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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
कामं तु देवीहि विभूसियाहिं, न चाइया खोभइउं तिगुत्ता । तहा वि एगन्तहियं ति नच्चा, विवित्तचासो मुणिणं पसत्थो ॥१६॥ मोक्खाभिकंखिस्स उमाणवस्स,संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे । नेयारिसं दुत्तरमत्थि लोए, जहित्थिओ बालमणोहराओ ॥ १७॥ एए य संगे समइक्कमित्ता, सुदुत्तरा चेव भवन्ति सेसा । जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गङ्गासमाणा ॥१८॥ कामाणुगिद्धिप्पभवं ख दुक्खं, सबस्स लोगस्स सदेवमस्स । ... जे काइयं माणसियं च किंचि, तस्सन्तगं गच्छइ वीयरागो ॥ १९ ॥ जहा य किम्पागफला मणोरमा, रसेण वण्णेण य भुज्जमाणा । ते खुड्डए जीविय पच्चमाणा, एओवमा कामगुणा विवागे ॥ २० ॥ जे इन्दियाणं विसया मणुन्ना न तेसु भावं निसिरे कयाइ । न यामणुन्नेसु मणं पि कुजा, समाहिकामे समणे तक्स्सी ॥ २१ ॥ चक्खुस्स चक्खं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु. समो य जो तेसु स वीवरागो ॥ २२ ॥ रूवस्स चक्खु गहणं वयन्ति, चक्खुम्स रूवं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स - हेउं अमणुन्नमाहु ॥ २३ ॥ रूवेसु जो गेहिमुवेइ तिवं, अकालियं पावइ से विणासं । । रागाउरे से जह वा पयंगे, आलोयलोले समुवेइ मच्चु ।। २४ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिवं, तंसिक्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किञ्चि रुवं अवरज्झई से ॥ २५ ॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि रूवे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स सम्पीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागा ॥ २६ ॥ रूवाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइ तेणरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तद्वगुरू किलिट्टे ॥ २७ ॥ रूवाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहं सुहं से, वए सम्भोगकाले य अतित्तलामे ॥ २८ ॥ रूवे अतित्ते य परिगहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुढेि । अतुढिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ २९ ॥ तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, रूवे अतितस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा विमुच्चई से ॥ ३० ।। मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पयोगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, रूवे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ३१ ॥ रूवाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किश्चि ।