Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-छतीसमाध्ययनम्
दुविहा वणस्सईजीवा, सुहुमा बायरा तहा। पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेव दुहा पुणो ।। ९३ ॥ बायरा जे उ पजत्ता, दुविहा ते वियाहिया। साहारणसरीरा य, पत्तेगा य तहेव य ॥ ९४ ॥ पत्तेगसरीराओऽणेगहा ते पकित्तिया। रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा तहा ॥ ९५ ॥ चलया पवगा कुहुणा, जलरुहा ओसही तहा । हरियकाया बोधवा, पत्तेगाइ वियाहिया ॥ ९६ ॥ साहारणसरीराओऽणेगहा ते पकित्तिया। आलुए मूलए चेव, सिंगबेरे तहेव य ॥ ९७ ॥ हरिली सिरिली सस्सिरिली, जावई केयकन्दली । पलण्डुलसणकन्दे य, कन्दली य कुडुंवए ॥९८॥ लोहिणीहू य थीहू य, कुहगा य तहेव य । कन्दे य वजकन्दे य, कन्दे सूरणए तहा ॥ ९९ ॥ सस्सकणी य बोधवा, सीहकण्णी तहेव य । मुसुण्ढी य हलिद्दा, य णेगहा एवमायओ ॥१०॥ एगविहमणाणत्ता, मुहुमा तत्थ वियाहिया सुहुमा सबलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा ॥ १०१ । संतई पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपञ्जवसियावि य ॥ १०२ ॥ दस चेव सहस्साई, वासाणुकोसिया पणगाणं । वणप्फईण आउं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १०३ ।। अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पणगाणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १०४ ॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, पणगजीवाण अन्तरं ॥ १०५ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १०६ ॥ इच्चए थावरा तिविहा, समासेण वियाहिया। इत्तो उ तसे तिविहे, वुच्छामि अणुपुत्वसो ॥ १०७॥ तेऊ वाऊ य बोधबा, उराला य तसा तहा । इच्चेए तसा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १०८ ॥ दुविहा तेऊजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा। पजत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ १०९ ॥ बायरा जे उ पज्जत्ताणेगहा ते वियाहिया। इंगाले मुम्मुरे अगणी, अच्चिजाला तहेव य ॥११॥ उक्का विज्जू य बोधवा णेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता, मुहुमा ते वियाहिया ॥ १११॥ मुहुमा सबलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु. तेसिं वुच्छं चउविहं ॥ ११२ ॥ संतई पप्पणाईया, अपजवसियावि य । ठिई पडुच्च साइया, सपजवसियावि य ॥ ११३ ॥ तिण्णेव अहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई तेऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥ ११४ ॥ असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुतं जहन्नयं । कायठिई तेऊणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ ११५ ।। अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, तेऊजीवाण अन्तरं ॥ ११६ ॥ एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ। संठाणदेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ ११७ ।। दुक्हिा वाउजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पन्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥ ११८ ॥ बायरा जे उ पज्जत्ता, पञ्चहा ते पकित्तिया। उक्कलिया भण्डलिया, घणगुज्जा सुद्धवाया य ।। ११९ ॥ संवदगवाया यणेगहा एवमायओ। एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया ॥ १२० ।। मुहुमा सबलोगम्मि, एगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउविहं ।। १२१ ॥ सन्तइं पप्पणाईया, अपज्जवसियावि य । ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ १२२ । तिण्णेव सहस्साइं, वासाणुक्कोसिया भवे । आउठिई काऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ १२३ ।। असंखकालमुक्कोसं, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई वाऊणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १२४ ॥ अणन्तकालमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढम्मि सए काए, काऊजीवाण अन्तरं ॥ १२५ ।।
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