Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 35
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र-सोलमाध्ययनम् (३१) एवं धम्म पि काऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो सुही होइ, अप्पकम्मे अवेयणे ॥ २१॥ जहा गेहे पलित्तम्मि, तस्स गेहस्स जो पहू । सारभण्डाणि नीणेइ, असारं अवउज्झइ ।। २२ ।। एवं लोए पलितम्मि, जराए मरणेण य । अप्पाणं तारइस्सामि, तुब्भेहि अणुमनिओ ॥ २३॥ तं विन्तम्मापियरो, सामण्णं पुत्त दुचरं । गुणाणं तु सहस्साइं, धारेयवाई भिक्खुणा ॥ २४ ॥ समया सबभूएसु, सत्तुमित्तेसु वा जगे । पाणाइवायविरई, जावज्जीवाए दुक्करं ।। २५ ।। निच्चकालप्पमत्तेणं, मुसावायविवजणं । भासियव्वं हियं सचं, निचाउत्तेण दुक्करं ॥ २६ ॥ दन्तसोहणमाइस्स, अदत्तस्स विवजणं । अणवजेसणिजस्स, गिहण्णा अवि दुक्करं ।। २७ ।। विरई अबम्भचरस्स, कामभोगरन्नुणा। उग्गं महत्वयं बम्भं, धारेयवं सुदुक्करं ॥ २८॥ धणधनपेसवग्गेसु, परिग्गहविवजणं । सबारम्भपरिच्चाओ, निम्ममत्तं सुदुक्करं ॥ २९॥ चउविहे वि आहारे, राईभोयणवजणा । सन्निहोसंचओ चेव, वज्जेयव्यो सुदुक्करं ॥ ३० ॥ छुहा तण्हा य सीउण्हं दंसमसंगवेयणा । अक्कोसा दुक्खसेजा य, तणफासा जलमेव य ॥ ३१ ॥ तालणा तज्जणा चेव, वहबन्धपरीसहा । दुक्खं भिक्खायरिया, जायणा य अलाभया ॥ ३२ ।। कावोया जा इमा वित्ती, केसलोओ य दारुणो। दुक्खं धम्भवयं घोरं, धारेउं य महप्पणो ॥ ३३ ॥ सुहोइओ तुमं पुत्ता, सुकुमालो सुमजिओ। न हु सी पभू तुमं पुत्ता, सामण्णमणुपालिया ॥ ३४ ॥ जावजीवमविस्सामो, गुणाणं तु महब्भरो। गुरु उ लोहमारुव, जो पुत्ता होइ दुवहो ।। ३५ ।। आगासे गंगसोउ छ, पडियोउ व दुत्तरो। बाहाहि सागरो चेव, तरियवो गुणोदही ॥ ३६॥ वालुया कवलो चेव, निरस्साए उ संजमे । असिधारागमणं चेव, दुक्करं चरित्रं तवो ॥ ३७ ।। अही वेगन्तदिट्ठीए, चरित्ते पुत्त दुक्करे । जवा लोहमया चेव, चावेयवा सुदुक्करं ॥ ३८ ॥ जहा अग्गिसिहा दित्ता, पाउं होइ सुदुक्करा । एहा दुक्करं करेउं जे, तारुण्णे समणत्तणं ॥ ३९ ॥ जहा दुक्खं भरेउं जे, होइ वायरस कोत्थलो। तहा दुवखं करेउं जे, कीवेणं समणत्तणं ॥ ४० ॥ जहा तुलाए तोलेउं, दुक्करो मन्दरो गिरी। तहा निहुयनीसंकं, दुक्करं समणत्तणं ॥ ४१ ॥ जहा भुयाहिं तरिगं. दुक्करं रयणायरो। तहा अणुवसन्तेणं, दुक्करं दमसागरो ॥ ४२ ॥ मुंज माणुस्सए भोगे, पंचलक्खणए तुमं। भुत्तभोगी तओजाया, पच्छा धम्मं चरिस्समि ॥ ४३ ॥ सो बेइ अम्मापियरो, एबमेयं जहा फुडं । इह लोए निप्पिवासस्स, नत्थि किंचिवि दुक्करं ॥ ४४ ॥ सारीरमाणसा चेव, वेयणाओ द्वनन्तसो। मए सोढाओ भीमाओ, असई दुक्खभयाणी य ॥ ४५ ॥ जरामरणकन्तारे, चाउरन्ते भयागरे । मए सोढाणि भीमाणि, जम्माणि मरणाणि य ॥ ४६॥ जहा इहं अगणी उण्हो, एत्तोऽणन्तगुणे तहिं । नरएभु वेयणा उण्हा, अस्साया वेड्या मए ॥४७॥ इमं इहं सीयं, एत्तोऽणन्तगुणे तहिं । नरएसु वेयणा सीया, अस्सया वेइया मए ॥ ४८ ॥ कन्दन्तो कंदुकुम्मीसु, उड्डपाओ अहोसिरे । हुयासणे जलन्तम्मि, पक्कयुबो अणन्तसो ॥ ४९ ॥ महादबग्गिसंकासे, मरुम्मि वहरबालुए। कदम्बवालुयाए य, दड्डपुव्यो अणन्तसो । ५०॥ रसन्तो कन्दुकुम्भीसु, उड्टुं बद्धो अबन्धवो। करवत्तकरकाईहिं. छिन्नपुव्वो अणन्तसो ॥ ५१ ॥ अइतिक्खकण्टगाइण्णे, तुंगे सिम्बलिपायवे । खेवियं पासबद्धणं, कड्डोकड्ढाहिं दुक्करं ॥ ५२॥ महाजन्तेसु उच्छू वा, आरसन्तो सुमेरवं । पीडिओ मि सकम्मेहि, पावकम्मोअंणण्तसो ॥ ५३ ।।

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