Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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(१०४)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
मणिं वा पईवं वा जोइं वा मत्थए काउं समुबह माणे २ गच्छिज्जा सेतं मझगयं । अंतगयस्स .. मज्झगयस्स य को पइविसेसो । पुरओ अंतगएणं ओहि नाणेणं पुरओ चेव संखिज्जाणि वा असंखेजाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ मग्गओ अंतगएणं ओहिनाणेणं मग्गओ चेव संखिज्जाणि वा असंखिजाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । पासओ अंतगएणं ओहिनाणेणं पासओ चेव संखिजाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । मज्झगएणं ओहिनाणेणं सबओ समंता संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । से तं आणुगामियं ओहिनाणं ॥ १० ॥ से किं तं अणाणुगामियं ओहिनाणं अणाणु गामियं ओहिनाणं से जहानामए केइ पुरिसे एगं महंतं जोइट्ठाणं काउं तस्सेव जोइट्टाणस्स परिपेरं तेहिं परिपेरंतेहिं, परिघोले माणे परिघोलेमाणे तमेव जोइट्टाणं पासइ, अन्नत्यगए न जाणइ न पासइ एवामेव अणाणुगामियं ओहिनाणं जत्थेव समुप्पजइ तत्थेव संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा संबद्धाणि वा असंबद्धाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ; अन्नत्थगएण पासइ, से तं अणाणुगामियं ओहिनाणं ॥ ११ ॥ से किं तं वड्डमाणयं ओहिनाणं ? बड्डमाणयं ओहिनाणं पसत्थेसु अज्झवसायट्ठाणेसु वड्डमाणस्स वड्डमाण चरित्तस्स । विसुज्झमाणस्स विमुज्झमाण चरित्तस्स । सबओ समंता ओहि वड्डइ___जावइआ तिसमयाहारगस्स सुहुमस्स पणगजीवस्स ॥ ओगाहणा जहन्ना ओहीखित्तं जहन्न तु ॥ ५५ ॥ सव्व बहु अगणि जीवा निरंतरं अत्तियं भरिजंसु ॥ खित्तं सव्वदिसागं परमोही खेत्तनिहिट्ठो ।। ५६ ।। अंगुलमावलियाणं भाग मसंखिज दोसु संखिज्जा । अंगुलमावलियंतो आवलिया • अंगुल पुहुत्तं ॥ ५७ ॥ हत्थम्मि मुहुत्ततो, दिवसंतो गाउयम्मि बोद्धव्यो । जोयण दिवसपुहुत्तं,
पक्खंतो पन्नवीसाओ ॥ ५८ ॥ भरहम्मि अद्धमासो, जम्बुद्दीवम्मि साहिआ मासा ॥ वासं च मणुय लोए, वासपुहुत्तं च रुयगम्मि ॥५९ ॥ संखिजम्मि उ काले, दीवममुद्दावि हुंति संविजा॥ कालम्मि असंखिज्जे, दीवसमुद्दा उ भइयव्वा ॥ ६०॥ काले चउण्हवुड्डी, कालो भइयव्वु खित्त वुड्डीए ॥ वुड्डीए पचपजव, भइयत्वा खित्तकाला उ ।। ६१ ॥ सुहुमो य होइ कालो, तत्तो सुहुमयरं हवइ खित्तं अंगुल सेढी मित्ते, ओसप्पिणिओ असंखिज्जा ॥ ६२ ।। से तं वड्डमाणयं ओहिनाणं सू॥ १२ ॥ से किं तं हीयमाणयं ओहिनाणं? हीयमाणयं ओहिनाणं अप्पसत्थेहिं अज्झवसायट्ठाणेहिं वड्डमाणस्स वड्डमाणचरित्तस्स संकिलिस्स माणस्स संकिलिस्समाणचरित्तस्स सबओ समन्ता ओही परिहायइ से तं हीयमाणयं ओहिनाणं ॥ १३॥ से किं तं पडिवाइ ओहिनाणं ? पडिवाइ ओहिनाणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखिजय भागं वा संखिजय भागं वा बालग्गं वा बालग्ग पुडुत्तं वा लिक्खं वा लिक्खपुहुत्तं वा, जूयं वा जूथंपुहुत्तं वा, जवं वा जव पुहुत्तं वा । अंमुलं वा अंगुलपुहुत्तं वा । पायं वा पायपुहुत्तं वा । विहत्थि वा विहत्थि पुहुत्तं वा । रयणिं वा रयणि पृहुत्तं वा। कुच्छि कुच्छिपुहुत्तं वा, धणुं वा धणुपहुतं वा । गाउअं वा गाउयपुहुत्तं वा। जो यण वा जोयणं पुहुत्तं वा । जोअणसयं वा जोयणसय पुहुत्तं वा जोयण सहस्सं वा जो यणसहस्स पुहुत्तं वा । जो. यणलक्खं वा जोयणलक्ख पुहुत्तं वा । जोयणकोडिं वा जोयणकोडाकोडि पुहुत्तं वा। जोयणकोडाकोडिं वा जोयणकोडाकोडि पुहुत्तं वा । [ जो अणसंखिजं वा जो अणसंखिज्ज पुहुत्तं वा जो अण
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