Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 69
________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र - चोत्तीस माध्ययनम् (६५) ५५ ॥ ॥ ५६ ॥ ५७ ॥ जा पहाए ठिई खल, उक्कोसा सा उ समयमन्भहिया । जहन्त्रेणं सुक्काए, तेत्तीस मुहुत्तमन्भहिया ॥ किण्हा नीला काऊ, तिन्नि वि एयाओ अहंमलेसाओ । एयाहि तिहिवि जीवो, दुग्गइं उववजई तेऊ पहा सुक्का, तिन्निवि एयाओ धम्मलेसाओ। एयाहि तिहिवि जीवो, सुग्गइं उववज्जई ॥ साहिं सवाहिं, पढमे समयमिं परिणया हिं तु । न हु कस्सइ उववाओ, परे भने अस्थि जीवस्स ।। ५८ ॥ लेसाहिं सवाहिं, चरिमे समयमिं परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववाओ. परे भवे होइ जीवस्स ।। ५९ ॥ अन्तमुहुत्तम्मि गए अन्तमुहुत्तम्मि सेसए चैव । लेसाहि परिणय । हिं, जीवा गच्छन्ति परलोयं ॥ ६० ॥ तम्हा यासि लेसाणं, आणुभावे वियाणिया । अप्पसत्थाओ वज्जित्ता, पसत्थाओ हिट्टिए मुणि ॥ त्ति बेमि ॥ इअ लेसज्झयणं समत्तं ॥ ३४ ॥ ६१ ॥ || अह अणगारज्झयणं णाम पंचतीसइमं अज्झयणं । सुण मे एगग्गमणा, मग्गं बुद्धेहि देखियं । जमायरन्तो भिक्खू, दुक्खाणन्त करे भवे ॥ १॥ गिहवासं परिच्चज्ज, पवज्जामस्सिए मुणी । इमे संगे वियाणिज्ज, जेहिं सज्जन्ति माणवा ॥ २ ॥ तदेव हिंसं अलियं, चोजं अबम्भसेवणं । इच्छाकामं च लोभं च, सज्जओ परिवज्जए ॥ ३॥ मणोहरं चित्तधरं, मल्लधूवेण वासियं । सकवाडं पण्डुरुल्लोचं, मणसावि न पत्थए ॥ ४ ॥ इन्दियाणि उ भिक्खुस, तारिसम्म उवस्सए । दुक्कराई निवारे, कामरागविवडणे ॥ ५ ॥ सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इक्कओ । पइरिक्के परकडे वा, वासं तत्थाभिरोय || ६ || फासुम्मि अणाबाहे, इत्थीहिं अणभिदुए | तत्थ संकप्पr वासं भिक्खू परमसंजए || ७ || न सयं गिहाई कुविना क्षेत्र अन्नेहिं कारए । गिहकम्मसमारम्भे, भूयाणं दिस्सए वहो ॥ ८ ॥ तसाणं थावराणं च सुहुमाणं बादगण य । तम्हा गिहसमारम्भं, संजओ परिवज्जए ॥ ९ ॥ तहेत्र भत्तपाणेसु, पयणे पयावणेसु य । पाणभूयदयडाए, न पए न पयावए ॥ जलधननिस्सिया जीवा, पुढवीकट्ठनिस्सिया । हमन्ति भत्तपाणेसु तम्हा भिक्खू न पयावर ॥ विसप्पे सओ धारे, बहुपाणिविणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए ।। हिरणं जायख्वं च, मणसा वि न पत्थए । समलेट्ठकंचणे भिक्खू, विरए कयविकए || किन्तो कओ होइ, विक्किणन्तो य वाणिणो । कयविक्कयम्मि वट्टन्तो, भिक्खू न भवइ तारिसी ॥ भिक्खियचं न केयवं, भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा । कयविकओ महादोसो, भिक्खवत्ती सुहावहा ।। समुयाणं उंछ मेसिज्जा, जहासुत्तमणिन्दियं । लाभालाभम्मि संतुट्ठे पिण्डवायं चरे मुणी ॥ अलीले न रसे गिद्धे, जिग्भादन्ते अमुच्छिए । न रसट्ठाए भुंजिज्जा, जत्रणट्ठाए महामुणी ॥ अच्चणं रणं चैव वन्दणं पूयणं तहा । इड्डीमक्कारसम्माणं, मणमा वि न पत्थए । सुकझाणं झियाज्जा, अणियाणे अकिंचणे । वोसट्टकाए विहरेज्जा, जाव कालस्स पजओ || १९ ॥ निज्जू हिऊण आहारं, कालधम्मे उबट्ठिए । जहिऊण माणुसं बोन्दि, पहू दुक्खे विमुच्चई || २० | निम्मे निरहंकारे, वीयरागो अणासवो । संपत्तो केवलं नाणं, सासयं परिणिव्वुए ।। २१ ॥ त्ति बेमि || इअ अणगारज्झयणं समत्तं ॥ ३५ ॥ १३ ॥ १४ ॥ १५ ।। १६ ॥ १७ ॥ १८ । 1 १० ॥ ११ ॥ १२ ।

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