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(१४)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
आलोयणारिहाईयं, पायच्छित्तं तु दसविहं । जं भिक्खू वहई सम्मं, पायच्छित्तं तमाहियं ॥ ३१ ॥ अब्भुट्ठाणं अंजलिकरणं, तहेवासणदायणं । गुरुभत्तिभावसुस्सूसा, विणओ एस वियाहिओ ॥ ३२ ॥ आयरियमाईए, वेयावच्चम्मि दसविहे। आसेवणं जहागामं, वेयावच्चं तमाहियं ॥ ३३ ॥ वायणा पुच्छणा चेव, तहेव परियट्टणा। अणुप्पेहा धम्मकहा, अज्झाओ पञ्चहा भवे ॥ ३४ ॥ अदृरुदाणि वजित्ता, झाएज्जा सुसमाहिए। धम्मसुक्काई झाणाई, झाणं तं तु बुहावए ॥ ३५ ॥ सयणासणठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे । कायस्स विउस्सगो, छट्ठो सो परिकित्तिओ ॥१६॥ एवं तवं तु दुविहं, जे सम्मं आयरे मुणी । सो खिप्पं सबसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिओ ॥ ३७ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ तवमग्गं समत्तं ॥ ३० ॥
॥अह चरणविही एगतीसइमं अज्झयणं ॥ चरणविहिं पवक्खामि, जीवस्स उ सुहावहं । जं चरित्ता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं ॥ १ ॥ एगओ विरई कुजा, एगओ य पवत्तणं । असंजमे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं ॥ २ ॥ रागदोसे य दो पावे, पावकम्मपवत्तणे । जे भिक्खू रंभई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ३ ॥ दण्डणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू चयई निच, से न अच्छइ मण्डले ॥४॥ दिवे य जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छमाणुसे । जे भिक्खू सहई जयई, से न अच्छइ मण्डले ॥ ५ ॥ विगहाकसायसन्नाणं, झाणाणं च दुयं तहा । जे वजई निन, से न अच्छइ मण्डले ॥६॥ वएसु इन्दियत्थेसु, समिईसु किरियासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ७ ॥ लेसासु छसु काएस, छक्के आहारकारणे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ८ ॥ पिण्डोग्गहपडिमासु, भयहाणेसु सत्तम् । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ९ ॥ मदेसु बम्भगुत्तीसु, भिक्खुधम्मम्मि दसविहे। जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १०॥ उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूणं पडिमासु य। जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ ११ ॥ किरियासु भूयगामेसु, परमाहम्मिएमु य । जे भिक्खू जयई निचं, सं न अच्छइ मण्डले ॥ १२ ॥ गाहासोलसएहि, तहा असंजम्मि य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १३ ॥ बम्भम्मि नायज्झणेमु, ठाणेसु य समाहिए। जे भिक्खू जयइ निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १४ ॥ एगवीसाऐ सबले, बावीसाए परीसहे । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १५ ॥ तेवीसाइ सूयगडे, रूवाहिएसु सुरेसु अ । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १६ ॥ पणुवीसभावणासु, उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १७ ॥ मणगारगुणेहिं च, पगप्पम्मि तहेव य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ।। १८ ।। पायमुयपसंगेसु, मोहठाणेसु चेव य । जे भिक्खू जयइ निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १९ ॥ सिद्धाइगुणजोगेसु, तेत्तीसासायणासु य । जे भिक्खू जयई निचं, से न अच्छइ मण्डले ॥ २० ॥ इय एएसु ठाणेसु, जे भिक्खू जयई सया। खिप्पं सो सवसंसारा, विप्पमुञ्चइ पण्डियो ॥ २१ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ चरणविही समत्ता ॥ ३१॥
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