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(७०)
श्रीजैनसिद्धान्त-खाध्यायमाला
एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो ॥ १२६ ॥ उराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया । बेइन्दिय-तेइन्दिय-चउरो पंचिन्दिया चेव ॥ १२७॥ बेइन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तमपज्जत्ता, तेसिं मेए सुणेह मे !! १२८ ॥ किमिणो सोमंगला चेव, अलसा माइवाहया। वासीमुहा य सिप्पिया, संख संखणगा तहा ॥ १२९ ॥ घल्लोयाणुल्लया चेव, तहेव य वराडगा । जलुगा जालगा चेव, चन्दणा य तहेव य ॥ १३० ॥ इइ बेइन्दिया एएऽणेगहा एयमायओ। लोगेगदेसे ते सत्वे, न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १३१ ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपञ्जवसियावि य ॥ १३२ ॥ वासाइं बारसा चेव, उक्कोसेण वियाहिया । बेइन्दियआउठिई अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १३३ ॥ संखिजकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १३४ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियजीवाणं, अन्तरं च वियाहियं ॥ १३५ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १३६ ॥ तेइन्दिया उजे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १३७ ॥ कुन्थुपिवीलिउडंसा, उक्कलेदेहिया तहा । तणहारकट्ठहारा य, मालुरा पत्तहारगा ।। १३८ ।। कप्पासहिम्मि जायन्ति, दुगा तउसमिंजगा। सदावरी य गुम्भी य, बोधवा इन्दगाइया ॥ १३९ ॥ इन्दगोवगमाईयाणेगहा एवमायओ। लोगेगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १४० ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिई पड्डुच्च साईया, सपजवसियावि य ॥ १४१ ॥ एगूणपण्णहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । तेइन्दियआउठिई, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १४२ ॥ संखिजकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ।। १४३ ॥ अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइन्दियजीवाणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १४४ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्सजो ।। १४५ ॥ चउरिन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया। पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १४६॥ अन्धिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा। भमरे कीडपयंगे य, ढिंकुणे कंकणे तहा ॥ १४७॥ कुक्कुडे भिंरीडी य, नन्दावत्ते य विच्छुए । टोले भिंगारी य, वियडी अच्छिवेयए ॥ १४८ ॥
अच्छिले माहए अच्छिरोडए, विचित्ते चित्तपत्तए ।
उहिंजलिया जलकारी य, नीया तन्तवयाइया ॥ ॥१४९ ॥ इय चउरिन्दिया, एएऽणेगहा एवमायओ । लोगेगदेसे ते सके, न सव्वत्थ वियाहिया ॥ १५० ॥ संतई पप्पणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ १५१ ।। छच्चेव मासाऊ, उक्कोसेण वियाहिया । चउरिन्दिदयआउठिई, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १५२ ॥ संखिज्जकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १५३ ॥ अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियजीवाणं, अन्तरं च वियाहियं ॥ १५४ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥ १५५ ।। पंचिन्दिया उजे जीवा, चउबिहा ते वियाहिया। नेरइयतिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया ॥ १५६ ॥ नेरइया सत्तविहा, पुढवीसु सतसू भवे । रयणाभसकराभा, वालुयाभा य आहिया ॥ १५७ ॥