Book Title: Shreechandra Charitra
Author(s): Purvacharya
Publisher: Jinharisagarsuri Jain Gyanbhandar

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Page 9
________________ इस चरित्र को पूर्वाचार्यों ने प्राकृत और संस्कृत दोनों भाषाओं में लिखा है । भाविक लोग वर्द्धमान तप की साधना करते भी हैं । सर्व साधारण हिन्दी भाषा-भाषी लोगों के हित का ख्याल रखते हुए श्रीपरमगुरु जैनाचार्य श्रीमजिन हरिसागर सूरीश्वरजी महाराज साहन के शिष्य रत्न सार्थक नामा श्रीकबोन्द्र सागरजी महाराज की प्रेरणा से मैने इस चरित्र को हिंदी भाषा में लिखा है । इस को लिखने की शरुआत मैने मेरी पूज्य-गुरुवर्या श्रीमती दयाश्रीजी महाराज साहिबा के साथ सं० १६६३ के अजमेर के चतुर्मास में की थी। इसकी पूर्णता सं० १६६५ की वसंत पंचमी को बीकानेर के चतुर्मास में हुई । ___ इस चरित्र के लिखने में पूज्या श्री कंचन श्रीजी महाराज एवं श्रीमती सुरेन्द्रश्रीजी का सहयोग और अजमेर बीकानेर की श्राविकाओं का उत्साह सदा सराहनीय और स्मरणीय रहेगा। इसमें कहीं दर्शन से विपरीत लिखा गया हो, भाषा में और भावों में त्रुटियाँ रह गई हों तो विद्वज्जन कृपया उनका परिमार्जन करें। गच्छतः स्खलन क्वापि, भवत्येव प्रमादतः । हसन्ति. दुर्जनास्तत्र, समादधति सज्जनाः । इति प्राधिकाजैनाया-बुद्धिश्री बीकानेर

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