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वक्तव्य महान अध्यात्मयोगी द्रव्यानुयोग के महान ज्ञाता एवं अपनी अनेक सुन्दर व विद्वता पूर्ण रचनाओं द्वारा स्व और पर का महान् उपकार करने वाले श्रीमद् देवचन्द्रजी महाराज रचित प्रकट-अप्रकट स्तवन, सज्झाय, पद आदि प्रकाशित करके अध्यात्म प्रेमी महानुभावों के कर कमलों में रखते हुए हमें अत्यन्त हर्ष का अनुभव हो रहा है।
आज से पैंतीस वर्ष पूर्व परम पूज्य गुरुदेव श्री बुद्धिमुनिजी महाराज साहब की प्रेरणा से एक पुस्तिका गुजराती भाषा में प्रकट की गई थी परन्तु हिन्दी भाषी क्षेत्रों के लोग जो गुजराती भाषा पढ़ने में असमर्थ हैं, वे इस पुस्तक से लाभ उठाने में सर्वथा वंचित रहे । अतः मेरी दीर्घ काल से यह इच्छा थी कि हिन्दी भाषा में श्रीमद् देवचन्द्रजी के प्रकट-अप्रकट स्तवन, सज्झाय पद आदि संग्रहकर एक बड़ी पुस्तक प्रकाशित की जाय।
वीर संवत् २५०० में जब मेरा चतुर्मास जयपुर में था, उस समय बीकानेर निवासी विद्वान व पुरातत्वविद सुश्रावक श्री अगरचंदजी नाहटा दर्शनार्थ वहाँ आए थे। उन्होंने मुझे बताया कि श्रीमद् देवचन्द्रजो के अप्रकट स्तवन सज्झाय मुझे और भी मिली हैं, जो अभी तक मुद्रित नहीं हुई हैं। उसी समय मेरे मन में विचार आया कि श्रीमद की इन अप्रकट रचनाओं के साथ साथ उनकी अन्य लोक प्रिय रचनाओं व.ा संग्रहकर हिन्दी भाषा में एक पुस्तक प्रकट करवानी चाहिए। मैंने नाहटा साहब से इन रचनाओं का संग्रहकर मेरे पास भेजने का प्रस्ताव किया।
वीर संवत् २५०१ में जब मेरा चतुर्मास जोधपुर में हुआ तब यहाँ के श्री संघ को प्रस्तुत पुस्तक को मुद्रित कराने के लिए कहा । तत्कालीन खरतरगच्छ जैन संघ के अध्यक्ष श्री जबरमल जी चोरडिया, सचिव प्रकाशमलजी पारख तथा श्री गुमानमलजी पारख, श्री उगमराजजी भंसाली एडवोकेट आदि सज्जनों ने इस पुस्तक के प्रकाशन में पूरा सहयोग देने की स्वीकृति प्रदान की।
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