Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 57
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-तीसमाध्ययनम् ॥ अह तवमग्गं तीसइमं अज्झयणं ॥ जहा उ पावगं कम्मं, रागदोससमज्जियं । खवेइ तवसा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण ॥ १॥ पाणिवहमुसावायाअदत्तमेहुणपरिग्गहा विरओ। राईभोयणविरओ, जीवो भवइ अणासवो ॥२॥ पंचसमिओ तिगुत्तो, अकसाओ जिइन्दिओ। अगारवो य निस्सल्लो, जीवो होइ अणासवो ॥३॥ एएसिं तु विबच्चासे, रागदोससमन्जिय । खवेइ उ जहा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण ॥ ४ ॥ जहा महातलायस्स, सनिरुद्धे जलागमे । उस्सिचणाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे ॥५॥ एवं तु संजयस्सावि, पावकम्मनिरासवे । भवकोडीसंचियं कम्म, तवसा निजरिजइ ।। ६ ॥ सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरम्भन्तरो तहा । बाहिरो छबिहो वुत्तो, एवमन्भन्तरो तवो ॥ ७ ॥ अणसणमूणोयरिया,भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ। कायकिलेसोसंलीणया य बज्झो तवो होइ ॥ ८ ॥ इत्तरिय मरणकाला य, अणसणा दुविहा भवे । इत्तरिय सावकंखा, निरवकंखा उ बिइजिया ॥ ९ ॥ जो सो इतरियतवो, सो समासेण छविहो । सेढितवो पयरतवो, घणो य तह होइ वग्गो य ॥ १० ॥ तत्तो य वग्गवग्गो, पंचमो छडओ पइण्णतवो। मणइच्छियचित्तत्थो, नायबो होइ इतरिओ ॥ ११ ॥ जा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा वि वियाहिया। सवियारमवियारा, कायचिद्रं पई भवे ॥ १२ ॥ अहवा सपरिकम्मा, अपरिकम्मा य आहिया। नीहारिमनीहारी, आहारच्छेओ दोसु वि ॥ १३ ॥ ओमोयरणं पंचहा, समासेण वियाहियं । दवओ खेत्तकालेणं, भावेणं पज्जवेहि य ।। १४ ॥ जो जस्स उ आहारो, तत्तो ओमं तु जो करे। जहन्नेणेगसित्थाई, एवं दवेण ऊ भवे ॥ १५ ॥ गामे नगरे तह रायहाणिनिगमे य आगरे पल्ली । खेडे कब्बडदोणमुहपट्टणमडम्बसंबाहे ॥ १६ ॥ आसमपए विहारे, सन्निवेसे समायघोसे य । थलिसेणाएन्धारे, सत्थे संवट्टकोट्टे य ॥ १७ ॥ वाडेसु व रच्छासु व, घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं । कप्पई उ एवमाई, एवं खेत्तेण ऊ भवे ॥ १८॥ पेडा य अद्धपेडा, गोमुत्तिपयंगवीहिया चेव । सम्बुक्कावट्टाययगन्तुंपञ्चागया छट्ठा ॥ १९ ॥ दिवसस्स पोरुसीणं, चउण्झपि उ जत्तिओ भवे कालो। एवं चरमाणो खलु, कालोमाणं मुणेयवं ॥ २० ॥ अहवा तइयाए पोरिसीए ऊणाइ घासमेसन्तो। चउभागृणाए वा, एव कालेण ऊ भवे ॥ २१ ॥ इत्थी वा पुरिसो वा, अलंकिओ वानलंकिओवावि। अन्नयरवयत्थो वा, अन्नयरेणं व वत्थेणं ॥ २२ ।। अन्नेण विसेसेणं, वण्णेणं भावमणुमुयन्ते उ । एवं चरमाणो खलु, भावोमाणं मुणेयत्वं ॥ २३ ॥ दवे खेत्ते काले, भावम्मि य आहिया उजे भावा। एएहि ओमचरओ, पजवचरओ भवे भिक्खू ॥ २४ ॥ अट्टविहगोयरग्गं तु, तहा सत्तेव एसणा। अभिग्गहा य जे अन्ने, भिक्खायरियमाहिया ॥ २५ ॥ खीरदहिसप्पिमाई, पणीयं पाणभोयणं । परिवजणं रसाणं तु, भणियं रसविवजणं ॥ २६ ॥ ठाणा वीरासणाईया, जीवस्स उ सुहावहा। उग्गा जहा धरिजन्ति, कायकिलेसं तमाहियं ॥ २७ ॥ एगन्तमणावाए, इत्थीपसुविवजिए। सयणासणसेवणया, विवित्तसयणासणं ।। २८ ।। एसो बाहिरगतवो, समासेण वियाहिओ। अन्भिन्तरं तवं एत्तो, वुच्छामि अणुपुत्वसो ॥ २९ ॥ पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं च विउसग्गो, एसो अन्भिन्तरो तवो ॥ ३० ॥ THHTHHTHH

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