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॥ णमोऽत्थु णं तस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स।
श्री जैन ॥ सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला ॥
॥ सिरि-उत्तरज्झयण--सुतं । विणयसुयं पढमं अज्झयणं
संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो। विणयं पाउकरिस्सामि, आणुपुचि सुणेह मे ॥१॥ आणानिद्देसकरे, गुरूणमुववायकारए। इंगियागारसंपन्ने, से विणीए ति वुच्चई ॥ २ ॥ आणाऽनिद्देसकरे, गुरूणमणुववायकारए । पडिणीए असंबुद्धे, अविणीए त्ति वुच्चई ॥ ३ ॥ जहा सुणी पूइकण्णी, निकसिन्जई सव्यसो । एवं दुरस्सीलपडिणीए, मुहरी निक्कसिन्जई ॥ ४ ॥ कणकुण्डगं चइत्ताणं, विट्ठ भुंजइ सूयरे। एवं सीलं चइत्ताणं, दुस्सीले रमई मिए ॥ ५ ॥ सुणिया भावं साणस्स, सूयरस्स नरस्स य । विणए ठवेज अप्पाणमिच्छन्तो हियमप्पणो ॥ ६ ॥ तम्हा विणयमेसिज्जा, सीलं पडिलभेज्जए । बुद्धपुत्तं नियागट्ठी, न निकसिन्जइ कण्हुई ॥ ७ ॥ निसन्ते सियाऽमुहरी, बुद्धाणं अन्तिए सया। अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा, निरट्ठाणि उ वजए ॥ ८ ॥ अणुसासिओ न कुप्पिज्जा, खंति सेविज पण्डिए। खुड्डेहिं सह संसग्गि, हासं कीडं च वजए ॥९॥ मा य चण्डालियं कासी, बहुयं मा य आलवे । कालेण य अहिन्जित्ता, तओ झाइज एगगो ॥१०॥ आहच्च चण्डालियं कट्ट, न निण्हविज कयाइ वि। कडं कडे त्ति भासेज्जा, अकडं नो कडे त्ति य ॥११॥ मा गलियस्सेव कसं, वयणमिच्छे पुणो पुणो । कसं व दट्ठमाइण्णे, पावगं परिवज्जए ॥१२॥
अगासवा थूलवया कुसीला, मिउंपि चण्डं पकरिन्ति सीसा ।
चित्ताणुया लहु दक्खोववेया, पसायए ते हु दुरासयंपि ॥ ॥ १३ ॥ नापुट्ठो वागरे किंचि, पुट्ठो वा नालियं वए । कोहं असच्चं कुवेजा, धारेजा पियमप्पियं ॥ १४ ॥ अप्पा चेव दमेययो, अप्पा हु खलु दुद्दमो । अप्पा दन्तो सुही होइ, अस्सि लोए परत्थ य ॥ १५ ॥ वरं मे अप्पा दन्तो, संजमेण तवेण य । माहं परेहि दम्मंतो, बंधणेहिं वहेहि य ॥ १६॥ पडिणीयं च बुद्धाणं, वाया अदुव कम्मुणा। आवी वा जइ वा रहस्से, नेव कुज्जा कयाइ वि ॥ १७ ॥ न पक्खओ न पुरओ, नेव किच्चाण पिट्टओ। न जुंजे ऊरुणा ऊरूं, सयणे नो पडिस्सुणे ॥ १८ ॥ नेव पल्हत्थियं कुज्जा, पक्खपिण्डं च संजए । पाए पसारिए वावि, न चिटुं गुरुणन्तिए ॥ १९॥ आयरिएहिं वाहित्तो, तुसिणीओ न कयाइवि । पसायपेही नियागट्ठी, उवचिट्टे गुरुं सया ॥ २० ॥