Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-एगणतीसमाध्ययनम्
सहायपच्चक्खाणेण भन्ते जीवे किं जणयइ । स० एगीभावं जणयइ । एगीभावभूए वि य णं जीवे एगत्तं भावेमाणे अप्पझंझे अप्पकलहे अप्पकसाए अप्पतुमंतुमे संजमबहुले संवरबहुले समाहिए यावि भवइ ॥३९॥ भत्तपच्चक्खाणेण भन्ते जीवे किं जणयइ । भ० अणेगाइं भवसयाई निरुम्भइ ॥४०॥ सम्भावपञ्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ स० अनियट्टि जणयइ। अनियहिपडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ तंजहा-वेयणिजं आउयं नाम गोयं । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ सबदुक्खाणमन्तं करेइ ।। ४१ ।। पडिरूवणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । प० लापवियं जणयइ । लघुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसथलिंगे विसुद्धसम्मत्ते सत्तसमिइसमत्ते सवपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिज रूवे अप्पडिलेहे जिइन्दिए विउलतवसमिइससन्नागए यावि भवइ ।। ४२॥ वेयावच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । वे० तित्थयरनामगोतं कम्मं निबन्धइ ।। ४३ ॥ सत्वगुणसंपबयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । स० अपुणरावति पत्तए य णं जीवे सारीरमाणमाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ ॥ ४४ ॥ वीयरागयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । धी. नेहाणुबन्धणाणि तण्हाणुबन्धणाणि य वोच्छिन्दइ, मणुन्नामणुनेसु सद्दफरिसरूवरसगन्धसु चेव विरजइ ॥ ४५ ॥ खन्तीए णं भन्ते जीवे किं जणयइ ० ख० परीसहे जिणइ ॥ ४६॥ मुत्तीए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । मु० अकिंचणं जणयइ । अकिंचणे य जीवे अत्थलोलाणं अपत्थणिज्जो भवइ ।। ४७ ॥ अजवयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । अ० काउन्जुययं भावुज्जुययं भासुज्जुययं अविसंवायणं जणयइ । अ. विसंवायणसंपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स आराहए भवइ ।।४८।। मद्दवयाए णं भन्ते जीवे किंजणयइ। म० अणुस्सियत्तं जणयइ । अणुस्सियत्तेण जीवे मिउमदवसंपन्ने अट्ठ मयठाणाई निट्ठावेइ ॥ ४९ ।। भावसच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । भा. भावविसोहि जणयइ । भावविसोहिए वट्टमाणे जीवे अ. रहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अष्भुटेइ । अरहन्तपन्नत्तस्स धम्मस्स आराहणयाए अब्भुद्वित्ता परलोगधम्मस्स आराहए भवइ ॥ ५० ॥ करणसच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । क० करणसत्ति जणयइ । करणसच्चे वट्टमाणे जीवे जहा वाई तहा कारी यावि भवइ ।। ५१ ॥ जोग सच्चेणं भन्ते जीवे किं जणयइ । जो० जोगं विसोहेइ ॥ ५२ ॥ मणगुत्तयाए णभन्ते जीवे किं जणयइ म. जीवे एगग्ग जणयइ । एगग्गचित्ते णं जीवे मणगुते संजमाराहए भवइ ॥ ५३ ॥ वयगुत्तयाए णं भन्ते जीव किं जणयइ। व० निवियारं जणयइ। निवियारे णं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगसाहणजुत्ते यावि विहरइ ॥ ५४ ॥ कायगुत्तयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । का० संवरं जणयइ । संवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोहं करेइ ॥ ५५ ॥ मणसमाहारणयाए णं भन्ते जीवे किं जण यइ । म एगग्गं जणयइ । एगग्गं जणइत्ता नाणपजवे जणयइ । नाणपञ्जवे जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छतं च निजरेइ ॥ ५६ ।। वयसमाहारणयाए भन्ते जीवे किं जणयइ । व० वयसमाहारणदंसणपज्जवे विसोहेइ । वयसाहारणदंसणपज वे विसोहित्ता सुलहबोहियत्तं निवत्तेइ, दुल्लहबोहियत्त निज रेइ ।। ५७॥ कायसमाहारणयाए णं भन्ते जीवें किं जणयइ । का० चरित्तपञ्जवे विसोहेइ। चरित्तपज्जवे विसोहित्ता अहक्खायचरितं विसोहेइ । अहक्खायचरित्तं विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मं से खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिवाइ सबदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ ५८ ॥ नाणसंपन्नयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ना० जीवे सद्दभावाहिगम जणयइ । नाणसंपन्ने जीवे चाउरन्ते संसारकन्तारे न विणस्सइ।
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