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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो,फासे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ।। ८२ ।। मोसस्स पच्छा य पुरत्थओय, पओगकाले य दुही दुरत्ते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो,फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ८३ ।। फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो मुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निवतई जस्स कएण दुक्खं ॥ ८४ ॥ एमेव फासम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ८५ ॥ फासे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥८६॥ मणस्स भावं गहणं वयन्ति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ॥ ८७ ॥ भावस्स मणं गहणं वयन्ति, मणस्स भावं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ८८॥ भावेसु जो गेहिमुवेइ तिवं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे, करेणुमग्गावहिए गजे वा ॥ ८९ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिचं, तंसिक्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दन्तदोसेण सएण जन्तू, न किंचि भावं अवरुज्झई से ॥ ९०॥ एगन्तरत्ते रुइरंसि भावे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ९१ ॥ भावाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ठयुरू किलिडे ॥ ९२ ।। भावाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतितलामे ॥ ९३ ॥ भावे अतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुद्धि । अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥ ९४ ॥ तण्हामिभूयस्स अदत्तहारिणो, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइलोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ९५ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते । एवं अदत्ताणि समात्यायन्तों, भावेजतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ९६ ॥ भावांणुरत्तस्स-नरस्स एवं कनों सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवंभोगेविकिले सदुक्ख, निवतेई जम्स कएण दुक्खं ॥ ९७ ॥ एमैव भावम्मि गओ पोस, उबेइ दुक्खोहपरंपराओ।