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(८०)
श्रीजैनसिद्धान्त - खाध्यायमाला
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कहं चरे कहं चिट्ठे, कहमाए कहं सए । कहं भुंजन्तो भासतो, पावकम्मं न बंधइ ॥ ७ ॥ जयं चरे जयं चिट्ठे, जयमासे जयं सए । जयं भुंजन्तो भासतो, पावकम्मं न बंधइ ॥ ८ ॥ सर्व्वभूयप्पभूयस्स, सम्मं भूयाइ पासओ । पिहिआसवस्स दंतस्स, पावकम्मं न बंधइ ॥ ९ ॥ पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठइ सङ्घसंजए । अन्नाणी किं काही, किं वा नाही सेयपावगं ॥ १० ॥ सोचा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं । उभयं पि जाणइ सोच्चा, जं सेयं तं समायरे ॥। जो जीवे विनयाण, अजीवे वि न याणइ । जीव जीवे अयाणंतो, कहं सो नाहीइ संजमं ॥ जो जीवे विया, अजीवे वि वियाणइ । जीवाजीवे वियाणतो, सो हु नाहीइ संजमं जय जीवमजीवे य, दोबि एए वियाणइ । तया गई बहुविहं सवं जीवाण जाण ॥ जया गई बहुविहं, सङ्घजीवाण जाणइ । तथा पुण्णं च पात्रं च, बंधं मुक्खं च जाणइ जया पुणं च पावंच, बंधं मुक्ख च जाणइ । तया निव्विंदए भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे || जया निव्विंद भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे । तया चयइ संजोगं, सब्भिन्तरं बाहिरं जया चयइ संजोगं, सब्भितरं बाहिरं । तया मुंडे भवित्ताणं, पचइए अणगारियं जया मुंडे भवित्ताणं, पवइए अणगारियं । तया संवरमुकिहुं, धम्मं फासे अणुत्तरं जया संवरमुक्किडं, धम्मं फासे अणुत्तरं । तया धुगइ कम्मरयं, अबोहिकल कर्ड ॥ जया धुणइ कम्मरयं, अबोहिकलसं कडं । तया सच्चत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छइ जया सव्वत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छइ । तया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली ॥ जया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली । तया जोगे निरंभित्ता, सेलेसिं पडिवजइ ॥ २३ ॥ जया जोगे निरंभित्ता, सेलेर्सि पडिवज्जइ । तया कम्मं खविचाणं, सिद्धिं गच्छइ नीरओ || २४ ॥ जया कम्पं खवित्ताणं, सिद्धिं गच्छइ नीरओ । तथा लोगमत्थथत्थो, सिद्धो हवइ सासओ ॥ २५ ॥ मुह सायगहस समणस्स, साया उलगस्स निगामसाइस्स । उच्छोलणापहोअस्स, दुल्लहा सुगई तारिसगस्स ॥ २६ ॥ तवोगुणपहाणस्स, उज्जुमइ खन्तिसंजमरयस्स । परीसहे जिणंतस्स, सुलहा सुगई तारिसगस्स ॥ ६७ ॥ पच्छा वि ते पयाया, खिष्पं गच्छंति अमरभवणाई । जेसिं पिओ तो संजमो अ, खंती अ वभचरं च ।। २८ ।। इच्चेयं छज्जीवणिअं, सम्मदिट्ठी सया जए । दुल्लहं लहित्तु सामण्णं, कम्पुणा न विराहिञ्जासि ॥ २९ ॥
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त्ति बेमि ॥ इअ छज्जीवणिआ णामं चउत्थं अज्झयणं समत्तं ॥ ४ ॥
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