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॥ णमो समणस्स भगवओ महावीरस्स ॥ ॥ सिरि-दसवेआलियं-सुत्तं ॥
॥ दुमपुफ्फिया पढमं अज्झयणं ॥ धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥१॥ जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो आवियइ रसं । ण य पुप्फ किलामेइ, सो अ पीणेइ अप्पयं ॥ २ ॥ एमेए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो। विहंगमा व पुष्फेसु, दाणभत्तेसणे रया ॥३॥ वयं च वित्तिं लब्भामो, ण य कोइ उवहम्मइ । अहागडे सु रीयंते, पुप्फेमु भमरा जहा ॥ ४ ॥ महुगा (का) रसमा बुद्धा, जे भवंति अणिस्सिया । नाणपिंडरया दंता, तेण वुचंति साहुणो ॥ ५ ॥
त्ति बेमि ॥ दुमपुफिया पढममज्झयणं समत्तं ॥
॥ अह सामण्णपुव्वयं दुइअं अज्झयणं ॥ कई नु कुजा सामण्णं, जो कामे न निवारए । पए पर विसीअंतो, संकप्पस्स वसं गओ॥१॥ वत्यगंधमलंकारं, इत्थीओ सयणाणि य । अच्छंदा जे न भुंजंति, न से चाइ ति वुच्चइ ॥२॥ जे य कंते पिए भोए, लद्धे वि पिडि कुबइ । साहीणे चयइ भोए, से हु चाइ ति वुच्चइ ॥३॥
समाइ पेहाइ परिवयंतो, सियां मणो निस्साई बहिद्धा । न सा महं नोकि अहं कि तीसे, इच्चेव ताओ विणइज रागं ॥ ॥४॥ आयावयाही चय सोगमलं, कामे कमाहि कमियं खु दुक्खं ।
छिंदाहिं दोसं विणएज्ज रागं, एवं सुही होहिसि संपराए ॥ ॥५॥ पक्वंदे जलियं जोइं, धूमकेउं दुरासयं । नेच्छति वंतयं भोत्त, कुले जाया अधंगणे ॥६॥ धिरस्थु तेऽजसोकामी, जो तं जीवियकारणा। वंत इच्छसि आवेडे, सेयं ते मरणं भवे ॥ ७॥ अहं च भोमरायस्स तं चऽसि अंधगविण्हिणो। मा कुले गंधणा होमो, संजनं निहुओ चर ॥ ८॥ जह तं काहिसि भावं, जा जा दिच्छसि नारिओ। कायाविद्धो व हडो,अद्विअप्पा भविस्सति ॥९॥ तीसे सो क्षणं सोचा, संजयाइ सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाइओ ॥१०॥ एक करति संबुद्धा, पंडिया पषियक्खणा । विणियति भोगेसु, जहा से परिसुत्तमो ॥ ११ ॥
त्ति बेमि। इअ सामण्णपुव्वयं नाम अज्झयणं समत्तं ॥ २ ॥
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