Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
View full book text ________________
1-खाध्यायमाला.
सिणाणं अदुवा ककं, लुद्धं पउमगाणि अ। गायस्सुबट्टणट्ठाए, नायरंति कयाइ वि ॥ ६४ ॥ नगिणस्स वावि मुंडस्स, दीहरोमनहसिणो। मेहुणाओ उवसंतस्स, किं विभूसाय कारिजं ॥६५॥ विभूसावत्ति भिक्खू , कम्मं बंधइ चिक्कणं । संसारसायरे घोरे, जेणं पडइ दुरुत्तरे ॥ ६६ ॥ विभूसावति चेअं, बुद्धा मनति तारिसं । सावजं बहुलं चेअं, नेयं ताईहि सेविअं ॥ ६७ ।।
खवंति अप्पाणममोहदंसिणो, तवे. रया संजम अजवे गुणे । धुणंति पावाइं. पुरेकडाइं नवाई पावाई न ते करंति ॥ ॥६८ ॥ सओवसंता अममा अकिंचणा, सविजविजाणुगया जसंसिणो। उउप्पसन्ने विमले व चंदिमा। सिद्धि विमाणाइ उवेंति (वयंति) ताइणो ॥ ६९ ॥ त्ति बेमि ॥ इअ छठें धम्मत्थकामज्झयणं समत्तं ॥ ६॥
॥ अह सुबकसुद्धी णाम सत्तमं अज्झयणं ॥ चउण्हं खलु भासाणं, परिसंखाय पन्नवं । दुण्हं तु विणयं सिक्खे, दा न भासिज्ज सबसो ॥ १॥ जा अ सच्चा अवत्तवा, सच्चामोसा अजा मुसा। जा अ बुद्धेहिं नाइन्ना, न तं भासिज पन्नवं ॥ २ ॥ असच्चमोसं सच्चं च, अणवज्जमककसं । समुप्पेहमसंदिद्धं गिरं भासिज्ज पनवं ॥ ३ ॥ एयं च अट्ठमन्नवा, जंतु नामेइ सासयं । स भासं सच्चमोसं च पि तं (पि) धीरो विवज्जए ॥ ४ ॥ वितहं पि तहामुत्ति, जं गिरं भासओ नरो । वम्हा सो पुट्ठो पावेणं, किं पुण जो मुसं वए ॥५॥
तम्हा गच्छामो वक्खामो, अमुगं वा णे भविस्सइ ।
अहं वा णं करिस्सामि, एसो वा णं करिस्सइ ।। एवमाइ उ जा भासा, एसकालम्मि संकिआ । संपयाइअमढे वा, तं पि धीरो विवज्जए ॥ ७॥ अईअम्मि अ कालम्मि, पच्चुप्पण्णमणागए । जमढे तु न जाणिज्जा, एवमेअं ति नो वए ॥ ८॥ अईअम्मि अ कालम्मि, पच्चुप्पण्णमणागए । जत्थ संका भवे तं तु, एवमेअं तु नो वए ॥ ९ ॥ अईअम्मि य कालम्मि, पच्चुप्पणमणागए । निस्संकिअं भवे जे तु, एवमेअं तु निदिसे ॥ १० ॥ तहेव फरसा भासा, गुरुभूओवघाइणी । सच्चा वि सा न वत्तवा, जओ पावस्स आगमो॥११॥ तहेव काणं काण त्ति, पंडगं पंडगत्ति वा । वाहिअंवा वि रोगि ति, तेणं चोरे ति नो वए ॥ १२ ॥ एएणन्नेण अटेणं, परो जेणुवहम्मइ । आयारभावदोसन्नू, न तं भासिज्ज पण्णवं ॥ १३ ॥ तहेव होले गोलि त्ति, साणे वा वसुलि त्ति अ। दमए दुहए वा वि, नेवं भासिज्ज पण्णवं ॥ १४ ॥
अज्जिए पज्जिए वा वि, अम्मो माउस्सिअ त्ति अ। पिउस्सिए भायणिज्ज त्ति, धूए णत्तुणिअ त्ति अ॥ हले हलित्ति अन्नि ति, भट्टे सामिणि गोमिणि ।
होले गोले वसुलि ति, इत्थिअं नेवमालवे ॥ ॥१६॥ णामधिज्जेण णं बूआ, इत्थीगुत्तेण वा पुणो।जहारिहमभिगिज्झ, आलविज्ज लविज्ज वा ॥ १७॥
Loading... Page Navigation 1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136