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श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला
पाणे य नाइवाएज्जा, से समीइ चि बुच्चई ताई । तओ से पावयं कम्मं, निज्जाइ उदगं व थलाओ ॥ ९ ॥ जगनिस्सिएहिं भूएहिं तसनामेहिं थावरेहिं च । नो सिमार मे दंड, मणसा वायसा कायसा चैव ॥ १० ॥ मुद्धेसणाओ नच्चाणं, तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं । जायाए घासमेसेज्जा, रसगिद्धे न सिया भिक्खा ॥ ११ ॥ पन्ताणि चेव सेवेज्जा, सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु वकसं पुलागं वा, जवणट्ठाए निवेस मंधुं ॥ १२ ॥ जे लक्खणं च सुविणं, अङ्गविज्वं च जे पउज्जन्ति ।
न हु ते समणा वृच्चन्ति एवं आयरिएहिं अक्खायं ॥ १३ ॥ इहजीविय अणियमेत्ता, भट्ठा समाहिजोएहिं ।
ते कामभोगरसगिद्धा, उववज्जन्ति आसुरे का ॥ १४ ॥ तत्तो वि य उच्चट्टित्ता, संसारं बहु अणुपरियडन्ति । बहुकम्मलेवलित्ताणं, बोह होइ सुदुल्लाहा तेसिं ॥ १५ ॥ कसिपि जो इमं लोयं, पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से, इइ दुष्पूरए इमे आया ॥ १६ ॥ जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढई । दोमासकयं कजं, कोडीए वि न निट्ठियं ॥ १७ ॥ नो रक्खसीसु गिज्झेज्जा, गंडवच्छासु ऽणेगचित्तासु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता, खेल्लन्ति जहा व दासेहिं ।। १९ ।। नारीसु नोवगिज्झेज्जा, इत्थी विष्पजहे अणागारे | धम्मं च पेसलं नच्चा, तत्थ ठवेज्ज भिक्खू अप्पाणं ॥ १९ ॥ इअ एस धम्मे अक्खाए. कविलेणं च विशुद्धपन्नेणं । तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति, तेहिं आराहिया दुवे लोग ॥ २० ॥ त्ति बेमि ॥ इअ काविलीयं अट्टमं अज्झयणं समत्तं ॥ ८॥
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॥ अह नवमं नमिपव्वज्जा अज्झयणं ॥
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चड़ऊण देवलोगाओ, ज्ववन्नो माणुसम्मि लोगम्मि । उवसन्तमोहणिज्जो, सरई पोराणियं जाई ॥ जाइं सरित्तु भयवं, सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवेत्तु रज्जे, अभिणिक्खमई नमी राया से देवलोगसरिसे, अन्तेउरवरगओ वरे भोए । भुंजित्नु नमी राया, बुद्धो भोगे परिच्चयई ॥ मिहिलं सपुरजणवयं, बलमारोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिखन्तो, एगन्तमहिड्ढीओ भयवं ॥ ४ ॥ कोलाहलमसभूयं, आसी मिहिलाए पव्त्रयन्तम्मि। तइया रायरिसिम्मि, नमिम्मि अभिणिक्खमंतम्मि|५|
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