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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-अट्ठाविसमाध्ययनम् ॥ अह मोक्खग्गगई अहावीसइमं अज्झयणं ॥
मोक्खमग्गगई तचं, सुणेह जिणभासियं । चउकारणसंजुत्तं, नाणदंसणलक्खणं ॥१॥ नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा । एसः मग्गु त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥ २ ॥ नाणं च दंसणं चैव, चरित्तं च तवो तहा । एयमग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गइं ॥ ३ ॥ तत्थ पंचविहं नाणं, सुयं आभिनिबोहियं । ओहिनाणं तु तइयं, मणनाणं च केवलं ॥ ४ ॥ एवं पंचविहं नाणं, दवाण य गुणाण य । पजवाण य सवेसि, नाणं नाणीहि दंसियं ॥५॥ गुणाणमासओ दवं, एगदवस्सिया गुणा । लक्खणं पजवाणं तु अभओ अस्सिया भवे ॥ ६ ॥ धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गल-जन्तवो । एस लोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि ॥ ७ ॥ धम्मो अहम्मो आगासं, दवं इक्विकमाहियं । अणन्ताणि य दव्वाणि, कालो, पुग्गलजन्तोवो ॥ ८ ॥ गइलक्खणो उ धम्मो, अहम्मो ठाणलक्षणो । भायणं सव्वदध्वाणं, नहं ओगाहलक्खणं ॥ ९॥ वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उवओगलक्खणो । नाणेणं दंसणेणं च, सुहेण य दुहेण य ॥ १० ॥ नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा । वीरियं अवओगो य, एयं जीवस्स लक्खणं ॥ ११ ॥ सहन्धयार-उज्जोओ, पहा छाया तवे इ वा । वण्णरसगन्धफासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥ १२॥ एगत्तं च पुहत्तं च, संखा संठाणमेव य । संजोगा य विभागा य, पजवाणं तु लक्षणं ॥ १३ ॥ जीवाजीवा य बन्धो य, पुण्णं पावासवा तहा । संवरो निन्जरा मोक्खो, सन्तेए तहिया नव ।। १४ ॥ तहियाणं तु भावाणं, सब्भावे उवएमणं । भावेणं सहहन्तस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं ॥ १५ ॥ निसग्गुवएसरुई, आणरुई मुत्त-बीयरुइमेव । अभिगम-वित्थाररुई, किरिया-संखेव धम्मरुई ॥ १६ ॥ भूयत्थेणाहिगया, जीवाजीवा य पुण्णपावं च । सहसम्मुइयासवसंवरो य रोएइ उ निस्सग्गो ॥ १७ ॥ जो जिणदिटे भावे, चउबिहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नन्नह त्ति य, स निसग्गरुइ त्ति नायवो ॥ १८ ॥ एए चेव उ भावे, उवइटे जो परेण सद्दहई। छउमत्थेण जिणेण व, उवएसरुइ ति नायवो ॥ १९ ॥ रागो दोसो मोहो, अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोएंतो, सो खलु आणारुई नामं ॥ २० ॥ जो सुत्तमहिजन्तो, सुरण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बहिरेण व, सो सुत्तरुइ ति नायबो ।। २१ ॥ एगेण अणेगाई, पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं । उदए व तेल्लविन्द, सो बीयरुइ त्ति नायवो ॥ २२ ॥ सो होइ अभिगमरुई, सुयनाणं जेण अत्थओ दिटुं । एकारस अंगई, पइण्णगं दिद्विवाओ य ॥ २३ ॥ दवाण सवभावा, सत्वपमाणेहि जस्स उवलद्धा । सबाहि नयविहीहि, वित्थाररुइ ति नायवो ॥ २४ ॥ दंसणनाणचरित्ते, तवविणए सबसमिइगुत्तीसु । जो किरियाभाबरुई, सोखलु किरियारुई नाम ॥ २५॥ अणभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइ त्ति होइ नायबोअविसारओ पवयणे,अणभिंगहिओ य सेसेसु ॥ २६ ॥ जो अत्थिकायधम्मं,सुधम्मं खलु चरित्तधम्मं च। सद्दहइ जिणाभिहियं,सो धम्मरु त्ति नायवो ॥ २७ ॥ परमत्थसंथवो वा, सुदिट्ठपरमत्थसेवणं वा वि । वावन्नकुदंसणवजणा, य सम्मत्तसदहणा ॥ २८ ॥ नत्थि चरितं सम्मत्तविहूणं, दसणे उ भइयवं । सम्मत्तचरित्ताई, जुगवं पुवं व समत्तं ।। २९ ॥
नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुन्ति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नथि अमोक्स्वस्स निवाणं
॥३०॥