Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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-स्वाध्यायमाला
सोवीररायवसभो, चइत्ताण मुणी चरे । उदायणो पवइओ, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४८॥ तहेव कासीराया, सेओसच्चपरकमे। कामभोगे परिचन्ज, पहणे कम्ममहावणं ॥ ४९ ॥ तहेव विजओ राया, अणट्ठाकित्ति पवए । रजं तु गुणसमिद्धं, पयहित्तु महाजसो ॥ ५० ॥ तहेवुग्गं तवं किच्चा, अबक्खित्तेण चेयसा । महब्बलो रायरिसी, आदाय सिरसा सिरि ॥ ५१॥ कहं धीरो अहेऊर्हि, उम्मत्तो व महिं चरे । एए विसेसमादाय, सूरा दढपरकमा ॥५२॥ अच्चन्तनियाणखमा, सच्चा मे भासिया वई । अतरिंसु तरन्तेगे, तरिस्सन्ति अणागया ॥ ५३॥ कहिं धीरे अहेऊहिं अत्तःणं परियावसे । सवसंगविनिम्मुक्के, सिद्धे भवइ नीरए ।। ५४ ॥
त्ति बेमि ॥ इअ संजइज्जं समत्तं ॥ १८ ॥
॥ मियापुत्तीयं एगूणवीसइमं अज्झयणं ॥ सुग्गीवे नयरे रम्मे, काणणुज्जाणसोहिए । राया बलभद्दि त्ति, मिया तस्सग्गमाहिसी ॥१॥ तेसिं पुत्ते बलसिरी, मियापुत्ते त्ति विस्सुए । अम्मापिऊण दइए, जुवराया दमीसरे ॥ २॥ नन्दणे सो उ पासाए, कीलए सह इत्थिहिं । देवोदोगुन्दगे चेव, निचं मुइयमाणसो ॥३॥ मणिरयणकोट्टिमतले, पासायालोयणट्टिओ । आलोएइ नगरस्स, चउक्क त्तियचच्चरे ॥ ४ ॥ अह तत्थ अइच्छन्तं, पासई समणसंजयं । तवनियमसंजमधर, सीलड्ढें गुणआगरं ।। ५ ।। तं हेहई मियापुत्ते, दिट्ठीए अणिमिसाए उ । कहिं मन्ने रिसं रूवं, दिट्ठपुवं मए पुरा ॥ ६ ॥ साहुस्स दरिसणे तस्स, अज्झवसाणम्मि सोहणे। मोहं गयस्स सन्तस्स, जाईसरणं समुप्पन्नं ॥ ७ ॥ जाईसरणे समुप्पन्ने, मियापुत्ते महिड्डिए । सरई पोराणियं जाई, सामण्णं च पुरा कयं ॥ ८॥ विसएहि अरज्जन्तो, रज्जन्तो. संजमम्मि य । अम्मापियरमुवागम्म, इमं वयणमब्बवी ॥९॥
सुयाणि मे पंच महव्वयाणि, नरएस दुक्खं च तिरिक्खजोणिसु ।
निविण्णकामो मि महण्णवाउ, अणुजाणह पवइस्सामि अम्मो ॥ १० ॥ अम्म ताय मए भोगा, भुत्ता विसफलोवमा । पच्छा कडुयविवागा, अणुबन्धदुहावहा ।। ११ ॥ इमं सरीरं अणिचं, असुइं असुइसंभवं । असासयावासमिण, दुक्खकेसाण भायणं ॥ १२ ॥ असासए सरीरम्मि, रई नोबलभामहं । पच्छा पुरा व चइयव्वे, फेणबुब्बुयसन्निभे ॥ १३॥ माणुसत्ते असारम्मि, वाहीरोगाण आलए। जरामरणपत्थम्मि, खणंपि न रमामहं ॥ १४ ॥ जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगाणि मरणाणि य । अहो दुक्खो हुसंसारो, जत्थ कीसन्ति जन्तवो ॥ १५ ॥ खेत्तं वत्थु हिरण्णं च, पुत्तदारं च वन्धवा । चइत्ताणं हमं देहं, गन्तवमवसस्स मे ॥ १६ ॥ जह किम्पागफलाण, परिणामो न सुन्दरो । एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुन्दरो ॥ १७ ॥ अद्धाणं जो महंतं तु, अप्पाहेओ पवई । गच्छन्तो सो दुही होइ, छुहातण्हाए पीडिओ ॥ १८ ॥ एवं धम्मं अकाऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो सुही होइ, वाहीरोगेहिं पीडिओ ॥ १९ ॥ अद्धाणं जो महंतं तु, सपाहेओ पवजई । गच्छन्तो सो सुही होइ, छुहातहाविवजिओ ॥ २० ॥
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