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॥ श्रीमद्देवऋद्धिगणिक्षमाश्रमणप्रणीत ।। श्री नन्दीसूत्र मूलपाठः।
जयइ जग जीव जोणी वियाणओ। जगगुरू जगाणंदो ॥ जगणाहो जगबंधू, जयइ जगप्पियामहोभयवं ॥ १॥ जयइ सुआणं पभवो । तित्थथराणं अपच्छिमो जयइ ॥ जयइ गुरूलोगाणं । जयइ महप्पा महावीरो ॥२॥ भदं सवं जगुज्जोयगस्स । भदं जिणस्स वीरस्स ॥ भई सुरासुरनमंसियस्स । भदं धुयरयस्स ॥ ३ ॥ गुणभवणगहण । सुयरयण भरियदंसणविसुद्धरत्थागा संघ नगर भदं ते । अखंड चारित्तपागारा ॥ ४ ॥ संजम तव तुंबारयस्स । नमो सम्मत्त पारियल्लस्स ॥ अप्पडिचक्कस्स जओ होउ सया संघचकस्स ।। ५॥ भदं सील पडागूसियस्स । तव नियम तुरय जुत्तस्स ॥ संघरहस्स भगवओ । सज्झाय सुनंदिघोसस्स ॥ ६ ॥ कम्मरय जलोह विणिग्गयस्स । सुयरयण दीहनालस्स ।। पंच महत्वय थिरकन्नियस्स । गुणकेसरालस्स ॥ ७ ॥ सावग जण महुअरि परिवडस्स । जिण सूर तेय बद्धस्स ॥ संघपउमस्स भद्द । समण गण सहस्स पत्तस्स ॥ ८॥ तव संजम मयलंछण । अकिरिय राहुमुह दुद्धरिसनिचं । जय संघ चंद । निम्मल सम्मत्त विसुद्ध जोहागा ॥ ९ ॥ पर तित्थिय गह पह नासगस्स । तवतेय दित्त लेसस्स ॥ नाणु जोयस्स जए भई दम संघ सूरस्स ॥ १०॥ भदं घिइ वेला परिगयस्स । सज्झाय जोग मगरस्स ॥ अक्खोहस्स भगवओ । संघ समुदस्स रुंदस्स ॥ ११ ॥ सम्म इंसण वर वइर दढ रूंढ गाढावगाढ पेढस्स ॥ धम्म वररयण मंडिय चामीयर मेहलागस्स ॥ १२ ॥ निय मूसिय कणय सिलायलुञ्जल जलंत चित्तकू. डस्स ॥ नंदण वण मणहर सुरभि सील गंधुद्धमायस्स ॥ १३ ॥ जीवदया सुंदर कंद रुद्दरिय मुणिवर मइंद इन्नस्स ॥ हेउ सय धाउ पगलंत रयणदित्तोसहि गुहस्स ॥ १४ ॥ संवर वर जल पग लिय उज्झर पविराय माणहारस्स ।। सावग जण पउर रवंत मोर नचंत कुहरस्स ।। १५ ॥ विणय नय पवर मुणिवर फुरंत विज्जुजलंत सिहरस्स । विविह गुण कप्प रुक्खग फलभर कुसुमाउल वणस्स ॥ १६ ॥ नाण वर रयण दिप्पंत कंत वेरुलिय विमल चूलस्स || वंदामि विणय पणओ संघ महामंदर गिरिस्स ॥ १७ ।। गुण रयणुजल कडयं सील सुगंधि तब मंडिउद्देसं ।। सुयवारसंगसिहरं संघ महामंदरं वंदे ॥ १८ ॥ नगर रह चक्क पउमे चंदे सूरे समुद्द मेरुम्मि ॥ जो उवमिजइ सययं तं संघगुणायरं वंदे ॥ १९॥ वंदे उसभं अजियं संभव मभिनंदण सुमइ सुप्पंभ सुपास।