Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
View full book text ________________
श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-अट्ठदशमाध्ययनम्
(२९)
नीहरन्ति मयं पुत्ता, पितरं परमदुक्खिया । पितरो वि तहा पुत्ते, बन्धू रायं तवं चरे ॥ १५॥ तओ तेणज्जिए दवे, दारे य परिरक्खिए। कीलन्तिऽन्ने नरा रायं, हट्टतुट्ठमलंकिया ॥ १६ ॥ तेणावि जं कयं कम्मं, सुहं वा जइ वा दुहं । कम्मुणा तेण संजुत्तो, गच्छई उ परं भवं ॥ १७ ॥ सोजण तस्स सो धम्मं, अणगारस्स अन्तिए । महया संवेगनिवेदं, समावन्नो नराहिवो ॥ १८॥ संजओ चइउं रजं, निक्वन्तो जिणसासणे । गद्दभालिस्स भगवओ, अणगारस्म अन्तिए ॥ १९ ॥ चिचा रट्टे पवइए, खत्तिए परिभासइ । जहा ते दीसई रूवं, पसन्नं ते महा मणो । २० ॥ किं नामे किं गोते, कस्सट्टाए व माहणे। कहं पडियरसी बुद्धे, कहं विणीए त्ति वुच्चसी ॥ २१ ॥ संजओ नाम नामेणं, तहा गोत्तेण गोयमो । गद्दभाली ममायरिया. विजाचरणपारगा ॥ २२ ॥ किरियं अकिरियं विणयं, णनाणं च महामुणी । एएहिं चउहि ठाणेहिं, मेयन्ने किं पभासई ॥ २३ ॥ इइ पाउकरे बुद्धे, नायए परिणिव्वुए । विज्ञाचरणसंपन्ने, सच्चे सच्चपरक्कमे ॥ २४ ॥ पडन्ति नरए घोरे, जे नरा पावकारिणो । दिवं च गई गच्छन्ति, चरित्ता धम्ममारियं ॥ २५ ॥ मायावुइयभेयं तु, मुसाभासा निरत्थिया । संजममाणो वि अहं, वसामि इरियामि य ॥ २६ ॥ सोए विइय मज्झं, मिच्छादिट्ठी अणारिया। विजमाणे परे लोए, सम्मं जाणामि अप्पगं ॥ २७ ॥ अहसासि महापाणे, जुइमं वरिससओवमे । जा सा पालिमहापाली, दिवा वरिससओवमा ॥ २८ ॥ से चुए बम्भलोगाओ, माणुस्सं भवमागए। अप्पणो य परेसिं च, आउं जाणे जहा तहा ॥ २९ ॥ नाणारुइं च छन्दं च, परिवजेज संजए । अणट्ठा जे य सवत्था, इयविजामणुसंचरे ॥ ३० ॥ पडिकमामि पसिणार्ण, परमंतेहिं वा पुणो । अहो बट्ठिए अहोरायं, इइ विजा तवं चरे ॥ ३१॥ जं च मे पुच्छसी काले, समं सुद्धेण चेयसा । ताई पाउकरे बुद्धे तं नाणं जिणसासणे ॥ ३२ ॥ किरियं च रोयई धीरे, अकिरियं परिवजए। दिट्ठीए दिट्ठीसम्पन्ने, धम्मं चरसु दुचरं ॥ ३३ ॥ एयं पुण्णपयं सोचा, अत्थधम्मोवसोहियं । भरहो वि भारहं वास, चेचा कामाइ पवए ॥ ३४ ॥ सगरो वि सागरन्तं, भरहवासं नराहिवो। इस्सरियं केवलं हिच्चा, दयाइ परिनिव्वुडे ।। ३५ ।। चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्डिओ। पवजमब्भुवगओ, मघवं नाम महाजसो ॥ ३६ ॥ सणंकुमारो मणुस्सिन्दो, चक्कवट्टी महिड्डिओ। पुत्तं रज्जे ठवेऊणं, सो वि राया तवं चरे ॥ ३७॥ चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्डिओ। सन्ती सन्तिकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ३८ ॥ इक्खागरायवसभो, कुन्थू नाम नरिसरो। विक्खायकित्ती भगवं. पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ३९ ॥ सागरन्तं - चइत्ताण, भरहं नरवरीसरो। अरो य अरयं पत्तो, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४०॥ चइत्ता भारहं वासं, चइत्ता बलवाहणं । चइत्ता उत्तमे भोए. महापउमे तवं चरे ॥ ४१ ॥ एगच्छत्तं पसाहित्ता, महिं माणनिसूरणो । हरिसेणो मसुस्सिन्दो, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४२ ॥ अनिओ रायसहस्सेहि, सुपरिचाई, दमं चरे। जयनामो जिणक्खायं, पत्तो गइमणुत्तरं ॥ ४३ ।। दसण्णरजं मुदियं, चइत्ताणं मुणी चरे । दसण्णभद्दो निक्खन्तो, सक्खं सक्कण चोइओ ॥४४॥ नमी नमेइ अप्पाणं, सक्खं सक्केण चोइओ। चइऊण गेहं वइदेही, सामण्णे पज्जुबढिओ ॥ ४५ ॥ करकण्डू कलिंगेसु, पंचालेसु य दुम्मुहो। नमी राया वीदेहेसु, गन्धारेसु य नग्गई ।। ४६ ॥ एए नरिन्दवसभा, निक्खन्ता जिणसासणे । पुत्ते रजे ठवेऊणं, सामण्णे पज्जुवटिया ॥ ४७॥
Loading... Page Navigation 1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136