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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-छविसमाध्ययनम्
(४५)
आसाढबहुलपक्खे, भद्दवए कत्तिए य पोसे य । फग्गुणवाइसाहेसु य, बोद्धव्वा ओमरत्ताओ ॥ १५॥ जेट्ठामूले आसाढसावणे, छहिं अंगुलेहिं पडिलेहा। अहहिं बीयतम्मि, तइए दस अट्टहिं चउत्थे ॥ १६ ॥ रत्तिं पि चउरो भागे, भिक्खू कुजा वियक्खणो। तओ उत्तरगुणे कुजा, राइभाएसु चउसु वि ॥ १७ ॥ पढमं पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायई। तइयाए निदमोक्खं तु. चउत्थी भुजो वि सज्झायं ॥ १८ ॥ जं नेइ जया रतिं, नक्खत्त तम्मि नहचउम्भाए। संपत्त विरमेजा, सज्झायं पओसकालम्मि ।। १९ ।। तम्मेव य नक्खत्ते, गयणचउब्भागसावसेसम्मि। वेरत्तियपि कालं, पडिलेहित्ता मुणी कुजा ॥ २० ॥ पुल्लिम्मि चउब्भाए, पडिले हित्ताण भण्डयं । गुरुं वन्दित्तु सज्झा, यकुजा दुक्खविमोकावणं ॥ २१॥ पोरिसीए चउभाए, वन्दित्ताण तओ गुरुं । अपडिक्कमित्ता कालस्स, भायणं पडिलेहए ॥ २२ ॥ मुहपोति पडिलेहित्ता, पडिलेज गोच्छगं । गोच्छगलइयंगुलिओ, वत्थाई पडिलेहए ॥ २३ ॥ उर्दू थिरं अतुरियं, पुवं ता वत्थमेव पडिलेहे । तो बिइयं पप्फोडे, तइयं च पुणो पमजिज ॥ २४ ॥ अणच्चावियं अवलियं, अणाणुबन्धिममोसलिं चेव । छप्पुरिमा नव खोडा, पाणीपाणिविसोहणं ॥ २५ ॥ आरभडा सम्म द्दा, वजेयत्वा य मोसलो तइया। पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया छट्ठी ॥ २६ ॥ पसिढिलपलम्बलोला,एगा मोसाअणेगरूवधुणा। कुणइ पमाणिपमाय,संकियगणणोवगं कुज्जा ॥ २७ ।। अणूणाइरित्तपडिलेहा, अविवच्चासा तहेव य । पढमं पयं पसत्थं, सेसाणि य अप्पसत्थाई ॥ २८ ॥ पडिलेहणं कुणन्तो, मिहो कहं कुणइ जणवयकहं वा। देइ व पच्च क्खाणं, वाएइ सयं पडिच्छइ वा ॥ २९॥ पुढवी आउकाए, तेऊ-वऊ-वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणापमत्तो, छण्हं पि विराहओ होइ ॥ ३० ।। पुढवी-आउक्काए, तेऊ वाऊ वणस्सइ-तसाणं । पडिलेहणाआउत्तो, छण्हं संरक्खओ होइ ॥ ३१ ॥ तइयाए पोरिसीए, भत्तं पणं गवे सए । छण्हं अनयराए, कारणम्मि समुट्टिए ॥ ३२ ॥ वेयण वेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमट्टाए । तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्मचिन्ताए ॥ ३३॥ निग्गन्थो धिइमन्तो, निग्गन्थी वि न करेज छहिं चेव । थाणेहि उ इमेहिं, अणइक्कमणाइ से होइ ॥ ३४ ॥ आयके उवसग्गे, तितिक्खया बम्भचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेडं, सरीरवोच्छे यणट्ठाए ॥ ३५ ॥ अवसेसं भएडगं गिज्झ, चक्खुसा पडिलेहए । परमद्धजोयणाओ, विहारं विहरए मुणो ॥ ३६ ॥ चउत्थीए पोरिसीए, निक्खि वित्ताण भायणं । सज्झायं तओ कुज्जा, सवभावविभावणं ॥ ३७॥ पोरिसीए चउन्माए, वन्दित्ताण तओ गुरुं । पडिक्कमित्ता कालस्स, सेजं तु पडिलेहए ॥ ३८ ॥ पासवणुचारभूमि च, पडिलेहिज जयं जई । काउस्सगं तओ कुजा, सव्वदुक्ख विमोक्खणं ॥ ३९ ॥ देवसियं च अईयारं, चिन्तिज्जा अणुपुत्वसो । नाणे य दंसणे चेव, चरित्तम्मि तहेव य ॥ ४०॥ पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । देसियं तु अईयारं, आलोएज जहक्कम्मं ॥ ४१ ॥ पडिक्कमिनु निस्सल्लो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । काउस्सग्गं तओ कुजा, सव्वदुक्ख विमोक्खणं ॥ ४२ ॥ पारियकाउस्सग्गो, वन्दित्ताण तओ गुरुं । थुइमंगलं च काऊण, कालं संपडिलेहए ॥ ४३ ।। पढमं पोरिसि सज्झायं, वितियं झाणं झियायई। तइयाए निदमोक्खं तु, सज्झायं तु चउत्थिए ॥ ४४ ॥ पोरिसीए चउत्थीए, कालं तु पडिलेहिया । सज्झायं तु तओ कुजा, अबोहेन्तो असंजए ॥ ४५ ॥ पोरिसीए चउब्भाए, वन्दिऊण तओ गुरुं । पडिकमित्तु कालास, कालं तु पडिलेहए ॥ ४६ ॥ आगए कायवोस्सग्गे; सबदुक्खविमोक्खणे । काउस्सग्गं तओ कुन्जा सबदुक्खविमोक्खणं ॥ ४७ ।।