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श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला संखककुंदसंकासा, पण्डुरा निम्मला सुहा। सीयाणे जोयणे तत्तो, लोयन्तो उ वियाहिओ ॥ ६२॥ जोयणस्स उ जो तत्थ, कोसो उवरिमो भवे। तस्स कोसस्स सब्भाए, सिद्धाणोगाहणा भवे ॥ ६३ ।। तत्थ सिद्धा महाभागा, लोगग्गम्मि पइट्ठिया। भवपपंचओ मुक्का, सिद्धिं वरगई गया ॥ ६४ ॥ उस्सेहो जेसिं जो होइ, भवम्मि चरिमम्मि उ । तिभागहीणो तत्तो य, सिद्धाणोगाहणा भवे ॥ ६५ ।। एगत्तेण साईया, अपज्जवसियावि य । पुहत्तेण अणाइया, अपजसियावि य ॥ ६६ ।। अरूविणो जीवघणा, नाणदंसणसन्निया । अउलं सुहं संपन्ना, उवमा जस्स नत्थि उ ॥ ६७ ॥ लोगेगदेसे ते सवे, नाणदंसणसन्निया । संसारपारनित्थिण्णा, सिद्धिं वरगई गया ॥ ६८ ॥ संसारत्था उ जे जीवा, दुविहा ते वियाहिया । तसा य थावरा चेव, थावरा तिविहा तहिं ॥ ६९ ॥ पुढवी आउजीवा य, तहेव य वणस्सई । इच्चेए थावरा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ ७० ॥ दुविह पुढवीजीवा य, मुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ ७१ ।। बायरा जे उ पन्नता, दुविहा ते वियाहिया । सहा खरा य बोधवा, सण्हा सत्तविहा तहिं ।। ७२ ।। किण्हा नीला य रुहिरा य, हलिद्दा सुकिला तहा । पण्णुपणगमट्टिया, खरा छत्तीसईविहा || ७३ ।।
पुढवी य सकरा बालुया य, उबले सिला य लोणूसे । अय-तम्ब तउय-सीसग-रुप्प-सुवण्णे य वइरे य ॥
॥१४॥ हरियाले हिंगुलुए, मणोसिला सासगंजण-पवाले । अब्भपडलब्भवालय, बायरकाए मणिविहाले ॥
॥ ७५ ॥ गोमेजए य रुयगे, अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय मसारगल्ले,भुयमोयग-इन्दनीले य ॥ ७६ ॥ चन्दण गेरुय हंसगब्मे, पुलए सोगन्धिए य बोधवे। चन्दप्पहवेरुलिए, जलकन्ते सूरकन्ते य ॥ ७७ ॥ एए खरपुढवीए, भेया छत्तीसमाहीया । एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया ॥ ७८ ॥ सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउविहं ॥ ७९ ॥ संतई पप्णाईया, अपञ्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपन्जवसियावि य ॥ ८॥ बावीससहस्साई, वासाणुकोसिया भवे । आउठिई पुढवीणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ।। ८१॥ असंखकालेमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पुढवीणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ ८२ ।। अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमहत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए. पुढविजीवाण अन्तरं ॥ ८३ ।। एएसं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफसओ। संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ ८४ ।। दुविहा आऊजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ।। ८५ ॥ बायरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदए य उस्से, हरतणू महिया हिमे ॥ ८६ ॥ एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया । मुहुमा सबलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा ।। ८७ ॥ सन्तई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि। ठिई पडद्य साईया, सपज्जवसियावि य ॥ ८८ ॥ सत्तेव सहस्साई, वासाणुकोसिया भवे । आइठिई आऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ।। ८९ ॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई आऊणं. तं कायं तु अमुंचओ ॥ ९० ॥ अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, आऊजीवाण णन्तरं ॥ ९१ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ ९२ ॥