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(९८)
श्रीजैन सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
१७ ॥
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हत्थसंज पायसंजए, वायसंजर दिए । अज्झप्परए सुसमाहिअप्पा, सुत्तत्थं च विआणइ जे स भिक्खू ।। १५ ।। उबहिम्मि अमुच्छिए अगिद्धे, अन्नायउंछं पुलनिप्पुलाए । कथविक्कयसन्निहिओ विरए, सबसंगावगए अ जे स भिक्खू ॥ १६ ॥ अलोल(लु)भिक्खू न रसेसु गिज्झे, उंछं चरे जीविअनाभिकखी । इड्डि च सकारण पूअणंच, चए ठिअप्पा अणिहे जे स भिक्खू ॥ न परं वइज्जासि अयं कुसीले, जेणं च कुप्पिज न तं वइज्जा । जाणिअ पत्ते पुन्नपावं' अत्ताणं न समुक्कसे जे स भिक्खू ॥ न जाइत्ते न य रूत्रमत्ते, न लाभमत्ते न सुएण मत्ते । मयाणि सव्वाणि विवज्जइत्ता, धम्मज्झाणरए जे स भिक्खू ॥ १९ ॥ पवेअए अजपयं महामुणी, धम्मे ठिओ ठावयइ परं पि । निक्खम्म वज्जिज्ज कुसील लिंगं, न आवि हासं कुहए जे स भिक्खु ॥ २० ॥ तं देहवासं असुई असासयं, सया चए निच्चहिअट्ठिअप्पा | छिंदत्तु जाइमरणस्स बंधणं, उवेइ भिक्खू अपुणागमं गई ॥ २१ ॥ त्ति बेमि || इअ भिक्खु नामं दसमज्झयणं समत्तं ॥
१८ ॥
|| अह रइवका पढमा चूलिआ ||
इह खलु भो पचइएण उप्पण्णदुक्खेणं संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं ओहाणुप्पेहिणा अणोहाइएण चैव हयरस्सिगयंकुसपोयपडागाभूआई इमाई अट्ठारस ठाणाई सम्मं संपडिलेहिअवाइं भवंति । तंजहा हं भो ! दुस्समाइ दुप्पजीवी || १ || लहुसगा इत्तरिआ गिहीणं कामभोगा || २ || भुज्जो अ सायबहुला मणुस्सा || ३ || इमे अ मे दुक्खे न चिरकालोवट्ठाइ भविस्सइ ॥ ४ ॥ ओमजणपुरकारे ||५|| तस्स य पडिआयणं || ६ || अहरगइवासोवसंपया || ७ | दुल्लहे खलु भो ! गिहीणं धम्मे गिहिवासमझे वसंताणं ||८|| आयंके से वहाय होइ || ९ || संकप्पे से वहाय होइ ||१०|| सोवकेसे गिहवासे, निरुवकेसे परिआए || ११ || बंधे गिहवासे, मुक्खे परिआए || १२ || सावज्जे गिहवासे, अणजे परिआए || १३ || बहुसाहारणा गिहोणं कामभोगा ॥ १४ ॥ पत्तेअं पुन्नभावं ।। १५ ।। अणिच्चे खलु भो! मणुआण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले || १६ | बहुं च खलु भो! पावं कम्मं पगडं || १७ || पावाणं च खलु भो ! कडाणं कम्माणं पुत्रिं दुच्चिन्नाणं दुष्पडिकंताणं वेत्ता मुक्खो नत्थि अवेइत्ता तवसा वा झोसइत्ता || १८ || अट्टारसमं पर्यं भवइ, भवइ अ इत्थ सिलोगोजयाय चयई धम्मं, अणजो भोगकारणा । से तत्थ मुच्छिए बाले, आयई नावबुझई ॥ १ ॥ जया ओहाविओ होइ, इंदो वा पडिओ छमं । सवधम्मपरिब्भट्ठो, स पच्छा परितप्पइ ॥ २ ॥ जया अ वंदिमो होइ, पच्छा होइ अदिमो । देवया व चुआ ठाणा, स पच्छा परितप्पड़ || ३ ॥ जया अ पूइमो होइ, पच्छा होड़ अपूइमो, राया व रज्जप-भट्ठो, स पच्छा परितप्पड़ || ४ |