Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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(४२)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला । ॥ अह समिईओ चउवीसइमं अज्झयणं ॥
अट्ठ पवयणमायाओ, समिई गुत्ती तहेव य । पंचेव य समिईओ, तओ गुत्तीउ आहीया ॥१॥ इरियाभासेसणादाणे, उच्चारे समिई इय । मणगुत्ती वयगुत्ती, कायगुत्ती य अट्ठमा ॥ २॥ एयाओ अट्ट समिईओ, समासेण वियाहिया । दुवालसंगं जिणग्वायं, मायं जत्थ उ पवयणं ।। ३॥ आलम्बणेण कालेण, मग्गेण जयणाय य । चउकारणपरिसुद्धं, संजए इरियं रिए ॥ ४ ॥ तत्थ आलम्बणं नणं दंसणं चरणं तहा । काले य दिवसे वुत्ते, मग्गे उप्पहवज्जिए ॥५॥ दवओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा । जायणा चउबिहा वुत्ता, तं मे कित्तयओ सुण ॥ ६ ॥ दव्वओ चक्खुसा पेहे, जुगमित्तं च खेत्तओ । कालओ जाव रीइज्जा, उवउत्ते य भावओ ॥ ७ ।। इन्दियत्थे विवजित्ता, सज्झायं चेव पञ्चहा । तम्मुत्ती तप्पुरकारे, उवउत्ते रियं रिए ॥ ८॥ कोहे माणे य मायाए, लोभे य उवउतया। हासे भए मोहरिए, विकहासु तहेव य ।। ९ ।। एयाइं अट्ठ ठाणाई, परिधज्जित्तु संजए । असावजं मियं काले, भासं भासिज पनवं ॥ १० ॥ गवेसणाए गहणे य, परिभोगेसणाय य । आहारोवहिसेजाए, एए तिन्नि विसोहए ॥ ११ ॥ गग्गमुप्पायणं पढमे, वीए सोहेज एसणं । परिभोयम्मि चउकं, विसोहेज जयं जई ॥ १२ ॥ ओहोवहोवग्गहियं, भण्डगं दुविहं मुणी । गिण्हन्तो निक्खिवन्तो वा, पउंजेज इमं विहिं ॥ १३ ॥ चक्खुसा पडिलेहित्त, पमजेन जयं जई । अइए निक्खिवेजा वा, दुहओ वि समिए सया ॥ १४ ॥ उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाणजल्लियं । आहारं उवहिं देहं , अन्नं वावि तहाविहं ॥ १५ ॥ अणावायमसंलोए, अणोवाए चेव होइ संलोए । आवायमसंलोए, आवाए चेव संलोए ॥ १६ ॥ अणावायमसंलोए, परस्सणुवघाइए। समे अज्झुसिरे यावि, अचिरकालकयम्मि य ॥१७॥ वित्थिण्णे दूरमोगाढे, नासन्ने विलवजिए । तसपाणवीयरहिए, उच्चाराईणि वोसिरे ॥ १८ ॥ एयाओ पश्च समिईओ, समासेण वियाहिया। एत्तोय तओ गुत्तीओ, वोच्छामि अणुपुत्वसो ॥ १९ ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भे य तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा य, मणगुत्तीओ चउविहा ॥ २० ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भ य तहेव य । मणं पवत्तमाणं तु, नियत्तेन जयं जई ॥ २१ ॥ सच्चा तहेव मोसा य, सचमोसा तहेव य । चउत्थी असच्चमोसा य, वइगुत्ती चरबिहा ॥ २२ ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भे य तहेव य । वयं पवत्तमाणं तु, नियतेज जयं जई ॥ २३ ॥ ठाणे निसीयणे चेव, तहेव य तुयट्टणे । उल्लंघणपल्लंघणे, इन्दियाण य झुंजणे ।। २४ ॥ संरम्भसमारम्भे, आरम्भम्मि तहेव य । कायं पवत्तमाणं तु, नियत्तेन्ज जयं जई ॥ २५॥ एयाओ पश्च समिईओ, चरणस्स य पवत्तणे । गुत्ती नियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु सहसा ॥ २६ ॥ एमा पत्रयणमाया, जे सम्मं आयरे मुणी। खिप्पं सत्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिए ।। २७
त्ति बेमि ॥ इअ समिईओ समत्ताओ
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