Book Title: Shwetambar Mat Samiksha
Author(s): Ajitkumar Shastri
Publisher: Bansidhar Pandit

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Page 10
________________ ( २ ) अवनतिके इस ( संघभेद ) निमित्तपर प्रकाश डालनेके लिये तथा श्वेतांबर सम्प्रदाय के निष्पक्ष निर्णयेच्छु सज्जनोंके अवलोकनार्थं कुछ लिखने की इच्छा पहले से ही थी जो कि तीन कारणोंसे और भी जाग्रत हो उठी थी । १ - अनेक श्वेतांबरीय विद्वानोंने निष्पक्ष युक्तियों से नहीं किंतु अनुचित असत्य कुयुक्तियोंसे दि० जैन सिद्धांतोंपर अपने ग्रंथों में आक्षेप किए हैं जो कि श्वेतांबरी भोली जनता में भ्रांति उत्पन्न कर रहे हैं । २ - कतिपय अजैन विद्वानोंने श्वेतांबरीय ग्रंथों में मांसभक्षण आदि अनुचित विधान देखकर जैन धर्मकी निंदा करना प्रारंभ कर दिया था जिनका कि खुलासा उत्तर देकर जैन धर्मसे कलंक दूर करना भी आवश्यक था । ३ - हमारे अनेक दिगम्बरी भ्राता भी, श्वेतांबरीय दिगम्बरीय सिद्धांतों के विवादान्न भेदसे अनभिज्ञ हैं, उनको परिचय कराने के लिए स्थानीय दिगम्बरी ओसवाल भाइयोंकी प्रबल प्रेरणा थी । वहां के इनके सिवाय तात्कालिक कारण एक यह भी हुआ कि सोलापुर से प्रधानपुरुष धर्मवीर रा. रा. श्रीमान् सेठ रावजी सखाराम दोशी की सम्पादकीमें ' प्रकाशित होनेवाले मराठी भाषा के जैनबोचक में (वीर सं. २४५३ चैत्र मासके अंक में ) पं. जिनदासजी न्यायतीर्थ सोलापुरका एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें उन्होंने एक अजैन विद्वान् के लेखका प्रतिवाद करते हुए लिखा था कि " दिगम्बर जैन शास्त्रों में मांस भक्षण विधान नहीं है " । उस श्रीमान् जैन विद्वान ने अपनी लेखमाला में एक स्थानपर श्वेताम्बरीय आचारांग सूत्र ग्रंथ के ६२९ वें तथा ६३० वें सूत्रका प्रमाण देते हुए यह लिखा था कि अहिंसा धर्मके कट्टर पक्षकार जैनधर्मके धारक साधु भी पहले समय में मांसभक्षण करते थे । जैन विद्वानद्वारा श्वेताम्बरीय शास्त्रों के आवारसे जैनधर्मकी ऐसी निन्दा होते देखकर हमारी वह इच्छा और भी प्रबल हो गई कि जनता के समक्ष सत्य समाचार रखना परम आवश्यक है जिससे कि सच्चे जैनधर्मका असत्य अपवाद न होने पावे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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