Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 71
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र- छतीस माध्ययनम् ३७ ॥ ३८ ॥ ३९ ॥ ४० ॥ ओ कडुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३१ ॥ रसओ कसा जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३२ ॥ रसओ अम्बिले जे उ. भइए से उ वण्णओ । गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओविय ॥ ३३ ॥ रसओ महुरए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३४ ॥ फासओ कक्खडे जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चैव भइए संठाणओवि य ।। ३५ ।। फासओ भइए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य || ३६ ॥ फासए गुरूए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चैव, भइए संठाणओवि य ॥ फासओ लहुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ फासए सीए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ फासओ उन्ह जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ फासओ निद्धए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ फासओ लक्खए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ परिमण्डलसंठाणे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चैव, भइए से फासओवि य ॥ संठाणओ भवे वट्टे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ संठाणओ भवे तंसे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ठाणओ जे चउरंसे, भइए से उ वण्णओ । गन्धओ रसओ चैव, भइए से फासओवि य ॥ जे आययसंठाणे, भइए से वण्णओ । गन्धओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ एसा अजीवविभत्ती, समासेण वियाहिया । इत्तो जीवविभत्ति, वुच्छामि अणुपुवसो । संसारत्थाय सिद्धाय, दुविहा जीवा वियाहिया । सिद्धाणेगविहा वृत्ता, तं मे कियतओ सुण ॥ इत्थो पुरिससद्धा य, तहेव य नपुंसगा । सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिंगे तहेव य उक्कोसोगाहणाए य, जहन्नमज्झिमाह य । उड्डुं अहे तिरियं च समुद्दम्मि जलम्मि य ॥ दस य नपुंसएसु. वीसं इत्थियासु य । पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झई ।। चत्तारिय गिहलिंगे, अन्नलिंगे दसेव य । सलिंगेण अट्ठसय, समएगेण सिज्झई ॥ उकोसो गाहणाए य, सिज्झन्ते जुगवं दुवे । चत्तारि जहन्नाए, मज्झे अट्टुत्तरं सयं ॥ चउरुलो यदुवे समुद्दे, तओ जळे वीसमहे तहेव य । सयं च अद्भुत्तरं तिरियलोए, समणेगेण सिज्झई धुवं ॥ ४६ ॥ ४७ ॥ ४८ ॥ ४९ ॥ ॥ ५० ॥ ५१ ॥ ५२ ।। ५३ ॥ ५४ ॥ ४१ ॥ ४२ ॥ ४३ ॥ ४४ ॥ ४५ ॥ ॥ ५५ ॥ कहिँ पडिहया सिद्धा, कहिं सिद्धा पइट्टिया । कहिं बोन्दि, चइत्ताणं, कत्थ गन्तूण सिज्झई || ५६ ॥ आलोए पहिया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्टिया । इहं बोन्दि चइत्ताणं, तत्थ गन्तूण सिज्झई ॥ ५७ ॥ चारसहिं जोयणेहिं, सङ्घट्टस्सुवरिं भवे । ईसिप भारनामा, पुढवी छत्तसंठिया ॥ ५८ ॥ पणयालसय सहस्सा, जोयणाणं तु आयया । तावइयं चैव वित्थिष्णा, तिग्गुणो तस्सेव परिसणो ॥ ५९ ॥ अजोयणबाहुला, सा मज्झम्मि वियाहिया । परिहायन्ती चरिमन्ते, मच्छिपत्ताउ तणुयरी ।। ६० ।। अज्जुण सुवण्णगमई, सा पुढवी निम्मला सहावेण । उत्ताणगच्छत्तगसंठिया य, भणिया जिणवरेहिं ॥ ६१ ॥

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