Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 100
________________ (९६) श्रीजैनसिद्धान्त- - खाध्यायमाला गुणेहि साहू अगुणेहि साहू, गिण्हाहि साहू गुण मुंचऽसाहू | विआणिआ अप्पगमप्पणं, जो रागदोसेहिं समो स पुज्जो ॥ ११ ॥ तदेव डहरं च महल्लगं वा, इत्थी पुमं पवइअं गिहिं वा । at for a वि अखंसइज्जा थंभं च कोहं च चए पुज्जो ॥ १२ ॥ जे माणिआ सयययं माणयंति, जत्तेण कन्नं व निवेशयंति । ते माण माणरि तवस्सी, जिइंदिए सच्चरए स पुज्जो तेसिं गुरूणं गुणसायराणं, सुच्चाण मेहावि सुभासिआई । चरे मुणी पंचरए तिगुत्तो, चउकसायावगए स पुज्जो ॥ १४ ॥ गुरुमिह सय डिगरिअ मुणी, जिणमयनिउणे अभिगमकुसले | धुणिअ रयमलं पुरेकडं, भासुरमउलं गईं वइ ( गय ) ॥ १५ ॥ त्ति बेमि || इअ विणयसमाहीए तइओ उद्देसो समत्तो ॥ ॥ १३ ॥ I सुअं मे आउलं - तेणं भगवथा एवमक्खायं । इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमा - हिठाणा पन्नत्ता । कयरे खलु ते थेरेहिं भगवतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता । इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमा हिट्ठाणा पन्नत्ता । तं जहा - विणयसमाही, सुअसमाही, तवसमाही, आयारसमाही । “विणऐ सुए अ तवे, आयारे निच्च पंडिआ । अभिरामयंति अप्पाणं, जे भवंति जिइंदिआ " चउबिहा खलु विणयसमाही भवः । तंजहा - अणुसासिज्जतो, सुस्वसइ । सम्मं पडिवज्जइ । वयमाराहइ । न य भवइ अत्तसंपग्गहिए । चउत्थं पयं भवइ । भवइ अ इत्थ सिलोगो ॥ "पे हिसाणुसासणं, सुस्सूसइ तं च पुणो अहिट्ठिए । न य माणमएण मज्जर, विणयसमाहिआययट्ठिए" || २ || चउविहा खलु सुअसगाही भवइ । तंजहा - सुअं मे मविस्सर ति अज्झाइअन्वं भवइ । एगग्गचित्तो भविस्सामि त्ति अज्झाइअवयं भवइ । अप्पाणं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइअवयं भवइ । ठिओ परं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइअवयं भवइ । चउत्थं पथं भवः । भवइ अ इत्थ सिलोगो || " नाणमेगग्गचित्तो अ, ठिओ अ ठावड़ परं । सुआणि अ अहिज्जित्ता, रओ सुअसाहिए" ॥ ३॥ चहा खलु तवसमाही भवइ । तंजहा - नो इहलोगट्टयाए तवमहिट्ठिज्जा, नो परलोगट्टयाए तवमहिट्टिज्जा, नो कित्तिवन्नसह सिलोगडआए तवमहिट्ठिजा, नन्नत्थ निज्जरट्टयाए तत्रमहिद्विज्जा । उत्थं पर्यं भवइ । भवइ अ इत्थ सिलोगो || "विविहगुणतवोरए, नित्वं भवइ थिरासए निजरट्ठिए । तवसा धुण पुराणपावगं, जुत्तो सया तवसमाहिए" || ४ || चउव्विहा खलु आयारसमाही भवइ । तं जहा - नो इहलो गट्टयाए आयारम हिट्ठिज्जा, नो नो परलो गट्टयाए आगारमहिडिज, नो कित्तिवन्नसद्द सिलोगट्टयाए आयारमहिट्ठिज्जा, नन्नत्थ - आरहंतेहिं हेऊहिं आयारम हिट्ठिज्जा । चउत्थं पयं भवइ । भवइ अ इत्थ सिलोगो । “जिगत्रयणरए अर्तितणे, पडिपुन्नाययमाययट्ठिए । आयारसमाहिसंवुडे, भवइ अ दंते भावसंघ || ४ || अभिगम चउरो समाहिओ, सुविसुद्ध सुसमाहिअप्पणो । विउलहिअं सुद्दावहं पुणो, कुवइ अ सो पयखे ममप्पणी || ६ || जाइमरणाओ मुच्चर इत्थत्थं

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