Book Title: Siddhant Swadhyaya Mala - Uttaradhyayan Dashvakalik Nandi Uvavai Sukhvipak Sutrakritang
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj
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श्रीजैन सिद्धान्त-स्वाध्यायमाला
आसीविसो उग्गतवो महेसी, घोरव्वओ परक्कमो य । अगणिव पक्खन्द पयंगसेणा, जे भिक्खुयं भत्तकाले वदेह ॥ २७ ॥ सीसेण एवं सरणं उवेह, समाजया सव्वजणेण तुम्भे ।
इच्छह जीवियं वा धणं वा, लोगंपि एसो कुविओ डहेज्जा ॥ २८ ॥ अवहेडिय पिट्ठिस उत्त मंगे, पसारिया बाहु अकमचेट्ठे । निज्झेरियच्छे रुहिरं वमन्ते, उद्धंमुहे निग्गयजीहनेते ॥ २९ ॥ "ते पासिया खण्डियकट्टभ्रूए, विमणो विसण्णो अह माहणो सो । इस पसाएइ सभारियाओ, हीलं च निन्दं च खमाह भन्ते ॥ ३० ॥ 'बालेहि मूढेहि अयाणएहिं, जं हीलिया तस्स खमाह भन्ते । महप्पसाया इसिणो हवन्ति, न हु मुणी कोवपरा हवन्ति ।। ३१ ।। पुव्विं च इहिच अणागयं च, मणप्पदोसोन मे अस्थि कोइ । जक्खा हु वेयावडियं करेन्ति, तम्हा हु एए निहया कुमारा ।। ३२ ।। अत्थं च धम्मं च वियाणमाणा, तुब्भं न वि कुप्पह भूइपन्ना । तुब्भं तु पाए सरणं उवेमो, समागया सव्वजणेण अम्हे ॥ ३३ ॥ अच्चे ते महाभाग, न ते किंचि न अच्चिमो । जाहि सालिमं कूरं, नाणार्वजण संयं ॥ ३४ ॥ इमं च मे अत्थि पभूयमन्नं तं भुंजसू अम्ह अणुग्गहट्ठा । बाढं ति पडिच्छर भत्तपाणं, मासस्स ऊ पारणए महप्पा ॥ ३५ ॥ तहियं गन्धोदयपुष्पवासं, दिव्वा तर्हि वसुहारा य बुट्ठा । पहयाओ दुन्दुहीओ सुरेंहिं, आगासे जहो दाणं च घुटुं ।। ३६ ।। सक्ख खुदीसह तवोविसेसो न दीसई जाइ विसेस कोई । सोवागपुत्तं, हरिएससाहुं, जस्सेरिसा इड्डि महाणुभागा ॥ ३७ ॥ किं माहणा जोइसमारभन्ता, उदएण सोहिं बहिया विमग्गह । जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं, न तं सुइटुं कुसला वयन्ति ॥ ३८ ॥ कुसं च जूवं तणकट्ठमींग, सायं च पायं उदगं फुसन्ता । पाणा भूयाइ विहेडयन्ता, भुज्जो वि मन्दा पगरेह पावं ।। ३९ ।। कहं च रे भिक्खु वयं जयामो, पावाइ कम्माइ पुणोल्लयामो । अक्खाहि णे संजय जक्खपूड़या, कहं सुजटुं कुसला वयन्ति ॥ ४० ॥ छज्जीवका असमारभन्ता, मोसं अदत्तं च असेवमाणा । परिग्गहं इथिओ माणमायं, एयं परिन्नाय चरन्ति दन्ता ॥ ४१ ॥ सुसंबुडा पंचहिं संवरेहिं, इह जीवियं अणवकखमाणा । बोकाइ सुइचत्तदेहा, महाजयं जयं जन्न सिङ्कं ॥ ४२ ॥ ते जोई के व ते जोइठाणे, का ते सुया किं वं ते कारिसंगं ।
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