Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 54
________________ श्रीजैनसिद्धान्त - स्वाध्यायमाला यसअणासाणा वट्टमाणे तित्थधम्मं अवलम्बइ । तित्थधम्मं अलम्बमाणे महानिजरे महापजवसाणे भवइ ॥ १९ ॥ पडिपुच्छणयाए णं भन्ते जीवे किं जणय | प सुत्तत्थतदुभयाई विसोहेइ | कंखामोहणिज्जं कम्मं वोच्छिन्दइ || २० || परियट्टणाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । प० वंजणाई जणय, वंजणलद्धिं च उप्पाएइ || २१ || अणुप्पेहाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । अ० आउयवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ घणियबन्धणबद्धाओ सिढिलबन्धणलद्धाओ पकरेइ । दीहकालट्ठियाओ हस्सकालठिई आसी पकरेइ । तिवाणुभावाओ मन्दाणुभावाओ पकरेइ । (बहुपए सग्गाओ अप्पपएसगाओ पकts) आउयं च णं कम्मं सिया बन्धइ, सिया नो बन्धइ । असावेयणिज्जं च णं कम्मं नो भुजो भुजो उवचिणाइ । अणाइयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरतं संसारकन्तारं खिप्पामेव वी - वमइ ||२२|| धम्मकहाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ध० निजरं जणयइ | धम्मकहाए णं पवयणं पभावेइ | पत्रयणपभावेणं जीवे आगमेसस्स महत्ताए कम्मं निबन्धइ ॥ २३ ॥ सुयरस आराहणयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । सु० अन्नाणं खवेइ न य संकिलिस्सइ || २४ || एगग्गमणसंनिवेसण• या णं भन्ते जीवे किं जणयइ । ए० चित्तनिरोहं करे || २५ || संजमएणं भन्ते जीवे किं जणयह । स० अणण्हयत्तं जणय ।। २६ ।। तवेणं भन्ते जीवे किं जणयइ || तवेणं वोदाणं जणयइ ॥ २७ ॥ वोदाणं भन्ते जीवे किं जणयइ । वो० अकिरियं जणयइ । अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ, बुज्झइ मुच्च परिनिधाय सवदुक्खाणमन्तं करेइ || २८ || सुहसाएणं भन्ते जीवे किं जणय | सुं० अणुस्मुयत्तं जणय | अणुस्सुयाए णं जीवे अणुकम्पए अणुब्भडे विगयसोगे चरि मोहणिज्जं कम्मं खवेइ ।। २९ ।। अप्पडिबद्धयाए णं भन्ते जीवे किं जणयइ । अ० निस्संगतं जणय | निस्संगत्तेणं जीवे एगे एगग्गचित्ते दिया य राओ य असज्जमाणे अप्पडिबद्धे यावि विहरइ || ३० || विवित्तसयणासणयाए णं भन्ते जीवे किं जणय | वि० चरितगुत्तिं जणय | चरितगुत्ते य णं जीवे विवित्ताहारे दढचरिते एगन्तरए मोक्खभाव पडिवन्ने अट्ठविहकम्मगंठिं निजरेइ ||३१|| विनियट्टयाए णं भन्ते जीवे किं जणयः । वि० पावकम्माणं अकरणयाए अन्भुट्ठे । पुवबद्धा य निजरणयाए तं नियत्ते । तओ पच्छा चाउरन्तं संसारकन्तारं वीइवयइ || ३२ || संभोगपच्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जणयइ । सं० आलम्बणाई खवेइ । निरालम्बणस्स य आयट्ठिया योगा भवन्ति । सएणं लाभेणं संमुस्सइ, परलाभं नो आसादेइ, परलाभं नो तक्केइ, नो पीहेड़, नो पत्थेइ, नो अभिलस । परलाभं अणस्सायमाणे अतकेमाणे अपीहमाणे अपत्येमाणे अणभिलसमाणे दुचं सुहसेज्जं उवव संपज्जित्ता णं विहरड् ।। ३३ ।। उवहिपच्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जणयः । उ० अपलिमन्थं जणय | निरुत्रहिए णं जीवे निकंखी उवहिमन्तरेण य न संकिलिस्सई ||३४|| आहारपच्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जणय | आ० जी वियासंसप्पओगं वोच्छिन्दइ । जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दित्ता जीवे आहारमन्तरेणं न संकिलिस्सः || ३५ || कसायपच्चक्खाणं भन्ते जीवे किं जण इ । क० वीयरागभावं जणयः । वीयरागभाव पडिव ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ ॥ ३६ ॥ जोगपच्चक्खाणं भन्ने जीवे किं जणय | जो० अजोगतं जणयह अजोगे णं जीवे नवं कम्मं न बन्धइ, पुवबद्धं निजरेइ || ३७ || सरीरपच्चक्खाणेणं भन्ते जीवे किं जणयइ | स० सिद्धाइसयगुणकित्तणं निवत्तेइ सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गमुनगए परमसुंही भवइ || ३८ ॥ (५०)

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