Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-एंगूनविशमाध्ययनम् एवं सो अम्मापियरो, अणुमाणिताण बहुविहं । ममत्तं छिन्दई ताहे, महानागो व कंचुयं ॥ ८६ ॥ इड्डी वि च मित्ते य, पुत्तदारं च नायओ। रेणुयं व पडे लग्गं, निध्धुत्ताण निग्गओ ।। ८७ ॥ पंचमहत्वयजुत्तो, पंचहि समिओ तिगुत्तिगुत्तोय। सब्भिन्तरबाहिरओ, तवोकम्मंसि उज्जुओ ॥ ८८ ॥ निम्ममो निरहंकारो, निस्संगो चत्तगारवो । समो य सबभूएसु, तसेसु थावरेसु य ॥ ८९ ॥ लाभालामे सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा। समो निन्दापसंसासु, तहा माणावमाणओ ॥ ९ ॥ गारवेसुं कसाएसुं, दण्डसल्लभएसु य । नियत्तो हाससोगाओ, अनियाणो अबन्धणो ॥ ९१ ॥ अणिस्सिओ इहं लोए, परलोए अणिस्सिओ। वासीचन्दणकप्पो य, असणे अणसणे तहा ॥ ९२ ॥ अप्पसत्थेहिं दारेहिं, सबओ पिहियासवे । अज्झप्पज्झाणजोगेहिं, पसत्थदमसासणे ॥ ९३ ।। एवं नाणेण चरणेण, दंसणेण तवेण य । भावणाहि य सुद्धाहिं, सम्मं भावेत्तु अप्पयं ॥ ९४ ।। बहुयाणि उ वासाणि, सामण्णमणुपालिया । मासिएण उ भत्तेण, सिद्धिं पत्तो अणुत्तरं ॥ ९५ ॥ एवं करन्ति संबुद्धा, पण्डिया पवियक्खणा । विणिअन्ति भोगेसु, मियापुत्ते जहारिसी ॥ ९६ ॥
महापभावस्स महाजसस्स, मियापुत्तस्स निसम्म भासियं । तवप्पहाणं चरियं च उत्तमं, गहप्पहाणं च तिलोगविस्सुतं ॥ ॥९७ ॥ वियाणिया दुक्ख विवद्धणं धणं, ममत्तबन्धं च मयाभयावहं । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं, धारेज निवाणगुणावहं महं ।। ॥९८॥
त्ति बेमि ॥ इअ मियापुत्तीयं समत्तं ॥ १९॥
॥ अह महानियण्ठिज्जं वीसइमं अज्झयणं ॥ सिद्धाण नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ। अत्थधम्मगई तचं अणुसद्धिं सुणेह मे ॥१॥ पभूयरायणो राया, सेणिओ मगहाहिवो । विहारजत्तं निजाओ, मण्डिकुछिसि चेइए ॥२॥ नाणादुमलयाइण्णं, नाणापक्खिनिसे वियं । नाणाकुसुमसंछन्नं, उजाणं नन्दणोवमं ॥ ३ ॥ तत्थ सो पासई साहुं, संजय सुसमाहियं । निसन्नं रुक्खमूलम्मि, सुकुमालं सुहोइयं ॥ ४ ॥ तस्स रूवं तु पासित्ता, राइणो तम्मि संजए । अच्चन्तदरमो आसी, अउलो रूवविम्हओ॥५॥ अहोवण्णो अहो रूवं, अहो अञ्जस्स सोमया। अहो खन्ती अहो मुत्सी, अहो भोगे असंजया ॥ ६॥ वस्स पाए उ वन्दित्ता, काऊण य पयाहिणं । नाइदूरमणासन्ने, पंजली पडिपुच्छई ॥७॥ तरुणो सि अन्जो पवइओ, भोगकालम्मि संजया। उवडिओ सि सामण्णे, एयमढे सुणेमि ता ॥८॥ अणाहोमि महाराय, नाहो मज्झ न विजई । अणुकम्पगं सुहिं वावि, कंचि नाभिसमेमहं ॥९॥ तओ सो पहसिओ राया, सेणि ओ मगहाहिवो। एवं ते इड्डिमन्तस्स, कहं नाहो न विजई ॥१०॥ होमि नाही भयताणं, भोगे भुंजाहि संजया। मित्तनाईपरिखुडो, माणुस्सं खु सुदुल्लहं ॥ ११ ॥ अप्पणा विअगाहो सि, सेणिया मगहाहिवा । अप्पणा अणाही सन्तो, कस्स नाहो भविस्मसि ।। १२ ! एवं वुत्तो नरिन्दो सो, सुसंभन्तो सुविम्हिओ। वयणं अस्सुगपुव्वं, साहुणा विम्हयन्निओ ॥ १३ अस्सा इत्थीमणुस्सा मे, पुरं अन्तेउरं च मे। भुंजामि माणुस्से भोगे, आणा इस्सरियं च मे ॥१
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