण ठिई खलु, उक्कोसा साउ समयमन्भहिया । जहन्नेणं पम्हाए, दस उ मुहुचाहियाइ उक्कोसा ॥ ५४ ॥
५३ ॥
||
॥
३३ ॥
३४ ॥
३८ ||