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(३३)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
अभिवन्दिऊण सिरसा, अइयाओ नराहिवो ॥ ५९ ॥ इयरो वि गुणसमिद्धो, तिगुत्तिगुत्तो तिदण्डविरओ य । विहग इव विमुको, विहरइ वसुहं विगयमोहो ॥ ६० ॥ त्ति बेमि ॥ इअ महानियण्ठिजं समत्तं ॥
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॥ अह समुद्दपालीयं एगवीसइमं अज्झयणं ॥ चम्पाए पालिए नाम, सावए आसि वाणिए । महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महप्पणो ॥ निरन्थे पावणे, सावए से वि कोविए । पोएण ववहरन्ते, पिहुण्डं नगरमानए ॥ २ ॥ पिण्डं वहन्तस्स, वाणिओ देह धूयरं । तं ससत्तं पइगिज्झ, सदेसमह पत्थिओ || ३ || अह पालियस्स घरिणी, समुद्दम्मि पसवई । अह बालए तहिं जाए, समुद्दपालि चि नामए ॥ ४॥ खेमेण आगए चम्पं, सावए वाणिए घरं । संवडई तस्स घरे, दारए से सुहोइए ॥ ५ ॥ वावतरी कलाओ य, सिक्खई नीइकोविए । जोवणेण य संपन्ने, सुरूवे पियदंसणे ॥ तस्स ववई भज्ज, पिया आणेह रुविणि । पासाए कीलए रम्मे, देवो दोगुन्दओ जहा ॥ अह अन्नया कयाई, पासायालोयणे ठिओ । वज्झमण्डणसोभागं, वज्झं पासइ बज्झगं ॥ तं पासिऊण संवेगं, समुद्दपालो इणमब्ववी | अहोऽसुमाण कम्माणं, निजाण पावगं इमं ॥ ९॥ संबुद्धो सो तहिं भगवं, परमसंवेमागओ । आपुच्छमापियरो, पवए अणगारियं ॥ १० ॥ जहि सग्गन्थमहाकिलेसं, महन्तमोहं कसिणं भयावहं । परियायधम्मं चमिरोय एज्जा, वयाणि सीलाणि परीसहे य ॥ ११ ॥ अहिंससच्चं च अतेणगं च तत्तो य बम्भं अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंच महवयाणि, चरिज धम्मं जिणदेसियं विदू ॥ १२ ॥ सहिं भूएहिं दयानुकम्पी, खन्तिक्खमे संजमबम्भयारी | सावज्जजोगं परित्रज्जयन्तो, चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए । १३ ।। काले कालं विहरेज रट्ठे, बलाबलं जाणिय अप्पणो य । सीहो व सद्देण न सन्तसेज्जा, वयजोग सुच्चा न असच्चमाहु || १४ || उहमाणो उ परिवजा, पियमप्पियं सब तितिक्खएज्जा । न सब सवत्थ ऽभिरोयएजा, न यावि पूयं गरहं च संजए ।। १५ ।। अणे गच्छन्दामिह माणवेहिं, जे भावओ संपगरेइ भिक्खू | भय भेरवा तत्थ उइन्ति भीमा, दिवा मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥ १६ ॥ परीसहा दुब्विसहा अणेगे, सीयन्ति जत्था बहुकायरा नरा । से तत्थ पत्ते न वहिज भिक्खू, संगामसीसे इव नागराया ॥ १७ ॥ सीओ सिणा दंसमसाय फासा, आयंका विविहा फुसन्ति देहं । 'अकुक्कुओ तत्थऽहियास हेज, रयाइ खेवेज पुरे कमाई ॥ १८ ॥