Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीउत्तराध्ययन सूत्र - द्वादशमाध्ययनम्
हाय ते करा सन्ति भिक्खू, कयरेण होमेण हुणासि जोई ॥ ४३ ॥ तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंगं । कम्मेहा संजमजोगसन्ती, होमं हुणामि इसिणं पसत्थं । ४४ ।। के हर के य ते सन्तितित्थे, कहिं सिणाओ व रयं जहासि । आइक्ख णे संजय जक्खपूइया, इच्छामो नाउं भवओ सगासे ।। ४५ । धम्मे हर बम्भे सन्तितित्थे, अणाविले अत्तपसन्नले से । जहिं सिणाओ विमलो विसुद्धो, सुसीइओ पजहामि दोसं ॥ ४६ ॥ एयं सिणाणं कुसले हि दिट्ठे, महासिणाणं इसिणं पसत्थं । जाहि सिणाया विमला विसुद्धा, महारिसी उत्तमं ठाणं पत्त ॥ ४७ ॥ त्ति बेमि || इअ हरिएसिज्जं समत्तं ॥ १२ ॥
(१९)
॥ अह चित्तसम्भूइजं तेरहमं अज्झयणं ॥
नाईपराजइओ खलु, कासि नियाणं तु हत्थिणपुरम्मि । चुलणीए बम्भदत्तो, उववन्नो पउग्गुमाओ ॥ १ ॥ कम्पिल्ले सम्भूओ, चित्तो पुण जाओ पुरमतालम्मि। सेट्ठिकुलम्मि विसाले, धम्मं सोऊण पव्वइओ ॥ २ ॥ कम्पिल्लम्मियनय रे, समागया दो वि चित्तसम्भूया । सुहदुक्ख फल विवागं, कहेन्ति ते एकमेकस्स ॥ ३ ॥ चक्कवट्टी महिड़ीओ, बम्भदत्तो महायसो । भायरं बहुमाणेणं, इमं वयणमबब्वी ॥ ४ ॥ आसी भायरो दोवि, अन्नमन्नवसाणुगा | अन्नमन्नमणूरत्ता, अन्नमन्नहिए सिणो ॥ दासादसणे आसीमु, मिया कालिंजरे नगे । हंसा मयंगतीरे, सोवागा कासिभूमिए ॥ देवाय देवलोम्मि, आसि अम्हे महिढीया । इमा नो छट्टिया जाई, अन्नमन्त्रेण जा विणा ॥ ७ ॥ : कम्मा नियाणपयडा, तुमे राय विचिन्तिया । तेसिं फलविवागेण, विप्पओगमुवागया ॥ ८ ॥ सच सोय पगडा, कम्मा मए पुंरा कंडा । ते अज परिभुंजामो, किं तु चित्तेवि से तहा ॥ ९ ॥
५ ॥
६ ॥
सव्वं सुचिणं सफलं नराणं, कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि । अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहिं आया ममं पुण्णफलोववे ॥ १० ॥ जाणाहि संभूय महाणुभागं, महिड्ढीयं पुण्ण फलोववेयं । चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं, इड्ढी जुई तस्स वियम्भूया ॥ ११ ॥ महत्थरूवा वयणष्पभूया, हा गया नरसंघ मज्झे । जं भिक्खुणी सीलगुणोववेया, इहं जयन्ते सुमणो मि जाओ ॥ उच्चोयए महु कक्के य बम्भे, पंवेइया आवसहाय रम्मा । इमं हिं चित्त धंणभूयं, पंसाहि पंचालगुणोववेयं ॥ १३ ॥ नहि गीएहि य वाइएहिं नारीजणाहिं परियारयन्तो । भुंजाहि भोगाइ इमाइ भिक्खू, मम रोयई पवज्ज हु दुख ॥ १४ ॥
१२ ॥
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