Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 36
________________ (३२) श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला. कूवन्तो कोलमुणएहिं, सामेहिं सवलेहि य । फाडिओ फालिओ छिन्नो, विफुरन्तो अणेगसो ॥५४॥ असीहि अवसिवण्णाहिं, भल्लेहिं पट्टिसेहि य । छिन्नो भिन्नो विमिन्नो य, ओइण्णो पावकम्मणा ॥ ५५ ॥ अनसे लोहरहे जुत्तो, जलन्ते समिलाजुए। चोइओ तोत्तजुत्तेहिं, रोज्झो वा जह पाडिओ ॥ ५६ ॥ हुयासणे जलन्तम्मि, चियासु महिसो विव । दडो पको य अवसो, पावकम्मेहि पाविओ ॥ ५७ ॥ वला संडासतुण्डेहिं, लोहतुण्डेहिं पक्खिहिं । विलुतो विलवत्तो हं, ढंकगिद्धेहिऽणन्तसो ॥ ५४॥ तण्हाकिलन्तोधावन्तो, पत्तो वेयराणिं नदि । जलं पाहिं ति चिन्तन्तो, खुरधाराहिं विवाइओ ॥ ५९॥ उण्हाभितत्तो संपत्तो, असिपत्तं महावणं । असिपत्तेहिं पडन्तेहि, छिन्नपुचो अणेगसो ॥ ६॥ मुग्गरेहिं मुसंढीहिं, सूलेहिं मुसलेहिं य । गया संभग्गगत्तेहिं, पत्तं दुक्खं अणन्तसो ॥ ६१ ॥ खुरेहिं तिक्खधारेहि, छुरियाहिं कप्पणीहि या कप्पिओफालिओ छिन्नो, उक्कितोय अणेगसो ॥ ६२ ॥ पासेहिं कूडजालेहि. मिओ वा अवसो अहं । वाहिओ बद्धद्धो वा, बहू चेव विवाइओ ॥ ६३ ॥ गलेहिं मगरजालेहि, मच्छो वा अवसो अहं । उल्लिओ फालिओ गहिओ, मारिणोय अणन्तसो ॥ ६४ ॥ वीदंसएहि जालेहिं. लेप्पाहि सउणो विव । गहिओ लग्गो बद्धो य, मारिओ य अणन्तसो ॥ ६५॥ कुहाडफरसुमाईहि, वड्डईहिं दुमो विव । कुहिओ फालिओ छिन्नो, तच्छिओ य अणन्तसो ॥६६॥ चवेडमुट्टिमाईहि, कुमारेहिं अयं पिव । ताडिओ कुट्टिओ भिन्नो, चुण्णिओ य अणन्तसो ॥ ६७ ।। तत्ताई तम्बलोहाइं, तउयाई सीसयाणि य । पाइओ कलकलन्ताई, आरसन्तो सुभेरवं ॥ ६८ ॥ तुहं पियाई मंसाई, खएडाइं सोलगाणि य । खाविओ मिसमंसाइं, अग्गिवण्णाइऽणेगसो ॥ ६९ ॥ तुहं पिया सुरा सीहू, मेरओ य महूणि य। पाइओ मि जलन्तीओ, वसाओ रुहिराणि य ॥ ७० ॥ निचं भीएण तत्थेण, दुहिएण वहिएण य । परमा दुहसंबद्धा, वेयणा वेदिता मए ॥ ७१ ॥ तिवचण्डप्पगाढाओ, घोराओ अइदुस्सहा । महब्भयाओ भीमाओ, नरएसु वेदिता मए ॥ ७२ ॥ जारिसा माणुसे लोए, ताया दीसन्ति वेयणा । एत्तो अणन्तगुणिया, नरएसु दुक्खवेयणा ।। ७३ ॥ सव्वभवेसु अस्साया, वेयणा वेदिता मए । निमेसन्तरमित्तं पि, जं साता नत्थि वेयणा ।। ७४ ॥ तं विन्तम्मापियरो, छन्देणं पुत्त पचया। नवरं पुण सामण्णे, दुक्खं निप्पडिकम्मया ॥ ७५ ॥ सो बेइ अम्मापियरो, एवमेयं जहा फुडं । पडिकम्मं को कुणई, अरण्णे मियपक्खिणं ॥ ७६ ।। एगभूए अरण्णे व, जहा उ चरई मिगे । एवं धम्मं चरिस्सामि, संजमेण तवेण य ।। ७७ ॥ जया मिगस्स आयको, महारण्णम्मिजायई । अञ्चन्तं रुक्खमूलम्मि, को णं ताहे तिगिच्छई ॥ ७८ ।। को वा से ओसहं देइ, को वा से पुच्छई सुहं । को से भत्तं च पाणं वा, आहरित्तु पणामए ॥ ७९ ॥ जया से सुही होइ, तया गच्छइ गोयरं । भत्तपाणस्स अट्टाए, वल्लराखि सराणि य ॥ ८॥ खाइत्ता दाणियं पाउं, वल्लरेहिं सरेहि य । मिगचारिय चरित्ताणं. गच्छई मिगचारियं ।। ८१ ॥ एवं समुडिओ भिक्खू, एवमेव अणेगए । मिगचारियं चरित्ताणं, उड्ढे पक्कमई दिसं ॥ ८२ ॥ __ जहा मिगे एगे अणेगचारी, अणेगवासे धुवगोयरे य । एवं मुणी गोयरियं पविटे, नो हीलए नोवि य खिंसएजा ॥ ॥८३ ॥ मिगचारियं चरिस्सामि, एवं पुत्ता जहासुहं । अम्मापिईहिणुनाओ, जहाइ उवहिं तहा ॥ ८४ ॥ मियचारियं चरिस्सामि, सबक्खविमोक्खणिं । तुम्भेहिं अब्भणुनाओ, गच्छ पुत्त जहासुहं ॥ ८५॥

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