Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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(४४)
श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला.
३१ ॥
३२ ॥
३३ ॥
वयं बूम माहणं ॥ परमप्पाणमेव य जयघोसं महामुनिं ।।
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३७ ॥
न वि मुण्डिएण समणो, न ओंकारेण वम्भणो । न मुणी रण्णवासेणं, कुसचीरेण तावसो ॥ समयगए समणो होइ बम्भचेरेण वम्मणो | नाणेण उ मुणी होड़, तवेण होइ तावसो || कम्णा बम्भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ । वइसो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवड़ कम्मुणा ॥ एए पाउकरे बुद्धे, जेहिं होइ सिणायओ । सङ्घकम्मविणिम्मुकं तं एवं गुणसमाउत्ता, जे भवन्ति दिउत्तमा । ते समत्था उ उद्धत्तुं एवं तु संसए छिन्न, विजयघोसे य माहणे । समुदाय तयं तं तु तुट्ठेय विजयघोसे, इणमुदाहु कथंजली | माहणतं जहाभूयं, मुट्ठ मे उचदंसियं । तुब्भे जड़या जन्नाणं, तुब्भे वेयविऊ विऊ । जो संगविऊ तुम्भे, तुम्भे धम्माण पारगा || ३८ ॥ तु समत्था उद्ध, परमप्पाणमेत्र य । तमणुग्गहं करेहम्हं. भिक्खेणं भिक्खु उत्तमा । न कज्जं मज्झ भिक्खेण, खिप्पं निक्खमसू दिया । मा भमिहिसि भयावडे, घोरे संसारसागरे ॥ उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पई । भोगी ममइ संसारे, अभोगी विष्पमुचई ॥ उल्लो सुक्खो य दो छूढा, गोलया मट्टिया मया । दो वि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो सोऽत्थ लग्गई एवं लग्गन्ति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति, जहा से सुक्खगोल ए ।। एवं से विजयघोसे, जयघोसस्स अन्तिए । अणगारस्स निक्खन्तो, धम्मं सोचा अणुत्तरं ॥ खवित्ता पुव्त्रकम्माई, संजमेण तवेण य । जयघोसविजयघोमा, सिद्धं पत्ता अणुत्तरं ॥ त्ति बेमि || इस जन्नइज्जं समत्तं ॥ २५ ॥
३९ ॥
४० ॥
४१ ॥
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४२ ॥
४३ ।।
४४ ॥
४५ ॥
३४ ॥
३५ ॥
३६ ।।
॥ अह सामायारी छवीसइमं अज्झयणं ॥
I
सामायारिं पवक्खामि, सवदुवखविमोक्खाणि । जं चरिताण निग्गन्धा, तिण्णा संसारसागरं ॥ १ ॥ पढमा आवस्निया नाम, बिइया य निसीहिया । आपुच्छणा य तइया, चउत्थी पडिपुच्छणा ॥ २॥ पंचमी छन्दणा नाम, इच्छाकारो य छडओ । सत्तमो मिच्छकारो य, तहक्कारो य अट्ठमो ॥ ३॥ अभुट्ठाणं च नवमं, दसमी उपसंपदा । एसा दसंगा साहूणं, सामायारी पवेइया ॥ ४ ॥ गमणे आवस्सियं कूज्जा, ठाणे कुञ्ज निसीहियं । आपुच्छणं सयंकरणे, परकरणे पडिपुच्छणं ॥ ५ ॥ छन्दणा दवजाएणं, इच्छाकारो य सारणे । मिच्छाकारो य निन्दाए, तहक्कारो पडिस्सुए || अब्भुट्ठाणं गुरुपूया, अच्छणे उवसंपदा । एवं दुपंच संजुत्ता, सामायारी पवेइया ॥ ७ ॥ पुल्लिमि चउभाए, आइचम्मि समुट्ठिए । भण्डयं पडिलेहित्ता, वन्दित्ता य तओ गुरुं ॥ ८ ॥ पुच्छित्र पंजलीउडो, किं काय मए इह । इच्छं निओइउं भन्ते, वेयावच्चे व सज्झाए ।। ९ ।। वेयावचे निउत्तेण, काय अगिला ओ । सज्झाए वा निउत्तेण, सवदुक्ख विमोक्खणे ॥ १० ॥ दिवसस्स चउरो भागे, भिक्खू कुञ्जा वियक्खणो । तओ उत्तरगुणे कुज्जा, दिणभागेषु चउसुवि ॥ पढमं पोरिसि सज्झायं, बीयं झाणं झियायई । तइयाए भिक्खायरियं पुणो चउत्थीइ सज्झायं ॥ आसाढे मासे दुवया, पोसे मासे चउप्पया । चित्तासोएस मासे, तिप्पया हवइ पोरिसी अंगुलं सत्तरत्तणं, पक्खेणं च दुरंगलं । वड्ढए हायए वावि, मासेणं चउरंगुलं ॥
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